गुरुवार, 26 मई 2011

नीलकंठ पत्रकार और सेकुलर एक्सप्रेस:


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अभी अभी मिल कर आ रहा हूँ नीलकंठ भाई से ...बेचारे  अपनी आप बीती सुना रहें थे सोचा आप लोगो से साझा करूँ ..लेकिन एक बात आप सभी सम्मानित जनों से मेरे पास उनसे बातचीत की कोई विडियो नहीं है..इसलिए इसे आप काल्पनिक भी मान सकते हैं...आज-कल जमाना है स्टिंग का..लेकिन मेरी तनख्वाह इतनी नहीं की समाज या देश सेवा कैमरे के साथ कर सकूँ..
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हुआ कुछ यूँ की नीलकंठ जी  कार्यरत थे किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी में..उसी समय उनका मिलना हुआ "सेकुलर एक्सप्रेस" दैनिक के मालिक  हरिदास सिन्हा से, जो की एक समर्पित पत्रकार भी थे...नीलकंठ जी को उन्होंने दे दिया न्योता, की "सेकुलर एक्सप्रेस" में एक कालम लिखो....नीलकंठ जी समसामयिक और धार्मिक विषयों पर कभी कभी  कुछ न कुछ कलम घिस लेते थे, अब मंच दे दिया हरिदास सिन्हा ने अपने अख़बार में..अब तो नीलकंठ की निकल पड़ी.. कलम भी चल पड़ी और कुछ मुरीद भी मिल गए...
कुछ लेखों के बाद अख़बार की  तिमाही मीटिंग में हरिदास जी ने, नीलकंठ को फ़ोन किया और प्रस्ताव दिया यार तुम्हारा कालम रेगुलर कर दिया जाए,कैसा रहेगा???और तुम सेकुलर एक्सप्रेस के अंशकालिक पत्रकार भी बन जाओ..नीलकंठ को क्या चाहिए था ,अंधे को दो आँख..उनकी पत्रकारिता की  कामना का तरु पल्लव पल्लवित होने के लिए अठखेलियाँ करने लगा..साक्षात्कार की तारीख फिक्स हो गयी, क्यूकी हरिदास जी मालिक जरुर थे, मगर अपने मातहतों को कभी नौकर नहीं समझा उन्होंने..भाई निदेशक मंडल की राय जरुरी थी..शाम को ७ बजे समय फिक्स हुआ ..नीलकंठ पहुंचे अपनी चुरकी को बांधते  हुए...चलते चलते  चन्दन और लगा लिया की रिजेक्सन की गूंजाइस न रहे ..तुर्रा ये की दहेज़ में मिला कुरता पहन लिया, गलती से वो भगवा रंग का था..
साक्षात्कार मंडल में ३ लोग थे हरिदास सिन्हा जी, जनक जी ,और पातंजलि...आगे बढ़ने से पहले बता दूँ की नीलकंठ जी के अन्दर एक  बहुत बड़ी कमी थी की वो सच को सामने लाने  के लिए प्रमाण का सहारा नहीं लेते थे..सूत्रों से मिली खबर को भी लाइव कर देते थे..और जन्म से हिन्दू होने के कारण अपने धर्म की विशेषता या किये गए अत्याचारों पर बोलने से झिझकते नहीं थे.. चलिए कहाँ विषयांतर में फस गए ...
आगे बढ़ते हैं,तो शुरू हुआ नीलकंठ का साक्षात्कार, "सेकुलर एक्सप्रेस" में...हाँ ३ लोगों में से पातंजलि जी नहीं आ पाए थे, अतिब्यस्तता के कारण इसलिए वो वेब कांफ्रेसिंग के जरिये साक्षात्कार में शामिल हो गए,धन्य है आज की संचार प्रौद्योगिकी जो मीलों दूर बैठे ब्यक्ति का आभासी स्वरुप कम से कम  सामने ला देती है....पातंजलि जी सेकुलर एक्सप्रेस की वितरण और मार्केटिंग से सम्बंधित प्रबंधन देखते थें..
पहला प्रश्न दागा हरिदास जी ने.. आप कैसे "सेकुलर एक्सप्रेस" में योगदान दे सकते हैं....नीलकंठ जी ने कहा श्रीमान मैं "सेकुलर एक्सप्रेस" को रॉकेट की गति से ले जाऊंगा बस पुष्पक विमान और राम के बारे में कुछ लिखने की अनुमति चाहिए...हरिदास जी खुद भी इश्वर के महाभक्त, मुस्करा कर रह गए नीलकंठ की हाजिरजबाबी से ..
तभी जनक जी ने बोला नहीं नहीं, नीलकंठ इस अख़बार में कोई धर्म वर्म की बात नहीं होगी,देखो में भी पहले बहुत लिखता था जब नया नया आया था तुम्हारी तरह मगर अब इससे कुछ हासिल नहीं होने वाला... भूल जाओ क्या हुआ तुम्हारे साथ,अपने को आगे के लिए तैयार करो...
ये बताओ क्या जानते हो आज की राजनीति के बारे में????नीलकंठ जी पूरी तयारी से आये थे और अमर सिंह का प्रभु चावला के साथ टेप भी सुनकर आये थे,सो दोहरा दिया ' आज कल राजनीति में यही हो रहा है वो मुझको ठोक रहा है मैं उसको ठोक रहा हूँ" बाकि जो बजे वो ताली ठोक रहे हैं...जनक जी मुस्कराए बिना नहीं रह पाए ..मगर साथ में वरिष्ठ  होने के के कारण राय दे डाली की इतनी स्पष्टवादिता ठीक नहीं होती..फिर भी मेरी तरफ से तुम ओके हो...हरिदास जी ने भी अपनी रहस्यमयी हिंदुत्व का लबादा ओढ़े हुए सेकुलर मुस्कान से सहमती दे दी..

मगर तूफान के पहले की शांति की तरह पातंजलि जी खामोश...पता चला की संचार की आडिओ ठीक नहीं होने के कारण उनकी आवाज नहीं आ पा रही थी,अब जा के ठीक हुआ ..
पातंजलि  का पहला प्रश्न या यूँ कह ले नीलकंठ के लिए विशेषण "अरे तुम्हारा नाम नीलकंठ है ..इस नाम से मुझे साम्प्रदायिकता की बदबू आती है" 
नीलकंठ आवक ...." पातंजलि जी मुझे तो भगवान शिव की छवि याद आती है" थोडा सँभालते हुए नीलकंठ ने कहा...
दूसरा बम भी तैयार था, वेबकैम के माध्यम से गिरा" ये शिखा क्या बना रक्खी  है, तुम तो सांप्रदायिक लगते हो,कहीं भगवा एजेंट तो नहीं हो, जो इस अख़बार में सेंध लगा रहे हो.. नहीं नहीं श्रीमान 'हकलाते हुए नीलकंठ बोले" तभी पातंजलि की निगाह पड़ी भगवा कुरते पर अब क्या था पारा सातवे आसमान पर अपने भावनाओं पर काबू करते हुए पातंजलि ने हरिदास की और देखते हुए बोला" ये भगवा आतंकवादी नहीं चाहिए मुझे..इसकी हिम्मत कैसे हुई "सेकुलर एक्सप्रेस"के आफिस में भगवा पहन कर आने की...जल्दी बाहर करें इस कूड़े को.......
नीलकंठ की अब दूसरी कमजोरी हिलोरे मारने लगी वो उनका गुस्सा ..जी में आया की पातंजलि को पातंजलि योग प्रदीप पुस्तक का दर्शन करा दें अपने तांडव से, मगर हरिदास जी से वो बड़े भ्राता जैसा स्नेह रखते थे, सो मन मसोस कर अपने ससुराल वालों को कोस कर रह गए की कुरता दिया भी दहेज़ में तो, भगवा रंग का सालों ने.....चलिए बहुमत साथ था तो नौकरी मिल गयी मगर, पातंजलि जी की आँखों में किरकिरी तो बन ही गए नीलकंठ...
एक बार नौकरी मिलते ही,अपने पुराने रंग में वापस नीलकंठ ...अन्दर का पत्रकार हिलोरे मारता और वो दिन रात एक कर के लेख लिखते सेकुलर एक्सप्रेस में,बीच बीच में हरिदास और जनक जी पीठ थपथपा देते, तो पत्रकारिता के नवोदित बालक को ,जिसके दूध के दांत भी टूटे नहीं थे,समाज बदलने का दिवास्वप्न्न आने लगे..
मगर पातंजलि जी पूरे इंतजार में थे की एक गलती नीलकंठ की और उसकी खोजी पत्रकारिता का पिंडदान सेकुलर एक्सप्रेस में ही हो जाए...
समय बीतता गया और वो गलती कर दी नीलकंठ ने ...पहले इटली से आयातित कुछ विचारधारा को गलत बताया ...पब्लिक का क्या साथ हो ही लेती है ...पातंजलि चुप..फिर इटली की रानी का चरित्र चित्रण पातंजलि चुप फिर युवराज...हद तो तब हो गयी जब उसने लादेन को लादेन और कसब को कसब कह दिया....
अरे ये नीलकंठ क्या कर रहा है  हरिदास जी, इसको पता नहीं देश के दामादों(अफजल और कसब) के बारे में सम्मान से लिखना चाहिए... ये उन्हें पाकिस्तानी आतंकवादी और न जाने क्या क्या बता रहा है..और पहली बहुप्रतीक्षित "सेकुलर एक्सप्रेस' से निकलने की वार्निंग नीलकंठ को...अब नीलकंठ ने सोचा अपना नाम निलाकुद्दीन रख लूँ तो नौकरी बच जाए..मगर बच्चों का क्या होगा ..बीबी का धर्म भी बदलेगा...समाज क्या कहेगा..खैर ...जैसे तैसे फील्डिंग लगा के हरिदास  जी से अभयदान पा लिया...
लेकिन कहते हैं न "आदत छुटे नहीं छुटती" आज हद हो गयी एक हिन्दू नाबालिक लड़की के साथ  दुष्कर्म हुआ और नीलकंठ की इतनी मजाल जो उसकी आप बीती सेकुलर एक्सप्रेस में छाप दे..अरे हिन्दू लड़की तो होती ही है बलात्कार और शोषण के लिए..नीलकंठ के जानने वाली थी तो खबर  पक्की मान कर चाप दिया लेख..
दूसरी वार्निंग पातंजलि की ..क्या प्रमाण है इस लड़की का बलात्कार हुआ है???क्या विडियो है इसका ?? क्या तुमने मेडिकल कराया?? क्या पता किता बलात्कार करने वाला कौन है??क्या इसके पड़ोसियों से पूछा बलात्कार कैसे किया गया??इसके कपडे कहाँ कहाँ से फाड़े गए थे उसका चित्र है???ये जब देखो तब सूत्रों से मिली खबर तुमको ही क्यों मिलती है नीलकंठ...जाओ पहले बलात्कार का विडियो बनाओ फिर यहाँ आना..अब पानी सर से ऊपर हो रहा है हरिदास जी..कभी ये इश्लाम तो कभी युवराज तो कभी इतिहास तो कभी शिवलिंग..ये इन्सान बखेड़ा खड़ा करता है ..केवल जीभ चलता रहता है...समाज में क्या योगदान है इसका???
अरे हिंदुत्व की बात  करने की बार बार हिमाकत करता है..."सेकुलर एक्सप्रेस" की रीडरशिप घट गयी..मदरसों ने एड देना बंद कर दिया...क्या बंद करना है इस सेकुलर एक्सप्रेस को, जो एक भगवा गुंडे को बैठा रखा है, सेकुलर लोगों को सेकुलर श्वान बोलने के लिए????अब या तो ये या तो मैं....

पता चला जनक जी ब्याक्तिगत कार्य में ब्यस्त थे ...हरिदास  की परिस्थिति भी धृतराष्ट्र  जैसी, अगर नीलकंठ को न निकाला तो पातंजलि चला जाएगा  सेकुलर एक्सप्रेस कैसे बिकेगा..धन्धा बंद..और अगर नीलकंठ को निकला तो नैतिक आधार क्या होगा ...रीडर तो उसके लेख पसंद ही करते हैं बड़ी उलझन है भाई..
तभी मोबाइल की घंटी बजी..."नीलकंठ कालिंग"..हेल्लो हरिदास  जी, मैं इस मंच से स्वेच्छा से इस्तीफा दे रहा हूँ ..जो राम का नहीं वो हमारे किसी काम का नहीं.....अब हरिदास  जी सोच रहे थे "जय श्री राम" आप से ही चल रहा है "सेकुलर एक्सप्रेस" का काम ..दुविधा से मुक्ति मिली.....

चलो भाई नीलकंठ तुम अगर जाना चाहते हो तो में कैसे रोक सकता हूँ...एक काम करो एक नया अख़बार निकलना शुरू किया है...हिंदी हिन्दू हिन्दुस्थान...हम अब उधर ध्यान देते हैं..वहाँ ये पातंजलि का पंगा भी नहीं रहेगा और तुम देशभक्ति भी कर लेना.....और हाँ खाली हाथ नहीं सेकुलर एक्सप्रेस की तरफ से में तुम्हे योगदान के लिए ५ हजार का चेक भी दूंगा..मगर नीलकंठ वो तुम्हारे इस्तीफे वाली खबर हम कालम से हटा रहें हैं...सेकुलर मज़बूरी है...और ये ५ हज़ार मेरी तरफ से भी...
कल से "हिंदी हिन्दू हिन्दुस्थान".के आफिस में तुम्हारा स्वागत है...फिर मिलते हैं. 

सामने रखे कंप्यूटर में ईमेल पर "पातंजलि" का धन्यवाद लिखा मेसेज फ्लेश कर रहा था......
"सेकुलर एक्सप्रेस" और "हिंदी हिन्दू हिन्दुस्थान" दोनों मजे में चल रहा है...
हरिदास जी भी गा रहें हैं..
हरी अनंत हरी कथा अनंता......


आशुतोष की कलम से 

4 टिप्‍पणियां:

  1. हरिदास सिन्हा नहीं हरीश सिंह ही रहने दे जनाब, मुझे पता है यह पोस्ट क्यों लिखी गयी है.

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  2. बिलकुल सही !
    हरि अनंत हरि कथा अनंता...

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  3. क्या हरीश भाई ..
    बड़े भाई हो कर भी आप अरे पातांजलि जी कम थे क्या जो आप आ गए हरिदास बनने ,,चलिए माना अगर आप ही है हरिदास तो देखिये कुछ गलत लिखा है क्या आप के बारे में..
    ये एक काल्पनिक कहानी है जिसका किसी घटना मात्र से १-२% का संयोग से मिलन हो जाए तो मेरे रचनाधर्मिता को घटना विशेष की कापी या नक़ल समझकर मेरे अन्दर के लेखक को जन्म लेने से पहले ही न मारा जाए...
    आभार आप सभी का ..

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