मंगलवार, 27 जून 2017


खेल- खेल मै खेल रहा हूँ
कितने पौधे हमने पाले
नन्ही मेरी क्यारी में
सुंदर सी फुलवारी में !
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सूखी रूखी धरती मिटटी
ढो ढो कर जल लाता हूँ
सींच सींच कर हरियाली ला
खुश मै भी हो जाता हूँ !
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छोटे छोटे झूम झूम कर
खेल खेल मन हर लेते
बिन बोले भी पलक नैन में
दिल में ये घर कर लेते !
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प्रेम छलकता इनसे पल-पल
दर्द थकन हर-हर लेते
अपनी भाव भंगिमा बदले
चंद्र-कला सृज हंस देते !
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खिल-खिल खिलते हँसते -रोते
रोते-हँसते मृदुल गात ले
विश्व रूप ज्यों मुख कान्हा के
जीवन धन्य ये कर देते
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इनके नैनों में जादू है
प्यार भरे अमृत घट से हैं
लगता जैसे लक्ष्मी -माया
धन -कुबेर ईश्वर मुठ्ठी हैं
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कभी न ऊबे मन इनके संग
घंटों खेलो बात करो
अपनापन भरता हर अंग -अंग
प्रेम श्रेष्ठ जग मान रखो
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कभी प्रेम से कोई लेता
इन पौधों को अपने पास
ले जाता जब दूर देश में
व्याकुल मन -न पाता पास !
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छलक उठे आंसू तब मेरे
विरह व्यथा कुछ टीस उठे
सपने मेरे जैसे उसके
ज्ञान चक्षु खुल मीत बनें
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फिर हँसता बढ़ता जाता मै
कर्मक्षेत्र पगडण्डी में
खेल-खेल मै खेल रहा हूँ
नन्ही अपनी क्यारी में
सुन्दर सी फुलवारी में !
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सुरेंद्र कुमार शुक्ल भ्र्मर ५
शिमला हिमाचल प्रदेश
२.३० - ३.०५ मध्याह्न
९ जून १७ शुक्रवार




दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं






गुरुवार, 22 जून 2017

मेरे मन की



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शुक्रिया

रविवार, 11 जून 2017

वैष्णो माता के दर्शन .....



जब १९८९ -९० में मैं पहली बार मै वैष्णो देवी गया तो कटरा से बान गंगा से निकल कर अर्ध्कुमारी होते हुए पैदल पहुंचा माता के दरबार में तो पूरे रास्ते भर जयकार लगाते हुए लोग मिले . कितना दुर्गम था रास्ता पता ही नहीं चला लेकिन एक बात जो हर व्यक्ति महसूस करता था कि जैसे वैष्णो माता के दर्शन कटरा से ही शुरू हो जाते थे और भवन तक पहुंचना जैसे आस्था का चरम होता था . रास्ते में कितने ही लंगर चलते थे . टी सीरीज के गुलशन कुमार का लंगर जो हमेशा चलता था, लोग कैसे भूल सकते हैं..

कालान्तर बहुत अच्छी सुविधाए हुयी विशेषतया जगमोहन जी के राज्यपाल रहते हुए और आज कटरासे हेलीकोपटर की सुविधा है और ये सुविधा घोड़े और पालकी से भी सस्ती है (रुपये ११०० / एकतरफ से ). जाने और आने में सर्फ २० मिनट और हेलीकोप्टर से जुड़े वीआईपी दर्शन के कारण १ से २ घंटे में दर्शन और वापस .
पिछले महीने माता के दर्शन करने मैं भी हेलीकोप्टर से गया हेलिपैड से मंदिर ३ किमी है जो बहुत दुष्कर नहीं होहम लोगों ने महसूस किया कि अश्था के जिस सैलाव के दर्शन हर कदम पर होते थे उस की प्राप्ति नहीं हो सकी . हेलीपैड पर एक पोर्टर बहुत अनुरोध करने लगा तो हमने उसे साथ ले लिया हालाकि हमारे पास कोई सामान नहीं था, हमने उसे साथ ले लिया . उसका नाम था लाल खान.
वैष्णो मंदिर से भैरव बाबा का मंदिर भी ३ किमी है जो बहुत खडी चढ़ाई है . माता के दर्शन के बाद हमलोग पैदल चलकर भैरव बाबा के मंदिर पहुंचे . लाल खां हमारे साथ रहा. ..माता का जयकारा लगता रहा रस्ते भर. मेरी पत्नी की बहुत सहायता की . सहारा देकर चढ़ाई पार करवाई और .पैर भी दबाये . क्या हिन्दुस्तान का आम मुसलमान लालखां को समझ सकेगा .

रास्ते में हमने देखा कि कई नौजवान युवक और युवतिया अपने छोटे बच्चों को गोद लिए हुए पैदल ही कटरा से वैष्णो माता और वहां से भैरव बाबा जा रहे है . कुछ ने पैरों में जूते और चप्पल भी नहीं पहन रखे है क्योकि उन्होंने ऐसा प्रण किया था .इतनी आस्था और इतना विस्वास देख कर बहुत अच्छा लगा और आस्था के इस संगम में बहते हुए हमलोग भी बड़ी आसानी से ऊपर पहुँच गए .

दर्शन के बाद सीधे हेलीपेड पहुंचा जो लगभग ३ किमी है और फिर कटरा . पूरे रास्ते भर सोचता रहा कि आस्था और विश्वास दोनो ही शक्ति देते हैं, कभी मर नहीं सकते