सोमवार, 18 अप्रैल 2011

अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद





भगत सिंह की भांति यह क्रांतिवीर भी किसी परिचय का मोहताज नहीं ,तेजोमय आँखें ,बलवान शरीर , मझला कद ,चेहरे पर स्वाभिमान और देश प्रेम की चमक , तानी हुई रौबदार उमेठी नुकीली मूछें ,ऊपर से कठोर ,अन्दर से कोमल , चतुर और कुशल निशानेबाज , ऐसे थे हमारे चंद्रशेखर आजाद | शहीद भगत सिंह ,सुखदेव ,राजगुरु की भांति माँ भारती के इस शेर के बलिदान को भी तिरस्कार मिला , किसी ने इनके शहादत को स्मरण न किया किन्तु अब ऐसा  न होगा ,मैं चंद्रशेखर आजाद की जीवनी पुरावांचल और अपने ब्लॉग में लिख रहा जिससे आप सब उनके जीवन को और अच्छे से जान सकें |
इन्कलाब जिंदाबाद !

चंद्रशेखर आजाद का जन्म २३ जुलाई १९०६ को मध्य प्रदेश की भंवरा ग्राम में हुआ था ,इनके पिता का नाम पंडित सीताराम तिवारी था जो ईमानदार ,परिश्रमी ,और स्वाभिमानी थे वो गाँव के स्कूल के अध्यापक थे ,इनकी माता जगरानी देवी धर्मपरायण महिला थीं | ये बचपन में थोड़े कमजोर थे (विरोधाभास की चरम सीमा जो इनके जीवन में देखने को मिलती है ) बाद में ये कैसे इतने बलवान बने इसका तो कोई प्रमाणिक इतिहास नहीं , हाँ इतना अवश्य  सुना जाता है की इनके गाँव में आदिवासी लोग अधिक थे तो वहां यह मान्यता थी की बचपन में यदि बच्चे को शेर का मांस खिलाया जाए तो वो भी बड़ा हो कर शेर की तरह बलवान बनता है इस कारण बालक चंद्रशेखर को भी ब्राह्मण होने के बाद भी शेर का मांस खिलाया गया | बालक चंद्रशेखर बचपन से ही शरारती किन्तु सिद्धांतों के पक्के थे ,वो बचपन से ही बड़े साहसी थे | एक बार ये बचपन में अपने बड़े भाई सुखदेव (क्रांतिकारी शहीद सुखदेव नहीं ) के साथ घर में एक जी के साथ ट्यूशन पढ़ रहे थे ,इनके मास्टर जी पास में एक बेंत रखते थे जिससे वो पढाई में गलती करने वाले की पिटाई किया करते थे ,वो बच्चों को कुछ बोल बोल कर लिखवा रहे थे ,अचानक इनसे बोलने में एक शब्द 
गलत निकल गया ,बालक चंद्रशेखर ने यह ताड़ लिया उन्होंने बेंत उठाई और मास्टर जी को दो बेंत सटाक ! सटाक ! जड़ दी ,मास्टर जी बौखला गये .पिताजी ने जब चंद्रशेखर से उसका कारण पुछा तो उन्होंने कहा -"हमारी गलती पर यह हमे मारते हैं ,इनकी गलती पर मैंने इन्हें मार दिया " सब बालक चन्द्र का मुह ताकने लगे ,सब निरुत्तर थे | एक बार दिवाली की रात्रि को बालक  चंद्रशेखर फुलझड़ी छुड़ा छोटे बच्चों का मनोरंजन कर रहे थे ,अचानक एक बच्चे ने कहा -"यदि एक फुलझड़ी इतना कमाल करती है तो दस फुलझड़ी एक साथ जले तो कैसा आनंद आये " ,चंद्रशेखर ने न आव देखा न ताव दस फुलझड़ियाँ एक साथ उठायीं और जलाना आरंभ कर दिया | इतनी फुलझड़ियाँ जलती देख बच्चे प्रसन्नता से कूदने लगे पर किसी का ध्यान उस वीर बालक के हाथों पर न गया ,चंद्रशेखर का हाथ जगह -जगह से बुरी तरह जल गया था ,जब उनके एक मित्र ने देखा तो उनकी माँ को बुला कर लाया ,माँ अपने बच्चे का घायल हाथ देख कर रोने लगीं ,चंद्रशेखर जी ने कहा "माँ यह शरीर मिटटी है और एक दिन इसे मिटटी में ही मिल जाना है तो इस शरीर से इतना मोह क्यों ?" बालक चन्द्र का तत्व ज्ञान सुन माँ समेत सभी अवाक् हो गये ,सभी समझ गए की इस बालक में कुछ है जो इसे औरों से अलग करता है | चंद्रशेखर का मन पढ़ाई में न लगता था यह स्कूल के बहाने अपने आदिवासी मित्रों के साथ वन में जा कर गुलेल आदि चलाना सीखते कदाचित इसी कारण इनका बन्दूक का निशाना इतना सटीक था | जब कुछ बड़े हुए तो इनकी इच्छा काशी में जा कर ,शास्त्रादी पढ़ कर शास्त्री बनने की हुई ,किन्तु माता -पिता अपने प्राणों से प्रिय चन्द्र को काशी भेजने को तैयार न हुए ,आज्ञा न पाकर किशोर चन्द्र एक रात चुपके से भंवरा से निकल गये सदा के लिए और पकड़ ली काशी वाली गाडी (कुछ जगह लिखा है की वो पहले बम्बई गये ,बाद में काशी किन्तु यह प्रमाणिक नहीं ) ,काशी में स्नातक शिष्यों के भोजन एवम रहने आदि का पूरा प्रबंध गुरुकुल कर करता है ,चंद्रशेखर भी वहीँ चले गए और शास्त्र पढ़ने लगे ,यहीं उनकी भेंट भारत के द्वितीय प्रधानमन्त्री श्री लालबहादुर शास्त्री से हुई जो उस समय वहीँ पढ़ रहे थे और चंद्रशेखर आजाद से दो वर्ष बड़े थे | वो चले तो गये वेदादि पढने किन्तु नियति ने तो उन्हें भारत माँ की सेवा करने का सौभाग्य प्राप्त करना लिख रखा था ,यहाँ आ कर उनका मन शास्त्रादी से पूरा उचाट हो गया और उनका मन अंग्रेजों द्वारा देश में होने वाले अत्त्याचारों से पीड़ित होने लगा ,वो अपने राष्ट्र से प्राणों से भी ज्यादा प्रेम करने लगे और अंग्रेजों से भयंकर  घृणा (किन्तु फिर भी उन्होंने जीवन पर्यंत  किसी निर्दोष अँगरेज़ की हत्या न की ), वो राजनीति में सक्रिय रूप से रूचि लेने लगे ,वहां वे बड़े कठोर और अनुशासन प्रिय हो गये ,साहसी तो वो थे ही ,उनका व्यक्तित्व और अनुशासन  देख हर कोई उनकी ओर देख कर खिंचा चला आता ,देश भर में असहयोग आन्दोलन जोर पकड़ रहा था ,दुर्भाग्य से भगत सिंह की तरह किशोरावस्था में उस गद्दार गाँधी के भक्त हो गये किन्तु जब गाँधी ने असहयोग आन्दोलन स्थगित किया तो उनकी गांधी के प्रति निष्ट नष्ट हो गयी ,उन्हें इस तथ्य पर पूर्ण रूप से विश्वास हो गया  की क्रांति और बन्दूक के जोर पर ही स्वतंत्रता मिल सकती है , उन्हें जलियावाला बाग़ की घटना से भयंकर पीड़ा पहुंची और वो अंग्रेजी साम्राज्य को नष्ट करने के मनसूबे बनाने लगे ,एक बार वो कहीं जा रहे थे तो देखा की एक फिरंगी अफसर भारतवासियों को बुरी तरह पीट रहा था यह उनसे देखा न गया और उन्होंने क्रोध में आकर खींच कर उस अफसर पर पत्थर जड़ दिया ,अफसर घायल हो गया ,चंद्रशेखर वहां से बच निकले किन्तु बाद में पकड़ लिए गये ,उन्हें जज के समक्ष प्रस्तुत किया गया ,जज अँगरेज़ था सोचा किशोर डर जायेगा किन्तु किशोर के मुख पर भय का नामोनिशान न था | जज तिलमिला उठा 
जज ने पुछा -
नाम?
उत्तर मिला -आजाद 
पिता का नाम?
स्वतंत्र 
माता का नाम ?
भारत माँ 
काम धंधा ?
देश की आजादी के लिए प्रयत्न 
जज क्रोध से जल भुन गया 
किन्तु खुद पर संयम रखते हुए पूछा 
पता?
उत्तर मिला -जेल खाना 
जज का संयम उत्तर दे गया उसने कहा -ले जाओ इस बालक को और पंद्रह कोड़े मारो ! 
चंद्रशेखर उस सजा को सुन कर व्यंग में हंस दिए
जब जल्लाद ने पंद्रह कोड़े मारे तो प्रत्येक कोड़े पर न वो चिल्लाये न उन्होंने पीड़ा का प्रदर्शन किया 
प्रत्येक कोड़े के साथ ही "भारत माता की जय ! और वन्दे मातरम ! निकला उस वीर के मुख से
जब कोड़े मारने के बाद जल्लाद ने उन्हें कुछ पैसे दिए पीठ का उपचार कराने के लिए तो उन्होंने उस पैसे को उसके मुह पर मारा 
और चले गये ,यह खबर अग्नि की तरह पूरे भारतवर्ष में फ़ैल गयी ,आजाद सबकी आखों के तारे हो गये | जब माता-पिता को यह बात पता चली तो उन्होंने आजाद से घर लौट चलने को कहा तो आजाद ने कहा -"आपका बेटा नालायक नहीं है जो उसने भारत माँ की सेवा का व्रत लिया है ,इस देश की मिटटी में हम खेल कर बड़े हुए हैं अब इस देश की स्वतंत्रता मेरे लिए सब कुछ है " माँ -बाप निराश किन्तु संतुष्ट हो कर लौट गये | .चंद्रशेखर ने अपने नाम के आगे उस दिन के बाद से आजाद नाम लगा लिया और निश्चय किया -"पुलिस एक बार इस हाथ में हद्कड़ी लगा ली है वही बहुत है ,अब मरते दम तक आजाद रहूँगा ,मुझे ये गीदड़ छु भी न पाएंगे "| आजाद ने  अमर शहीद पंडित रामप्रसाद बिस्मिल और  अमर शहीद अशफाकुल्ला खान  से भेंट की,वो दोनों चंद्रशेखर आजाद की अनुशासनप्रियता और साहस के कायल थे  और अन्य क्रांतिवीरों से भी भेंट कर सचिंद्रनाथ सान्याल के हिंदुस्तान प्रजातान्त्रिक संघ नमक सशस्त्र आक्रामक क्रांतिकारी दल  का हिस्सा बन गये और उस सेना के सेनापति रामप्रसाद बिस्मिल नियुक्त किये गए ,दल के कार्यों के लिए पैसे जुटाने के लिए वो दुष्ट पूंजीपतियों के घर डाका डालते थे ,किन्तु बिस्मिल जी को यह पसंद न आता वो कहते -"की जिस देश की जनता की स्वतंत्रता के लिए हम लड़ रहे उसी जनता की हानि करने से हमारी ही हानि है " अंत में सोच विचार के निर्णय लिया गया की की केवल अंग्रेजी खजाना ही लूटा जाये , इधर बीच आजाद अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण पुलिस की नज़र में चढ़ गए और उन्होंने अंग्रेजों की नाक में दम करना आरंभ कर दिय ,अँगरेज़ उन्हें अपने सबसे भयंकर शत्रु मानाने लगे और उनके ऊपर तीस हजार का इनाम घोषित कर दिया गया ,इधर एक और धमाका हुआ आजाद और उनके साथियों द्वारा ,आजाद ,रामप्रसाद बिस्मिल ,अशफाकुल्ला खान ,राजेंद्र लिहिरी ,रोशन सिंह और २०-२२ अन्य क्रांतिकारियों से लखनऊ के समीप काकोरी स्टेशन पर रेलगाड़ी से सरकारी खजाना लूट लिया ,जिससे अँगरेज़ सरकार सकते में आ गयी ,देशभर में क्रांतिकारियों की धर-पकड़ आरंभ हो गयी ,दल के नेता रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाक के साथ साथ राजेंद्र लिहिरी ,रोशन सिंह के साथ साथ पूरा हिंदुस्तान प्रजातान्त्रिक संघ पकड़ लिया गया,और बिस्मिल ,अशफाक ,रोशन और लिहिरी को फांसी पर चढ़ा दिया गया , किन्तु चंद्रशेखर आजाद पुलिस की नाक में दम करते हुए बच कर निकल गए ,पुलिस उन्हें विशेष रूप से पकड़ने के लिए और मनसूबे बनाने लगी ,किन्तु आजाद ने अपनी चतुराई से उसे विफल कर दिया ,अपने साथियों विशेष रूप से श्री रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाकुल्ला खान की मृत्यु पर चंद्रशेखर आजाद का ह्रदय रक्त के आसू रो पड़ा किन्तु इन परिस्थियों में वो कुछ न कर पाए इसका उन्हें जीवन भर मलाल रहा | समय ने करवट ली और आजाद ने पुनजब के प्रसिद्ध क्रांतिकारी भगत सिंह और सुखदेव से भेंट की ,दोनों से भेंट कर करके उन्हें लगा की मानो उन्हें उनके सिपाही मिल गए ,भगत सिंह और सुखदेव तो आजाद के प्रति श्रधा से भरे हुए थे ही ,उन दोनों की मदद से आजाद ने फिर से अपना दल सशक्त कर लिया और उनके दल में भगत सिंह और सुखदेव समेत राजगुरु ,बटुकेश्वर दत्त , भगवती चरण वोहरा ,यशपाल आदि कई वीर क्रांतिकारी आ गए अब निर्णय लिया गया की सीधे अंग्रेजी हुकूमत की नीव पर चोट की जाये ,भगत सिंह के समाजवादी विचारों से संतुष्ट आजाद ने भगत सिंह के कहने पर दल का नाम हिंदुस्तान प्रजन्तान्त्रिक संघ बदल कर हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातान्त्रिक संघ कर दिया ,आजाद को उस दल का सेनापति बनाया गया ,दल ने लाला लाजपत राय के हत्यारे अँगरेज़ कमिश्नर स्कॉट से प्रतिशोध ने लेने की सोची ,१७ दिसंबर १९२८ को  लाहौर में चंद्रशेखर आजाद ,भगत सिंह ,राजगुरु ने सुखदेव की सहायता से  अँगरेज़ अफसर सांडर्स का  (स्कॉट समझ कर) वध कर दिया , लेकिन बदला फिर भी पूर्ण हुआ (क्योंकि स्कॉट के कहने पर लाठी सांडर्स  ने चलाई थी )कार्यवाही  पूरी करने के बाद तीनों सुरक्षित वहां से निकल गए ,इसके बाद भगत सिंह अंग्रेजी साहब और राजगुरु उनके नौकर के वेश में और हमारे चंद्रशेखर जी जो पुलिस को चकमा देने में माहिर थे पंडित का रूप बदल कर सुरक्षित लाहौर से बच कर निकल गए | अंग्रेजों से अपना दमन चक्र दो बिलों के द्वारा (पब्लिक सेफ्टी और ट्रेड डिस्प्यूट बिल ) तेज करने की सोची ,दल ने इसके विरोध में असेम्बली में बम फ़ेंक कर करने की सोची और स्वयं को उसी समय गिरफ्तार करवा कर मुक़दमे के जरिये अंग्रेजों के अत्त्याचार पूरे विश्व को बता कर भारत में स्वतंत्रता की लहर पैदा करने की सोची ,इस काम के लिए शहीद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को भेजा गया ,आजाद भगत सिंह को भेजना तो ना चाहते थे किन्तु भगत सिंह की जिद्द के समक्ष उन्हें झुकना पड़ा ,ठीक वैसा ही हुआ ,भगत सिंह और दत्त ने बम फेकने के बाद स्वयं को गिरफ्तार करवाया ,लेकिन दुर्भाग्य का उदय फिर हुआ भगत सिंह और दत्त के बाद सुखदेव ,राजगुरु और दल के लगभग सभी सदस्य गिरफ्तार कर लिए गए ,आजाद का मनोबल क्षीण हो गया ,किन्तु दिल पर पत्थर रख कर उन्होंने बचे हुए साथियों के साथ वायसराय की गाडी उड़ाने के सोची ,पर गाड़ी में विस्फोट तो हुआ किन्तु वायसराय बच गया , आजाद ने भगवती चरण की सहायता से भगत सिंह और उनके साथियों को छुड़ाने की सोची ,वोह प्रयत्न भी विफल रहा और भगवती चरण जी इस प्रयास में शहीद हो गये , चंद्रशेखर आजाद ने क्रन्तिकार्यों  को छुड़ाने के के लिए नेहरु से बात की ,किन्तु उसने राजनीति की गन्दी चाल खेली और कोई सहयता न दी ,इधर सांडर्स को मारने के अपराध में भगत सिंह ,राजगुरु और सुखदेव को मृत्युदंड मिला ,आजाद जी यह सुन कर तड़प उठे किन्तु उन्होंने हिम्मत से दल के कार्य  के लिए दक्षिण में प्रयास करने की सोची और अपने दो साथियों सुखदेव राज और सुरेन्द्र पांडे को इसी सिलसिले में रूस भेजने की सोची किन्तु.........
वीर भद्र तिवारी नाम के एक साथी के मन में लालच घर कर गया और उसने इनाम की लोभ में आजाद जी का पता पुलिस को बता दिया 
२७ फरवरी को  सुबह आजाद जी अपने साथी सुखदेवराज से इलाहाबाद के अल्फर्ड पार्क में बैठ कर कुछ बात कर रहे थे की अचानक वीर भद्र तिवारी की गद्दारी के कारण पुलिस ने उन दोनों को चारों तरफ से घेर लिया ,आजाद ने स्थिति का गंभीरता से अवलोकन किया और अपने साथी सुखदेवराज को फरार कर दिया ,वो जाने को तैयार न हुआ तो उन्होंने उसे सख्ती से आदेश दे कर भगा दिया ,फिर आजाद ने पुलिस से मुकाबला आरम्भ किया ,एक आजाद अकेले सैकड़ों अंग्रेजों पर भारी हो  रहे थे ,१५-२० को मौत की नींद सुला चुके ,किन्तु एक ओर अकेले आजाद और उधर सैकड़ों पुलिस ,मुकाबला कब तक होता ,आजाद जी को दो गोलियां जांघ और एक गोली फेफड़े पर लगी ,बचना असंभव सोच हो चूका था ,आजाद जी के पास एक गोली बची थी वो चाहते तो उससे भी दुश्मन को मौत की नींद सुला देते ,किन्तु उन्होंने उस गोली को बन्दूक में भर कर कनपटी कर रखा और ट्रिगर दबा दिया | और चंद्रशेखर आजाद सदा के लिए चिर निद्रा में वेलीन हो गये ,कायर पुलिस वाले उनके शव के पास आधे घंटे तक न गये ,यह खबर पूरे भारत में आग की तरह फैली की वीर चंद्रशेखर आजाद अमर हो गये ,लोगों की भक्ति उस इमली के पेड़ के लिए बढ़ गयी जहाँ आजाद जी ने वीरगति पाई ,दूर दूर से लोग वहां आ कर फूल -माला चढाने लगे ,अँगरेज़ यह देख कर जन आन्दोलन की कल्पना से भयभीत हो कर उन्होंने रातो -रात उस पेड़ को कटवा दिया | किन्तु क्या उनकी स्मृति को लोगों के ह्रदय से निकाल पायी? नहीं |
उधर मृत्यु जब आजाद को लेने जा रही थी तो यमराज ने पुछा की "किस मिटटी के हैं ये क्रांतिवीर जो बिना किसी व्यक्तिगत लाभ के देश के लिए अपने प्राण न्योछावर कर देते हैं?
त्रिलोक से उत्तर आया 
यह भारत की मिटटी के हैं !
यह भारत की मिटटी के हैं!
यह भारत की मिटटी के हैं !




4 टिप्‍पणियां:

  1. भारतीय संस्कृति की रक्षा करने वाले सभी हिन्दू धर्मावलम्बियों का सामुदायिक मंच बनाते हुए हमें अत्यंत प्रशन्नता का अनुभव हो रहा है. इस ब्लाग का मकसद पूरे विश्व में होने वाले हिन्दुओ पर अत्याचार की खबरे प्रकाशित करना है. इस ब्लॉग का मालिक कोई नहीं नहीं होगा. इस मंच से जुड़ने वाले सभी लोग बराबर जिम्मेदारी निभाएंगे. जो भी ब्लागर सच्चे हिन्दू हैं वे चाहे विश्व के किसी कोने में रहते हैं इस मंच के लेखक बन सकते हैं. मानवता का विनाश करने इस्लाम के अनुयायियों को तमाचा मारने के लिए मुस्लिमों के कुकृत्य की ख़बरें चाहे वे विश्व के किसी कोने में हो रही हो इस ब्लॉग पर प्रकाशित करें. साथ ही इसका मकसद हिन्दुओ को एकजुट करना भी है, आप जहाँ भी रहते हो, वहा अख़बार पढ़े और मुसलमानों द्वारा किये जा रहे कुकृत्य इस ब्लॉग पर प्रकाशित करें, साथ ही यह भी ध्यान दे बहुत सी ऐसी खबरे होती है जिन्हें समाचार पत्र प्रकाशित नहीं करते. लिहाजा आप लोंगो को ध्यान रखना होगा अपने आस-पास होने वाली घटनाओ पर, जहा पर भी मुस्लमान अधिक संख्या में रहते हैं. वहा उन्होंने हिन्दुओ का जीना दूभर कर दिए हैं. तो आप सभी हिन्दू भाइयों का कर्तव्य बनता है की सच्चाई सबके सामने लायें.
    आईये सभी मिलकर इस्लाम का सच सामने लायें.....
    जय श्री राम
    इस हल्ला बोल शामिल होने के लिए अपनी ई-मेल भेंजे.........
    hindukiawaz@mail.com

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  2. Yash..
    Bahut Hi sundar Lekh Hai..kahin yatra kar raha tha to pura nahi padh pa raha hun..copy kar liya hai..yatra ko sukhad aur gyanvardhak banaane ki samgri ke liye aabhar..
    bahut sundar chitran aur jankri hai aajad ke bare men...likhte raho...

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  3. लेकिन हमारी जानकारी के अनुसार गद्दारी नेहरू ने की थी

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