मंगलवार, 24 अप्रैल 2018

कांग्रेस का महाभियोग ......या महाभूल ....

कांग्रेस और उनके सात सहयोगी दलों के राज्यसभा सदस्यों ने सर्वोच्च न्यायलय के मुख्य न्यायधीश श्री दीपक मिश्र के विरुद्ध महा अभियोग प्रस्ताव जो प्रस्ताव लाया था उसे उप राट्रपति ने अस्वीकार कर एक बड़े नाटक पटाक्षेप कर दिया . सुगबुगाहट तो बहुत दिनों से थी लेकिन इसे तब लाया गया जब दीपक मिश्र ने जज लोया की मौत के पुन: जाँच से इंकार कर दिया . आखिर क्या मनसा है कांग्रेस की . 


चीफ जस्टिस 2 अक्टूबर को रिटायर होने वाले हैं और कांग्रेस के सहयोगी दलों के पास इतनी संख्या बल नहीं कि महाभियोग पास करा सकें तो फिर ये महाभियोग का नाटक क्यों? क्या इसका एकमात्र मकसद न्याय पालिका को धमकाना है कि अगर कांग्रेस की मांग नहीं मानी तो इज्जत बेइज्जत करेंगे और उन पर आरएसएस और बीजेपी का ठप्पा लगा देंगे ताकि भविष्य में उन्हें कोइ पद और प्रतिष्ठा न मिल सके . इस तरह के हथकंडे भारत जैसे विशाल देश में बहुत काम करते है . जिलों और तहसील स्तर पर यही हो रहा है . अधिकांश अधिकारी हार मान लेते है क्योकि कोई लफड़े में पड़ना नहीं चाहता . मै स्वयं जिलों में पोस्टिंग के दौरान ऐसा महसूस करता रहा हूँ. 


राम मंदिरमुद्दे की सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल मामले की सुनवाई २०१९ के बाद करे जिसे दीपक मिश्रा की बेंच ने नही माना और कांग्रेस के निशाने पर आ गए . स्वाभाविक लगता है कि ये महाभियोग का पूरा नाटक मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील और कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल के दिमाग की उपज है।दरअसल राम मंदिर पर नियमित सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में शुरू होने वाली है और उस बेंच को यही दीपक मिश्रा ही लीड करने वाले हैं. सुनवाई तेज़ी से होगी और चूंकि सारे साक्ष्य चाहे वो लैंड रिकार्ड्स हो या पुरातात्विक सब हिन्दू पक्ष में हैं। कांग्रेस को डर है राम मंदिर के पक्ष में फैसला 2019 के चुनाव से पहले आया तो सीधा फायदा बीजेपी को होगा।


फिर आखिर महाभियोग से क्या होगा? अगर उप राट्रपति ने इसकी जाँच शुरू कर दी होती या जब सदन में महाभियोग का प्रस्ताव रखा जाता तो नियमानुसार मुख्य न्यायाधीश किसी केस की सुनवाई तब तक न कर सकते जब तक जाँच पूरी न हो और प्रस्ताव पर वोटिंग न हो। कांग्रेस जानती है के जाँच में समय लगेगा और जब तक वोटिंग होगी 3 महीने गुज़र चुके होंगे। उसे पता है के महाभियोग का प्रस्ताव गिर जाएगा लेकिन तब तक केस का काफी समय बर्बाद हो चुका होगा फिर दीपक मिश्रा के पास इतना समय नही होगा के अपने रिटायरमेंट तक केस को निपटा पाएं। 2 अक्टूबर के बाद मुख्य न्यायाधीश बनेंगे रंजन गोगोई । बाकी खेल क्या होगा कहने की ज़रूरत नही है। क्या कांग्रेस राम मंदिर निर्माण रुकवाने के लिए इतना नीचे गिर रही है ? 


सबसे अच्छी बात ये रही कि कई कांग्रेस जनों ने भी महा अभियोग का साथ नहीं दिया . अब पूरे नाटक का पटाक्षेप हो गया है ऐसा नहीं है क्योकि कपिल सिब्बल ने कहा है वे उप राष्ट्रपति के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जायेंगे किसी ऐसी बेंच के सामने उपस्थिति नहीं होंगे जिसमे दीपक मिश्र हों . जाहिर है संवैधानिक पदों पर बैठे लोगो की लानत मलानत करने, डराने धमकाने की निम्न स्तरीय राजनीति अभी होती रहेगी . उन्हें किसी का भी भरोसा नहीं चाहे वह न्यायपालिका हो, सीबीआई हो, राष्ट्रपति या उप राष्ट्रपति हों, लोकसभा या राज्यसभा के अध्यक्ष या उपसभापति हों या राज्यपाल हों . जबतक कांग्रेस के पक्ष में फैसला नहीं तब तक उसका विस्वाश नहीं. 


शायद हिंदुस्तान और इसके लोकतंत्र की अभी और दुर्गति होना बाकी है. *******

सोमवार, 23 अप्रैल 2018

आर्य समाज हिन्दू विरोधी कैसे ??

आर्य समाज हिंदू विरोधी कैसे ?

आर्यसमाज नहीं मानता कि श्रीकृष्ण जी माखन चोर थे, गौएँ चराते थे, गोपियों संग रास रचाते थे, राधा के संग प्रेम प्रसंग में लिप्त थे, कुब्जा दासी के साथ समागम किया था। या वे ईश्वर का अवतार थे ।
अधिकांश सनातन धर्म अनुयायी जन द्वारकाधीश योगेश्वर श्रीकृष्ण को छोड़कर, पार्थसारथी-योगेश्वर श्रीकृष्ण को भूलकर  माखनचोर व राधा के साथ रमण करने वाले राधारमण के पीछे पड़े हैं। लोग श्रीकृष्ण के 'विश्वरूप' को भी पसंद नहीं करते उन्हें तो 'राधा माधव' वाली राधा रमण वाली काल्पनिक छवि ही पसन्द आती है।
लेकिन आर्य समाज इन सब काल्पनिक बातों पर बिल्कुल विश्वास नही करता। ये सब कपोल कल्पित घटनाएं हैं जो कि भक्ति की अतिरेक में लिखी गयी है। जो श्रीकृष्ण जी के चरित्र को और धूमिल ही करती हैं।

बल्कि आर्य समाज ये मानता है कि श्रीकृष्ण जी जन्म से लेकर  ४८ वर्ष की उम्र तक ब्रह्मचारी थे जैसा कि महाभारत में वर्णित है। उनकी सिर्फ एक पत्नी रुक्मणी थी जिनसे विवाह करके भी उसके साथ विष्णु पर्वत पर उपमन्यु ऋषि के आश्रम में १२ वर्ष तक ब्रह्मचर्य तप करके अपने समान तेजस्वी पुत्र प्रद्युम्न को पैदा किया। एक महान योगेश्वर होने की वजह से वे नित्य ईश्वर उपासना, प्राणायाम, संध्या, अग्निहोत्र आदि करते थे। अनेकों प्रकार की युद्ध कलाओं में दक्ष थे।  उनका प्रिय शस्त्र सुदर्शन चक्र था। वे एक महान विचारक भी थे। वे अद्वितीय योद्धा थे।भारतवर्ष के समस्त गणराज्यों को यादवों के संघर्ष तले एक करने वाले महान राजनीतिज्ञ थे ।
महर्षि दयानन्द सरस्वती ने भी कहा है कि श्री कृष्ण जी का महाभारत ग्रन्थ में इतिहास अति उत्तम है। उनके गुण, कर्म व स्वभाव आप्त पुरूषों अर्थात् वेद के ऋषियों के समान थे। उन्होंने जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त कोई बुरा काम नहीं किया।
मूर्तिपूजा के प्रसंग में सत्यार्थ प्रकाश के ग्यारहवें समुल्लास में वह लिखते हैं कि ‘‘संवत् 1914 (सन् 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम) के वर्ष में तोपों की मार से मंदिर की मूर्तियां अंगरेजों ने उड़ा दी थीं, तब मूर्ति की शक्ति कहां गई थीं? प्रत्युत् बाघेर लोगों ने जितनी वीरता की, और लड़े, शत्रुओं को मारा, परन्तु मूर्ति एक मक्खी की टांग भी न तोड़ सकी। जो श्री कृष्ण के समान (उन दिनों) कोई होता तो इनके (अंग्रेजों के) घुर्रे उड़ा देता और ये लोग भागते फिरते। भला यह तो कहो कि जिसका रक्षक मार खाय, उसके शरणागत क्यों न पीटे जायें?’’

वे न केवल साहित्य, संगीत, कला, नृत्य और योग विशारद थे। अपितु वे इस भारत भूमि पर आम लोगों के लिए लड़ने वाले योद्धा थे, जिन्होंने इंद्र इत्यादि जैसे ताकतवर लोगों के अतिरिक्त जुल्म के विरुद्ध शंखनाद किया था।
श्रीकृष्ण ने कर्म से, ज्ञान से और वचन से मनुष्यमात्र को नई दिशा दी। उन्होंने विश्व को कर्म योग और भौतिकवाद से जोड़ा।

तो ऐसा मानने से आर्य समाज
हिंदू विरोधी कैसे ?

शनिवार, 7 अप्रैल 2018

who is guilty?

कसूरवार कौन ? 


बात तब की है जब मै सिर्फ १२ साल का था | मै अपने जन्म स्थान, उत्तरप्रदेश के भदोही जिले में अपने माता-पिता के साथ रहता था | वही भदोही जो अपने कालीन निर्यात के लिए विश्व विख्यात है | मेरा परिवार एक संयुक्त परिवार है, जहाँ मेरे दादाजी अपने दो भाइयों और उनके पुरे परिवार के साथ रहते है | और मै खुद को इसीलिए सौभाग्यशाली समझता हूँ, और पुरे परिवार के साथ बिताये गए वो पल मेरी जिंदगी के सबसे खूबसूरत और ताउम्र यादगार रहने वाले पल थे | मेरे दादाजी मुझसे बहुत स्नेह करते थे और एक वही थे जिनसे मै हठ करके अपनी बात मनवा लेता था | वे मुझे प्यार से ''बऊ'' बुलाते थे | मै हमेशा तो नहीं लेकिन कभी-कभी जिद करके साईकिल से बाजार जाकर घर के लिए कुछ सामान ला लेता था | लेकिन उसके पीछे मेरा एक स्वार्थ छुपा हुआ था, जिस रहस्य को मै और मेरे दादाजी के सिवाय कोई नहीं जानता था, जब मै सामान लेन की जिद करता तो पहले तो दादाजी मनाकर देते लेकिन मेरे बालहठ के आगे वे भी कितने देर टिक पाते, और अंत में मुस्कुराते हुए मुझे पैसे देते हुए प्यार से कहते  - '' ठीक है चले जाओ, लेकिन संभल के जाना |''
और जब मै पैसे देखता तो उसमे सामान की तुलना में ज्यादा पैसे हुआ करते थे |

एक दिन मै सुबह उठा तो हल्की-हल्की  ठंढ लग रही थी, और मै घर के दरवाजे के पास बैठा था कि अचानक हल्के स्वर में पीछे से दादाजी की आवाज सुनायी दी - '' बऊ ! ''
मै अंदर गया तो अपने कमरे में लेते हुए थे | अंदर जाते ही उन्होंने मुझे पैसे देते हुए कहा - ''बाजार जाकर मेरा बिस्कुट लेकर आओ |''

मैंने पैसे लिए और जाने की लिए मुड़ा ही था की हमेशा की तरह उन्होंने हिदायत देते हुए कहा - ''आराम से जाना, और जल्दी वापस आ जाना |''

मैंने भी बिना उनकी तरफ देखे स्वीकृति से अपना सर हिला दिया | और सायकिल पर सवार होकर बाजार कि तरफ निकल पड़ा.

मैने बाजार पहूचकर जल्दी-जल्दी सामान लिया और वापस लौटने के लिए साइकिल उठायी ही थी की अचानक ही मेरा ध्यान सड़क के किनारे खड़ी एक महिला पर पड़ी, पास जाकर देखा तो अरे ये क्या यह तो रुक्मिणी बुआ है| इनकी हमारे गाँव मे एक छोटी सी दुकान है, और वे हमेशा पैदल ही बाजार जाकर समान लाती थी| लगता है आज उनका सामान का थैला कुछ ज़्यादा वज़नदार हो गया था जिसकी वजह से वे उसे नही ले जा पा रही थी| मैंने देखा तो वे मुझे ही देख रही थी, और वे मुझसे कुछ कहना चाहती हो, लेकिन कह नहीं पा रही थी । मुझे जल्दी थी, लेकिन मै खुद को रोक नहीं सका, और पास जाकर पूछा - '' क्या हुआ बुआ ?''

उन्होंने सकुचाते हुए कहा - ''नहीं....... कु........ कुछ नहीं ।''

लेकिन मेरे जोर देने पर उन्होंने बताया - '' सामान लेने आयी थी, लेकिन वजन ज्यादा होने के कारण नहीं ले जा पा रही हूँ ।''

तो मैंने कहा - ''ठीक है, मै लिए चलता हूँ ।''

तो वह मना करने लगी, लेकिन इससे पहले की वह कुछ बोल पाती मैंने उनका झोला (बैग) अपने केरियर (सायकिल का पिछला हिस्सा, जो वजनी सामान ढोने के काम में आता है) पर रख लिया। तो वह भी मान गयी और हम दोनों पैदल ही घर की तरफ चल दिये। हमारे घर से बाजार की दूरी तकरीबन दो किलोमीटर थी, इसीलिए पहुचने में लगभग एक घंटे का समय लग गया। और इस चक्कर में मै यह भूल गया की मुझे घर जल्दी जाना था। हम घर के करीब ही थे की सामने से छोटे चाचाजी आते दिखाई दिए।
और पास आकर उन्होंने पूछा - '' इतनी देर कैसे हो गयी ?, और पैदल क्यों आ रहे हो ?''

इससे पहले की मै कुछ बोल पाता, उन्होंने फिर क्रोधित होते हुए पूछा - ''यह सामान किसका है ? '' 

तो मैंने बताया की सामान तो रुक्मिणी बुआ का है और मेरे कुछ और बोलने से पहले ही वह बुआ पर बिफर पड़े। उन्होंने कहा - ''तुम्हे इतनी भी समझ नहीं है, इस छोटे से बच्चे के ऊपर इतना सामान लाद दिया है ।''

और इतना कहकर उन्होंने रुक्मिणी बुआ का सारा सामान निचे फेक दिया, जो पुरे सड़क पर बिखर गया। मैंने चाचाजी को समझाने और रोकने की पूरी कोशिस की लेकिन उन्होंने मुझे डाँटकर चुप करा दिया, चुपचाप घर जाने के लिए कहा। मैंने एक असहाय सी नजरो से रुक्मिणी बुआ की तरफ देखा तो उनकी आखे सजल हो चुकी थे और कभी भी अश्रुधारा बह सकती है। वे नजरे झुकाये सड़क के किनारे खड़ी थी। चाचाजी ने न जाने उन्हें कितना बुरा-भला कहा, लेकिन वह सब चुपचाप सब सुनती-सहती गयी। और अंत में चाचाजी ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे लेकर चल दिए, लेकिन रुक्मिणी बुआ तो अब भी वही खम्भे के सामान अविचलित सी खड़ी है। मेरी आँखे निरंतर उनको ही देखती रही, और खुद से काफी जद्दोजहद के बाद उनकी आँखों से आंसू निढाल हो गए। और धीरे-धीरे वो मेरी आँखों से ओझल हो चुकी थी। मै खुद उस समय समझ नहीं पाया की कसूरवार कौन है ? - मै, बुआ, चाचाजी या कोई कसूरवार है भी की नहीं ?

इस घटना को आज तकरीबन आठ साल बीत चुके है, और शायद वह भी इस घटना को भूल चुकी थी, लेकिन आज भी जब-जब रुक्मिणी बुआ मेरे सामने आती है, तो मेरी नजरो के सामने वो मंजर चलचित्र की भाँती चल पड़ती है। उन्हें मुझसे कभी कोई शिकायत नहीं रही और ना ही उन्होंने किसी से इस घटना का जिक्र किया शायद इसीलिए मेरा अपराध बोध बढ़ जाता है। उस घटना के बाद मै उनसे ठीक से आँखे मिलाकर बात भी नहीं कर पाता हूँ। जब आज मै यह सच्ची घटना से आप सब को रूबरू कराने जा रहा हूँ, खुद से यही सवाल कर रहा हूँ की कसूरवार कौन ?