१+२+१=४??? नहीं १२१ करोड़
आओ इस चार को झुठलायें
भैया पांच बनायें !!
१२१ करोड़ के सपने सारे
सच कर जाएँ !!
भ्रष्टाचार !
बलात-कार !
नशा -फरेब अरु !
‘दहेज़’ हटायें !
शुरू करें हम - घर से अपने
"दर्पण" अपना साफ़ करें
धूल जमी जो बरसों से है
आओ अब चमकाएं !!
इस समाज का भावी चेहरा
तभी दिखेगा
टेढ़ा -मेढ़ा - श्वेत व् काला
सब सुधरेगा
अपनी ‘संस्कृति’
अपनी ‘भाषा’
सच का हो सम्मान !!
गुण-बुद्धि को ‘मंच’ चढ़ाएं
भूखे को दें दान !!
माँ बाबा ने हमें सिखाया
"पञ्च-तत्व" हम जानें
बूढ़े-गरीब का मान रखें हम
ऊँगली उनका थामें !!
अगर एक नेता के पीछे
घूमें दसों हजार -पिछुआये !
जब हम जोड़ें सौ-सौ अपने
१२१ करोड़ न क्यों बन जाये???
आओ अपने "मंच" को भाई
उस मुकाम तक लायें
गली मोहल्ले अपनी बहने -
बालाएं या माएं -बिना खौफ के -
लिए तिरंगा -निशि दिन घूमें
"विजयी" हमें बनायें !!
जहाँ रहें वे रहें चहकती
उनका घर संसार !!
बेटे उनके -बेटी उनकी -सारा ये दरबार!!
खिलें फूल सा -खुश्बू देतीं
(photo with thanks from other source)
भ्रमर कहें -हर दर्पण भाई
वे चमकें -चमकाएं !!!!
हमने सुना है भाई मेरे
एक एक लकड़ी जो
बिखरे
तोड़े से सब टुट -टुट जाये
रहे रगड़ती ये जो भाई
आपस में ही
आग धरे -घर वन जल जाये
आओ सब मिल
हाथ मिलाएं
हम भी इस लकड़ी सा
गट्ठर बन जाएँ
जो तोड़े से भी ना टूटे
ना रगड़े न ये जल पाए
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
3.4.2011
वह भ्रमर जी..कितनी सुन्दर ज्ञान और दिशा देते कविता है..
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ुशी होती है आप की उत्साहवर्धक कृतियों को पढ़कर..
आशुतोष जी हमें भी ऐसे ही खुशी होती है और उत्साह वर्धन होता है और लिखने के लिए जब हमारे प्रिय भाइयों को अच्छा सन्देश भाता है कृपया अपना सब का स्नेह बनाये रखें
जवाब देंहटाएंआप का भ्रमर ५