रविवार, 29 मई 2011

दुःख ही दुःख का कारण है


दुःख ही दुःख का कारण है
दिल पर एक बोझ है
मन मष्तिष्क पर छाया कोहराम है
आँखों में धुंध है
पाँवो की बेड़ियाँ हैं
हाथों में हथकड़ी है
धीमा जहर है
विषधर एक -ज्वाला है !!
राख है – कहीं कब्रिस्तान है
तो कहीं चिता में जलती
जलाती- जिंदगियों को
काली सी छाया है !!
फिर भी दुनिया में
दुःख के पीछे भागे
न जाने क्यों ये
जग बौराया है !!
यही एक फूल है
खिला हुआ कमल सा – दिल
हँसता -हंसाता है
मन मुक्त- आसमां उड़ता है
पंछी सा – कुहुक कुहुक
कोयल –सा- मोर सा नाचता है
दिन रात भागता है -जागता है
अमृत सा -जा के बरसता है
हरियाली लाता है
बगिया में तरुवर को
ओज तेज दे रहा
फल के रसों से परिपूर्ण
हो लुभाता है !!
गंगा की धारा सा शीतल
हुआ वो मन !
जिधर भी कदम रखे
पाप हर जाता है !!
देखा है गुप्त यहीं
ऐसा भी नजारा है
ठंडी हवाएं है
झरने की धारा है
jharna
(फोटो साभार गूगल से)
जहाँ नदिया है
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(फोटो साभार गूगल से)
भंवर है
पर एक किनारा है
-जहाँ शून्य है
आकाश गंगा है
धूम केतु है
पर चाँद
एक मन भावन
प्यारा सा तारा है !!
शुक्ल भ्रमर ५
29.05.2011 जल पी बी

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