सोमवार, 18 जुलाई 2011

आदि-शिव.....भोले -भंडारी का सबसे प्राचीन रूप.....




                         भोले भंडारी को प्रिय मास श्रावण क्यों है.... क्योंकि श्रावण श्रंगार का महीना है , श्रृंगार के पर्व का मास है ...और भोले -भंडारी हैं श्रृंगार के आदि देव ...वेदों में वे रूद्र देव हैं जो सृष्टि की नियमितता व क्रमिक स्वचालित प्रक्रिया हेतु  चिंतित ब्रह्मा के उद्धार हित प्रकट हुए .....अर्ध-नारीश्वर रूप में ...और स्वयं को विभाजित करके नर व नारी के विभिन्न भावों में प्राकट्य होकर प्रत्येक जड़-जंगम -जीव में समाहित हुए ...और तभी से सृष्टि में नर-नारी भाव, योनि-लिंग  रूप भाव से मैथुन सृष्टि का आविर्भाव हुआ ...सृष्टि की स्व-चालित उत्पादन-प्रजनन  प्रक्रिया......|  शायद वह यही सुन्दर-सुखद-सुहावन-सुसमय - मास रहा होगा जिसे बाद में श्रावण का नाम दिया गया होगा |                                                  ...... अर्धनारीश्वर ----------->
                           

              
            वेदों के पश्चात भोले भंडारी का  ..पशुपति रूप ..सर्व प्रथम विश्व की सबसे प्राचीन  सभ्यता-संस्कृति हरप्पा-मोहनजोदडो में  मोहरों (सीलों --stamps)  पर अंकित  मिलता है , इसी के साथ लिंग-योनि  के  पाषाण रूप भी...
               ऊपर    चित्र  ०१ --पशुपति नाथ (आदि शिव अपने बैल  नंदी सहित  (शायद?)आदि-मातृका देवी ( जो शायद बाद में अम्बा , पार्वती , दुर्गा रूपा हुई )..के सम्मुख अर्चना करते हुए  सर पर बैल या  बृषभ का मुखौटा या हेड-गीयर  जो पशुपति नाथ का प्रतीक होगा .....आदि-काल में मातृ सत्तात्मक  समाज रहा होगा ...चारों ओर सप्त -मातृकाएं या आदि-देवी  की सहायिकाएं, अनुचारियाँ आदि....
                
              मध्य में चित्र-२ .. आदि पशुपति शिव ..... समाधिष्ठ  अवस्था में ...योग मुद्रा में ...जो योग की, ध्यान की  आदि-मुद्रा है ....पद्मासन ....
              
              नीचे के चित्र-३ में ...खुदाई में प्राप्त ...शिव लिंग व योनि- के प्रतीक पाषाण मूर्तियां ...जो शायद शिव-शक्ति व लिंग-योनि पूजा के आदि-तम रूप हैं .....
                                                                       ------------सभी चित्र ..साभार...

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