
वेदों के पश्चात भोले भंडारी का ..पशुपति रूप ..सर्व प्रथम विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता-संस्कृति हरप्पा-मोहनजोदडो में मोहरों (सीलों --stamps) पर अंकित मिलता है , इसी के साथ लिंग-योनि के पाषाण रूप भी...
ऊपर चित्र ०१ --पशुपति नाथ (आदि शिव अपने बैल नंदी सहित (शायद?)आदि-मातृका देवी ( जो शायद बाद में अम्बा , पार्वती , दुर्गा रूपा हुई )..के सम्मुख अर्चना करते हुए सर पर बैल या बृषभ का मुखौटा या हेड-गीयर जो पशुपति नाथ का प्रतीक होगा .....आदि-काल में मातृ सत्तात्मक समाज रहा होगा ...चारों ओर सप्त -मातृकाएं या आदि-देवी की सहायिकाएं, अनुचारियाँ आदि....
मध्य में चित्र-२ .. आदि पशुपति शिव ..... समाधिष्ठ अवस्था में ...योग मुद्रा में ...जो योग की, ध्यान की आदि-मुद्रा है ....पद्मासन ....
नीचे के चित्र-३ में ...खुदाई में प्राप्त ...शिव लिंग व योनि- के प्रतीक पाषाण मूर्तियां ...जो शायद शिव-शक्ति व लिंग-योनि पूजा के आदि-तम रूप हैं .....
------------सभी चित्र ..साभार...
------------सभी चित्र ..साभार...
आभार ||
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति की बधाई ||
ज्ञानपूर्ण ..
जवाब देंहटाएंजय भोले ॐ नमः शिवाय