सोमवार, 23 दिसंबर 2019

झारखंड चुनाव के संदेश


झारखंड से प्राप्त चुनाव के रुझान से आभास हो रहा है कि  भारतीय जनता पार्टी पिछले चुनाव के अपने प्रदर्शन को दोहरा नहीं पाएगी। पिछली बार उसे 37 सीटें विधानसभा में प्राप्त हुईं थीं और अब की बार ऐसा लग रहा है कि ये  आंकड़ा  30 से आगे नहीं बढ़ पाएगा. बहुत स्पष्ट है कि यह भारतीय जनता पार्टी की नैतिक पराजय है और वह जोड़ तोड़ कर सरकार भले ही बना ले जिसकी संभावना भी कम लग रही है क्योंकि उसके पूर्व सहयोगी आजसू और झारखंड विकास मोर्चा को मिलाकर  भी इतनी सीटें नहीं मिल पा रही हैं जिससे सरकार बनाना संभव हो। चुनावों से से बहुत पहले आगाज हो गया था कि झारखंड में भाजपा सत्ता में वापसी नहीं कर पाएगी औr कारण भी स्पष्ट थे और भारतीय जनता पार्टी को शीर्ष नेतृत्व को यह कारण मालूम भी होंगे लेकिन इसके बाद भी कोई कदम नहीं उठाया गया तो यह आश्चर्यचकित करने वाला है। भाजपा अगर सिर्फ वर्तमान मुख्यमंत्री रघुवर दास को हटाकर किसी अन्य व्यक्ति को मुख्यमंत्री बना देती तो भी संभावित नुकसान को रोका जा सकता था लेकिन भाजपा ने ऐसा नहीं किया।

भाजपा की हार के कारण
1. 2014 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 37 सीटें मिली थी और उसने आजसू और जेवी एम  के साथ मिलकर सरकार बनाई थी । मुख्यमंत्री के रूप में रघुवर दास का चयन किया गया जो गैर आदिवासी थे इसलिए राज्य की जनसंख्या संतुलन के हिसाब से सबसे उपयुक्त उम्मीदवार नहीं थे।  भाजपा  ने  बहुत  आत्मविश्वास के साथ यह सोचा होगा कि केंद्र में सरकार होने के कारण राज्य में विकास के बहुत सारे कार्य होंगे और अगले 5 सालों में माहौल बदल जाएगा लेकिन रघुवर दास ऐसा नहीं कर सके हालांकि उन्होंने बहुत मेहनत की और विकास के कार्य भी हुए लेकिन शुरू से ही उनकी स्वीकार्यता आदिवासी वर्ग में नहीं थी।  आदिवासी क्षेत्रों में  कार्य करने के बाद भी रघुवर दास आदिवासी इलाकों में ही अपनी जगह नहीं बना पाए।

2. केंद्र में भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी दलों ने भी राज्य में भारतीय जनता पार्टी को लगभग हराने का ही काम किया । ऐसा लगता है कि केंद्र और राज्य के सभी सहयोगी दलों  ने केवल एक फार्मूले पर किया कि अपनी दीवार गिरे तो गिरे लेकिन पड़ोसी की भैंस मर जाना चाहिए यानी कि खुद का नुकसान हो तो हो लेकिन भाजपा को फायदा नहीं होना चाहिए।  लोक जनशक्ति पार्टी और  जेडीएस जिनका कोई बहुत प्रभाव राज्य में नहीं है उन्होंने ज्यादा से ज्यादा सीटों की मांग रखी जो शायद भाजपा के लिए संभव नहीं था इसलिए इनके साथ समझौता नहीं हो पाया ।

3.  राज्य में भारतीय जनता पार्टी के पूर्व सहयोगी दलों  ने स्थिति भांपते हुए हुए अधिक से अधिक सीटें हासिल करने की मांग रखी और यह रस्साकशी इतनी चली कि आखिर तक बात नहीं बनी और समझौता नहीं हो सका।  इसलिए और सभी दलों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा और जैसा कि पहले से ही मालूम था लोक जनशक्ति पार्टी और जेडीएस अपना खाता भी नहीं खोल सकी और आजसू और जेवीएम   यह भी हम को भी खासा नुकसान उठाना पड़ा।

4. जो भी हो भारतीय जनता पार्टी अपने सहयोगियों को अपने साथ रखने में सफल नहीं हो सकी और परिणाम स्वरूप एक और राज्य में भारतीय जनता पार्टी को सत्ता गंवानी पड़ेगी। 
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                                #शिव प्रकाश मिश्रा


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बुधवार, 20 नवंबर 2019

Mujhe Yaad aaoge - Hindi Kavita Manch

मुझे याद आओगे


कभी तो भूल पाऊँगा तुमको, 
मुश्क़िल तो है|
लेकिन, 
मंज़िल अब वहीं है||

पहले तुम्हारी एक झलक को, 
कायल रहता था|
लेकिन अगर तुम अब मिले, 
तों भूलना मुश्किल होगा||

मंगलवार, 13 अगस्त 2019

अल्लाह को कहा जाता है यालेमुल गैब 
यह मात्र कहने की बात है, की अल्लाह अदृश्य या छुपी हुई बातों को जानता है। जबकि यह सत्य नहीं है। क्योकि यदि अल्लाह अदृश्य को जानता तो अपने पैगम्बर और खलीलुल्लाह पैगम्बर(अल्लाह का दोस्त) जिन्हें लोग इबराहीम के नाम से जानते हैं। उसका इम्तिहान न लेता। बताया जाता है की अल्लाह ने अपने दोस्त से इम्तिहान लेना चाहा था।

किस चीज की इम्तेहान ली, अपने सबसे प्यारी चीज की क़ुरबानी देने की। जिसे अल्लाह ने अपने दोस्त इबराहीम को ख्वाब में दिखाया था।
तो लगातार तीन दिन तक पशु काटते रहे अल्लाह के दोस्त इब्राहीम! किन्तु अल्लाह को यह स्वीकार नहीं हुआ।  अल्लाह का इम्तेहान तो अभी बाकि रह गया था।

इब्राहिम ने फिर ख्वाब देखा की अल्लाह इब्राहीम से कह रहे हैं जो सबसे प्यारी चीज  है तुम्हारी, उसे मेरे रास्ते में कुर्बान करो।
 इब्राहीम ने अपनी दासी से जो संतान पैदा किया था उसका नाम इस्माईल था। उस समय तक इब्राहीम अपनी पत्नी सारा बीवी से संतान नहीं पैदा कर पाए थे। इस इस्माईल को जविह उल्लाह कहा।

 इब्राहीम ने अपनी पत्नी सारा के कहने पर इसी दासी को जिनका नाम बीवी हाजरा था, घर से बाहर निकाल दिया था -और बियावान जंगल में या फिर निर्जन मरूभूमी(रेगिस्तान) में छोड़ आये थे। जहाँ पानी तक का ठिकाना नहीं!
माँ हाजरा और बेटा इस्माईल प्यास के मारे उस निर्जन रेगिस्तान में इधर उधर भटक रहे थे। रेतीले पहाड़ पर मृग मरीचिका को पानी समझ कर सफा और मरवा नामक दो पहाड़ों के बीच में पानी के लिए वह भागती रही।

किन्तु वहां पानी तक नहीं मिला। सात बार पानी की खोज में बिवी हाजरा दौड़ती रही जिसकी चर्चा कुरान में भी की गई हैं जैसा =  إِنَّ الصَّفَا وَالْمَرْوَةَ مِن شَعَائِرِ اللَّهِ ۖ فَمَنْ حَجَّ الْبَيْتَ أَوِ اعْتَمَرَ فَلَا جُنَاحَ عَلَيْهِ أَن يَطَّوَّفَ بِهِمَا ۚ وَمَن تَطَوَّعَ خَيْرًا فَإِنَّ اللَّهَ شَاكِرٌ عَلِيمٌ [٢:١٥٨]
बेशक (कोहे) सफ़ा और (कोह) मरवा ख़ुदा की निशानियों में से हैं पस जो शख्स ख़ानए काबा का हज या उमरा करे उस पर उन दोनो के (दरमियान) तवाफ़ (आमद ओ रफ्त) करने में कुछ गुनाह नहीं (बल्कि सवाब है) और जो शख्स खुश खुश नेक काम करे तो फिर ख़ुदा भी क़दरदाँ (और) वाक़िफ़कार है।

आज तक इसे हज यात्रीयों को भी करना ही पड़ता है जो बीवी हांजरा ने की थे। उसी की याद करने का आदेश मुसलमानों को दिया है अल्लाह ने।
सवाल यह पैदा होता है की अल्लाह ने अपने दोस्त का इम्तेहाँन लिया = की वह अपने बेटे को क़ुरबानी दे सकते हैं या नहीं ?

किन्तु इस्लाम वाले यह नहीं  जानते की इम्तेहान लेने वाला अल्पज्ञ होगा सर्वज्ञ नहीं हो सकता। क्योंकि इम्तेहान या परीक्षा वही लेता है जो नहीं जानता है की यह क्या करता है? अर्थात परिणाम जिसे ज्ञात नहीं है उसे जानने के लिए इम्तेहान ली जाती है। और यही बात अल्लाह के लिए है।  फिर अल्लाह अदृश्य के बातों का जानने वाला कैसे हो गया?

दूसरी बात है की अल्लाह ने इब्राहीम को ख्वाब दिखाया की अपनी सबसे प्यारी चीज को मेरे रास्ते में क़ुरबान करो। तो इब्राहीम को अपना बेटा सबसे प्यारा कहाँ था? अगर बेटा इतना ही सबसे प्यारा  होता तो उसे माँ के साथ घर से क्यों निकाल बाहर करता?   जिसे घर से बाहर पीने के लिए पानी तक नहीं दिया वह सबसे प्यारा कैसे?  जिसे वह पानी तक मुहैया नहीं करा सके वह प्यारा क्यों और कैसे?
क्या यही पैगम्बर हैं, और अल्लाह के दोस्त भी, यही निष्ठुरता को जिसने पशुओं को काट कर दिखाया।

यह बिलकुल झूठी बातें है कपोल कल्पित बातें है। यह अंध विश्वासका पराकाष्ठा है। उसी अंध विश्वास में आज समस्त धरती को सिर्फ धर्म के नाम पर पशुओं के खून से रंगा जा रहा है।
चूंकि यह पूरी घटना अल्लाह,कुरान और इस्लाम से जुडी है और इसे धर्म कहकर धर्म को भी दूषित किया गया है। लेकिन इस तरह के कारनामों के आधार पर यह धर्म का होना कभी भी संभव ही नहीं है। कुरान में अनेक बार इस किस्से को बताया गया है। समय समय पर आगे भी लिखता रहूँगा।
घन्यवाद के साथ
महेन्द्रपाल आर्य 
12 /8 /19 
निन्दन्तु नीति निपुणा यदिवा स्तुवन्तु ,लक्ष्मी समाविशतु ,गच्छतु वा यथेष्ठटम ,
अद्यैव मरण मस्तु युगंतारेव ,न्यायात प्रविचलन्ति .पदम्  धीरः 
"                                                    
लोग निंदा करें या स्तुति करें ,धन आवे या हम कंगाल हो जाएँ .
अभी मर जाएँ या युगों के बाद मर जाएँ ,
लेकिन सत्य के मार्ग से विचलित नहीं हो सकते .

बुधवार, 27 मार्च 2019

चलो एक बार फिर से गरीबी हटायें हम तुम

1971 में गरीबी हटाओ नारे की चुनाव में मिली अभूतपूर्व सफलता के बाद राहुल गांधी ने ऐलान किया है कि यदि कांग्रेस  पार्टी सरकार में आती है तो न्यूनतम आय की एक नई योजना लागू करेगी इसके अंतर्गत २० % यानी २5 करोड़ लोगो के अधिकतम रु.६००० प्रतिमाह और इस तरह साल में 72 हजार उनके खाते में डाले जाएंगे . इस तरह सरकार प्रतिवर्ष 3 हजार करोड़ रुपए खर्च करेगी और यदि  उनकी सरकार 5 वर्ष चलती है तो यह खर्च 18 लाख  करोड़ से भी अधिक आएगा.  समझना मुश्किल है कि योजना  कैसे चलेगी ? कैसे लागू की जायेगी ? और इसके लिए धन कहां से आएगा ?
वर्तमान भाजपा सरकार ने 2016- 17 के आर्थिक सर्वेक्षण में एक न्यूनतम आय योजना या  यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम का प्रस्ताव दिया था . इस पर बहस भी हुई थी . इस योजना का पाइलट मध्यप्रदेश के कुछ जिलों में किया गया था .  संभवतया जमीनी स्तर पर इसे बहुत अधिक सफल नहीं पाया गया इसलिए ये योजना पर आगे विचार नहीं किया गया . वैसे ये कोई मौलिक योजना नहीं है . यूनिवर्सल बेसिक स्कीम कई देशों में लागू की गई है और उसमें बहुत सारी खामियों की वजह से इसे बंद किया गया .
२०१६-१७ के आर्थिक सर्वेक्षण में यूनिवर्सल बेसिक इनकम को प्रस्तावित करते हुए कहा गया था  जो कार्यक्रम आजकल चलाए जा रहे हैं, भ्रष्टाचार, आवंटन में गलतियां, पात्र लोगों को वंचित करने  भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं के कारण, ये योजना शायद एकमात्र उपाय बचा है . इस योजना के अंतर्गत प्रतिवर्ष ₹12000 बेसिक इनकम प्रत्येक परिवार को दी जाने की प्रस्तावना की गयी थी . इससे कुछ वर्षों में गरीबी कम होने की आशा की गई थी . अनुमान के अनुसार शुरुआत में २२  प्रतिशत आबादी को इसमें शामिल करने की बात की गई थी हालांकि राहुल गांधी द्वारा घोषित योजना  लगभग वैसी ही है , नयी योजना दिखाने के लिए थोड़े बहुत बहुत चेंज किए गए हैं. जैसे 22% आबादी की जगह २०% . आय  को घटाकर ₹6000 किया  गया है और इस तरीके से ₹72000 प्रति वर्ष देना प्रस्तावित किया गया है. यदयपि  चयन की प्रक्रिया, पात्रता, वित्त प्रबंधन आदि पर  विस्तार से कुछ नहीं दिया गया है पर ये सब बहुत ही मुश्किल काम है . इसके दुष्प्रभावों में राजकोषीय घाटा बढ़ना तय है , जिसके  कारण मुद्रास्फीति पड़ती है और महंगाई बढ़ती है. सबसे अधिक नकारात्मक प्रभाव यह है कि  इससे लोगों को काम करने की प्रवृत्ति कम होती है और उत्पादकता प्रभावित होती है और इस तरह से यह राष्ट्रीय उत्पादकता पर भी बहुत बुरा प्रभाव डालती है. यूनिवर्सल बेसिक स्कीम का अनुभव दुनिया के अन्य देशों में भी बहुत अच्छा नहीं रहा है क्योंकि राजनैतिक मुद्दा  बनाने के हिसाब से इसमें थोड़ी बहुत सफलता मिली जरूर पर  जनता ने ज्यादातर देशों में इसे नकार दिया.इसके पहले इस इस इस योजना को कई देशों में लागू किया गया लेकिन इन्हें सफल नहीं पाया गया और कई देशों ने योजनाओं को वापस ले लिया  जर्मनी ने कई साल के बाद योजना  को बंद कर दिया स्विट्जरलैंड और हंगरी जैसे देशों ने लागू करने के बाद भी  कर बंद किया . इस स्कीम का विस्तृत विवरण  2016-17 के  संसद में पेश किये गए  आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के  चैप्टर ९ और पेज संख्या 173 से 195 तक में किया गया है.
नकल में अकल का सामान्यतया उपयोग नहीं किया जाता हैं, इसलिए भी और योजना के थोडा अलग दिखाने के चक्कर में राहुल गांधी ने कई महत्त्व पूर्ण चीजों को छोड़ दिया है . इस योजना से गरीबी दूर करने की नहीं वरन वोटों की खेती में पैदावार बढाने का प्रयास ज्यादा लगता है. 


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बुधवार, 27 फ़रवरी 2019

विपक्ष ने किया शर्मसार

आज कुछ राजनैतिक दलों ने, जिसमे कुछ का दिल पकिस्तान के काफी नजदीक हैं, ने मीटिंग कर पाकिस्तान को एक नया हथियार दे दिया है . राहुल की अगुआई में पढ़े गए एक वक्तब्य में पुलवामा के शहीदों के राजनीतिकरण के लिए सरकार की निंदा के गयी . यानी ४५ जवानों की शहादत के बाद सरकार को जैश के ठिकाने ध्वस्त नहीं करने चाहिए थे क्योंकि ऐसा न हो कि मोदी को कोई राजनैतिक फायदा हो जाये और उन्हें नुकसान.
राहुल की विद्वता पर तो किसी को कोई संदेह नहीं है, सभी जानते हैं किन्तु चन्द्र बाबू नायडू , ममता आदि को क्या कहा जाय जो आज राहुल के पिछलग्गू हो गए ? आज राहुल पाकिस्तान और हिन्दुस्तान दोनों जगह हेड लाइंस में हैं . पकिस्तान की सेना का खोया विश्वाश लौटने लगा है . हिन्दुस्तान के विपक्ष के समर्थन से उनके चेहरे पर मुस्कान आ गयी है. क्या देश को लोग वेबकूफ है जो ये नहीं समझ पाएंगे कि मोदी विरोध और राष्ट्र विरोध में क्या अंतर है ?
इसके पहले पकिस्तान द्वारा जितने भी आक्रमण / अतिक्रमण हुए , विपक्ष ने हमेशा सरकार का साथ दिया क्योकि यदि सरकार का मनोबल कमजोर होगा तो पकिस्तान के खिलाफ कोइ सख्त कदम नहीं उठाया जा सकेगा जिससे सैनिको का मनोबल टूटेगा और ये युद्ध जीता नहीं जा सकेगा .
आज सेना की जीत को विपक्ष ने लगभग हार में बदल दिया . ऐसे समय जब पूरा विश्व हिन्दुस्तान का समर्थन कर रहा है , हिन्दुस्तान का विपक्ष, हिन्दुस्तान के विरोध में उतर कर देश को शर्मसार कर रहा है .