बुधवार, 4 मई 2011

सीढियां चढ़ा - दो


सीढियां चढ़ा - दो
उसी पुराने
टूटहे  मंदिर में


बाहर
सामने खड़ा
मै

सीढियां चढ़ा
-दो -
रोता-कोसता
भगवान को
मोज़े-फटे
जूते -घिसे
पक्का -नहीं
दुनिया हँसे
जिन्दगी दिया ??
जीते जी
या ले लिया ??
तभी वह
बैसाखियों के सहारे
सीढियां चढ़ा
अन्दर बढ़ा
दंडवत पड़ा 
शुक्र है प्रभु !
जीवन दिया
मानव तन 
उपकारी मन 
बुद्धि दे -शक्ति दे
सर्व व्यापी 
रचने को कर दे
बस यही वर दे 
हँसता -गया 
रोता -गया










हँसता हुआ



मै …..
उलटे पाँव
लौट पड़ा


सुरेन्द्र कुमार शुक्ल
४.५.२०११

6 टिप्‍पणियां:

  1. शुक्र है प्रभु !
    जीवन दिया
    मानव तन
    उपकारी मन
    बुद्धि दे -शक्ति दे
    सर्व व्यापी
    रचने को कर दे
    बस यही वर दे
    हँसता -गया
    रोता -गया

    ..bahut badiya chitramayee rachna!

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  2. कविता जी धन्यवाद प्रभु ने जो हमें दिया है आइये उसका सम्मान करें उसमे संतुष्ट रहें खुश रहें
    शुक्ल भ्रमर ५

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  3. गंगाधर जी रचना आप को भायी सुन हर्ष हुआ सराहना के लिए धन्यवाद

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  4. नेहा जी धन्यवाद रचना के भावों को पसंद करने के लिए आइये प्रभु से मिले मानव तन और सामग्री से संतुष्ट रहें अच्छाइयों को गले लगाये घूमें

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