सीढियां चढ़ा - दो
उसी पुराने
टूटहे मंदिर में
बाहर
सामने खड़ा
मै
सीढियां चढ़ा
-दो -
रोता-कोसता
भगवान को
मोज़े-फटे
जूते -घिसे
पक्का -नहीं
दुनिया हँसे
जिन्दगी दिया ??
जीते जी
या ले लिया ??
तभी वह
बैसाखियों के सहारे
सीढियां चढ़ा
अन्दर बढ़ा
दंडवत पड़ा
शुक्र है प्रभु !
जीवन दिया
मानव तन
उपकारी मन
बुद्धि दे -शक्ति दे
सर्व व्यापी
रचने को कर दे
बस यही वर दे
हँसता -गया
रोता -गया
हँसता हुआ
मै …..
उलटे पाँव
लौट पड़ा
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल
४.५.२०११
शुक्र है प्रभु !
जवाब देंहटाएंजीवन दिया
मानव तन
उपकारी मन
बुद्धि दे -शक्ति दे
सर्व व्यापी
रचने को कर दे
बस यही वर दे
हँसता -गया
रोता -गया
..bahut badiya chitramayee rachna!
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंकविता जी धन्यवाद प्रभु ने जो हमें दिया है आइये उसका सम्मान करें उसमे संतुष्ट रहें खुश रहें
जवाब देंहटाएंशुक्ल भ्रमर ५
गंगाधर जी रचना आप को भायी सुन हर्ष हुआ सराहना के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंनेहा जी धन्यवाद रचना के भावों को पसंद करने के लिए आइये प्रभु से मिले मानव तन और सामग्री से संतुष्ट रहें अच्छाइयों को गले लगाये घूमें
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