शनिवार, 14 मई 2011

नारी अस्तिव-- नारी तेरे बहुत कर्म हैं




प्रिय वियोग में पागल मत बन नारी तेरे बहुत कर्म हैं


जग- जननी ,पालक तो तू ही -जल -फूल खिलाया तूने ही
बन सजनी, श्रष्टा  की तू ही -परिपूर्ण -पकाया तूने ही
बन काली -कलुषित तन जारे -पूजा का अधिकार भी पाया
मंथरा बनी -पूतना बनी -मन मारे -सावित्री सीता नाम लिखाया
पहचानो नारी -पहले खुद को -नारी तेरे कई रूप हैं ----
प्रिय वियोग में पागल मत बन नारी तेरे बहुत कर्म हैं


सुकुमार बनी क्यों -श्रम त्यागा -लक्ष्मण रेखा में रहना चाहा
घूंघट  आड़ खड़ी क्यों - वरमाला -निज वश सब- करना चाहा
संयत ,सुशील , धर धीर चली क्यों -अंकुश टूटा-उच्छृंखल- नर भागा
गंभीर -हीन मन- मार -चली क्यों -अंतर्धारा नर जान पाया
जब चुने रास्ते फूलों के ही -कंटक कीचड तो आयेंगे ही
पहचानो नारी पहले खुद को नारी तेरे कई रूप हैं ----
प्रिय वियोग में पागल मत बन नारी तेरे बहुत कर्म हैं


जननी,पत्नी, भगिनी, दुहिता, साथी नर माने तुमको ही
शक्ति , भक्ति , ख्याति, शुचिता -नारी- नर पाए तुझसे ही
अपमान जहाँ हो नारी का -सुर ना होंशिव भी शव बन जाता है
पाषाण ह्रदय हो वारि सा -स्पर्श जहाँ हो -पीड़ा भी सुख बन जाता है
जन मानस जब अभिवादन करता नारी -पाले- जा निज-गुण को ..
पहचानो नारी पहले खुद को नारी तेरे कई रूप हैं ----
प्रिय वियोग में पागल मत बन नारी तेरे बहुत कर्म हैं

नभ , तारे , सूरज ,चाँद व् धरती -प्रेरित करती सब पर बलिहारी
जग आये जीवन -ज्योति अपनी सब अभिनय के अधिकारी
अतिक्रमण करे क्यों अधिकार जताये-प्रिय पीछे मन प्राण गंवाये
प्राण टूटे क्यों -छूटा प्रिय जाये  -मुस्कान लाज ममता जल जाये
विपरीत चले क्यों धारा के तू-भय है अस्तित्व नहीं मिट जाये...
पहचानो नारी पहले खुद को नारी तेरे कई रूप हैं ----
प्रिय वियोग में पागल मत बन नारी तेरे बहुत कर्म हैं


सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 
 १३..2011
http://surendrashukla-bhramar.blogspot.com

4 टिप्‍पणियां:

  1. यत्र नारि पूजयते तत्र रमन्ते देवता:
    सत्य वचन नारी तेरे कई रूप है...

    सुन्दर कृति

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  2. प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद
    सच कहा आप ने जहाँ नारियों की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं किन्तु आज इसकी बड़ी कमी दिखाई दे रही है हमारे समाज में -दोषी किसे कहें दोनों पक्ष थोडा भटके हुए हैं उन्हें मुख्य धारा के साथ चलना चाहिए -

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  3. हमारे शास्त्रों में कहा है मात्री देवो भवः एक नजर से हम देखें तो हमारे देवता घर में ही हैं फिर हम वन वन क्यों भटकें
    सच ... बहुत ही सार्थक लेखन ...

    बेहतरीन प्रस्तुति.

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  4. प्रिय मदन भाई -नमस्कार
    सुंदर कहा आप ने -हां हमारे देवता घर में ही हैं माँ एक देवी है माँ और पिता हमारे तीर्थ हैं मन अपना एक मंदिर है -सब कुछ है यहाँ बस अपना मन पावन बना लें सब अच्छा करें
    धन्यवाद आप का -आइये नारियों को उनकी इज्जत बख्शें

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