शनिवार, 16 सितंबर 2017

56 वर्षों से लंबित सरदार सरोवर परियोजना का लोकार्पण कल

५६ वर्षों पहले भारत के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू ने जिस सरदार सरोवर परियोजना का १९६१ में शिलान्यास किया था, उसे देश के १५वे प्रधानमंत्री मोदी कल राष्ट्र को समर्पित करेंगे . सरदार सरोवर बांध देश का सबसे बड़ा और दुनियां का दूसरा सबसे बड़ा बांध हैं . इस बांध से बनने वाली बिजली का उपयोग म.प्र., महाराष्ट्र और गुजरात करेंगे और गुजरात की पानी की समस्या का समाधान हो सकेगा .
आपको जान कर हैरानी होगी कि इन ५६ वर्षों में नेहरू परिवार की तीन पीढ़ियों ने देश पर राज्य किया और न जाने कितनी पंचवर्षीय योजनायें आयी और गयी लेकिन बांध का काम पूरा नहीं हो सका . लेकिन क्या कहें इस मोदी नाम के व्यक्ति को जिसने इन तीन वर्षों में प्राणप्रण से काम करते हुए इस बांध के रास्ते में आने वाली बाधाओं को दूर कर, बाँध को पूर्ण करने का मार्ग प्रशस्त कर दिया . यहीं पर STATUE OF UNITY यानी सरदार बल्लभ भाई पटेल की देश की सबसे ऊंची प्रतिमा लगाई जा रही है. परियोजना पूरी करने में मोदी की कितनी भूमिका है ये अलग विषय है किन्तु परियोजनाए कितनी लम्बी लटक सकती हैं या लटकाई जा सकती हैं ,ये कोई भारत से सीखे .
अब विपक्षी दलों को ये जरूर कहना चाहिए कि ये गुजरात चुनाव को देखते हुए किया गया है .
आप क्या सोचते हैं ?

शनिवार, 9 सितंबर 2017

डिज़ाइनर नेता और स्तरहीन पत्रकारिता

डिज़ाइनर नेता और स्तरहीन पत्रकारिता

          गौरी लंकेश की हत्या के बाद अवार्ड वापसी गैंग एक बार फिर सक्रिय हो गयी और इस बार कई डिज़ाइनर नेता भी खुलकर मैदान में आ गए और उन्होंने आरएसएस और बेजीपी के आलावा प्रधानमंत्री मोदी को भी सीधे लपेट लिया . दूसरे दिन मुम्बई, दिल्ली और बंगलौर में कैंडिल मार्च हुआ और एक जैसी मोम् बत्तिया जैसे वे एक ही जगह बनी हों और फिल्म के किसी सीन की तरह अनुशासित निर्देशन में प्रदर्शन कारी रोते बिलखते देखने को मिले.   
         
            गौरी जैसे पत्रकार की हत्या निंदनीय है और इसकी जाँच कर अपराधियों को सख्त से सख्त सजा दी जानी चाहिए. उ.प्र.  और बिहार में हाल ही में कई पत्रकारों की न्रशंस हत्या की गयी लेकिन अफ़सोस ! न कोई डिज़ाइनर नेता और न ही कोई मोमबत्ती धारी प्रदर्शन कारी कहीं दिखाई पड़ा . ये भेद क्यों ?

           गौरी लंकेश कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरामैय्या की बहुत नजदीकी मित्र थी और उनके राज्य में पोश इलाके में उनकी हत्या की गयी जो बेहद दुखदायी है. जब उन्हें धमकियाँ मिल रही थी और  उनकी जान को खतरा था, तो मुख्यमंत्री ने उन्हें सुरक्षा क्यों नहीं दी ? जिस दिन उनकी हत्या हुई वे मुख्य मंत्री से मिल कर आ रही थी. बताया जाता है कि वे एक गुप्त मिशन पर थी और उनके भाई ने बताया कि ये गुप्त मिशन था कई नक्सली नेताओं को आत्म समर्पण कराना और इसलिए वे कुछ नक्सलियों के निशाने पर थी . किन्तु सिद्धरामैय्या सहित सभी ने देश में बढ़ रही असहिष्णुता और प्रधान मंत्री मोदी को इस ह्त्या का इसका जिम्मेदार बताया . गौरी को राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गयी  और पुलिस ने उन्हें सलामी दी.

          ओम थानवी, रबीश कुमार और दिग्विजय सिंह जैसे लोगों ने कपडे उतार कर नागिन डांस किया. टी आर पी  को लालाइत कुछ टी वी चैनलों  ने घंटो बहस की और एक छोटी सी साप्ताहिक मैगजीन “गौरी लंकेश” जिसकी कीमत रु. १५ और खरीदार पता नहीं कितने थे, के पत्रकार को राष्ट्रीय हीरो बना दिया. जाहिर है ये मग्जीन बिना पैसे के नहीं चल सकती, इसके श्रोत क्या है ? इसका स्तेमाल एक विशेष विचारधारा जो राष्ट्र भक्तों को कठघरे में खड़ा कर सके , के प्रचार और प्रसार के लिए किया जाता था. गौरी जो वामपंथी थी, को एक बीजेपी नेता के बारे में मिथ्या समाचार प्रकाशित करने के अपराध में अभी हाल ही  में ६ महीने के जेल की सजा सुनाई गयी थी  और वे जमानत पर थीं. वामपंथियों के पास अब सिवाय आडम्बर के और कुछ नहीं बचा है. एक सजायाफ्ता पत्रकार के प्रति एक राजनैतिक दल की इतनी हमदर्दी ... कुछ तो गड़बड़ है .
                    एस आई टी ने संकेत दिए हैं कि उनकी हत्या नक्सलियों ने की हो सकती हैं.

लेकिन .....जो लोग हिट  एंड रन करके चले गए उनका क्या किया जाय ? 
राजनीति और पत्रकारिता कितना  नीचे गिरेगी ? क्या कोई भविष्य वाणी कर सकता है ?  
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शुक्रवार, 8 सितंबर 2017

क्या मोदी सरकार द्वारा उनका कार्यकाल न बढ़ाये जाने का फैसला सही था ?

भटक रही है रघुराम राजन की आत्मा ......


क्या मोदी सरकार द्वारा उनका कार्यकाल न बढ़ाये जाने का फैसला सही था ?
यों तो रघुराम राजन को रिज़र्व बैंक का गवर्नर पद छोड़े हुए काफी समय हो गया है . पद छोड़ते हुए उन्होने अध्यापन को अपना पसंदीदा कार्य बताया था और इसीलिये जहाँ से आये थे वहीं चले गए थे . अक्सर किसी न किसी बहाने अनचाहे और आवंछित बयान देकर वे भारत में सुर्खिया बटोरते रहते हैं. मुद्दा चाहे नोट बंदी का हो या असहिष्णुता और सहन शीलता का, वे जब बोलते हैं तो उनका दर्द छलकता है . हाल ही में गौरी लंकेश हत्या पर बोलते हुए उन्होंने भारत की आर्थिक प्रगति को सहनशीलता से जोड़ दिया . कई बार उनकी टिप्पड़ी और पी चिदंबरम की टिप्पड़ी में कोइ अंतर नहीं होता है . उन्होंने अपने बयानों से सिद्ध कर दिया कि मोदी सर कार द्वारा उनका कार्यकाल न बढ़ाये जाने का फैसला शायद सही फैसला था.