शनिवार, 30 जुलाई 2011

रचनाधर्मिता के विस्तृत आयाम : आकांक्षा यादव


ब्लागिंग-जगत में बहुत कम लोग ऐसे हैं, जो एक साथ ही प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में भी निरंतर छप रहे हैं. इन्हीं में से एक नाम है-आकांक्षा यादव जी का. आकांक्षा जी कॉलेज में प्रवक्ता के साथ-साथ साहित्य, लेखन और ब्लागिंग के क्षेत्र में भी उतनी ही प्रवृत्त हैं।

इण्डिया टुडे, कादम्बिनी, नवनीत, साहित्य अमृत, वर्तमान साहित्य, अक्षर पर्व, अक्षर शिल्पी, युगतेवर, आजकल, उत्तर प्रदेश, मधुमती, हरिगंधा, पंजाब सौरभ, हिमप्रस्थ, दैनिक जागरण, जनसत्ता, अमर उजाला, राष्ट्रीय सहारा, स्वतंत्र भारत, राजस्थान पत्रिका, वीणा, अलाव, परती पलार, हिन्दी चेतना (कनाडा), भारत-एशियाई साहित्य, शुभ तारिका, राष्ट्रधर्म, पांडुलिपि, नारी अस्मिता, चेतांशी, बाल भारती, बाल वाटिका, गुप्त गंगा, संकल्य, प्रसंगम, पुष्पक, गोलकोंडा दर्पण इत्यादि शताधिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित आकांक्षा यादव अंतर्जाल पर भी उतनी ही सक्रिय हैं. विभिन्न वेब पत्रिकाओं- अनुभूति, सृजनगाथा, साहित्यकुंज, साहित्यशिल्पी, वेब दुनिया हिंदी, रचनाकार, ह्रिन्द युग्म, हिंदीनेस्ट, हिंदी मीडिया, हिंदी गौरव, लघुकथा डाट काम, उदंती डाट काम, कलायन, स्वर्गविभा, हमारी वाणी, स्वतंत्र आवाज डाट काम, कवि मंच, इत्यादि पर आपकी रचनाओं का प्रकाशन निरंतर होता रहता है. विकिपीडिया पर भी आपकी तमाम रचनाओं के लिंक उपलब्ध हैं।

अपने व्यक्तिगत ब्लॉग 'शब्द-शिखर' के साथ-साथ पतिदेव कृष्ण कुमार जी के साथ युगल रूप में बाल-दुनिया, सप्तरंगी प्रेम, उत्सव के रंग ब्लॉगों का सञ्चालन उन्हें अग्रणी महिला ब्लागरों की पंक्ति में खड़ा करता है. इसके अलावा भी वे तमाम ब्लॉगों से जुडी हुयी हैं.

30 जुलाई, 1982 को सैदपुर, गाजीपुर (उत्तर प्रदेश) के एक प्रतिष्ठित परिवार में जन्मीं और सम्प्रति भारत के सुदूर अंडमान में हिंदी ब्लागिंग की पताका फहरा रहीं आकांक्षा जी न सिर्फ हिंदी को लेकर सचेत हैं बल्कि इसके प्रचार-प्रसार में भी भूमिका निभा रही हैं. दो दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित पुस्तकों/ संकलनों में उनकी रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं तो आकाशवाणी से भी रचनाएँ तरंगित होती रहती हैं. नारी विमर्श, बाल विमर्श और सामाजिक मुद्दों से सम्बंधित विषयों पर आप प्रमुखता से लेखन कर रही हैं. कृष्ण कुमार जी के साथ "क्रांति-यज्ञ:1857-1947 की गाथा" पुस्तक का संपादन कर चुकीं आकांक्षा जी के व्यक्तित्व-कृतित्व पर चर्चित बाल-साहित्यकार डा. राष्ट्रबंधु द्वारा सम्पादित "बाल साहित्य समीक्षा (कानपुर)" पत्रिका ने विशेषांक भी जारी किया है।

विभिन्न प्रतिष्ठित सामाजिक-साहित्यिक संस्थानों द्वारा विशिष्ट कृतित्व, रचनाधर्मिता और सतत् साहित्य सृजनशीलता हेतु उन्हें दर्जनाधिक सम्मान, पुरस्कार और मानद उपाधियाँ प्राप्त हैं. भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा ‘वीरांगना सावित्रीबाई फुले फेलोशिप सम्मान‘, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा ’भारती ज्योति’, ‘‘एस0एम0एस0‘‘ कविता पर प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा पुरस्कार सहित तमाम सम्मान शामिल हैं. आकांक्षा जी के पतिदेव श्री कृष्ण कुमार यादव भी चर्चित साहित्यकार और ब्लागर हैं, वहीँ इस दंपत्ति की पुत्री अक्षिता (पाखी) भी 'पाखी की दुनिया' के माध्यम से अभिव्यक्त होती रहती है. सहजता और विनम्रता की प्रतिमूर्ति आकांक्षा यादव अपनी रचनाधर्मिता के बारे में कहती हैं कि-'' मैंने एक रचनाधर्मी के रूप में रचनाओं को जीवंतता के साथ सामाजिक संस्कार देने का प्रयास किया है. बिना लाग-लपेट के सुलभ भाव-भंगिमा सहित जीवन के कठोर सत्य उभरें, यही मेरी लेखनी की शक्ति है.''

आशा की जानी चाहिए कि आकांक्षा जी यूँ ही अपने लेखन में धार बनाये रखें, निरंतर लिखती-छपती रहें और हिंदी साहित्य और ब्लागिंग को समृद्ध करती रहें.

जन्म-दिन पर असीम शुभकामनाओं सहित...!!

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रत्नेश कुमार मौर्य :
जन्म- 14 जुलाई, 1977 को. मूलत: उत्तर प्रदेश के मऊ जनपद के निवासी. आरंभिक शिक्षा-दीक्षा जवाहर नवोदय विद्यालय, जीयनपुर-आजमगढ़ और तत्पश्चात इलाहाबाद विश्वविद्यालय से दर्शन शास्त्र में परास्नातक. सम्प्रति उत्तर प्रदेश सरकार के अधीन कौशाम्बी जनपद में अध्यापन पेशे में संलग्न. अध्ययन, लेखन का शौक. फ़िलहाल इलाहाबाद में निवास. दर्शन शास्त्र का विद्यार्थी होने के चलते कई बार यह जीवन भी दर्शन ही लगने लगता है.अंतर्जाल पर ‘शब्द-साहित्य’ ब्लॉग के माध्यम से सक्रियता !!









शुक्रवार, 29 जुलाई 2011

Bezaban: क्या कहा आपने शादी नहीं करेंगे?

Bezaban: क्या कहा आपने शादी नहीं करेंगे?: "क्या कहा आपने शादी नहीं करेंगे? परेशान ना हों भाई आप को तो केवल अपनी पसंद बतानी है. अभी इस सप्ताह मैंने दो पोल (POLL) किये और आश्चर्य जन..."

क्या कहा आपने शादी नहीं करेंगे? परेशान ना हों भाई आप को तो केवल अपनी पसंद बतानी है. अभी इस सप्ताह मैंने दो पोल (POLL) किये और आश्चर्य जनक रूप से टिप्पणिओं से अधिक इमानदार नतीजे सामने आये.
उन विषयों पे जहाँ लोग कम बोलना चाहते हैं पोल (POLL) वैसे भी एक कामयाब तरीका हुआ करता है हकीकत जानने का.
आज हम जिस समाज मैं रह रहे हैं वहाँ शादी के पहले सेक्स या शादी के बाद पति या पत्नी के अलावा सेक्स स्वीकार नहीं किया जाता. लेकिन ऐसा होता है यह भी सत्य है और बहुत से परिवारों मैं शादी के पहले सेक्स की इजाजत तो नहीं लेकिन बहुत बुरा नहीं समझा जाता. और कई जगह तो बिना शादी जीवन साथ गुजरने मैं भी आपत्ति नहीं होती लोगों को.


इस श्रेणी का पहला POLL

1) आप को क्या लगता है?


2) शादी के बाद परायी स्त्री या पराये पुरुष से सेक्स


बुधवार, 27 जुलाई 2011

Bezaban: महिलाओं को दैहिक स्तर पर देखने की मानसिकता और महिल...

महिलाओं को दैहिक स्तर पर देखने की मानसिकता और महिल...: "महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं अतनी आम हो गयी हैं की आज किसी भी दिन के अखबार को उठा लें २-४ खबरें तो मिल ही जाएंगे. इसके बहुत से कारण है..."

महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाओं का एक कारण महिलाओं को दैहिक स्तर पर देखने की मानसिकता और महिलाओं का इसमें सहयोग है.


शनिवार, 23 जुलाई 2011

news

ऐसी झमाझम बारिश शुरू हुई जो रुकने का नाम ही.............................


 आज  क्या होगा  यह सोचकर मैं घबरा रहा था। कल तक तो सब ठीक था, लेकिन ऐन बारात आने वाले दिन ऐसी झमाझम बारिश शुरू हुई जो रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। बारात बस से आई थी और दूल्हे के अस्वस्थ पिता रेल से। मैं स्टेशन से उन्हें लेकर गेस्ट  हाउस जा पहुंचा जहां बारात ठहरने वाली थी। मगर ढलान का  मोहल्ला  होने की वजह से गेस्ट  हाउस के बाहर कई  फुट पानी भर गया था।

किसी तरह दूल्हे के पिता को लेकर घराती  गेस्ट  हाउस के भीतर पहुंचने में सफल हुए  तो दिमाग मैं  यह हो आई कि और बारातियों को भीतर कैसे लाया जाए। तभी देखता क्या हूं कि दूल्हा सबसे पहले बस से कूद पड़ा है। उसकी देखादेखी दूसरे लोग भी उतर कर सीधे पानी में चलते हुए रास्ता पार करने लगे। बुजुर्गों को तकलीफ न हो, यह सोचकर जैसे ही मैंने पानी में कुछ रखने की कोशिश की, दूल्हा खुद पास आकर मदद करने लगा। कहीं किनारे-किनारे ईंटें रखीं तो कहीं हम लोगों ने बारातियों के साथ मिलकर लकड़ी के बड़े बड़े टुकड़े  रखवाए।

कोई देखकर कह ही नहीं सकता था कि दूर से बारात आई है। लग रहा था जैसे वे यहीं रहते हैं और यह उनके लिए रोजमर्रा की बात है। मुझे अपने पुराने दिनों की बारातें याद आ रही थीं। तब बारातियों के लिए एक से एक उम्दा इंतजा -मात किए जाते थे। कहीं बाल काटने की व्यवस्था है तो कहीं मालिश की। कहीं कपड़े प्रेस हो रहे हैं तो कहीं पॉलिश की जा रही है। मजाल कि लड़की वालों से कोई चूक हो जाए! हाथ बांधे खड़े रहना उनकी मजबूरी होती थी। जो कहे बाराती, उसे सुनते रहो, कहो कुछ मत।

लेकिन जिस बारात का जिक्र मैं कर रहा हूं, वह पंजाब से आई थी। किसी बाराती के चेहरे पर यह भाव नजर नहीं आया कि अरे, ये कहां ठहरा दिया हमें? महिलाएं दूसरों की मदद लेकर और बच्चे गोदी पर चढ़कर मजे में चले आए। मैंने हर किसी से माफी मांगने वाले अंदाज में कहा भी कि क्षमा कीजिएगा, आज जरा मौसम खराब हो गया... तो हर किसी के मुंह से यही सुनने को मिला - ओ जी, बारिश का क्या है, हमारे पंजाब में भी ऐसे ही बिना बताए हो जाती है जी। हंसते-हंसाते मौसम की टेंशन को उड़ा दिया सभी ने।

जैसे कुछ हुआ ही न हो। किसी के चेहरे पर कोई शिकन तक नजर नहीं आई। मैं सोच रहा था कि कोई भी बाराती भड़क जाता तो जाने कैसे संभालने में आता। समय के साथ-साथ कितने बदलते जा रहे हैं बाराती भी। तभी उनमें से एक मुझे अपने में खोया देख पास आ गया। बोला-अजी, आप बिलकुल परेशान मत होओ। नेचर दी गल दी किसी नूं की खबर? हमारे यहां भी बेटियां हैं जी, हमारे घर भी तो बारात आनी है किसी दिन। बस, एहोई गल सबणूं याद रखणी चाहिदी। देखते-देखते सारा माहौल खुशनुमा हो उठा। कभी मैं जमे हुए पानी को देख रहा था तो कभी बारातियों की तरफ। 
इस तरह की  बरात हम सभी ने कभी न कभी तो देखि है....

जय बाबा बनारस.....

शुक्रवार, 22 जुलाई 2011

काहे खून तेरा प्यारे अब खौलता नहीं —??



तोड़ लिया कोई फूल तुम्हारा
खाली हो गयी क्यारी
उजड़ जा रहा चमन ये सारा
गुल गुलशन ये जान से प्यारी
खुश्बू तेरे मन जो बसती
मिटी जा रही सारी
पत्थर क्यों बन जाता मानव
देख देख के दृश्य ये सारे
खींच रहा जब -कोई साड़ी
cheer-haran_6412
काहे खून तेरा प्यारे अब
खौलता नहीं —??
(फोटो साभार गूगल देवता /नेट से लिया गया )
————————–
साँप हमारे घर में घुसते
अंधियारे क्यों भटक रहा
जिस बिल से ये चले आ रहे
दूध अभी भी चढ़ा रहा ?
तू माहिर है बच भी सकता
भोला तो अब भी भोला है
दोस्त बनाये घूम रहा
उनसे अब भी प्यार जो इतना
बिल के बाहर आग लगा
बिल में ही रह जाएँ !
काट न खाएं !
इन भोलों को !!
लाठी क्यों ना उठा रहा ??
काहे खून तेरा प्यारे अब
खौलता नहीं —??
————————
तोड़-तोड़ के पत्थर दिन भर
बहा पसीना लाता
धुएं में आँखें नीर बहाए
आधा पका – बनाता
बच्चों को ही पहले देने
पत्तल जभी सजाता
मंडराते कुछ गिद्ध -बाज है
छीन झपट ले जाते
कल के सपने देख देख के
चुप क्यों तू रह जाता
काहे खून तेरा प्यारे अब
खौलता नहीं —??
—————————
शुक्ल भ्रमर ५
२०.०७.२०११ जल पी बी
८.५५ पूर्वाह्न

बुधवार, 20 जुलाई 2011

वो naxalite भी हो सकता था

आज सुबह मेरे एक सहयोगी एक लड़के को ले कर मेरे कमरे पे आ गए ......बोले नया लड़का है ....आजीवन सेवाव्रती बनने के लिए आया है ....आज दिन में इसका interview है ...तब तक आपके साथ रह लेगा ....उसे मेरे पास छोड़ के चले गए ............अब उसका interview था दिन में 2 बजे ....वहां तो बाद में देता ...पहले मैंने लेना शुरू कर दिया ...और फिर एक बार शुरू जो हुआ तो पूरे तीन घंटे चला ........और जो कहानी निकल के आयी वो आपके सामने हुबहू प्रस्तुत है .........कमल कान्त ...उम्र 18 वर्ष .....बारहवीं पास ........science से .....लगभग 45 % अंक ले कर .......उड़ीसा का रहने वाला है ......JHARSUGUDA स्टेशन पे उतर के लगभग 80 किलोमीटर दूर ..........एक गाँव है सेंदरी टांगर...झारसुगुडा से उसके गाँव पहुँचने के लिए तीन बसें बदलनी पड़ती हैं ....यहाँ पतंजलि योग पीठ में आजीवन राष्ट्र सेवा की इच्छा से आया है ......जाति का हरिजन ( मोची ) है ......उसके गाँव में लगभग 100 घर हैं ......लगभग 85 घर आदिवासी , 15 घर हरिजन और 4 -5 घर अन्य जातियों के हैं ......इनके गाँव से 2 किलोमीटर दूर मेन रोड पर एक काफी बड़ा गाँव है ....पामरा........ब्राह्मणों का गाँव है...अन्य जातियां भी रहती हैं .......पामरा में बिजली है पर इनके गाँव में नहीं है ....एक स्कूल है सरकारी ...1 से 5 क्लास तक ....पर मास्टर सिर्फ 2 हैं ........गाँव में 5 हैण्ड पम्प हैं सरकारी ....दो कुए थे जो अब सूख चुके हैं .......गर्मियों में वो हैण्ड पम्प फेल हो जाते हैं .........फिर उन दिनों पानी की बड़ी गंभीर समस्या पैदा हो जाती है .......गाँव के लोग तालाब के किनारे छोटे छोटे गड्ढे खोदते हैं उनमे जो थोडा सा पानी आता है उसे छान के ...उबाल के पीते हैं ...फिर जब वह पानी भी सूख जाता है तो गाँव की औरतें 2 किलो मीटर दूर ,पामरा से handpipe से पानी भर के लाती हैं ...वहां भी लम्बी लम्बी लाइन लगती है ...तो उस गाँव के लोग भी इन्हें दुत्कारने लगते हैं ...इसे ले कर रोज़ झगडे होते हैं ...........अब पीने के पानी का इतना झंझट है तो नहाना फिर दूर की बात है ...अब जिसे बहुत शौक हो वो 5 किलोमीटर दूर एक नदी पर नहा आता है ..पर भैया गर्मियों में जब तापमान 45 डिग्री हो जाता है तो ये शौक ज़्यादातर लोग नहीं पाल पाते.
खेती पूरी भगवान् भरोसे है ....बीस साल पहले एक छोटी नहर खुदी थी जिसमे आज तक पानी नहीं आया ......अपने पीने के लिए पानी नहीं तो गाय भैंस को कहाँ से पिलायें सो जानवरों को 6 महीना पालते है और 6 महीना छुट्टा छोड़ देते हैं .........अनाज में चावल हो जाता है ...थोडा बहुत गेहूं ...और मिर्च .......सरकार BPL कार्ड पे चावल देती है ...दाल हम खरीद लेते हैं ....मुख्य भोजन दाल भात ही है ...सब्जी अगर कभी मिल जाए तो मज़ा आ जाता है .........वैसे मिर्च की चटनी से भी चावल खा लेते हैं .. नमक के साथ पानी मिला के भी खाते ही हैं सब लोग ....पेट तो भर ही जाता है ...पर............(बहुत सी बातें बिना कहे ही कही जाती हैं) गाँव के हर घर में चावल की कच्ची शराब यानि हंडिया ...और महुआ यानी दारु उतारते हैं ........सब लोग पीते हैं ....सब लोग ......यहाँ तक की सातवीं क्लास का बच्चा भी पीता है ...तम्बाखू और गुटके का भी खूब चलन है .........गाँव में बिजली नहीं है फिर भी लोग battery रखते हैं जिसे 10 रु में बगल के गाँव पामरा से चार्ज करा लेते हैं ...फोन भी वहीं चार्ज करते हैं ....फोन तकरीबन सबके पास है ....टीवी भी........ पर उसपे सिर्फ CD चला के फिल्म देखते हैं .......हिदी फिल्में ही देखते हैं ज़्यादातर ...स्कूल में हिंदी आठवीं क्लास से शुरू होती है .......फिर भी सब लोग काम चलाऊ हिंदी तो जानते ही हैं ...वो कैसे भैया ????? फिल्म देख के .......कोटिशः धन्यवाद बॉलीवुड को .......हिंदी की जितनी सेवा और प्रचार प्रसार इस संस्था ने किया उतना किसी ने नहीं किया ...........गाँव की सड़क आज भी मिटटी की है जो बरसात में कीचड में बदल जाती है ..........सबसे नज़दीक काम चलाऊ डाक्टर 17 किलोमीटर दूर है और कायदे का अस्पताल 47 किलोमीटर दूर ...................सबसे नज़दीक हाई स्कूल 17 किलोमीटर ...कॉलेज 30 किलोमीटर दूर है .......गाँव के 4 -5 लड़के हाई स्कूल पास हैं ...graduate एक भी नहीं है ........लडकिय सिर्फ 5th तक ही पढ़ पाती हैं .
बगल के गाँव के ऊंची जाती के लोग हमारे साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते ....छूआ छूत मानते है ....उनके घर में प्रवेश वर्जित है ......बाहर बैठना पड़ता है ...पहले तो जमीन पर बैठा देते थे ...अब कुर्सी तो देते है ...पर सम्मान नहीं .....हमारे लिए अलग गिलास रखते हैं ....शादी विवाह में बुलाते तो हैं पर दूर बैठाते हैं ....... चमारों और आदिवासियों के लिए अलग लाइन लगती है ............सबसे अलग बैठा कर खिलाते हैं .........मुझे ये सब अच्छा नहीं लगता ....इसलिए मैं ऐसे किसी कार्य क्रम में जाना नहीं चाहता .........मैं science से 12th पास हूँ इसलिए कुछ दिन गाँव के स्कूल में मैंने पढ़ाया भी है ...पामरा में कुछ बच्चों को ट्यूशन भी पढाता हूँ , फिर भी, मेरे साथ भी अस्पृश्यता का व्यवहार होता ही है .......हमारे गाँव से दो किलोमीटर दूर जंगल शुरू हो जाता है ...फिर वहां से आगे थोड़ी दूर एक पहाड़ी है ...उसके उस पार दो गाँव हैं .....एकमा और बोम्देरा .......वहां माओ वादी आते है ...कहते कुछ नहीं हैं ...बस लेक्चर देते हैं ...फिर भजन गाते हैं ........वहां अब 24 घंटा पुलिस आती है ....CRP भी है ......पहले उन गाँवों तक जाने के लिए रास्ता नहीं था ...अब पुलिस और CRP की गाडी जाने के लिए रास्ता बनाया है सरकार ने ...............आज़ादी के 65 साल बाद भी उस गाँव में सरकार पीने के पानी का ....बिजली का ........सड़क का ...स्वास्थय सेवाओं का ...शिक्षा का....या भरपेट भोजन का इंतज़ाम नहीं कर पायी .....पर crpf की गाडी जाने के लिए रास्ता बना दिया है सरकार ने ......crpf के कैंप के लिए रोज़ सरकारी tanker पानी ले कर जाता है .........
फिर क्या हुआ ........मैं बस सवाल पूछे जा रहा था और वो भोला भाला सा.... मासूम सा बच्चा मेरे सवालों के जवाब दिए जा रहा था ...........मैंने पूछा ...तुम्हे यहाँ आने की प्रेरणा कैसे मिली ....पातंजलि योग पीठ की योग कक्षा चलती है पामरा में ...वहां योग सिखाते हैं ....वहां के योग शिक्षक जीवन दानी हैं ...देश की सेवा में लगे हैं .......उनसे प्रेरणा ले कर और उन्ही से address वगैरह ले कर वो यहाँ आया था .....कुछ देर बाद वो लड़का चला गया ......मैं सोचने लगा ..........आज मेरे सामने जो लड़का बैठ था ,राष्ट्र सेवा को तत्पर .....बस बाल बाल बच गया ........उसका भाग्य अच्छा था जो आज वो यहाँ पतंजलि योग पीठ हरिद्वार में बैठा था ...वरना ये भी हो सकता था की वो किसी naxalite कैंप में बैठा बन्दूक चलाना सीख रहा होता ......

मंगलवार, 19 जुलाई 2011

‘‘एक फूल दो माली’’


‘भ्रष्टाचार’ की पल-पल खुलती पोल ने न केवल बड़ी-बड़ी सियासी ताकतों को बेनकाब किया अपितु लोकतंत्र की जड़ों को भी हिलाया दिया। वास्तविकता सामने आना और इस अशुद्ध चरित्र के विरूद्ध कोई कार्रवाई होना, दोनों अलग-अलग बातंे हैं। यथा इस फेर में न पड़ते हुए भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता के सशक्तिकरण व उसके द्वारा उठाये गये कदमों की बात करते हैं।
भ्रष्टाचार के विरूद्ध छेड़ी गई दो मुहिमों ने संप्रग सरकार की रातों की नींद व दिनों के चैन का हरण कर लिया। अन्ना हजारे का अध्याय अभी समाप्त भी नहीं हुआ था कि बाबा रामदेव ने जो सियासी भूचाल लाया उसने कई प्रश्नों को स्थायित्व दिया। अन्ना हजारे व बाबा रामदेव दोनों एक ही मंजिल के लिए सफर कर रहे हैं परन्तु दोनों के मूलभाव भिन्न-भिन्न हैं । एक (अन्ना हजारे) का मार्ग निष्पक्ष, निस्वार्थ व लोकहितकारी प्रतीत होता है। साधु न होते हुए भी साधुत्व के सभी गुण अन्ना हजारे स्वयं में समाहित किये हुए है। वहीं दूसरी ओर राजनीति की दहलीज पर अपनी चाबी का ताला टंागने की चाह रखने वाले बाबा के इस संघर्ष से निजी स्वार्थ की बू आती है। निश्चित रूप से किसी पर किसी भी प्रकार की उंगली उठाने से पूर्व प्रमाणिक साक्ष्य का होना आवश्यक है। अतः इस प्रकरण को भी इस प्रकार समझा जा सकता है-
इस संघर्ष का आरम्भ भ्रष्टाचार की लपटों से पीड़ित जनता पर लोकपाल विधेयक की मलहम से हुआ। अन्ना हजारे ने देश की सम्पूर्ण जनता का नेतृत्व करते हुए संप्रग सरकार से लोकपाल विधेयक पारित करने की मांग की। यह मुद्दा गर्म जोशी से चल ही रहा था कि अचानक बाबा रामदेव को भ्रष्टाचार रूपी दैत्य से युद्ध करने का जोश आया और वे विशेष सुविधाओं के साथ अपने योग-कम-अनशन पर बैठ गये रामलीला मैदान में। निश्चित रूप से बाबा ने सटीक व आवश्यक मुद्दों को सरकार के सम्मुख प्रस्तुत किया। परन्तु तुरत-फुरत लिये गये उनके इस निर्णय ने हजारों लोगों के प्राणों को संकट में डाल दिया। बाबा की भक्ति में लीन भक्त बाबा के शब्दों का अनुसरण करते हुए रामलीला मैदान पहुँच गये। प्रायः देखा गया है कि इस प्रकार के किसी भी एकत्रीकरण पर तत्कालीन सरकार किसी न किसी बहाने से गिरफ्तारी का वारंट निकलती ही है। उत्तर प्रदेश में भट्टा पारसौल मामले में राहुल गाँधी, सचिन पायलट आदि की गिरफ्तारी राजनीति में चूहा-बिल्ली के इस खेल का प्रमाण है। बाबा की गिरफ्तारी या बाबा के विरूद्ध किसी भी प्रकार की कार्रवाही निश्चित थी। यूपी सरकार हो या कोई अन्य सभी का प्रायः कदम यही होता है। बाबा जानते थे इस प्रकार की गतिविधि पर उन्हें प्राप्त जनसमर्थन का परिणाम हंगामा होगा और उस हंगामे को नियन्त्रित करने के लिए लाठी चार्ज और...........
परिणामतः बाबा के प्रति बढ़ी श्रृद्धा एवं सहानुभूति। पूर्व नियोजित यह सम्पूर्ण प्रकरण बिल्कुल उसी तर्ज पर चला जिसकी कल्पना बाबा ने की थी। इसका शिकार हुई निर्दोष व भोली जनता। बाबा जनता के विश्वास पर राजनीति की रोटियाँ सेंकने की कला भली-भांति जानते हैं और वे सफल भी हुए।
बाबा ने इतने विशाल आयोजन में जनता के लिए किसी रक्षात्मतक रणनीति की योजना क्यांे नहीं बनाई? विशाल भीड़ को बाबा ने अपनी जिम्मेदारी पर एकत्रित किया था जिसे निभाने में वे पूर्णतः असफल रहे। इस प्रकरण में एक प्रश्न बार-बार उठाया गया कि मासूम जनता पर लाठीचार्ज क्यूँ किया गया? इसका उत्तर प्रमाण के साथ बहुत सरल है- किसी न किसी को तो पिटना था- या तो पुलिस पिटती या जनता। हाल ही में मेरठ बिजली बम्बा पर हुए दंगों में जनता ने पुलिस को दौड़ा-दौड़ाकर पीटा। सर्वविदित है जिसका लाठी उसी की भैंस। जनता यदि साधन सम्पन्न स्थिति में होती तो निश्चित रूप से पुलिस को पीटती। पर क्या पुलिस वाले किसी के पिता किसी के भाई नहीं हैं? बाबा की अंध भक्ति ने लोगों की विचारणीय क्षमता को सम्मोहित किया हुआ है। वह दूरदर्शी हुए बिना वर्तमान के मोह को जीना चाहते हैं और बाबा का अंधानुसरण कर रहे हैं। विचारणीय है कि अन्ना हजारे के समर्थन में उतरा बॉलीवुड व अन्य बुद्धिजीवी वर्ग बाबा की राजनीतिक भूख को पहले ही भांप गये। यही कारण रहा कि इनमें से किसी ने भी बाबा के अनशन का समर्थन नहीं किया। स्मरणीय है कि कुछ वर्षों पूर्व बाबा ने राजनीति में आने की अपनी इच्छा व्यक्त की थी और तभी से बाबा किसी न किसी राजनीतिक बयानबाजी के लिए सुर्खियों में रहे हैं। आखिर साधु को राजनीति के इस चस्के का क्या अर्थ है? साधु तो निःस्वार्थ भाव से जनकल्याण के लिए समर्पित होते हैं। यह कैसा समर्पण है?
दिग्विजय सिंह द्वारा बाबा रामदेव के योग का नामकरण ‘योग उद्योग’ काफी सार्थक प्रतीत होता है। यह योग उद्योग नहीं तो और क्या है? बाबा से योग सीखाने के लिए अग्रिम पंक्तियों में बैठने का टिकट रू 25000 और पीछे बैठे लाचार गरीब जनता। योग को बढ़ावा देने वाले बाबा का यह पक्षपाती व्यवहार समझ से परे है। इस उद्योग ने बाबा को अरबपति साधु बना दिया। साधु को सम्पत्ति संग्रह की शिक्षा किस धर्मशास्त्र में दी जाती है, यह शोध का विषय है। व्यक्तिगत हैलीकॉप्टर, एसी युक्त भवन- ये कैसे साधु?
भ्रष्टाचार के विरूद्ध या कहें संप्रग सरकार के विरूद्ध आरम्भ की गई इस मुहिम में बाबा की राजनीतिक मंशा को उनके एक और कृत्य ने प्रमाणित किया। अनशन आरम्भ करते ही उन्होंने अन्ना हजारे की उपेक्षा की। जब दोनांे की लक्ष्य एक ही था और मार्ग भी समानान्तर थे तो क्यों नहीं बाबा ने अन्ना हजारे की जंग का समर्थन कर इस संघर्ष को मजबूती प्रदान की। अतिआत्मविश्वास के वशीभूत रामदेव ने इस संघर्ष को दिशाहीन कर दिया। एक ही उद्देश्य की पूर्ति की जिजीविषा के बावजूद देश की जनता अन्ना हजारे और रामदेव, दो धाराओं में बँट गई। फेसबुक पर आते अपडेट के अध्ययन से ज्ञात हुआ बहुत से लोग दिग्भ्रमित हो भ्रष्टचार को भूल अन्ना समर्थन और बाबा की आलोचना के चक्रव्यूह में उलझ कर रह गये हैं। और मुख्य मकसद से भटक गये। बाबा ने इस मुहिम को कमजोर कर दिया।
इस प्रकरण में नाटकीय मोड़ तब आया जब बाबा को स्त्रीवेश में देखा गया। बाबा ने अनशन गाँधीवादी नीतियों का अनुसरण करते हुए प्रारम्भ किया था। परन्तु सच कहें तो बाबा ने गाँधी जी की नीतियों का घोर अपमान किया। सभी देशभक्तों ने आजादी की जंग में लाठियाँ खाई। लाला लाजपत राय अंग्रेजों की लाठी की चोट के कारण वीरगति को प्राप्त हुए। उन सार्थक व अचूक नीतियों के अनुसरण का ढ़िढ़ोंरा पीटने वाले साधु बाबा जान बचाकर भागे स्त्रीवेश में? कितना शर्मनाक व अपमानजनक है यह सब। निश्चित रूप से उस दिन स्वतंत्रता सेनानियों व वीर देश भक्तों की आत्मा रोई होगी। बाबा ने जान बचाने के लिए महिलाओं का संरक्षण प्राप्त किया। यह कैसी वीरता थी? कैसे दृढ़ संकल्प था? क्या इन महिलाओं के भरोसे बाबा ने अनशन आरम्भ किया था?
इसके पश्चात् बाबा ने पुनः जनता के कंधों पर बंदूक चलाने की रणनीति बनाई। 11000 लोगों की फौज जो भ्रष्टाचार के विरूद्ध लड़ने के लिए तैयार की जायेगी। समझ में नहीं आता कि बाबा यह सब ना समझी में कर रहे हैं या जानबूझकर देश की जनता को ‘देसी आतंकवाद’ का पाठ पढ़ा रहे हैं। क्या इस प्रकार की भड़काऊ रणनीति देश में कानून व्यवस्था को चरमराने के लिये पर्याप्त नहीं है? निश्चित रूप से है। वास्तव में बाबा स्वार्थपूर्ति के जनून में आत्मनियत्रण व विवेक को खो चुके हैं। गाँधी-नेहरू के देश में हिंसा के उपदेश, सम्पूर्ण विश्व में भारत के वीरों की किरकिरी करा रहे हैं। भोली कहे जाने वाली जनता यदि ऐसे उपदेशों का अनुसरण करती है तो कड़े शब्दों में कहा जाये, तो निश्चित रूप से वह भोली नहीं बेवकूफ है।
कुछ सीमाएँ बाबा ने लाँघी और कुछ पोल बाबा की स्वतः खुल गई। योग द्वारा 200 वर्षों तक जीने का दावा करने वाले बाबा 6 दिन अनशन करने में सफल न हो सके। फिर कर दिया बाबा ने योग का अपमान। विश्व भर में योग सेंटर चला रूपया कमाने वाले बाबा ने योग पर प्रश्नचिन्ह आरोपित कर दिया। विश्व में भारतीय योग का प्रचार-प्रसार कर सम्मान दिलाने वाले ने ही भारतीय योग को शर्मिंदा कर दिया।
वर्तमान परिस्थितियाँ यह है कि बाबा ने मौन धारण कर लिया। यह एक सरल माध्यम है। बाबा जानते है कि जब भी वे मुँह खोलेंगे उनसे कुछ न कुछ अंटशंट बोला जायेगा। वे पहले ही अपनी बहुत सी पोल खोल चुके है। कहा भी जाता है ‘जो मुँह खोले सो राज बोले’। बाकि रहस्य उद्घटित न हो इसके लिए बाबा का मौन रहना ही उचित है।
इस सम्पूर्ण घटनाक्रम में विपक्ष व मीडिया दोनों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। विपक्ष ने राजनीतिक दाँवपेंचों की सभी पोथियाँ खोल दी। आरोप-प्रत्यारोप राजनीति की पुरानी परम्परा है। परन्तु क्या इसकी कोई सीमा निधारित नहीं होनी चाहिए? इस परम्परा का पालन करना कोई विवशता नहीं, मात्र राजनीतिक लाभ के लिए देश को बाँटना कहाँ तक उचित है? क्या निजस्वार्थ देशहित से बड़ा हो चला है?
मीडिया का रामदेव कवरेज इसके दायित्वबोध को संदिग्ध करता है। बड़ौत में जैन मुनि प्रभसागर के साथ हुए अत्याचार का मीडिया कवरेज नाममात्र के लिए था। एक मुनि की वर्षों की तपस्या भंग कर दी गई। उनकी आस्था, उनके सम्मान को खण्डित किया गया और मीडिया चुप। क्यों मीडिया ने इस प्रकरण पर विशेषांक नहीं निकाले? क्या मीडिया वास्तव में बाबा की व्यक्तिगत सम्पत्ति हो गया है? किंकर्तव्यविमुढ़ता की इस चरमावस्था ने यह सोचने के लिए बाध्य कर दिया है कि आखिर हमारे लिए देश कितना महत्वपूर्ण है? इस पीढ़ी को उपहारस्वरूप मिली आजादी को क्या चंद लोगों के सुपूर्द कर देना समझदारी है? इस वैचारिक गुलामी से आजादी पाना बहुत जटिल है। देश की जनता को विवेक को जाग्रत करने की आवश्यकता है। सोचिये, समझिये और विचारिये अन्यथा आपके मस्तिष्क पर किसी और का राज होगा।

सोमवार, 18 जुलाई 2011

आदि-शिव.....भोले -भंडारी का सबसे प्राचीन रूप.....




                         भोले भंडारी को प्रिय मास श्रावण क्यों है.... क्योंकि श्रावण श्रंगार का महीना है , श्रृंगार के पर्व का मास है ...और भोले -भंडारी हैं श्रृंगार के आदि देव ...वेदों में वे रूद्र देव हैं जो सृष्टि की नियमितता व क्रमिक स्वचालित प्रक्रिया हेतु  चिंतित ब्रह्मा के उद्धार हित प्रकट हुए .....अर्ध-नारीश्वर रूप में ...और स्वयं को विभाजित करके नर व नारी के विभिन्न भावों में प्राकट्य होकर प्रत्येक जड़-जंगम -जीव में समाहित हुए ...और तभी से सृष्टि में नर-नारी भाव, योनि-लिंग  रूप भाव से मैथुन सृष्टि का आविर्भाव हुआ ...सृष्टि की स्व-चालित उत्पादन-प्रजनन  प्रक्रिया......|  शायद वह यही सुन्दर-सुखद-सुहावन-सुसमय - मास रहा होगा जिसे बाद में श्रावण का नाम दिया गया होगा |                                                  ...... अर्धनारीश्वर ----------->
                           

              
            वेदों के पश्चात भोले भंडारी का  ..पशुपति रूप ..सर्व प्रथम विश्व की सबसे प्राचीन  सभ्यता-संस्कृति हरप्पा-मोहनजोदडो में  मोहरों (सीलों --stamps)  पर अंकित  मिलता है , इसी के साथ लिंग-योनि  के  पाषाण रूप भी...
               ऊपर    चित्र  ०१ --पशुपति नाथ (आदि शिव अपने बैल  नंदी सहित  (शायद?)आदि-मातृका देवी ( जो शायद बाद में अम्बा , पार्वती , दुर्गा रूपा हुई )..के सम्मुख अर्चना करते हुए  सर पर बैल या  बृषभ का मुखौटा या हेड-गीयर  जो पशुपति नाथ का प्रतीक होगा .....आदि-काल में मातृ सत्तात्मक  समाज रहा होगा ...चारों ओर सप्त -मातृकाएं या आदि-देवी  की सहायिकाएं, अनुचारियाँ आदि....
                
              मध्य में चित्र-२ .. आदि पशुपति शिव ..... समाधिष्ठ  अवस्था में ...योग मुद्रा में ...जो योग की, ध्यान की  आदि-मुद्रा है ....पद्मासन ....
              
              नीचे के चित्र-३ में ...खुदाई में प्राप्त ...शिव लिंग व योनि- के प्रतीक पाषाण मूर्तियां ...जो शायद शिव-शक्ति व लिंग-योनि पूजा के आदि-तम रूप हैं .....
                                                                       ------------सभी चित्र ..साभार...

रविवार, 17 जुलाई 2011

दो अगीत.....ड़ा श्याम गुप्त....

      १. महंगाई ....
मंहंगाई अपने ही तो बुलाई ,
चाहते हैं-  शानदार ,  इम्पोर्टेड -
चमकीला  खरीदना ;  जो-
महंगे से महंगा हो ,
और एसी शापिंग माल में टंगा हो ;
जिसमें हों स्वचालित सीडियां लगाईं ,
महंगाई तभी तो आई ||

        २. सत्संग ...
सत्संग,
एक खरल की भांति है , जो-
व्यक्ति को, प्रेम व भक्ति के भावों से ,
धर्म और ज्ञान के विभावों से ,
रगडता है, और -
बनादेता है,
शुद्ध सरल सत्व - तत्व-सार ,
आत्म-तत्व को परम-तत्व में ,
योग के लिए तैयार |

बुधवार, 13 जुलाई 2011

दुर्घटना फल लापरवाही का -

दुर्घटना फल लापरवाही का -
पठान कोट से जालंधर पंजाब आ रहे दो ट्रक की भिडंत देख ह्रदय काँप गया ,
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यों तो रोज ही कुछ न कुछ दुर्घटनाएं देख मन भर चुका है और हमेशा इसे सहने सुनने के लिए तैयार रहता है फिर भी जब कुछ आप के सामने या आस पास घटे तो मन को दर्द / पीड़ा और कराह देख बहुत ही चोट पहुँचती है और हम बहुत कुछ सोचने पर मजबूर हो जाते हैं -
आज की घटना में पठानकोट से जालंधर आ रहे- काला बकरा रेलवे स्टेशन के निकट- एक ट्रक ने सामने जा रहे दूसरे ट्रक को जो की गति धीमी कर बांये मुड़ना चाह रहा था करीब सुबह छः बजे, जोरदार टक्कर मार दी, सामने जा रहे ट्रक का केवल टायर फटा और पीछे के ट्रक चला रहे खलासी की दोनों टाँगे टूट गयी -पेट में गहरी चोट -सिर में गहरी चोट -सड़क पर खून फैला -देखने वाले की भी हालत ख़राब हो जाती -गंभीर अवस्था में, जिन्हें की प्रभु ही शायद बचा सके -बेहोशी की हालत में आनन् फानन में अम्बुलेंस से जालंधर अस्पताल रवाना किया गया -
उसका वास्तविक चालक जो की खलासी को ट्रक चलाने को दे सो रहा था भी बेहोश, न जाने कितना क्या कहाँ लगा -
हमारा मकसद सिर्फ इतना कि हम क्यों ये सब देख गंभीर नहीं -लापरवाही बरतते चले जा रहे , अपनी जान गंवाने –
आइये गाडी चलाते वक्त कुछ बातों का ध्यान रखें -
१- अगर थके हैं-नींद में हैं तो कृपया आराम कर , कहीं भी रुक -चाय पानी पी -मुह धो फिर -गाडी चलायें -या केवल विश्राम करें -
२- सुबह या रात खाली सडक देख गाडी को तेज न दौडाएं कुछ भी बाधा पल भर में आ जाती है सीमा में रहें
३-कभी भी मुख्य सडक पर तो नए चालकों को गाड़ी चलाने के लिए हरगिज न दें-सिखाने के और भी जगह खाली मैदान खाली सड़के हैं
४-नशे की लत से बचें और नशे की हालत में कहीं आराम ही फरमाएं दूसरों की जान भी जोखिम में न डालें
५-हमेशा ओवर टेकिंग करते समय अपनी संतुलित चाल का ध्यान रखें और सिग्नल पर नजर रखें -जल्दबाजी में ओवर टेक न करें
६-गाडी कहाँ चलायी जा रही है वहां की भौगोलिक स्थिति जैसे पहाड़ी , घाटी या घुमावदार रास्ते में समतल की अपेक्षा लगभर आधी या बहुत धीरे ही चलें -शहर में हों तो वहां के नियम अगल बगल से गाड़ियों के दौड़ने और अति गति सीमा में दौड़ रही गाड़ियों का ख्याल रखें
७-मालवाहक गाड़ियों में ओवर लोड कतई न करें और पहाड़ी जगह में तो बिलकुल नहीं -कुछ लम्बी चीजें सरिया सी लदी हैं तो लाल झंडे का इस्तेमाल और रात में लाल बत्ती का इस्तेमाल अवश्य करें
८-जगह जगह पर लगे चेतावनी बोर्ड को पढ़ें नजर अंदाज न करें
अगर हम इस तरह की बातों का ध्यान रखें तो अपने बच्चों घर परिवार को एक संकट देने और अपना अमूल्य जीवन गंवाने से बच सकते हैं –
९- आप के दायें बाएं लगे शीशे बहुत ही काम के हैं इन्हें सही अवस्था में रखें और इनका उपयोग करते रहें याद रखें चालक को छः आँखें रखनी होती है हर तरफ देखने के लिए

१०- अपने वाहन के मुख्य कलपुर्जों की -टायर की जांच नियमित करते रहें !

११- कोई भी वाहन चलाते समय कृपया मोबाईल फोन पर बात न करें , ये आप का दिल और दिमाग आप से होती विषय वस्तु पर ले कर चला जाता है और आप का एक पल भी सड़क पर से दिमाग हटना दुर्घटना को निमंत्रण दे सकता है ! कृपया धीरे हों गाड़ी एक तरफ लगा के बात कर फिर आगे बढ़ें !


सब की यात्रा शुभ और मंगलमय हो
शुक्ल भ्रमर ५
१३.०७.२०११
जल पी बी

मंगलवार, 12 जुलाई 2011

डेल्ही बेली


लगान, तारे जमीं पर, रंग दे बसंती, 3-इडिएटस जैसी फिल्मों का निर्माण कर आमिर खान ने फिल्म विषयों को एक विस्तृत आयाम प्रदान किया। इन विषयों की पृष्ठभूमि वे समस्याएँ थी जिनसे हम अक्सर दो-चार होते है परन्तु निजी जीवन की व्यस्तताओं एवं आवश्यकतापूर्ति की जद्दोजहद में इनकी अवहेलना कर जाते हैं। आमिर खान ने न केवल इन विषयों की प्रस्तति से जनसाधारण को सामाजिक दायित्वों के प्रति सजग किया अपितु इसी प्रकार की बहुतेरी विद्रूपताओं हेतु शान्तिपूर्ण ढं़ग से समाधान प्राप्ति का मार्गदर्शन भी किया। गाँधीवादी सत्याग्रह को जीवंत करता कैंडल मार्च रूपी समाधान आज सम्पूर्ण भारत में विरोध प्रदर्शन का अचूक यंत्र बन गया है। निःसन्देह आमिर खान की यह प्रयोगधर्मिता समाजोपयोगी निर्देशन के अपने उद्देश्य को प्राप्त कर पाई है।
इसी क्रम में अपेक्षित डेल्ही बेली का निर्माण समझ से परे रहा। यह फिल्म क्या संदेश देना चाहती थी? या इसमें प्रयुक्त भाषा को आमिर खान समाज के किस वर्ग को दिनचर्या के अनिवार्य अंग के रूप में भेंट करना चाहते थे? इन प्रश्नों के उत्तर-प्राप्ति में मैं असमर्थ रही। यदि मान भी लिया जाये कि यह मनोरंजन आधारित फिल्म थी, तो मनोरंजन का क्षेत्र इतना संकीर्ण व स्तर इतना निम्न कैसे हो गया? मनोरंजन चार्ली चैपलन द्वारा भी किया जाता था और यह कहने में कोई कंजूसी नही की जानी चाहिए कि वह ‘बेमिसाल’ था।
फिल्म निर्देशन एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। यह समाज का पथ प्रदर्शन करती है। समाज की जड़ांे में ऐसे विषयों का अकूत भण्डार है जिन्हें समाज स्वीकार करने में भयभीत होता है परन्तु उनका समाधान चाहता है। इसका मुख्य कारण नेतृत्व क्षमता का अभाव है। फिल्म निर्माता, लेखक, पत्रकार इत्यादि वे अघोषित नेता हैं जो समाज को दिशा प्रदान करते हैं। यह दिशा प्रभावोत्पादक व सकारात्मक परिणाम प्रस्तुत करने में समर्थ हो, यह संकल्प लिया जाना आवश्यक है।

Main aur Mera Idol


Navbharat Youth World Ne
12 Julye ke ank me Mujhe
Main aur Mera Idol
Ratan Tata ji ke saath Chuna hai.

सोमवार, 11 जुलाई 2011

ब्लॉग संसार: पंजीकरण

ब्लॉग संसार: पंजीकरण: "इस ब्लॉग संकलक पे रजिस्टर करने का तरीका  सबसे पहले इस संकलक को फोल्लो करें. 
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मीडिया के लोगों का साथ मिले


हिन्दी जर्नलिस्ट असोसिएषन ने मुझे उत्तर प्रदेष का संयोजक मनोनीत किया है। मैं कोषिष करूंगा कि सभी मीडिया के लोगों का साथ मिले और हम अपने अधिकार को पा सकें।

सच तो शिव है -शिव ही करता नाग सरीखा संग-संग रहता

सच एक हंस है 
पानी दूध को अलग किये ये 
मोती खाता -मान-सरोवर डटा  हुआ है 
धवल चाँद है 
अंधियारे को दूर भगाता
घोर अमावस -अंधियारे में 
महिमा अपनी रहे बताता 
ये तो भाई पूर्ण पड़ा है !
----------------------------
सच-सूरज है अडिग टिका है 
लाख कुहासा या अँधियारा 
चीर फाड़ हर बाधाओं को 
रोशन करने जग आ जाता 
प्राण फूंक हर जड़-जंगम में 
नव सृष्टि ये  रचता जाता 
सुबह सवेरे पूजा जाता !!
------------------------ 
सच- आत्मा है - परमात्मा है 
कभी मिटे ना लाख मिटाए 
चाहे आंधी तूफाँ  आये 
चले सुनामी सभी बहाए 
दर्द कहीं है लाश बिछी है 
भूखा कोई रोता जाये 
कहीं लूट है - घर भरते कुछ 
सच - दर्पण है सभी दिखाए !!
--------------------------------------
सच तो शिव है -शिव ही करता 
नाग सरीखा संग-संग रहता 
जिसके पास ये आभूषण हैं 
ब्रह्म -अस्त्र ये- ताकत उसमे 
पापी उसके पास न आयें 
राहू-केतु से झूठे राक्षस 
झूठें ही बस दौड़ डराएँ 
खाने धाये !!
--------------------------------
सच इक आग है - शोला है ये 
धधक रहा है चमक रहा है 
उद्भव -पूजा हवन यज्ञं में 
आहुति को ये गले लगाये 
प्राणों को महकाता जाए 
श्री गणेश -पावन कर जाये 
भीषण ज्वाला - कभी नहीं जो बुझने वाला 
लंका को ये जला जला कर 
झूठी सत्ता- झूठ- जलाकर 
अहम् का पुतला दहन किये है 
सब कुछ भस्म राख कर देता 
गंगा को सब किये समर्पित 
मूड़ मुड़ाये सन्यासी सा 
बिना सहारा-डटा खड़ा है !!
--------------------------------
सच ये कोई नदी नहीं है 
जब चाहो तुम बाँध बना लो 
ये अथाह है- सागर- है ये 
गोता ला बस मोती ढूंढो 
-------------------------------
सच ये भाई ना घर तेरा 
जाति नहीं- ना धर्म है तेरा 
जब चाहो भाई से लड़ -लड़ 
ऊँची तुम दीवार बना लो 
---------------------------
सच पंछी है मुक्त फिरे है 
आसमान में -वन में -सर में 
एकाकी -निर्जन-जीवन में 
सच की महिमा के गुण गाये 
कलरव करते विचरे जाए !!
-----------------------------------
सच कोमल है फूल सरीखा 
रंग बिरंगा हमें लुभाए 
चुभते कांटे दर्द सहे पर 
हँसता और हंसाता जाये 
जीवन को महकाता  जाये 
अमर बनाये !!
-----------------------------
सच कठोर है -ये मूरति है 
सच्चाई का  दामन थामे 
पूजे मन से जो -सुख जाने 
यही शिला है यही हथौड़ा 
मार-मार मूरति गढ़ता है 
सुन्दर सच को आँक आँक कर 
सच्चाई सब हमें दिखाता
आँखें फिर भी देख न पायें 
या बदहवास जो सब झूंठलायें  
ये पहाड़ फिर गिर कर भाई 
चूर चूर सब कुछ कर जाए !!
----------------------------------

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 
७.७.२०११ ६.२६ पूर्वाह्न जल पी बी 

रविवार, 10 जुलाई 2011

काले मतवाले घन -घनाक्षरी छंद.....ड़ा श्याम गुप्त....



लीजिये चौमासे लग गए ,आइये वर्षा की फुहारों में चार कवित्त छंदों से भीगने का आनंद लीजिये ----

काले-काले मतवाले घिरे घनघोर घन ,
बरखा सुहानी आई ऋतुओं की रानी है।
रिमझिम-रिमझिम रस की फुहार झरें ,
बह रही मंद-मंद पुरवा सुहानी है।
दम-दम दामिनि,दमकि रही ,जैसे प्रिय ,
विहंसि-विहंसि ,सखियों से बतरानी है।
बरसें झनन -झन, घनन -घन गरजें ,
श्याम ' डरे जिया,उठै कसक पुरानी है॥

टप-टप बूँद गिरें , खेत गली बाग़ वन ,
छत,छान छप्पर चुए,बरसा का पानी ।
ढ र ढ र जल चलै,नदी नार पोखर ताल ,
माया वश जीव चले राह मनमानी।
सूखी, सूखी नदिया,बहन लगी भरि जल,
पाइ सुसुयोग ज्यों हो उमंगी जवानी ।
श्याम ' गली मग राह,ताल ओ तलैया बने ,
जलके जंतु क्रीडा करें, बोलें बहु बानी॥

वन-वन मुरिला बोलें,बागन मोरलिया,
टर-टर रट यूँ लगाए रे दादुरवा ।
चतुर टिटहरी चाह ,पग टिके आकाश ,
चक्रवाक अब न लगाए रे चकरवा ।
सारस बतख बक ,जल में विहार करें,
पिऊ ,पिऊ टेर,यूँ लगाए रे पपिहवा ।
मन बाढ़े प्रीति,औ तन में अगन श्याम,
छत पै सजन भीजे ,सजनी अंगनवा ॥

खनन खनन मेहा,पडे टीन छत छान ,
छनन -छनन छनकावे द्वार अंगना ।
पिया की दिवानी,झनकाये ज्यों पायलिया,
नवल -नवेली खनकाय रही कंगना ।
कैसे बंधे धीर सखि,जियरा को चैन आबै,
बरसें नयन , उठे मन में तरंग ना ।
बरखा दिवानी हरषावे, धड़कावे जिया ,
ऋतु है सुहानी ,श्याम' पिया मोरे संग ना॥

शुक्रवार, 8 जुलाई 2011

पापी

तुम्हारा नाम कविता में जो लिखता हूँ ,
तो मैं पापी…
तेरी यादों को अपना मान लेता हूँ
तो मैं पापी…
कभी तुझको भुलाता हूँ,कभी तुझको बुलाता हूँ…
भुलाता हूँ तो मैं पापी….
बुलाता हूँ तो मैं पापी…….



.........................................

मैं हूँ मजदूर,
पत्थर तोड़ के मैं घर चलाता हूँ..
कभी मंदिर की पौढ़ी पर भी,जा के बैठ जाता हूँ..
पढ़ा था धर्मग्रंथों में,प्रभु के सत्य की महिमा
मेरा सच है मेरी बच्ची,
जो भूखे पेट सोयी है….
मैं सच बोलू तो मैं पापी,मैं ना बोलू तो हूँ पापी…..


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बुधवार, 6 जुलाई 2011

भ्रष्ट आचरण -भ्रष्टाचारी सरकारी ही दिखते थे !


भ्रष्ट आचरण -भ्रष्टाचारी
सरकारी ही दिखते थे !
आते -जाते पाँव थे घिसते
“भ्रमर” सभी ये कहते थे !!
————————–
सरकारी संग- प्राइवेट भी
अब तो ताल मिलाये हैं !
सोने पर कुछ रखे सुहागा
उसकी चमक बढ़ाये हैं !!
—————————
गठ – बंधन नीचे से ऊपर
खा-लो -भर लो -होड़ लगी !
अपने प्रिय चमचों को भाई
हर वर्ष -प्रमोशन दिलवाए हैं !!
————————————-
रीति अनीति राह कोई भी
भर कर लेकर ही आओ
नहीं गधा- घोडा बन जाए
खच्चर तुम – लादे जाओ !!
———————————–
चपरासी कुछ लिपिक यहाँ भी
मालिक बन कर बैठे हैं !
नीति नियम धन ईमान लेकर
अफसर रोते बैठे हैं !!
———————————-
कुचले -दबे लोग भी कुछ हैं
मेहनत-अनुशासन -खट मरते
बाँध सब्र का- गर टूटा तो
क्रांति – सुनामी लायेंगे !!
शुक्ल भ्रमर ५ -६.७.2011
८.35 पूर्वाह्न -जल पी बी

मंगलवार, 5 जुलाई 2011

हम देते हैं – हम लेते हैं हम ही तो हैं भ्रष्टाचारी !


हम देते हैं – हम लेते हैं
हम ही तो हैं भ्रष्टाचारी !
हम ही उनको पैदा करते
हम ही बड़े हैं – अत्याचारी !!
पाक-साफ़ पहले खुद होकर
भाई रोज बजाओ घंटी !
ऊँगली एक उठाते उस पर
तीन इशारा तुम पर करती !!
एक बताती – ऊपर तुम हो
कुछ करने को तुम को कहती !!
अपने घर की रोज सफाई
काहे ना ये जनता करती !
वो जो ‘पागल” बौराए हैं
जिनसे डर है हम को लगता !
रोटी उनको हम ही डालें
कौन कहे है ना वो सुनता !!
प्यार में तेरे जो शक्ति है
कर उपयोग मोम तू कर दे !
अगर बना है लोहा फिर भी
चला हथौड़ा सीधा कर दे !!
अंधियारे से उजियारे ला !
दर्पण पग-पग उसे दिखा दे !!
वरना कल जनता जो उसको
चौराहे – खींचे – लाएगी !
भाई -बाप-पुत्र  है तेरा
पल-पल याद दिलाएगी !!
चुल्लू भर पानी खोजोगे
शर्म तुझे भी आएगी !!

शुक्ल भ्रमर ५ -३.७.२०११
9 पूर्वाह्न जल पी बी

न समझे तो पानी है


आज सुबह सुबह मौसम बहुत गरम गरम सा लग रहा था 
अभी कुछ देर पहले मौसम का मिजाज बदल गया तो हमने भी अपना 
मिजाज बदल लिया है ................

मोहबत्त  एक एहसासों की पावन सी कहानी है,,,
कभी कबीरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है  |
यहाँ सब लोग कहते है ,,मेरी आखो में आँसू है,,,
जो तू समझे तो मोती है ,, जो न  समझे तो पानी है |

जय बाबा बनारस.......................

सोमवार, 4 जुलाई 2011

फैसला


काफी दिनों से चलते आ रहे वाद-विवाद और द्वंद का कल शायद अन्तिम दिन हो। कल मेरे आने वाले कल पर एक ऐसा फैसला लिया जायेगा जो पिछले छः माह से घर में वाद-विवाद का विषय बना हुआ है। देखना ये है कि ये फैसला परम्परागत रूढ़िवादी विचारधारा का समर्थन करते हुए बेटी के भविष्य को दाँव पर लगायेगा या अनावश्यक अहितकारी सामाजिक व मानसिक दबाव के विरूद्ध सशक्त हो बेटी के हित को प्राथमिकता देगा। यही सोचते-सोचते सारी रात खुली आँखों में संशय व भय का अंधकार लिए बीत गई।
अगले दिन सुबह नाश्ते की आवश्यकता किसी को न थी। सभी ड्राइंग रूम में एकत्रित हुए। शान्त, उलझे चहरे टकटकी लगाये पिताजी के मुख की ओर देख रहे थे। सभी के भावों और उत्सुकता को अधिक प्रतिक्षा न कराते हुए पिताजी ने कहा, ‘‘यह फैसला मेरे लिए ऐसा है जैसे किसी बच्चे से कहा जाये कि वो अपनी माँ या पिता में से किसी एक का चयन करे। एक ओर मेरी सामाजिक मर्यादाएँ और परम्पराएँ हैं और दूसरी ओर मेरी बेटी का हित। एक ओर हमारी ही जाति का एक अयोग्य लड़का है और दूसरी ओर गैर-बिरादरी परन्तु बेटी के लिए उसकी पसंद का सर्वोत्तम चयन है, जो उसके सुखद भविष्य की गारंटी भी है। मेरी मान्यताएँ गैर-बिरादरी के चयन से मुझे रोक रही हैं परन्तु बेटी का प्यार, स्नेह ओर सुरक्षित भविष्य मझे उसकी पसंद को अपनी पसंद बनाने के लिए बाध्य कर रहा है। सालों से चली आ रही विचारधारा के विरूद्ध एक नई सोच को अपनाना मेरे लिए वास्तव में कठिन है। परन्तु शायद बेटी का हित और उसकी खुशी ही मेरी प्राथमिकता है। अतः मेरा फैसला उसके फैसले का समर्थन करता है और मैं उसकी पसंद स्वीकार करता हूँ।’’
उनके शब्दों ने मुझे चौंका दिया। सभी की आँखें भर आई और पिताजी ने मुझे गले से लगा लिया।

शनिवार, 2 जुलाई 2011

इन्द्रधनुष -----कहानी---- डा श्याम गुप्त ...






                                                                                 
( 'न्द्नुष'--- विभिन्न स्थितियों व भावों में आपके सामने रहता है सदा .....आसमान पर वर्षा की बूंदों में, फुब्बारों में, सुन्दरी की नथ के- कानों के लटकन के हीरों में,  देवालयों के झूमरों के शीशों में,  सपनों में, यादों में ---मन को तरंगित प्रफुल्लित करता हुआ ....पर आप उसे  छू नहीं सकते .....ऐसा ही एक इन्द्रधनुष यहाँ प्रस्तुत है---स्त्री-पुरुष मित्रता का  ...)
  

सुमि, तुम ! 

के.जी. ! अहो भाग्य ,क्या तुमने आवाज़ दी ?

नहीं |
मैंने भी नहीं | फिर ?
हरि इच्छा , मैंने कहा |
वही खिलखिलाती हुई उन्मुक्त हंसी |
चलो , वक्त मेहरवान तो क्या करे इंसान | कहाँ जाना है, सुमि ने पूछा |
मुम्बई, 'राशी' की कोंफ्रेंस है | और तुम ?
मुम्बई,पी जी परीक्षा लेने | मेडिकल कालेज के गेस्ट हाउस में ठहरूंगी , और तुम |
मेरीन -ड्राइव पर |

सागर तीरे !... पुरानी आदत  गयी नहीं !
नहीं भई, रेस्ट हाउस है, चर्च गेट पर | चलो तुम्हारे साथ मेरीन-ड्राइव पर घूमने का आनंद लेंगे, पुरानी यादें ताजा करेंगे | रमेश कहाँ है ?
दिल्ली, बड़ा सा नर्सिंग होम है, अच्छा चलता है |
और फेमिली ?
बेटा एम् बी बी एस कर रहा है, बेटी एम् सी ऐ ; बस |
सुखी हो |
बहुत, अब तुम बताओ |
एक प्यारी सी हाउस मेनेजर पत्नी है, सुभी.... सुभद्रा |  बेटा बी टेक कर रहा है और बेटी एम् बी ऐ |
और कविता ?
वो कौन थी !  तीसरी तो कोई नहीं ?
तुम्हें याद है अभी तक वो पागलपन |
एक संग्रह छपा है, ...'तेरे नाम '....
मेरे नाम !
 नहीं,  ’तेरे नाम '....
ओह !, मेरे नाम क्या है उसमें ?
सुबह देखलेना |
            चलो सोजाओ, सुबह बातें होंगीं, फ्री-टाइम में मेरीन-ड्राइव घूमना है, बहुत सी बातें करनीं हैं तुम्हारे साथ |
राजधानी एक्सप्रेस तेजी से भागी जारही थी|  सामने बर्थ पर, सुमित्रा कम्बल लपेट कर सोने के उपक्रम में थी और मेरी कल्पना यादों के पंख लगाकर बीस वर्ष पहले के काल में काल में गोते लगाने लगी |
                                 **                                            **
                  सुमित्रा कुलकर्णी, कर्नल कुलकर्णी की बेटी, चिकित्सा विश्वविद्यालय में मेरी सहपाठी, बैच-पार्टनर, सीट-पार्टनर ;  सौम्य, सुन्दर ,साहसी, निडर, तेज-तर्रार, स्मार्ट, वाक्-पटु, सभी विषयों में पारंगत, खुले व सुलझे विचारों वाली, वर्तमान में जीने वाली, मेरी परम मित्र |  हमारी प्रथम मुलाक़ात कुछ यूं हुई ......
                   रात के लगभग ९ बजे, लाइब्रेरी से बाहर आया तो सुमित्रा आगे आगे चली जारही थी, अकेली |  मैंने तेजी से उसके साथ आकर चलते चलते पूछा, अरे इतनी रात कहाँ से ? रास्ता सुनसान है, तुम्हें डर नहीं लगेगा,  क्या होस्टल छोड़ दूं ?
  वेरी फनी !, डर की क्या बात है !
 ओ के,  वाय, गुड नाईट, मैंने कहा  और चलदिया |
 थैंक्स गाड, जल्दी पीछा छूटा, वह बड़ बडाई |
सात कदम तो साथ चल ही लिए हैं, मैंने मुस्कुराते हुए कहा |
क्या मतलब, वह झेंप कर देखने लगी,  तो मैंने पुनः  'बाय' कहा और चल दिया |
                अगले दिन   फिजियो लेब में सुमित्रा झिझकते हुए बोली, कृष्ण जी, ये मेंढ़क ज़रा 'पिथ' कर देंगे ?
क्यों , मैंने पूछा ?
ज़िंदा है अभी |
तो क्या मरे को मारोगी, हाँ ये बात और है कि, "सुन्दर सुन्दर को क्यों मारे , सुन सुन्दर मेंढक बेचारे |",  बगल की सीट पर बैठा सोम सुन्दरम हंसने लगा | मैंने मेंढक हाथ में लेते हुए कहा, 'ब्यूटीफुल ' |
कौन, क्या ?
ऑफकोर्स, मेंढक, मैंने कहा ; सुन्दर है न ?
 'लाइक यू' | वह चिढ कर बोली |
मैं तुम्हें सुन्दर लगता हूँ |
नो , मेढक, वह मुस्कुराई

इसकी टांगें कितनी सुन्दर हैं, मैं टालते हुए बोला, चीन में बड़ी लज़ीज़ समझकर से खाईं जातीं हैं |
ओके, पैक करके रख दूंगी, घर लेजाना डिनर के लिए |
तुम्हारी टांगें भी सुन्दर हैं, लज़ीज़ होंगी, क्या उन्हें भी .....|
व्हाट द हेल.. ?  (क्या बकवास है)
जो दिख रहा है वही कह रहा हूँ | 
हूँ... , वह पैरों की तरफ सलवार व जूते देखने लगी |
एक्स रे निगाहें हैं... आर पार देख लेतीं हैं, मैंने कहा |
क्या, वह हडबड़ा कर दुपट्टा सीने पर संभालते हुए, एप्रन के बटन बंद करने लगी | मैं हंसने लगा तो, सिर पकड़ कर स्टूल पर बैठ गयी बोली, चुप करो, मेंढक लाओ, मुझे फेल नहीं होना है |
लो क़र्ज़ रहा,मैंने मेंढक लौटाते हुए कहा | वह चुपचाप अपना प्रक्टिकल करने लगी |
                                         **                         **                        ** 
                    डिसेक्सन हाल में मैंने उससे पूछा , सुमित्रा जी, सियाटिक नर्व को कहाँ से निकाला जाय, दिमाग से ही उतर गया है |  'है भी ..' उसने हाथ से चाकू लगभग छीन कर चुपचाप चीरा लगा कर फेसिया तक खोल दिया | बोली आगे बढूँ या....|   अभी के लिए बहुत है मैंने कहा --

              ""आपने चिलमन ज़रा सरका दिया | हमने जीने का सहारा पालिया । ""
सुमित्रा चुपचाप अपने प्रेक्टिकल में लगी रही | बाहर आ कर बोली --
कृष्ण जी, उधार बराबर |
' और व्याज ' मैंने कहा |
सूद !, वह आश्चर्य से देखने लगी |
वणिक पुत्र जो ठहरा |
क्या सूद चाहिए !
             चलो, दोस्ती करलें | काफी पीते हैं, मैंने कहा तो वह सीने पर हाथ रख कर बोली, ओह !, ठीक है, मेरा तो नाम ही सुमित्रा है, दोस्ती करती है तो करती है, नहीं तो नहीं |   

निभाती भी है, मैने पूछा तो बोली, ’इट डिपेन्ड्स’ । 

             केबिन में बैठकर मैंने उसका हाथ छुआ तो कहने लगी, उंगली पकड़ कर हाथ पकड़ना चाहते हैं, एसे तो तुम नहीं लगते|  आशाएं विष की पुड़ियाँ होतीं हैं, बचे रहना |
             सुमित्रा जी, मैंने कहा, 'मैं नारी तुम केवल श्रृद्धा हो'  के साथ पुरुष सम्मान,व नारी समानता दोनों का समान पक्षधर हूँ |  वादा- जब तक तुम स्वयं कुछ नहीं कहोगी, कुछ नहीं चाहूंगा |  स्मार्ट, आत्म विश्वास से भरपूर, मर्यादित नारी की छवि का में कायल हूँ |
            ब्रेवो ,ब्रेवो ! वाह ! क्या बात है, पर ये भाषण तो मुझे देना चाहिए और... ये विचित्र से विचार तो कहीं सुने -पढ़े से लगते हैं,  कृष्ण गोपाल !   हूं, वही तर्क,वही उक्तियाँ, नारी -पुरुष समन्वय, शायरी |  क्या तुम के. जी. के नाम से  'नई आवाज़'  में लिखते हो ?  तुम के जी हो !  उसकी तीब्र बुद्धि का कायल होकर मैं हतप्रभ रह गया और आँखों में आँखें डाल कर मुस्कुराया |
           वह हंसी, एक उन्मुक्त हंसी | कमीज़ की कालर ऊपर उठाने वाले अंदाज़ में बोली, ये हम हैं, उड़ती चिड़िया के पर गिन लेते हैं |  "आई एम् इम्प्रेस्सेड "...  मैं तो केजी की फ़ैन हूँ | कोई कविता हो जाय | वह गालों पर हथेली रखकर श्रोता वाले अंदाज़ में कोहनी मेज पर टिका कर बैठ गयी |   मैंने सुनाया----
" मैंने सपनों में देखी थी , इक मधुर सलोनी सी काया |" ......

" तुमको देखा मैंने पाया यह तो तुम ही थीं मधुर प्रिये |" -----वाह , वह बोली , मैं सुखानुभूति से भरी जारही हूँ, कृष्ण | वह मेरा हाथ पकडे बैठी रही |
      तो दोस्ती पक्की , मैंने पूछा , तो कहने लगी, हूँ ..,अद्भुत तर्क,ज्ञान वैविध्य, विना लाग लपेट बातें, मनको छूतीं हैं कृष्ण; और तुम्हें ...|
     हाँ ,तुम्हारा आत्म विश्वास, सुलझे विचार,वेबाक बातें, काव्यानुराग मुझे पसंद हैं सुमित्रा | वह अचानक सतर्क निगाहों से बोली, कहीं पहली नज़र में प्यार का मामला तो नहीं !   शायद ... और तुम....मैंने पूछा ; तो बोली पता नहीं,  नहीं कर सकती, दोस्त ही रहूँगी, मज़बूर हूँ |
   क्यों मज़बूर हो भई |
   दिल के हाथों, के जी जी | तुम पहले क्यों नहीं मिल, मैं वाग्दत्ता हूँ | रमेश को बहुत प्यार करती हूँ | शादी भी करूंगी |
   ये रमेश कौन भाग्यवान है, मैंने पूछा तो बोली, मेरा पहला प्यार, हम एक दूसरे को बहुत चाहते हैं |  दिल्ली में एम बी बी एस कर रहा है, बहुत प्यारा इंसान है ...... और मैं ...., जब मैंने पूछा तो ख्यालों से बाहर आती हुई बोली, तुम ..तुम हो, अप्रतिम, समझलो राधा के श्याम, और मैं.... तुम्हारी काव्यानुरागिनी | समझे, वह माथे से माथा टकराते हुए बोली |
अब मैं सुखानुभूति से पागल ह़ा जारहा हूँ ,सुमि |
साथ छोड़कर भागोगे तो नहीं |
  नहीं, मैंने कहा, " मैं यादों का मधुमास बनूँ , जो प्रतिपल तेरे साथ रहे ",  तो हंसने लगी.... क्या देवदास बन जाओगे ?  अरे नहीं, मैंने कहा,  क्या मैं इतना बेवकूफ लगता हूँ ?  

  उसने कहा---" मन से तो मितवा हम हो गए हैं तेरे, क्या ये काफी नहीं है तुम्हारे लिए"  और पूछने लगी --- मेरी कविता कैसी है महाकवि के जी ?   मैंने कहा,' आखिर शिष्या किसकी बनी हो |',  हम दोनों ही हंस पड़े, फिर अचानक चुप होगये |
                              **
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                      कालेज डे मनाया जाना था|   सुमित्रा तेज तेज चलते हुए आई, बोली - कृष्ण! एक गीत बनाना है और तुम्हीं को गाना है |  मैं नृत्य में अपना नाम दे रही हूँ..... पर मुझे गाना कहाँ आता है, मैंने बताया |   किसी अच्छे गायक को लो न |   नहीं नहीं, वह बोली ज्यादा लोगों को मुंह क्या लगाना, सब तुम्हारे जैसे सुलझे थोड़े ही होते हैं,  वह सर हिलाकर बोली |
            रिहर्शल पर मैंने अपना पार्ट सुनाया -

"तुम स्यामल घन , तुम चंचल मन ,तुम जीवन हो तुमसे जीवन |
तेरी प्रीति की रीति पै मितवा, मैं गाऊँ मैं बलि बलि जाऊं ||"
         सुमित्रा ने सुनाया ----

"तेरे गीतों की सरगम पै, मस्त मगन मैं नाचूं गाऊँ |
तेरी प्रीति की रीति पै मितवा, बनी मोहिनी मैं लहराऊँ || "
             सुमि ने कई बार गा-गा कर बताया, डांस पहले स्लो रिदम पर फिर मध्यम पर अंत में द्रुत पर करूंगी, अंतरा  इस तरह  आदि आदि |   प्रोग्राम बहुत अच्छा रहा।  सुमि नाराज़ होते हुए बोली, बड़े खराब हो के जी, मनही मन मज़ाक बना रहे होगे |  तुम तो बहुत अच्छा गा लेते हो, लगता था जैसे पंख लग गए हों, आज मैं बहुत बहुत बहुत खुश हूँ |  पर ये  "श्यामल घन ".......!  मेरा मजाक तो नहीं उड़ा रहे, वह खुल कर हंसने लगी |
     नहीं जी, श्याम सखी, द्रौपदी, अप्रतिम सुन्दरी, भी कोई बहुत गौर वर्णा नहीं थी |
    मुझे द्रौपदी कह रहे हो ?  मैंने कहा, नहीं भई,  पर क्या द्रौपदी पर कोई शंका है तुम्हें ? तो हंसने लगी, -बोली, नहीं के जी जी, तुम्हारी बात तो बैसे ही सटीक बैठती है,  मैं भी खुद को द्रौपदी कहती हूँ |   मेरे भी पांच पति हैं |  मैंने उसे आश्चर्य से देखा तो बोली -पति क्या है ?  जो पत रखे, पतन से बचाए | शास्त्र बचन है --" यो  सख्यते  रक्ष्यते पतनात इति सः पति ".......
   किस शास्त्र का है, मैंने पूछा | मेरे शास्त्र का, वह हंसकर बोली, मैंने भी हंसकर कहा, तब ठीक है, और पांच पति ?
   जो पतन से बचाए, शास्त्र व माता पिता के बचन, मेरी अपनी शिक्षा- दीक्षा, मेरा चरित्र व आचरण, रमेश, और .ररर ......तुम |  मैं चुप अवाक ... तो बोली, चकरा गए न ज्ञानी ध्यानी, फिर खिलखिलाकर भाग खडी हुई |
                     **                              **                             **  
               धीरे धीरे जब चर्चाएँ गुनगुनाने लगीं तो एक दिन सुमि बोली, डोंट वरी (कोई चिंता नहीं).. के जी | कोई सफाई नहीं, भ्रम में जीने दो सभी को | लगभग सभी बड़ी बड़ी डिग्रियां लेकर अर्थ पुजारी बनने वाले हैं | प्रेम, मित्रता, दर्शन, जीवन-मूल्य, परमार्थ; सब व्यर्थ हैं इनके लिए |  शायद मैं कुछ मतलवी होरही हूँ,  तुम्हें यूज़ कर रही हूँ |  तुम्हारे साथ रहते कोई और तो लाइन मारकर बोर नहीं करेगा |  मैंने प्रश्न वाचक निगाहों से देखा तो पूछ बैठी --
    'कोई भ्रम या अविश्वास तो नहीं लिए बैठे हो मन ही मन | ', 

     कभी एसा लगा, मैंने पूछा | उसके नहीं कहने पर मैंने कहा, तो सुनो ---
" ये चहचहाते परिंदे, ये लहलहाते फूल, अपनी मुख़्तसर ज़िंदगी मैं इतने ग़मगीन तो
नहीं होते कि खुदकुशी कर लें "
       वाउ ! मीना कुमारी पढ़ रहे हो आज कल ...... नहीं अभी तो सुमित्रा कुमारी पढ़ रहा हूँ, मैंने हंसकर कहा तो बोली ........ तो सुनो सुमि का लालची आत्म निवेदन ---
" मैं हूँ लालच की मारी,ये पल प्यार के,
चुन के सारे के सारे ही संसार के ;

रखलूं आँचल में सारे ही संभाल के|

प्यार का जो खिला है ये इन्द्रधनुष,
जो है कायनात पै सारी छाया हुआ ;
प्यार के गहरे सागर मैं दो छोर पर
डूब कर मेरे मन है समाया हुआ | "

चाहती हूं कोई लम्हा रूठे नहीं ,

ज़िन्दगी का कोई रंग छूटे नहीं ॥
                       **                          **                            **           
                 सोचते सोचते जाने कब नींद आगई | सुबह किसी के झिंझोड़ने पर मैं जागा |
   क्या है सुभी सोने दो न |
   मैं सुमि हूँ, केजी ! उठो |  क्या सपना देख रहे हो |
   मैं हडबड़ा कर उठा, ओह ! गुड मोर्निंग |
   वेरी वेरी गुड है ये मोर्निंग, तुम्हारे साथ, कृष्ण !  चलो आज मैं काफी लाई हूँ |  सुमि खुले हुए बालों में फ्रेश होकर दोनों हाथों में कप पकडे हुई थी |  हम दोनों ही हंस पड़े |  मैंने उसे ध्यान से देखा |  बीस वर्ष बाद की सुमि |  वही तेज तर्रार, आत्म विश्वास से भरी गहरी आँखें, मर्यादित पहनावा, गरिमा पूर्ण सौन्दर्य |  कनपटी पर कहीं कहीं झांकते, समय की कहानी कहने को आतुर रुपहले बाल |
     क्या देख रहे हो, सुमि आँखों में झांकते हुए मुस्कुराई |    मै भी मुस्कुराया---

" दिल ढूढता है फिर वही, वो सुमि वो प्यारे दिन,
बैठे हैं तसब्बुर में, जवाँ यादें लिए हुए |"
  तुम तो वैसे ही हो योगीराज ! वह हंसने लगी |
                      **
                      **                    **            
               कार्यक्रमानुसार, हम लोग चौपाटी, मेरीन ड्राइव आदि घूमते रहे |  चाट, भेल पूरी आदि के वर्किंग लंच के बीच पुरानी यादें ताजा करते रहे |  सुमि कहने लगी, सच कृष्ण,  जब भी मैं उदास या थकी हुई परेशान होती हूँ तो चुपचाप झूले पर बैठ कर एकांत में कालिज व तुमसे जुडी हुई यादों में खोजाती हूँ, जो मुझमें पुनः नवीनता का संचार करतीं हैं |  सच है प्यारी यादें सशक्त टानिक होतीं हैं |   क्या में विभक्त व्यक्तित्व हूँ ?  और तुम तो अपने बारे मैं कभी कहते ही नहीं कुछ |
         नहीं सुमि, तुम अभक्त, अनंत, परम सुखी व्यक्तित्व हो, मैंने कहा,  और मैं भी |
         हर बात का उत्तर है तुम्हारे पास और तुरंत | उसने बांह पकड़कर, सर कंधे से लगाते हुए कहा, चलो अब कुछ सुनादो | मैंने सुनाया --
" प्रियतम प्रिय का मिलना जीवन, साँसों का चलना है जीवन |
मिलना और बिछुडना जीवन, जीवन हार भी जीत भी जीवन ||"
      सुमि ने जोड़ दिया ---

"प्यार है शाश्वत,कब मरता है, रोम रोम में बसता है |
अजर अमर है वह अविनाशी ,मन मैं रच बस रहता है । " 


        ये तुमने कहाँ से याद किया, मैंने आश्चर्य से पूछा |  मैंने तुम्हारी सब किताबें पढीं हैं, वह बोली |  कुछ देर हम दोनों ही चुप रहे, फिर मैंने पूछा- कब जारही हो ?
      आज चार बजे की फ्लाईट से, यहाँ का काम जल्दी ख़त्म होगया |   दो बज रहे हैं, मैंने घड़ी देखते हुए कहा--     एयर पोर्ट छोड़ने चलूँ |
 हाँ |
            हम टैक्सी लेकर सुमि के गेस्ट हाउस होकर एयर पोर्ट पहुंचे | लाउंज के एक कोने में खड़े होकर अचानक सुमि बोली,  मुझे किस करो कृष्ण |
  क्या कह रही हो, मैंने आश्चर्य से उसे देखा |
  अब मैं ही कह रही हूँ, यही कहा था न तुमने |   मैंने ओठों से उसके माथे को छुआ तो वह खिलखिला कर हंसी और हंसती चली गयी .... फिर बोली -
    मैं क़र्ज़ मुक्त हुई कृष्ण, चैन से जा सकूंगी, कहीं भी |  वह गहराई से आँखों में झांकती हुई बोली|
   और सूद, मैंने कहा |
    अगले जन्म मैं |
   हम अगले जन्म में भी पक्के दोस्त रहेंगे,  मैंने अनायास ही हंसते हुए कहा |
   नहीं, पति-पत्नी |
  ' व्हाट !'
   "अगले जन्म की प्रतीक्षा करो केजी "....... और वह तेजी से बोर्डिंग लाउंज में प्रवेश कर गयी |
                                   
                                                 --- इति ---