रविवार, 26 फ़रवरी 2012

एक प्यारा शहर : गोरखपुर (गोरखपुर डायरी भाग दो)

एक प्यारा शहर : गोरखपुर

                                        ..... लगता है जैसे  देर हो रही है

गोरखपुर शहर कैसा था ? और कैसा हो गया है ? ये महत्व पूर्ण है, परन्तु उससे भी ज्यादा महत्व पूर्ण है कि ये शहर कैसा बनाया जा सकता है .

एक ऐसा शहर जो सुबह जल्दी जागता है , दौड़ता है, भागता है और सैर करता है .फिर जैसे जैसे दिन चढ़ता है हांफने लगता है और रेंगने लगता है . शायद इसी वजह से शाम को थक कर जल्दी सो जाता है . कैसी विचित्रता है सुबह सुबह पार्क, विश्वविद्यालय और अन्य जगहें सैर करने वालों से गुलजार रहती है तो दिन भर सड़कें और चौराहे बेतरतीब ट्राफिक से दो चार होते हैं . मन कसमसाता है आंदोलित होता है और बिना काम के भी ऐसा लगता है कि देर हो रही है. शाम को ८ बजते बजते शहर निढाल होने लगता है और सब कुछ ठहरने सा लगता है . बाजार जल्दी बंद होने लगते हैं . और ये शहर सोने की तैयारी करने लगता है . दिन भर की भीड़ भाड़ में सबसे अधिक होते हैं मरीज और उनके तीमारदार, रिश्तेदार . ऐसे लोगो की संख्या भी कम नहीं होती जो मुकदमों के मकड़ जाल में फंस कर कोर्ट कचेहरी के चक्कर लगा रहे होते हैं . काफी संख्या ऐसे लोगो की होती है जो खरीद फरोख्त के सिलसिले में शहर आते हैं और शाम को वापस लौट जाते हैं .

यह बहुत ही कम्प्लीट और  कॉम्पेक्ट   शहर है अपना गोरखपुर . औद्योगिक , चिकत्सा एवं स्वास्थ्य और शिक्षा का केंद्र है अपना शहर. दीन दयाल उपाध्याय विश्व विद्यालय , बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज सहित अनेक अच्छे विद्यालय हैं . कई अच्छे होटल और रेस्तरां भी हैं. पूर्वोत्तर रेलवे का मुख्यालय और स्टेट बैंक का आंचलिक कार्यालय भी है यहाँ .विश्वप्रिसिद्ध गोरखनाथ मंदिर और गीता प्रेस शहर को ऐतिहासिक ही नहीं बलिक श्रद्धा का केंद्र भी बनाते है. तमाम प्राचीन देवी देवताओं के मंदिर प्राकृतिक वातावरण और जंगलों में स्थित हैं इस शहर के आस पास .

ये सब कुछ किसी भी शहर को उन्नत एवं गौरवमयी बनाने के लिए पर्याप्त है . परन्तु ये सारी कड़ियाँ आपस में ठीक से जुडी नहीं हैं . बहुत कुछ अच्छा है पर लगता नहीं, बहुत कुछ सुन्दर है पर दिखता नहीं ,बहुत कुछ उपयोगी है पर महसूस होता नहीं. बहुत कुछ लाभप्रद है पर कुछ मिलता नहीं . कहीं भी जाएँ रह रह कर ऐसा लगता है जैसे देर हो रही है. सचमुच देर होते होते बहुत देर हो गयी है .

एक स्थान है सूरज कुण्ड. नाम से ही प्राचीनता का आभास और धार्मिकता का अहसास होता है. इच्छा हुई कि वहां जायं और बहुत जिज्ञासा समेटे मैं वहां पहुँच गया . सरोवर के बीचो बीच मंदिर, सरोवर में चारो तरफ सीडियां . अगर गौर से देखें तो पाएंगे कि कितने योजनावद्ध और सृजन शीलता से बनाया गया है ये सूरज कुण्ड . पर... शायद ही कोइ वहां आता होगा. जब मैं कार से उतर कर अन्दर घुसता हूँ तो वहां कुण्ड में कपडे धोती महिलाये और ताश खेल रहे कुछ लोग कौतूहल से मुझे देखते है . मैं उनकी परवाह किये बिना आगे बढ़ता हूँ तो पता चलता है कि चारो तरफ गंदगी का साम्राज्य है .अवैध कब्जे और झुग्गी झोपडी बना कर रह रहे हैं लोग . स्वछंद विचरण करते गाय .बकरी और सूअर. इतना सब देख कर बहुत आश्चर्य और दुःख हो रहा था . मैं सरोवर की परिक्रमा करना चाह रहा था पर लग रहा था जैसे कि देर हो रही है . मैं रुका फिर न जाने कैसे एक झटके से बाहर आ गया. यदि ऐसा स्थल सिंगापूर में होता तो इसे सजा संवार कर ऐसे पेश किया जाता जैसे दुनियां की दुर्लभ चीज हो और इसका टिकेट भी लगाया जाता कम से कम 20 $.
 
एक और जगह है रामगढ झील . एक विशाल झील दुनिया की सबसे बड़ी और गिनी चुनी झीलों में से एक . यदि आप तारामंडल की और से प्लेट फॉर्म पर खड़े होकर देखें तो अत्यंत सुखद अहसास होता है जैसे आप किसी व्यबस्थित शांत समुद्र के किनारे खड़े हों. शाम और सुबह बहुत अद्भुत नजारा होता है . उगते और डूबते सूरज का नजारा बहुत ही मनोरम होता है . इसे संवारने और प्लेट फॉर्म बनाने की परिकल्पना किसी ने भी की हो, सराहनीय है और मैं उन्हें नतमस्तक होता हूँ . इसे अद्भुत अविश्मर्नीय पर्यटन स्थल बनाया जा सकता है . पर्यटन का ये इतना बड़ा केंद्र हो सकता है कि शायद शहर की आधी आबादी इससे रोजगार पा सकती है और गोरखपुर विश्व पर्यटन के मान चित्र में जगह पा सकता है . मैं जब भी गोरखपुर में होता हूँ और समय होता है तो यहाँ अवश्य जाता हूँ . पर झील की हो रही दुर्दशा पर दिल में टीश उठती है . प्लेट फॉर्म पर कुत्ते, सूअर और आवारा जानवर बैठे मिलते हैं . लाइट्स टूट रही हैं प्लेट फॉर्म चटक रहा है . चारो तरफ गंदगी का साम्राज्य है. आज मैं जब यहाँ आया हूँ तो कुछ किशोरवय लड़के सिगरेट पीने और अन्य नशा करने के लिए इसे सुरक्षित पा रहें है . मछली के ठेकेदार मछलियाँ मार कर प्लेट फॉर्म का उपयोग पैकिंग करने के लिए कर रहे हैं . खड़ा होना मुश्किल हो रहा है . लगता है जैसे कि देर हो रही है ... मैं वापस चला आता हूँ .
यदि इस तरह की झील यूरोप के किसी देश में होती तो शायद वह झील का शहर कहलाता और वहां के सकल घरेलू उत्पाद में इसका अच्छा खासा योगदान होता .पर हम है कि जो हमारे पास है उसकी कोइ कीमत ही नहीं समझते.

राप्ती नदी इश्वर का वरदान है विशेषतया गोरखपुर के लिए . लेकिन इसका उपयोग, अहसास अच्छे काम के लिए नहीं हो पा रहा है . क्योकि यहाँ कोइ सुसज्जित घाट नहीं है स्नान ,ध्यान ,पूजा अर्चना या सैर सपाटे के लिए . घाट नदी के किनारे बसे किसी शहर की सांस्कृतिक पहचान होती है . आप नदी किनारे बसे किसी शहर में जाएँ और घाट पर न जाएँ तो बड़ा अजीब लगता है . लगता है जैसे आना अधूरा रहा . गोरखपुर में ऐसा ही लगता है . बाढ़ के समय ट्रेन या बस से जाने पर चारो तरफ पानी ही पानी दिखता है और तभी मालूम होता है कि यह शहर किसी नदी किनारे बसा है . मैं गोरखपुर में कई घाट नुमा जगहों पर गया पर नदी के किनारे की प्राकृतिक उपमा और सौंदर्य का संजोया न जाना बहुत खला . राजघाट जो वस्तुता श्मसान घाट है लोग ज्यादातर वहीं जाते है मजबूरी या अंतिम औपचारिकता निभाने.
जो भी हो पर राप्ती का कामार्सिअल और अद्ध्यात्मिक उपयोग नहीं हो पा रहा है. कहीं भी बहुत देर तक खड़ा होना मुश्किल होता है, लगता है कि जैसे देर हो रही है.
सचमुच बहुत देर हो रही है ...गोरखपुर में . फिरभी अपनापन समेटे यह शहर बहुत  प्यारा और बहुत अपना लगता है.



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शिव प्रकाश मिश्रा
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शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012

लव जिहाद



लव जिहाद और उसके कारण 
                                         


लव जिहाद - एक भयावह नकली प्यार से युवा हिंदू और गैर - मुस्लिम लड़कियों के लिए इस्लाम में धर्मांतरित करना
हिन्दू लड़की को अपने नकली प्यार मे फंसा कर धर्मांतरित करना ही इस जिहाद का मूल उद्देश्य है 
नीचे एक सूची दी जा रही है जिसमे 2006 से 2009 तक के ऐसे केस की जानकारी दी गयी है ऐसी स्थितियाँ केरल और दक्षिण भारत मे ज्यादा पायी गईं हैं केरल की सरकार ने बकायदा इस पर अपने फैसले भी दे दिये हैं की अब ऐसे घटनाओं को रोकने मे सरकार भी मदद करेगी और हर हिन्दू परिवार की पूरी सहायता की जाएगी और इस जैसी घटनाओं की जांच सीआईडी द्वारा कराई जाएगी 
ये जानकारी केरल की सरकार के द्वारा आरटीआई के तहत मांगी गयी है और कुछ जानकारी स्थानीय पुलिस की सहायता से ली गयी है
 जिला घटनाएँ पुलिस द्वारा पंजीकृत मामले बचाई गयी लड़कियां
तिरुवनन्तपुरम         216                                            26                              6  
कोल्लम        98                                              34                              7 
अलाप्पुझा               78                                             22                              6 
पथानमथीट्टा            87      36                            11 
इडुक्की    159                                            18                              9 
कोट्टायम                116                                            46                            13 
एरनाकुलम            228                                            52                            26 
त्रिशूर                   102                                            41                            19 
पलक्कड़                  111                                           19                              9 
मलप्पुरम                412                                           89                            31 
कोझिकोड़े               364                                           92                            29 
कन्नूर    312                                     106                           27 
कसगोड़े    589                                           123                           68 

तालिका से पता चलता है कि इस तरह से परिवर्तित लड़कियों की संख्या 2876 थी. लेकिन केवल 705 मामले दर्ज किए गए. कासरगोड 568 का आंकड़ा साथ जिहादी रूपांतरण की सूची में सबसे ऊपर है. केवल 123 घटनाओं ने पुलिस के साथ पंजीकृत किया गया है. केंद्रीय जांच एजेंसियों को जानकारी है कि पूरे भारत में 4000 ऐसी लड़कियों के लिए जो लव- जिहाद के तहत बदल दिया गया है पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठनों द्वारा किए जा रहे हैं जेहादी गतिविधियों के लिए प्रशिक्षित प्राप्त किया है. आधिकारिक आँकड़ों का कहना है कि संदिग्ध परिस्थितियों के तहत केरल में हर रोज लगभग 8 लड़कियों को खोजने की शिकायत दर्ज कर रहे हैं और इस कारण उनकी बढ़ती चिंता और उन लड़कियों के माता पिता के डर के लिए है. कोच्चि केरल पुलिस की अपराध अभिलेख ब्यूरो के आंकड़ों के आधार पर, उन्नत लीगल स्टडीज के राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में यह पाया गया कि केरल से लापता लड़कियों की संख्या 2007 और 2008 क्रमश 2530 और २१६७ था. कई लोगों का मानना है कि वास्तविक संख्या ज्यादा पंजीकृत संख्या की तुलना में अधिक हो सकता है. लव जिहादियों की गतिविधियों 2006 में केरल में और अधिक आक्रामक हो गयी। इसीलिए महिलाओं और युवा लड़कियों को केरल से गायब में अचानक वृद्धि हुई है. केरल कैथोलिक बिशप परिषद के अनुसार, केरल में ४५०० लड़कियों को लक्षित किया गया है, जबकि हिंदू जनजागृति समिति ने दावा किया कि 30,000 लड़कियों को कर्नाटक में अकेले बदल दिया गया है.
जेहादी Romeos को प्रेम जाल में अधिक से अधिक लड़कियों को फँसाने के अपने अभियान के अंतर्गत बाहर ले जाने के लिए विशेष रैंक, पुरस्कार, और पैसा दिया जाता है. जहांगीर रजाक, कोझीकोड लॉ कॉलेज, एक ऐसा जेहादी रोमियो के एक पूर्व छात्र ने 42 लड़कियों की अकेले ही फंसा लिया और उन सब को मिलाकर एक सेक्स रैकेट चलाने लगा चेन्नई मे सरकारी संस्थाओं को पता हैं की इस सेक्स रैकेट और आतंकवादी संगठनों के बीच कोई कड़ी है. पथानामथिट्टा से एक सहजन मलयालप्पुचा की पंचायत अनुसार एक लड़का 6 युवा लड़कियों को अपने झूँठे प्रेम मे फंसा ले गया 
यहां यह उल्लेख किया जा सकता है कि राजशाही के दिनों के दौरान, मुसलमानों के एक मुस्लिम देश (दारुल इस्लाम) में केवल सैन्य विजय के द्वारा एक काफिर देश (दारुल हरब) बना सकता है. लेकिन आज लोकतंत्र उन्हें एक आसान रास्ता खोल दिया है और कि अधिक बच्चों procreating मदीना में पैगंबर मुहम्मद, लगभग 1400 साल पहले द्वारा प्रयोग किया जाता के रूप में अपनी तरह बढ़ रही है. इस जनसांख्यिकीय युद्ध में मुस्लिम गर्भ सबसे शक्तिशाली हथियार के रूप में उभरा है. तो, इस्लाम में एक गैर - मुस्लिम महिला का रूपांतरण बस एक मुस्लिम गर्भ और अधिक जिहादियों को जन्म देने में किया जाता है संक्षेप में, अभियान लव -जिहाद इस्लामी नकली प्यार में हिंदू और गैर - मुस्लिम लड़कियों का जाल, उन्हें इस्लाम स्वीकार करने के लिए और उपकरणों के रूप में उन्हें मुस्लिम वंश असर के लिए उपयोग के लिए मजबूर करने की योजना है 
इस्लाम का अंतिम लक्ष्य एक दारुल - इस्लाम में पूरी दुनिया की को रूपांतरित करना है और इस लक्ष्य को पाने मे एक एक दारुल - इस्लाम में प्रत्येक और हर दारुल- हरब को रूपांतरित करके पहुँचा जा रहा है. जैसा कि ऊपर उल्लेख किया है, एक दारुल- हरब, वर्तमान लोकतांत्रिक सेटअप में, जनसांख्यिकीय शैली बदलकर या मुस्लिम आबादी द्वारा देशी जनसंख्या बढ़ाने के आधार पर एक दारुल- इस्लाम में बदला जा सकता है. यह जितनी जल्दी हो सके किया जाना चाहिए, और उनके गैर - मुस्लिम को मुस्लिम गर्भ में बदलने के की जरूरत है. प्रक्रिया दो आयामी लाभ है. सबसे पहले, यह मुस्लिम आबादी तेजी से और दूसरी प्रफुल्लित करने में मदद करता है, यह गैर मुसलमानों देशी आबादी की जनसंख्या वृद्धि अपंग है

लव जिहाद योजना का हर ढंग से:

हाल ही में कहा कि हिंदू जनजागृति समिति प्रकाशित एक पुस्तिका, लव जिहाद, रमेश हनुमंत शिंदे और मोहन अज्जु देवेगौड़ा आदि कि पुस्तिका में लेखक ने पूरी प्रक्रिया कैसे लव जिहाद एजेंडे संचालित किया जा रहा है उसपर चर्चा की है . बहुत शुरू में, यह उल्लेख किया जा सकता है कि भारत में सक्रिय मुस्लिम संगठनों को खाड़ी देशों से भारी पैसा प्राप्त करने के लिए लव जिहाद अभियान चलाने चाहिए. मुस्लिम रोमियो भारी सफलतापूर्वक इस seducing और गैर - मुस्लिम लड़कियों इस्लाम में परिवर्तित करने के लिए पुरस्कृत कर रहे हैं.
इस्लाम के लिए उनकी सेवा के लिए प्रति दिन मुस्लिम Romeos लव जिहाद में लगे हुए, 200 रुपये / कमाते हैं. - प्रति दिन संभाजीनगर, औरंगाबाद, महाराष्ट्र, प्रभावशाली मुस्लिम मौलवियों एक फतवा है कि हर मुसलमान युवा, जो हिंदू या गैर - मुस्लिम लड़कियों प्यार जिहाद में फंसाने की कोशिश कर रहा है और उन्हें इस्लाम धर्म रुपये से सम्मानित किया जाएगा / 200 जारी किए गए हैं. जब एक ऐसी लड़की को बहकाया है, युवा एक दो व्हीलर दिया जाता है और जब वह उस बहकाया लड़की शादी करती है, वह अधिक 100.000 रुपये से 200,000 रुपये दिया जाता है. एक मुस्लिम संगठन, मुस्लिम यूथ फोरम नाम, हिंदू लड़कियों वर्गीकृत किया गया है, और मुस्लिम लड़का है जो एक हिंदू लड़की उससे शादी करने मे लिप्त है, खूबसूरत पुरस्कृत दिया जाता है. तालिका 2 (नीचे) वर्गीकरण और इनाम से पता चलता है.
लड़की की जाती                                                   ईनाम
1. सिख लड़की                                                Rs 700,000
2. पंजाबी हिन्दू लड़की                                       Rs 600,000
3. गुजराती ब्राह्मण लड़की                                   Rs 600,000
4 ब्राह्मण लड़की                                               Rs 500,000
5 क्षत्रिय लड़की                                                Rs 450,000
6 कच्छ की गुजराती लड़की                                  Rs 300,000
7 जैन/मारवाड़ी लड़की                                        Rs 300,000
8 पिछड़ी जनजाति की लड़की                                Rs 200,000
9 बुद्ध लड़की                                                   Rs 150,000
तालिका के ऊपर जाहिर तौर पर पता चलता है कि एक सिख लड़की को परिवर्तित करने का काम मुश्किल है, जबकि यह एक बौद्ध लड़की को परिवर्तित करना आसान है. जैसा कि ऊपर उल्लेख किया है, लव-जिहाद अभियान अरब देशों द्वारा वित्त पोषित है. एक सऊदी अरब स्थित संगठन, भारतीय भाईचारे के तहत भारत आता हैं पर ये सब काम हवाला द्वारा चलाया जाता है 
हिंदू लड़कियों, जो गांवों से शहर के लिए चले गए वो आसान शिकार हो जाते हैं. इन गरीब लड़कियों को सामान्य रूप से महंगा कपड़े खरीदने के लिए शहर के जीवन से मेल खाने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं होता . "इन लड़कियों को विशेष रूप से लक्षित किया जाता हैं और पैसा दिया जाता है. उन्होंने यह भी धूम्रपान और शराब आदि पीने इन लड़कियों को, जो लव - जिहाद में लिप्त हैं ऐसे व्यसनों में लालच देते हैं , असहाय हो जाते हैं और जल्द ही अन्य हिंदू लड़कियों को लिप्त करने में सहायता करने के लिए शुरू, कर देते हैं - लेखक
हिंदू लड़कियों को फँसाने के तरीके:

1.स्कूलों और कॉलेजों से हिंदू लड़कियों को बुलाने का सबसे आम तरीका है स्कूलों और कॉलेजों के आसपास में दो पहिया वाहन पर आवारागर्दी करना. जैसा कि ऊपर उल्लेख किया है, जहांगीर रज्जाक, कोझीकोड लॉ कॉलेज के एक छात्र, इस पद्धति का उपयोग करने के लिए 42 हिंदू लड़कियों को प्रलोभित करने के लिए सफल रहा है.
2. मोबाइल फोन के लव जिहादियों लिए सबसे उपयोगी उपकरण के रूप में उभरा है. यह लड़कियों पर उपयोग किया जा रहा है, और भी कामकाजी महिलाओं के लिए स्कूल और कॉलेज के बुलाने के लिए प्रयोग किया जाता है. मुस्लिम लड़के मुस्लिम मोबाइल फोन ऑपरेटरों से युवा हिंदू और गैर - मुस्लिम लड़कियों के मोबाइल फोन नंबर इकट्ठा करते हैं एक बार एक मुस्लिम लड़के की एक हिंदू लड़की के मोबाइल फोन नंबर प्राप्त करने में कामयाब रहे, वह उसके मोबाइल फोन और उसे रात में संपर्कों पर एसएमएस भेजने शुरू होता है. कई मामलों में, मुस्लिम लड़कियों को भी लव - जिहाद में अपनी भूमिका निभाने की दोषी पायी गयी हैं 
3.इस प्रारंभिक चरण के दौरान, मुस्लिम लड़के हिंदू नाम और हिंदू शिष्टाचार अपनाते हैं . इस संदर्भ में, सुश्री लीला मेनन, मलयालम दैनिक जन्मभूमि के संपादक कहते हैं, "हालांकि व्यक्तिगत रूप से लड़कियों के लिए जो लव जिहाद के कारण आत्महत्या कर ली घरों का दौरा करने पर एक बात पता चली, घरों मे एक आम बात है कि, उन सभी मामलों में लड़कियों प्राप्त किया था पाया अपने प्रेमी से एक मोबाइल फोन है. जब मैं एक पत्रकार के रूप में केरल में कई ऐसे मामलों का अध्ययन किया, मैं निष्कर्ष निकाला है कि मोबाइल फोन "लव जिहाद का एक और सबसे प्रभावी हथियार है.
4.भारत में केरल लव जिहाद का जन्म स्थान है , ईसाई लड़कियों को भी मुसलमानों द्वारा निशाना बनाया जा रहा है. मुस्लिम यूथ फोरम भी एक रोमन कैथोलिक लड़की बदलने के लिए 400,000 रुपये का इनाम घोषित किया है. इनाम एक प्रोटेस्टेंट लड़की बदलने के लिए 300,000 रुपये है. केरल आर्कबिशप परिषद ने लव - जिहाद के मसले को को बहुत गंभीरता से ले लिया है. यह दिशा निर्देश प्रकाशित किया है प्यार जिहादियों का प्रयास हताश ईसाई लड़कियों को परिवर्तित ना कर पाये.
5.अब आए दिन, इंटरनेट का भी बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जा रहा है हिंदू और गैर - मुस्लिम लड़कियों का जाल. मुस्लिम ठग के करीब हो और Facebook या Orkut जैसे वेबसाइटों के माध्यम से हिंदू लड़कियों के साथ दोस्ती को विकसित करने का प्रयास किया जाता हैं.Shadi.com या Jeevansathi.com तरह वैवाहिक वेबसाइटों की मदद लेने के लिए हिंदू लड़कियों को शादी के जाल मे फंसाया जा रहा है 
6. हालांकि मुसलमानों मे रचनात्मक खुफिया में कमी, के रूप में वे योजना बनाने में बुराई और षड़यंत्रपूर्ण या आपराधिक साजिश रचने में महान प्रतिभाएँ हैं. यह एक सच्चा लव जिहाद के जाल में हिंदू लड़कियों को जाल की खोज में परिलक्षित होता है. मान लीजिए कि एक हिंदू लड़की एक अकेली सड़क के माध्यम से गुजर रही है और तीन या चार मुस्लिम लड़के बैठे हुए हैं और उनमे से एक हिन्दू होने का नाटक करता है और बाकी के उस लड़की से छेड़छाड़ करते हैं तब वो नाटकी लड़का उस लड़की को बचाने का प्रयत्न करता हैं और बचा भी लेता है और इस घटना से उस लड़की के अंदर आकर्षण विकशित होना स्वाभाविक है और वे दोनों झूठे प्रेम मे फंस जाते हैं . जब लड़की पूरी तरह से फँस जाती है, तब वह उसे इस्लाम में परिवर्तित करने के लिए एक मस्जिद के लिए ले जाता है. अहमदनगर महाराष्ट्र मे अकेले, लगभग 300 हिंदू लड़कियों फाँसा गया और इस विधि का उपयोग किया गया 
तो अंत मे अपनी हिन्दू माँ बहनों से निवेदन हैं की आप लोग हमेशा सतर्क रहें और ऊपर लिखी हुई बातों को पूरे ध्यान मे रखें
                     

प्रेषक- अमित दुबे 

सोमवार, 20 फ़रवरी 2012

चुनावी बैनर, भ्रष्टाचार, बदनाम नेता

नई दिल्ली।। यूपी में चुनावी समर छिड़ चुका है। हर गली, हर मुहल्ले में विभिन्न पार्टियों के बैनर लगे दिख जाएंगे। ये झण्डे वे लोग लगाये होते हैं जिन्हें साढ़े चार साल तक कोई नेता नही पूछता। ये गरीब,मासूम वही लोग होते हैं जिनको ये राजनीतिक लोग दुख में ही नहीं सुख में भी नही पूछते।

दिन भर रोजी-रोटी के जुगाड़ में भागने वाले लोग चुनावी मौसम में खुद को राजनीतिक लोगों के करीबी समझने की भूल कर बैठते हैं। राजनेताओ के मीठी-मीठी बातों में आकर आम आदमी अपना दिन खराब करके राजनेताओ के पीछे-पीछे घूमता फिरता है। बदले में हासिल होता कुछ नहीं। अगर होता है भी तो कुछ गिने- चुने लोगों के जो वास्तव में नेताओं के या तो करीब होते हैं या फिर रोज-रोज नेताओं के घर की परिक्रमा करते हैं। बर्षाती मेढ़क की तरह होते हैं राजनेता। अक्सर राजनेता तभी क्षेत्र में दिखते हैं जब उन्हें वोट की जरुरत होती है। अन्यथा क्षेत्र में जाकर भी आम आदमी से मिलने की कोई जोहमत नही उठाते। सिर्फ खास लोगों से मुलाकात ही नेताओं की मजबूरी होती है। मुझे नही पता ये मजबूरी आखिर क्या होती है लेकिन ये तो तय है मजबूरी कुछ न कुछ जरुर होती है।

नेता मेढ़कों की भांति टर्र-टर्र करते हुए गरीब- असहायों का मशीहा बताते नहीं थक रहें हैं। दिन-भर के व्यस्त कार्यक्रम में सिर्फ आम आदमी ही नेताओं को दिख रहा है क्योंकि किसान, मजदूर बेचारे जल्द ही नेताओं के झांसे में आ जाते हैं। अगर आम आदमी इन नेताओं के बहकावे में नही आता तो अपने-अपने घर पर पोस्टर बैनर नही लगाया जाता, क्षेत्र का विकास ना होने और भ्रषटाचार के जिम्मेदार लोगों के प्रति नाराजगी दर्ज कराते देखा जा सकता है। लेकिन फिलहाल ऐसा सिर्फ आजमगढ़ के एक गांव के अलावा कहीं नहीं दिखा। आम आदमी विभिन्न पार्टियों के बैनर लगाकर खुद को सम्बंधित पार्टियों के कार्यकर्ता समझ बन बैठते हैं। जिन्हें चुनाव बाद खुद उसी क्षेत्र के प्रत्यासी नही पहचानते।

मेंढ़क मैं इसलिए नेताओं को कह रहा हूं क्योंकि हाल के दिनों में कुछ चुनावी प्रचारक जनता के बीच जाकर यह बात स्वीकार कर चुके हैं। चुनावी सभाओं में जनता को सुविधा देने की बात कम और आरोप- प्रत्यारोप कुछ ज्यादा ही देखने को मिल रहें हैं । जनता अपना काम-धाम छोड़कर चुनावी सभाओं में जाती है और तालियां भी बजाती है। अब तो दरवाजे-दरवाजे नेता और नेताओं के प्रतिनिधि बैंड-बाजे के साथ जाने लग गए हैं मालूम होता है जैसे कि बारात लेकर आ रहे हैं। चुनाव जीत जाने पर जनता को सरकारी योजनाओं में घोटाला और जरुरत की चीजों में महंगाई ही मिलती है फिर ना जाने क्यों जनता देती है। भ्रष्टाचार का विरोध करने पर जनता को लाठी चार्ज और जेल की हवा खाने को मिलती है। ये काम राजनेताओं के इशारे पर ही तो होता है। सामाजिक कार्यकर्ताओ के संपत्तियों की जांच करवाई जाती है। जनता कितना भोली-भाली होती है जो सिर्फ चंद दिनों में नेताओ की करतूतों को भुला बैठती है। अगर आप चाहें तो गलियों और मुहल्लों में विभिन्न पार्टियों के स्पोर्टरों को गिना जा सकता है जिनका चुनावी आकड़ों से सीधा मतलब होता है।

महाशिवरात्रि और महर्षि दयानंद सरस्वती


हे मनुष्य लोगो ! आओ अपने मिल के जिसने इस संसार में आश्चर्यरूप पदार्थ रचे हैं उस जगदीश्वर के लिए सदैव धन्यवाद देवें. वही परम कृपालु ईश्वर अपनी कृपा से उक्त कामों को करते हुए मनुष्यों कि सदैव रक्षा करता है.
महर्षि दयानंद सरस्वती

हमारे भारत देश की पावन भूमि पर अनेक साधु-सन्तों, ऋषि-मुनियों, योगियों-महर्षियों और दैवीय अवतारों ने जन्म लिया है और अपने अलौकिक ज्ञान से समाज को अज्ञान, अधर्म एवं अंधविश्वास के अनंत अंधकार से निकालकर एक नई स्वर्णिम आभा प्रदान की है। अठारहवी शताब्दी के दौरान देश में जाति-पाति, धर्म, वर्ण, छूत-अछूत, पाखण्ड, अंधविश्वास का साम्राज्य स्थापित हो गया था।
 इसके पहले भी कई बहुत बड़े सन्त एवं भक्त पैदा हुए, जिन्होंने समाज में फैली कुरीतियों एवं बुराईयों के खिलाफ न केवल बिगुल बजाया, बल्कि समाज को टूटने से भी बचाया।
सच्चे शिव के प्राप्त होने पर ही मनुष्य को आनंद की प्राप्ति होती है। आज बोध दिवस शिवरात्रि का पावन पर्व ज्ञान, भक्ति और उपासना का दिवस है।
 महर्षि दयानंद सरस्वती का बोध दिवस बीस फरवरी को शिवरात्रि के दिन मनाया जाएगा। माना जाता है कि 175 साल पहले शिवरात्रि के तीसरे प्रहर में 14 वर्षीय बालक मूलशंकर के हृदय में सच्चे शिव को पाने की अभिलाषा जगी थी। शिव' विद्या और विज्ञान का प्रदाता स्वरूप है परमात्मा का। इसी दिन मूलशंकर को बोद्ध-ज्ञान प्राप्त हुआ था और वह महर्षि दयानन्द सरस्वती बन सके।इस दिन को याद करते हुए दयानंद बोध दिवस के रूप में हर साल मनाया जाता है।
 शिवरात्रि का अर्थ है वह कल्याणकारी रात्रि जो विश्व को सुख, शांति और आनंद की प्राप्ति कराने वाली है। मनुष्य के जीवन में न जाने कितनी शिवरात्रियां आती हैं किन्तु उसे न ज्ञान  होता है और न परमात्मा का साक्षात्कार, न उनके मन में सच्चिदानंद परमात्मा के दर्शन की जिज्ञासा ही उत्पन्न होती है। बालक मूलशंकर ने अपने जीवन की प्रथम शिवरात्रि को शिव मंदिर में रात्रि जागरण किया। सभी पुजारिओं और पिता जी के सो जाने पर भी उन्हें नींद नहीं आई और वह सारी रात जागते रहे। अर्ध रात्री के बाद उन्होंने शिव की मूर्ति पर नन्हे चूहे की उछल कूद करते व मल त्याग करते देखकर उनके मन में जिज्ञासा हुई की यह तो सच्चा शिव नहीं हो सकता ... । जो शिव अपनी रक्षा खुद ना कर सके वो दुनिया की क्या करेगा और उन्होंने इसका जबाब अपने पिता व पुजारिओं से जानना चाहा लेकिन संतोषजनक उत्तर न मिल पाने के कारण उन्होंने व्रत तोड़ दिया। इसके बाद उन्होंने 21 वर्ष की युवा अवस्था में घर छोड़ कर सच्चे शिव की खोज में सन्यास लेकर दयानंद बने व मथुरा में डंडी स्वामी विरजानंद के शिष्य बनने हेतु पहुचे । गुरू का द्वार खटखटाया तो गुरू ने पूछा कौन? स्वामी जी का उत्तर था कि यही तो जानने आया हूं। शिष्य को गुरू और गुरू को चिरअभिलाषित शिष्य मिल गया। तीन वर्ष तक कठोर श्रम करके वेद, वेदांग दर्शनों का अंगों उपांगों सहित अध्ययन किया और गुरु दक्षिणा के रूप में स्वयं को देश के लिए समर्पित कर दिया । इसके बाद आर्य समाज की स्थापना की। आज विश्व भर में अनेकों आर्यसमाज हैं जो महर्षि के सिद्धांतों, गौरक्षा और राष्ट्र रक्षा आदि के कार्यो में संलग्न है। 
 महर्षि की जिंदगी का हर पहलु संतुलित और प्रेरक था। एक श्रेष्ठ इंसान की जिंदगी कैसी होनी चाहिए वे उसके प्रतीक थे। उनकी जिंदगी की कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं था। इस लिए उनके संपर्क में जो भी आता था, प्रभावित हुए बिना नहीं रहता था।
 वे रोजाना कम से कम तीन-चार घंटे आत्म-कल्याण के लिए ईश्वर का ध्यान करते थे। इसका ही परिणाम था कि बड़े से बड़े संकट के वक्त वे न तो कभी घबराए और न तो कभी सत्य के रास्ते से पीछे ही हटे। उनका साफ मानना था, सच का पालन करने वाले व्यक्ति का कोई दोस्त हो या न हो, लेकिन ईश्वर उसका हर वक्त साथ निभाता है। पूरे भारतीय समाज को वे इसी लिए सच का रास्ता दिखा सके, क्योंकि उन्हें ईश्वर पर अटल विश्वास था और वे हर हाल में सत्य का पालन करते थे।
 वे कहते थे, इंसान द्वारा बनाई गयी पत्थर की मूर्ति के आगे सिर न झुकाकर भगवान की बनाई मूर्ति के आगे ही सिर झुकाना चाहिए। हम जैसा विचार करते हैं हमारी बुद्धि वैसे ही होती जाती है। पत्थर की पूजा करके कभी जीवंत नहीं बना जा सकता है। वे स्त्रियों को मातृ-शक्ति कहकर सम्मान करते थे।
दयानंद जी ने लोगों को समझाया कि तीर्थों की यात्रा किए बिना भी हम अपने हृदय में सच्चे ईश्वर को उतार सकते हैं। उन्होंने जाति-पाति का घोर विरोध किया तथा समाज में व्याप्त पाखण्डों पर भी डटकर कटाक्ष किए। जाति-पाति और वर्ण व्यवस्था को व्यर्थ करार दिया और कहा कि व्यक्ति जन्म के कारण ऊँच या नीच नहीं होता। व्यक्ति के कर्म ही उसे ऊँच या नीच बनाते हैं ।
समाज को हर बुराई, कुरीति, पाखण्ड एवं अंधविश्वास से मुक्ति दिलाने के लिए डट कर सत्य बातों का का प्रचार-प्रसार किया, उनकी तप, साधना व सच्चे ज्ञान ने समाज को एक नई दिशा दी और उनके आदर्शों एवं शिक्षाओं का मानने वालों का बहुत बड़ा वर्ग खड़ा हो गया। 
महर्षि दयानंद जी की बातें आज भी उतनी ही कारगर और महत्वपूर्ण हैं, जितनी की उस काल में थीं । यदि मानव को सच्चे ईश्वर की प्राप्ति चाहिए तो उसे महर्षि दयानंद जी के मार्ग पर चलते हुए उनकी शिक्षाओं एवं ज्ञान को अपने जीवन में धारण करना ही होगा। महर्षि दयानंद जी के चरणों में सहस्त्रों बार साष्टांग नमन।।

रविवार, 19 फ़रवरी 2012

सिगरेट तम्बाकू और कैंसर


आज पूरे हिंदुस्तान की जनता क्रिकेट के साथ साथ युवराज की सेहत के बारे मे जरूर सोचती होगी कोई भी ट्वीट अगर युवराज ने किया तो वो पूरी मीडिया की खबर बन जाती है की आज युवराज ने ये पोस्ट किया आज युवराज ने वो पोस्ट किया किया मेरी भी युवराज से सहानुभूति है पर इसका दूसरा पहलू भी देखेँ तो अच्छा होगा, मैं आज आप लोगों को ये बताने मे सहायता करता हूँ 
अब पूरी बात पढ़ने के बाद आप ही निश्चय करें की आप को क्या करना है.सरकार से आरटीआई के तहत जानकारी मांगने के बाद मालूम पड़ा की पूरे देश मे एक साल मे 11 लाख लोग सिर्फ और सिर्फ कैंसर से मर जाते है जिनको की दवाइयाँ नहीं मिलती पूरा उपचार नहीं मिलता और पैसे के अभाव मे 11 लाख लोग अपना जीवन गंवा देते हैं..

वो तो कुछ नहीं 7.5 लाख लोग ऐसे हैं इस देश मे जो की कैंसर पीड़ित लोगों के समुदाय मे शामिल हो जाते हैं वो भी सिर्फ 68%लोग सिर्फ इसलिए कैंसर पीड़ित होते हैं क्यूँ की वे लोग धूम्रपान करते हैं,शराब पीते हैं ,तंबाकू-गुटखा खाते हैं.
यानि की लगभग 70% कैंसर पीड़ित लोग कैंसर से मुक्ति पा लेंगे जब वो तंबाकू और शराब पीना छोड़ देगे तो..
जब हमारी सेहत अपने आप बनी रह सकती है तो क्यूँ उसे बिगड़ने का प्रयत्न करें क्यूँ शराब पिये क्यूँ तंबाकू खाएं क्यूँ ????
इससे बड़ी मूर्खता क्या हो सकती है की हम अपनी बनी बनाई सेहत को अपने पैसों से नाश कर रहे हैं.जरा सोचिए अगर सभी लोग शराब,तंबाकू का बहिष्कार कर दें तो कितनी पैसों की बचत हो सकती है। नहीं तो हालत कुछ ऐसी हो जाएगी की शराब पीते पीते पैसे रुपये खतम हो गए और बाद मे इलाज कराने के लिए रुपये ही नहीं बचे फिर मरो गुमनामी के अंधेरे मे !!!!!!!!!!
          सभी जानकारीयां AIMS के डाक्टरों की मदद से ली गई हैं 
                                             
प्रेषक-अमित दूबे 

शनिवार, 11 फ़रवरी 2012

वैलेंटाइन डे: प्रेम का पर्व या संस्कारों का अवमूल्यन :



वर्तमान महानगरीय परिवेश में पश्चिम का अन्धानुकरण करने की जो यात्रा शुरू हुई है उसका एक पड़ाव फ़रवरी महीने की १४ तारीख है
,हालाँकि प्रेम की अभिव्यक्ति किसी भी प्रकार की हो सकती हैमाँ-बाप,बेटा,भाई,बहन किसी के लिए मगर ये त्यौहार वर्तमान परिवेश में प्रेमी प्रेमिकाओं के त्यौहार के रूप में स्थापित किया गया हैआज कल के युवा या यूँ कह ले आज कल कूल ड्यूड्स बड़े जोर शोर से इस त्यौहार को मना कर आजादी के बाद भीअपनी बौधिक और मानसिक गुलामी का परिचय देते मिल जायेंगे Iपिछले १५-२० वर्षों में इस त्यौहार ने भारतीय परिवेश में अपनी जड़े जमाना प्रारम्भ किया और अब इस त्यौहार के विष बेल की आड़ में हमारी युवा पीढ़ी में बचे खुचे हुए भारतीय संस्कारो का अवमूल्यन किया जा रहा हैइस त्यौहार के सम्बन्ध में कई किवदंतियां प्रचलित है में उनका जिक्र करके उनका विरोध या महिमामंडन कुछ भी नहीं करना चाहूँगा क्यूकी भारतीय परिवेश में ये पूर्णतः निरर्थक विषय हैI

मेरे मन में एक बड़ा सामान्य सा प्रश्न उठता है की प्रेम की अभिव्यक्ति के लिए हम एक खास दिन ही क्यों चुने??जहाँ तक प्रेम के प्रदर्शन की बात है हमारे धर्म में प्रेम की अभिव्यक्ति और समर्पण की पराकाष्ठा है मीरा और राधा का कृष्ण के प्रति प्रेम I मगर महिमामंडन वैलेंटाइन डे का?कई बुद्धिजीवी(या यूँ कह ले अंग्रेजों के बौधिक गुलाम) अक्सर ये कुतर्क करते दिखते हैं की इसे आप प्रेमी प्रेमिका के त्यौहार तक सीमित न करेमेरी बेटी मुझे वैलेंटाइन की शुभकामनायें देती है,और पश्चिम में फादर डे,मदर डे भी मनाया जाता है I मेरा ऐसे बौधिक गुलाम लोगो से प्रश्न है की,अगर पश्चिम में मानसिक और बौधिक रूप से इतना प्रेम भरा पड़ा है कीवहां से प्रेम का त्यौहारहमे उस धरती पर आयात करना पड़ रहा है जहाँ निष्काम प्रेम में सर्वस्व समर्पण की प्रतिमूर्ति मीराबाई पैदा हुईतो पश्चिम में ओल्ड एज होम सबसे ज्यादा क्यों हैं?? क्यों पश्चिम  का निष्कपट प्रेम वहां होने वाले विवाह के रिश्तों को कुछ सालो से ज्यादा आगे नहीं चला पाता.उस प्रेम की मर्यादा और शक्ति तब कहा होती  है ,जब तक बच्चा अपना होश संभालता है ,तब तक उसके माता पिता कई बार बदल चुके होते हैं और जवानी से पहले ही वो प्रेम से परे एकाकी जीवन व्यतीत करता है I ये कुछ विचारणीय प्रश्न है उन लोगो के लिए जो पाश्चात्य सभ्यता की गुलामी में अपनी सर्वोच्चता का अनुभव करते हैं I
ये कैसी प्रेम की अनुभूति है जब पिता पुत्र  से कहता है की तुम्हारा कार्ड मिला थैंक्यू सो मच..और फिर वो एक दूसरे से सालो तक मिलने की जरुरत नहीं समझते I ये कौन से प्रेम की अभिव्यक्ति है जब प्रेमी प्रेमिका विवाह के समय अपने तलाक की तारीख भी निश्चित कर लेते हैं,और यही विचारधारा हम वैलेंटाइन डे:फादर डे मदर डे के रूप में आयात करके अपने कर्णधारो को दे रहे हैंI
मैं किसी धर्म या स्थान विशेष की मान्यताओं के खिलाफ नहीं कह रहा मगर  मान्यताएं वही होती है जो सामाजिक परिवेश में संयोज्य हो I आप इस वैलेंटाइन वाले प्रेम की अभिव्यक्ति सायंकाल किसी भी महानगर के पार्क में एकांत की जगहों पर देख सकते हैंI
क्या ये वासनामुक्त निश्चल प्रेम की अभिव्यक्ति है?? या ये वासना की अभिव्यक्ति हमारे परिवेश में संयोज्य हैशायद नहीं,तो इस त्यौहार का इतना महिमामंडन क्यों?? मेरे विचार से भारतीय परिवेश में प्रेम की प्रथम सीढ़ी वासना को बनाने में इस त्यौहार का भी एक योगदान होता जा रहा है I आंकड़े बताते हैं की वैलेंटाइन डे के दिन परिवार नियोजन के साधनों की बिक्री बढ़ जाती हैक्या इसी वीभत्स कामुक नग्न प्रदर्शन को आप वैलेंटाइन मनाने वाले बुद्धिजीवी प्रेम कहते हैं
इस अभिव्यक्ति में बाजारीकरण का भी बहुत हद तक योगदान है कुछ वर्षो तक १-२ दिन पहले शुरू होने वाली भेडचाल वैलेंटाइन वीक से होते हुए वैलेंटाइन मंथ तक पहुच गयी है. मतलब साफ़ है इस नग्न नाच के नाम पर उल जलूल  उत्पादों को भारतीय बाज़ार में भेजनाIटेड्डी बियरग्रीटिंग कार्ड से होते हुए,भारत में वैलेंटाइन का पवित्र प्यार कहाँ तक पहुच गया है नीचे एक विज्ञापन से आप समझ सकते हैं?? 



वस्तुतः ये वैलेंटाइन डे प्रेम की अभिव्यक्ति का दिन न होकर हमारे परिवेश में बाजारीकरण और अतृप्त लैंगिक इच्छाओं की पाशविक पूर्ति का एक त्यौहार बन गया है,जिसे महिमामंडित करके गांवों के स्वाभिमानी भारत को पश्चिम के  गुलामो  का इंडिया बनाने का कुत्षित प्रयास चल रहा हैIउमीद है की युवा पीढ़ी वैलेंटाइन डे के इतिहास में उलझने की बजाय गुलाम भारत के आजाद भारतीय विवेकानंद के इतिहास को देखेगी,जिन्होंने पश्चिम के आधिपत्य के दिनों में भी अपनी संस्कृति और धर्म का ध्वजारोहण शिकागो में कियाI


"वन्दे मातरम"


बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

हमारे समय में प्रेम कोई निशानी नहीं छोड़ता..

चिट्ठियां तो थी नहीं की जुगा कर रखते
बस कुछ एस एम एस थे
बहुत दिनों तक बचे रहे
मगर एक दिन मिटना ही था मिट गए...
हमारे समय में प्रेम
कोई निशानी नहीं छोड़ता..
कुछ स्मृतियाँ होती है,जो बहुत दिनों तक
बरछे की तरह चुभी रहती है.
धीरे धीरे उनका लोहा भी गल जाता है........

मदन कश्यप जी की हंस में प्रकाशित एक कविता...

कृष्ण कुमार यादव की अंडमान से इलाहाबाद के लिए भावभीनी विदाई

चर्चित साहित्यकार, लेखक और ब्लागर कृष्ण कुमार यादव के अंडमान-निकोबार द्वीप समूह से इलाहाबाद में निदेशक डाक सेवाएँ पद पर स्थानांतरित होकर जाने से पूर्व 6 फरवरी, 2012 को पोर्टब्लेयर में भव्य अभिनन्दन और विदाई समारोह आयोजित किया गया. टैगोर राजकीय शिक्षा महाविद्यालय, पोर्टब्लेयर के सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम में तमाम विद्वतजनों, साहित्यकारों, शिक्षाविदों, पत्रकारों और प्रशासनिक सेवाओं से जुड़े लोगों ने श्री यादव के कार्यकाल को सराहा और एक साहित्यकार के रूप में उनके प्रखर योगदान को रेखांकित किया. 'चेतना' सामाजिक-सांस्कृतिक-साहित्यिक संस्था द्वारा श्री यादव को संस्था की मानद सदस्यता से विभूषित कर आशा की गई कि वे जहाँ भी रहेंगें, अंडमान-निकोबार से अपना लगाव बनाये रखेंगें.

कार्यक्रम कि अध्यक्षता करते हुए जवाहर लाल नेहरु राजकीय महाविद्यालय, पोर्टब्लेयर में राजनीति शास्त्र विभागाध्यक्ष डा. आर. एन. रथ ने कहा कि प्रशासन के साथ-साथ साहित्यिक दायित्वों का निर्वहन बेहद जटिल कार्य है पर श्री कृष्ण कुमार यादव ने अल्प समय में ही अंडमान में अपने कार्य-कलापों से विशिष्ट पहचान बनाई है. उन्होंने अपने रचनात्मक अवदान से द्वीपों में चल रही गतिविधियों को मुख्य भूमि से जोड़ा और यहाँ के ऐतिहासिक व प्राकृतिक परिवेश, सेलुलर जेल, आदिवासी, द्वीपों में समृद्ध होती हिंदी इत्यादि तमाम विषयों पर न सिर्फ प्रखरता से लेखनी चलाई बल्कि उसे तमाम राष्ट्रीय-अन्तराष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं और इंटरनेट पर प्रसारित कर यहाँ के सम्बन्ध में लोगों को रु-ब-रु कराया. श्री यादव के साथ-साथ जिस तरह से इनकी पत्नी श्रीमती आकांक्षा यादव ने नारी-विमर्श को लेकर कलम चलाई है, ऐसा युगल विरले ही देखने को मिलता है. आकाशवाणी के पूर्व निदेशक श्री एम्.एच. खान ने अपने संबोधन में कहा कि जिस प्रकार से बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी श्री यादव अपनी प्रशासनिक व्यस्तताओं के मध्य साहित्यिक गतिविधियों में सक्रिय रहते हैं, वह नई पीढ़ी के लिए अनुकरणीय है. आकाशवाणी, पोर्टब्लेयर के उप निदेशक (समाचार) श्री दुर्गा विजय सिंह 'दीप' ने उन तमाम गतिविधियों को रेखांकित किया, जो श्री यादव ने द्वीपों में निदेशक के पद पर अधीन रहने के दौरान किया. डाकघरों का कम्प्यूटरीकरण और उन्हें प्रोजेक्ट एरो के अधीन लाना, डाक-कर्मियों हेतु प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना, डाकघर से 'आधार' के तहत नामांकन, अंडमान के साथ-साथ सुदूर निकोबार में आदिवासियों के बीच जाकर उन्हें बचत और बीमा सेवाओं के प्रति जागरूक करना और उनके खाते खुलवाना, स्कूली बच्चों को पत्र-लेखन से जोड़ने के लिए तमाम रचनात्मक पहल और उन्हें डाक-टिकटों के प्रति आकर्षित करने के लिए तमाम कार्यशालों का आयोजन इत्यादि ऐसे तमाम पहलू रहे, जहाँ निदेशक के रूप में श्री यादव के प्रयास को न सिर्फ आम-जन ने सराहा बल्कि मीडिया ने भी नोटिस लिया. उन्होंने श्री यादव के सपरिवार साहित्यिक जगत में सक्रिय होने और आकाशवाणी पर निरंतर कार्यक्रमों की प्रस्तुति देने के लिए भी सराहा. 'चेतना' संस्था के महासचिव श्री घनश्याम सिंह ने श्री कृष्ण कुमार यादव के 'चेतना' सामाजिक-सांस्कृतिक संस्था से लगाव पर सुखद हर्ष व्यक्त किया और कहा कि उनके प्रगतिशील दृष्टिकोण से हमारे कार्यक्रमों को नई दिशा मिली. चर्चित कवयित्री और प्रशासन में सहायक निदेशक श्रीमती डी. एम. सावित्री ने श्री कृष्ण कुमार यादव को एक संवेदनशील व्यक्तित्व बताते हुए कहा कि वे अधिकारी से पहले एक अच्छे व्यक्ति हैं और यही उन्हें विशिष्ट कृतित्व, रचनाधर्मिता और प्रशासन के साथ-साथ सतत् साहित्य सृजनशीलता हेतु प्रेरित भी करती है. यह एक सुखद संयोग है कि उनके पीछे विदुषी पत्नी आकांक्षा यादव जी का सहयोग सदा बना रहता है. पोर्टब्लेयर नगर पालिका परिषद् के वरिष्ठ उपाध्यक्ष श्री के. गणेशन ने कहा कि अपने निष्पक्ष, स्पष्टवादी, साहसी व निर्भीक स्वभाव के कारण प्रसिद्ध श्री यादव जहाँ कर्तव्यनिष्ठ एवं ईमानदार अधिकारी की भूमिका अदा कर रहे हैं, वहीं एक साहित्य साधक एवं सशक्त रचनाधर्मी के रूप में भी अपने दायित्वों का बखूबी निर्वहन कर रहे हैं। अंडमान-निकोबार द्वीप समाचार के प्रधान संपादक श्री राम प्रसाद ने श्री यादव को भावभीनी विदाई देते हुए कहा कि कम समय में ज्यादा उपलब्धियों को समेटे श्री यादव न सिर्फ एक चर्चित अधिकारी हैं बल्कि साहित्य-कला को समाज में उचित स्थान दिलाने के लिए कटिबद्ध भी दिखते हैं। यह देखकर सुखद अनुभूति होती है कि कृष्ण कुमार यादव जी का पूरा परिवार ही साहित्य और संस्कृति के संवर्धन में तल्लीन है. श्रीमती आकांक्षा यादव जहाँ साहित्य और ब्लागिंग में भी उनकी संगिनी हैं, वहीँ इनकी सुपुत्री अक्षिता (पाखी) ने सबसे कम उम्र में राष्ट्रीय बाल पुरस्कार-2011 प्राप्त कर अंडमान-निकोबार का नाम राष्ट्रीय स्तर पर भी गौरवान्वित किया है. अंडमान चैंबर आफ कामर्स एंड इंडस्ट्री के पूर्व अध्यक्ष श्री हरि नारायण अरोड़ा ने इस बात पर प्रसन्नता जाहिर किया कि श्री यादव आम जनता के लिए सदैव सुलभ रहते हैं और यही उन्हें एक लोकप्रिय अधिकारी भी बनाती है. प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इण्डिया के राजेंद्र प्रसाद शर्मा ने आशा व्यक्त की कि श्री यादव जैसे कर्तव्यनिष्ठ अधिकारियों के चलते लोगों का साहित्य प्रेम बना रहेगा। अनिड्को के प्रबंधक हेमंत ने कहा कि प्रशासन में अभिनव प्रयोग करने में सिद्धस्त श्री यादव बाधाओं को भी चुनौतियों के रूप में स्वीकारते हैं और यही उनकी सबसे बड़ी ताकत है.

अपने भावभीनी विदाई समारोह से अभिभूत श्री कृष्ण कुमार यादव ने इस अवसर पर कहा कि अंडमान में उनका यह कार्यकाल बहुत खूबसूरत रहा, इसके बहाने ऐसी तमाम बातों और पहलुओं से रु-ब-रु होने का अवसर मिला, जिनके बारे में मात्र पढ़ा ही था. इस दौरान यहाँ से बहुत कुछ सीखने का मौका मिला। श्री यादव ने कहा कि यहाँ के परिवेश में न सिर्फ मेरी सृजनात्मकता में वृद्धि की बल्कि उन्नति की राह भी दिखाई। उन्होंने अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में अपने अनुभवों और यहाँ के जन-जीवन पर एक पुस्तक लिखने की भी इच्छा जताई. श्री यादव ने कहा कि वे विभागीय रूप में भले ही यहाँ से जा रहे हैं पर यहाँ के लोगों और अंडमान से उनका भावनात्मक संबंध हमेशा बना रहेगा।

इस अवसर पर एक काव्य गोष्ठी का भी आयोजन किया गया, जिसमें सर्वश्री घनश्याम सिंह, मकसूद आलम, अनिरुद्ध पांडे, अरविंद त्रिपाठी, श्रीमती डी.एम. सावित्री, श्री दुर्ग विजय सिंह ‘दीप’ इत्यादि ने अपनी अपनी कविताएं पढ़ी। श्री कृष्ण कुमार यादव ने भी अपनी कविताओं और हाइकु से लोगों का मन मोहा. अंडमान के आदिवासियों पर आधारित उनकी कविता ने लोगों को बड़ा प्रभावित किया ।

कार्यक्रम का सञ्चालन श्री अशोक सिंह और आभार-ज्ञापन श्री नीरज बैद्य द्वारा किया गया.

- दुर्ग विजय सिंह 'दीप'
उप निदेशक- आकाशवाणी (समाचार)
पोर्टब्लेयर, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह.

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

                                  आँखों का धोखा,
                                  जिसे मंजिल समझने की भूल
                                  अक्सर कर जाते हैं
                                  ठोकर लगनी होती है जहाँ,
                                  चाह कर भी नहीं संभल पाते हैं .
                                  लड़खड़ाते हैं ,
                                  गिरते हैं ,
                                  और फिर ,
                                  उठ कर चल देते है,
                                  यंत्रवत,
                                  उसी राह पर,
                                  बंद होठो की पीड़ा और दर्द
                                  अँधेरे में विसर्जित कर,
                                   जैसे जो कुछ हुआ
                                   वह कोई नया नहीं हैं,
                                   भुला देते हैं,
                                   जल्द ही,
                                   बड़ी से बड़ी ठोकर,
                                   दर्द का अहसास ,
                                   और
                                   फिर भटकने लगते हैं,
                                   नयी मरीचिकाओं के बीच ..........!

                                                      ******* शिव प्रकाश मिश्र *******
                                                        http://shivemishra.blogspot.com

रविवार, 5 फ़रवरी 2012

सांप सरीखे घर के लोग ? चुनाव



(फोटो साभार गूगल/नेट से लिया गया )
हमारा हिंदुस्तान
भेंडिया धंसान
एक भेंड कुएं में कूदी की बस
कुवां भर गया
उनका काम हो गया
शातिर लोग कुछ को खिला पिला
माथे पे बलि का चन्दन लगा
हमारे ही बीच से अगुवा बना …
तालियों की गड़गड़ाहट
पराये मुंह मियाँ मिट्ठू बन
मूरख मंच से ‘मुन्ना” काका
तोते से पढ़ पढ़ा सीख आये
पंद्रह दिन कोशिश करते जोर लगाए
बेटा बहु बेटी को आंगन की चौपाल में
“एक” दिन रविवार को जुटा पाए
विकास गली हैण्ड पम्प चक रोड
रोड पुल स्कूल पंचायत भवन
मंहगाई डायन तक सब ने अंगुली उठाई
लेकिन जब एकजुट होने की
वोट देने की -न देने की बात आई
भ्रष्टाचार के मुद्दे पे बात आई
तो विजय चिन्ह वी की ऊँगली ना उठ पायी
एक एक कर सरकने लगे
सांप सरीखे  घर के लोग ?
जाते जाते मुन्ना को सुना गए …
कौन देगा कोचिंग टिउसन बिल्डिंग फीस
ब्लड प्रेशर सुगर डॉ आपरेशन की फीस
डीजल पम्प खाद मजदूरी लों
गिरता कच्चा घर रोटी तेल नोन
लैपटाप प्रोजेक्ट मोटर साईकल
चार पहिया दसियों लाख
निकम्मों की डिमांड है
दहेज़ के दानव का असर देखो
विक्षिप्त बेटी -…
पढ़ी लिखी ढांचा सी ….
घुटन से कैसे बीमार है
सिसकती बीबी उस और मुह फेर कर
आँसू टपकाते बैठ गयी
“मुन्ना” काका खुरपी पलरी लिए
दस विस्वा जमीन -दस प्राणी ….
जोर से साँस लेते भरते आह
ताकने लगे आसमान !!——–
सुरेन्द्र शुक्ल भ्रमर ५
४.२५-५ पूर्वाह्न
कुल्लू यच पी
४.२.२०१२