गुरुवार, 1 अप्रैल 2021

पल्लव कोंपल है गोद हरी

 शीत बतास औे पाला सहे नित

ठूंठ बने हिय ताना सुने जग

कूंच गई फल फूल मिले

तेरे साहस पे नतमस्तक सब

पल्लव कोंपल है गोद हरी

रस भर महुआ निर्झर झर झर

सब खीझत रीझत दुलराते

सम्मोहित कुछ वश खो जाते

मधु रस आकर्षित भ्रमर कभी

री होली फाग सुनावत हैं

छलकाए देत रस की गागर

ज्यों अमृत पान करावत है

ऋतुराज वसंत भी देख चकित

गोरी चंदा तू कर्पूर धवल

रचिता बनिता दुहिता गुण चित

चहुं लोक बखान बखानत बस

शुध चित्त मर्मज्ञ हरित वसनी

पावन करती निर्झर जननी

बल खाती सरिता कंटक पथ

उफनत हहरत सागर दिल पर

कुछ दबती सहती शोर करे

गर्जन बन मोर नचावत तो

कुछ नाथ लेे नाथ रिझावत है

मंथन कर जग कुछ सूत्र दिए

मदिरा मदहोश हैं राहु केतु 

कुछ देव मनुज संसार हेतु

री अमृत घट करुणा रस की

मै हार गया वर्णन सिय पी

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सुरेंद्र कुमार शुक्ल

प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत