सोमवार, 24 अगस्त 2020

Bhai Chara / भाईचारा / Brother Hood

Bhai-Chara-Brother-Hood

Bhai Chara / भाईचारा / Brother Hood


Bhai Chara / भाईचारा / Brother Hood


क्या गजब है देशप्रेम,
क्या स्वर्णिम इतिहास हमारा है|
अजब-गजब कि मिलती मिसालें,
क्या अद्भुत भाईचारा है||

जब भी दुश्मन आता सरहद पर,
हमें देशप्रेम बुलाता है|
माँ भारती कि आन-बान को,
हर भारतवासी मर-मिट जाता है||

जब सैनिक भारत माँ कि रक्षा को,
सीने पर गोली खाता है|
हर भारतवासी के सीने को,
वो लहूलुहान कर जाता है||

जब जब आई है विपदा हम पर,
हम कंधे से कंधा मिलाते है|
हम भारत माँ और उन वीर सपूतो के,
वंदन को शीश झुकाते है||

वीर सपूतो के बलिदानों पर,
हर भारत वासी हारा है|
हम माँ भारती कि संताने है,
और हिंदुस्तान हमारा है||

क्या अद्भुत भाईचारा है||



ऋषभ शुक्ला

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गुरुवार, 23 जुलाई 2020

पढ़ाई ऑनलाइन

अब सो जाओ। सुबह बात करते हैं। सुबह होने में अभी कई घंटे बाकी हैं। सारी रात ही तो बाकी है। इस बेचैनी के साथ भला कैसे होगी सुबह? रात को नींद ही कहाँ आएगी! तुम इतनी परेशान मत होओ। सुबह इसका हल निकालेंगे। अभी सो जाओ। प्रयास तो बहुत किया सोने का, परन्तु नींद को तो मानो मुझसे शत्रुता हो गई थी। या कहो उसे मेरी फ़िक्र बहुत थी। आधी रात तो बस करवटें बदलने में भी चली गई और शेष बुरे स्वपनों से चैंकने में। सुबह उठी तो ऐसा लगा ही नही कि रात भर सोई भी थी। सिर और मन दोनों ही बोझिल थे। कुछ सोचा तुमने कि क्या करना है? हम्म्म....... मन है कि पहले तुमसे लड़ लूँ। मुझसे? वो क्यों भला? मैंने क्या किया? तुम ही तो इतने दिनों से हमें नाकारा सिद्ध कर रहे थे। जब तुम ही हमारी समस्या या परेशानी नही समझोगे, तो भला बाहर वालों से क्या आशा रखें? तुम तो सब अपनी आँखों से देखते हो, समझते हो। तब इतने आरोप हम पर......। और जो इस विभाग से परिचित भी नही हैं, वे तो मानो अपराधी साबित करने के अवसर ही तलाशते रहते हैं। मैंने तो तुमसे ऐसा कुछ भी नही कहा, जो तुम इतनी क्रोधित हो रही हो। क्यों भूल गए? तुम ही ने तो कहा था ना कि जब सब स्कूलों में ऑनलाइन पढ़ाई हो रही है, तो तुम्हारे सरकारी स्कूल में भी ऑनलाइन पढ़ाई होनी चाहिए। मैं तुम्हें समझा रही थी कि यह सब यकायक आरंभ नही हो सकता। जिन प्राइवेट स्कूलों में यह सब हो रहा है, वे लोग कहीं न कहीं आॅन लाइन प्रक्रियाओं से पहले से ही जुड़े हुए हैं। और जिन सरकारी स्कूल के बच्चों के साथ आप यह सब आरंभ करने के लिए कह रहे हैं, ये वे बच्चे हैं, जो आर्थिक रूप से अत्यधिक कमजोर हैं। जिनके घर खाना तक खाने के लिए नही होता, इसीलिए स्कूलों में मिड डे मील बनता है। तो भला ये बच्चे व्हाट्स अप या अन्य किसी एप पर आॅन लाइन क्लास कैसे कर सकते हैं? पर आपने मेरी बात न समझकर, यह कहा कि हम सरकारी शिक्षक काम न करने के बहाने तलाशते हैं। कुछ समस्याओं की यर्थाथता को भी समझना चाहिए। अब बताइये..... हो गई न समस्या खड़ी। मेरे कहने का यह अर्थ नही था। मैं तो बस उन बच्चों की भलाई के लिए कह रहा था। मुझे इस प्रकार की समस्या का अनुमान तक न था। आपसे अधिक विभागीय परिस्थितियों को तो हम ही समझ सकते हैं ना? और सौ में से यदि नौ-दस बच्चों के व्हाट्स अप नम्बर मिल भी गए तो बाकी के नब्बे बच्चों को कैसे पढ़ाएंगे? आपके सामने ही उन्हें फ़ोन किया है। वे किस प्रकार भद्दी भाषा का प्रयोग करते हैं। अभिभावक साफ़-साफ़ मना कर रहे हैं कि यह समय गेहूँ की कटाई का है। गेहूँ काटें या बच्चों को पढ़ाई पर बैठाएं? और तो और टीचर का नम्बर क्या मिल गया, दिन-रात कितने फ़ोन करने शुरू कर दिए! न कोई समय देखता है और न कोई मर्यादा है। कोई उल्टी-सीधी बात शुरू कर देता है। कोई सिर्फ़ इसलिए फ़ोन कर रहा कि आपसे बात करने का मन है। क्या हमारी कोई व्यक्तिगत् जिंदगी या परिवार नही है? क्या हमारी सुरक्षा सुनिश्चित नही की जानी चाहिए? क्या अध्यापक होने के नाते हमें शिक्षक-सम्मान का अधिकार नही है? उन दस बच्चों के साथ बनाए व्हाट्स अप ग्रुप में जिस भद्दी गाली से हमें सम्बोधित किया गया है, उसने तो मेरी आत्मा को ही लज्जित कर दिया। उन शब्दों का स्वयं के लिए प्रयोग मेरे आत्मसम्मान के लिए असहनीय है। हो सकता है कि किसी में गाली सहने की शक्ति हो, परन्तु मेरे लिए अत्यधिक कष्टदायी है। मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है, मानो किसी ने मेरा गला दबा रखा हो। मैं ग्रुप में बच्चों को पढ़ा रही थी। मैं क्या पढ़ा रही हूँ एक शिक्षिका होने के नाते मैं अच्छी तरह से जानती हूँ। वे जो पढ़े भी नही और इस प्रकार की अभद्र भाषा का प्रयोग कर रहे हैं, वे मुझे ‘ज्ञान’ बाँट रहे हैं कि मैंने क्या काम दे दिया? अलबत्ता तो वे समझ ही नही पाए कि यह ग्रुप बच्चों की पढ़ाई के लिए बनाया गया है। एक भी दिन उस बच्चे ने मेरे द्वारा दिया गया कोई भी कार्य कर ग्रुप में नही भेजा। पर हाँ, उसके घर में से जिसका वह व्हाट्स अप नम्बर था, उसने इतनी गंदी गाली अवश्य भेजी। क्या अब भी आप हमें नकारा कहेंगे? सिर्फ़ इसलिए कि हम पर ‘सरकारी’ होने का टैग है। ऐसा नही है। तुम ग़लत समझ रही हो। मैं जानता हूँ कि सरकारी संस्थाएँ भले ही बहुत गालियाँ खाती हैं, परन्तु देश की व्यवस्था की रीढ भी ये ही हैं। इन संस्थाओं की जवाबदेही होती है। कोई भी जिम्मेदारी वाला कार्य इन्हीं संस्थाओं को भरोसे के साथ दिया जाता है। ये सरकारी संस्थाएं ही हैं, जो किसी भी कार्य को मना करने के अधिकार से वंचित होती हैं। यदि इन्हें चाँद तोड़ने के लिए कहा जाए, तो भी एक सरकारी कर्मचारी तोड़ने के लिए निकल पड़ता है। क्योंकि न कहने का अधिकार तो उसके पास है ही नही। देश के सभी ‘बड़े’ कार्य चुनाव, जनगणना, बालगणना इत्यादि और गालियाँ खाना सभी तो सरकारी कर्मचारी को ही करने होते हैं। यदि देश में कोई महामारी फैल जाए तो प्राइवेट डाॅक्टर्स दुबक कर बैठ जाते हंै, सभी तो नही परन्तु अधिकतर। लेकिन सरकारी डाॅक्टर फ्रंट पर खड़ा होता है। इसी प्रकार सभी विभागों में यही हाल है। तो तुम भी परेशान मत होओ। तुम सरकारी हो। काम भी करो, और गालियाँ भी खाओ। आदत डाल लो। आप मज़ाक बना रहे हैं मेरा। नही, समझा रहा हूँ तुम्हें। मात्र एक बच्चे के अभिभावक द्वारा किया गया अभद्र व्यवहार तुम्हारा आत्मविश्वास नही तोड़ सकता। इस बच्चे के अभिभावक की विभाग में शिकायत करो। और बाकी बच्चों के प्रति अपने दायित्वों का निर्वहन करो। न घबराओ, न परेशान होओ। बस अपना कर्म करो। थैंक्यू। मैं आपकी बात समझ गई। आप सही कह रहे हैं। मैं ज़रा बच्चों को आज का काम दे दूँ।

रविवार, 3 मई 2020

मानव मानवता को वर ले


हमने मिलकर थाल बजाई,
शंख बजा फिर ज्योति जगाई,
मंत्र जाप मन शक्ति अाई,
योग ध्यान आ करें सफाई,
जंग जीत हम छा जाएंगे,
विश्व गुरु हम कहलाएंगे,
आत्मशक्ति अवलोकन करके,
एकाकी ज्यों गुफा में रह के,
जन मन का कल्याण करेंगे
द्वेष नहीं हम कहीं रखेंगे
प्रेम से सब को समझाएंगे
मानव मानवता को वर ले
पूजा प्रकृति की जी भर कर ले
मां है फिर गोदी में लेगी
पीड़ा तेरी सब हर लेगी
हाथ जोड़ बस करे नमन तू
पाप बहुत कुछ दूर रहे तू
जल जीवन कल निर्मल होगा
मन तेरा भी पावन होगा
मां फिर गले लगा लेगी जब
खेल खेलना रमना बहुविधि
सब को गले लगाना फिर तुम
हंसना खूब ठ ठा ना जग तुम।

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
UTTAR PRADESH
10APRIL2020
7.11 AM

सोमवार, 9 मार्च 2020



नफरत की ज्वाला में,
घी का हवन देते,
कुछ लोग,
तस्वीरें बनाते,
आविष्कार करते,
आपस में उलझे हैं,
आग उसने लगाई,
इस ने लगाई,
खुद जली,
बतिया रहे,
बची हुई सांसों को,
सुलगते अंगारों से,
जहरीले धुएं में,
हवा देते,
घुट घुट के जीते हुए,
छोड़ कहीं जा रहे,
हरी भरी तस्वीरें
काली विकराल हुई
मूरत की सूरत में
आंखें बस लाल हुईं
काश कुछ बौछारें,
शीतलता की आएं,
दहकती इन लपटों की
अग्नि बुझाएं,
धुंध धुएं को हटाएं,
पथराई आंखों में आंसू तो आएं
स्नेह की , दया की ,
भूख की प्यास की ,
जीवन के चाह की,
चमक तो जगाएं
सुरेंद्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर' 5