शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

भाई राजीव दीक्षित के बाद स्वदेशी आंदोलन की दिशा-नौ दिन चले अढ़ाई कोस



मित्रों इस पोस्ट पर कुछ भी लिखने से पहले मै एक बात पहले से स्पष्ट कर देना चाहता हूँ की मै भाई राजीव दीक्षित का एक प्रबल समर्थक हूँ एवं उनके आदर्शो के अनुसार कार्य  करने की कोशिश करता हूँ। इस पोस्ट का उद्देश्य किसी भी प्रकार से भी भाई राजीव दीक्षित या किसी सम्बद्ध पर प्रश्न उठाना नहीं मगर एक स्वाभाविक समर्थक होने के कारण अपने प्रश्न और विचार आज राजीव भाई को श्रद्धांजलि  देने के बाद प्रकट करना चाहता हूँ। राजीव भाई के विषय मेरी पिछली पोस्ट कृपया यहाँ पढ़ें। 
राजीव दीक्षित किसी परिचय का मोहताज शब्द नहीं है जैसा की पहले भी कई अवसरो पर मै कह चुका हूँ की आधुनिक भारत मे यदि दो महापुरुषों की बात करू तो राजीव भाई और विवेकानंद  को काफी  ही पाता हूँ।राजीव भाई का आंदोलन आजाद इंडिया मे था और विवेकानंद का गुलाम भारत मे ॥मगर उद्देश्य दोनों ही समय,हिंदुस्थान मर चुके स्वाभिमान को जगाना था. 
राजीव भाई के दुखद निधन के बाद जो अपूर्णीय क्षति हुई उस रिक्त स्थान को भर पाना असंभव सा प्रतीत हो रहा था । मगर मुझे और मेरे जैसे कई राजीव भाई के  अनुयायियों को ये जान कर बहुत ही संतुष्टि हुई की राजीव भाई के आंदोलन की अगली कड़ी स्वदेशी भारत पीठम के रूप मे भाई प्रदीप दीक्षित जी आगे बढ़ा रहे हैं। इसी सन्दर्भ में  पिछले साल भाई प्रदीप दीक्षित जी का व्याख्यान ६ नवम्बर 2011 (रविवार) को नई दिल्ली में जनकपुरी स्थित आर्य समाज मंदिर में भाई अरुण अग्रवालजी के देखरेख एवं प्रबंधन  में संपन्न हुआ था । उसके बाद हम कई राज्यों से समर्पित कार्यकर्ता वर्धा पहुचे और विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम वहाँ आयोजित हुए। 
मगर धीरे धीरे जैसे जैसे समय  बीतता गया ऐसा  अनुभव हुआ की कई समर्पित कार्यकर्ता धीरे धीरे इस आंदोलन के प्रति उदासीन होते गए उनके अपने तर्क थे । इस बीच हालाँकि आंदोलन से जुडने वाले लोगो की भी कमी नहीं थी । कुछ मुद्दो पर व्यक्तिगत रूप से मै भी व्यक्तिगत रूप से सहमत नहीं था मगर यदि एक बहुत बड़ा जनजागरण का अभियान चल रहा हो तो किसी व्यक्ति विशेष की असहमति ज्यादा महत्त्व नहीं रखती। मगर पिछले कुछ दिनो मे धरताल पर कार्य करते समय एवं सामाजिक  संचार के साधनो के माध्यम से मुझे ऐसा प्रतीत हुआ की एक हम सभी राजीव भाई के समर्थको के साथ साथ एक ऐसा समूह समाज मे तैयार हो रहा है जो अब तक राजीव भाई के विरोध मे आ चुका है ।शायद  आने वाले दिनो मे ये ज्यादा मुखर हो । दुख की बाद ये है ये एक बड़ा वर्ग सिर्फ राजीव भाई के आंदोलन के प्रबन्धको की नाकामी के कारण उनका विरोध कर रहा है ॥ 
इनमे से कुछ लोग कभी राजीव दीक्षित के समर्थक या कुछ लोग तटस्थ लोग हैं  ॥मैंने अपने अनुभवों और सर्वेक्षण के आधार पर कुछ बाते पायी है जो इस ब्लॉग के माध्यम से सामने रख रहा हूँ ॥ इससे आप सहमत भी हो सकते हैं या असहमत क्यूकी ये मेरा अपने स्तर से किया गया व्यक्तिगत  सर्वेक्षण है । यदि कटु लगे तो क्षमा प्रार्थी हूँ । ये सारे सर्वेक्षण उत्तर भारत के है ।  

1 ऐसा कई कार्यकर्ताओं  को लग रहा है की राजीव भाई का आंदोलन सिर्फ सीडी बेचने का धंधा बन के रह गया है । किसी सार्वजनिक मुद्दे पर इसकी उपस्थिती न के बराबर या स्टॉल लगाने तक होती है । आन्दोलन के लोग भावनाओ को बेचने से आगे कुछ नहीं कर रहे है । 

ज़्यादातर आंदोलन शहरो के इर्द गिर्द सीमित है (शायद महाराष्ट्र इसका अपवाद हो)। यदि ग्रामीण क्षेत्रों मे कुछ कार्य हो रहा है तो फिर प्रबंधन की कमी के कारण आस पास के लोगो तक इसकी खबर नहीं पहुच पाती है.

3 आंदोलन के कुछ क्षेत्रों के कर्णधार  कम से कम समय मे ज्यादा से ज्यादा प्रसिद्ध होना चाहते हैं,या दूसरे शब्दों मे कह ले तो हर दूसरा व्यक्ति अपने आप को राजीव भाई ही समझ रहा है उनके जैसा बनने का प्रयास करने मे कोई बुराई नहीं मगर उन तथाकथित लोगो को ये सर्वदा ध्यान रखना होगा की  "राजीव दीक्षित " के लिए समाज का हित सर्वोपरि था । 

4  पिछले साल के कार्यक्रम मे Paid Poets का विचार काफी लोगो को निरर्थक लगा॥ कई लोगो को ऐसा प्रतीत हुआ की कई तथाकथित स्थापित कवि लोग राजीव भाई को श्रद्धांजलि देने की बजाय अच्छी ख़ासी कमाई  और प्रचार के उद्देश्य से वर्धा पधारे थे । जबकि सुदूर राज्यों से आने वालों का उद्देश्य कुछ और था । 

5 भाई राजीव दीक्षित के आंदोलन को आगे बढ़ाने मे भारत स्वाभिमान का एक विशेष योगदान था क्यूकी भारत स्वाभिमान मे गाँव गाँव तक फैला हुआ संगठन है मगर स्वदेशी भारत पीठम और भारत स्वाभिमान के कार्यकर्ताओं के बीच पिछले साल वर्धा मे 30 नवम्बर को स्वदेशी मेले के दौरान पोस्टर लगाने को ले कर हुए विवाद ने ये स्पष्ट कर दिया की इन दोनों संगठनो के बीच सब कुछ अच्छा नहीं है । 
इस विषय पर मैंने भारत स्वाभिमान के कुछ  वरिष्ठ लोगो से बात की उनके अनुसार कुछ एक लोग जो उस समय स्वदेशी भारत पीठम वर्धा मे थेवो भारत स्वाभिमान हरिद्वार कार्यालय से निष्कासित/स्वेछा से चले गए लोग थे,अतः उन लोगो का स्वामी रामदेव के संबंध मे विचार नकारात्मक था जो गाहे बेगाहे संचार और सामाजिक मीडिया के साधनो द्वारा  सामने भी आता था। इसके कारण भी स्वामी रामदेव  के भारत स्वाभिमान ने  स्वदेशी भारत पीठम से दूरी बना ली । हलाकी  कौन सही  है ये एक अलग विषय था। इस विषय मे वर्धा कार्यालय तक कई लोगो ने अपने विचार पहुचाए मगर कार्यवाही कुछ खास नहीं हुई। मुझे नहीं लगता की स्वामी रामदेव इस साल वर्धा आएंगे यदि आए भी तो ये सिर्फ राजीव भाई को श्रद्धांजलि प्रेषण और भाई प्रदीप दीक्षित जी से व्यक्तिगत संबंधो के कारण होगा। 

6 बाबा रामदेव और स्वदेशी भारत पीठम के विचार लगभग एक ही है अतः स्वाभाविक है की जब तक किसी एक एक संगठन ने "विचारों का व्यवसायीकरण" नहीं किया है तब तक सब सही रहेगा॥ स्वामी रामदेव का संगठन पहले से ही स्वदेशी उत्पादो के प्रचार प्रसार एवं व्यवसाय मे है अतः स्वदेशी भारत पीठम जब भी आंशिक या पूर्णतया कोई व्यावसायिक परियोजना शुरू करता है, भारत स्वाभिमान इसे अपने स्वदेशी व्यापार मे एक अन्य साझीदार/प्रतिस्पर्धी की तरह देखेगाअतः धरातल पर सहयोग संभव नहीं है ।

अब एक ऐसा विषय जो इन सब से इतर है । राजीव भाई के कुछ व्याख्यानों पर जो समाज मे प्रसारित किए जा रहे हैं उस पर कुछ लोगो को आपत्ति है। जैसा की सभी जानते हैं की राजीव भाई के शोध कार्यों मे उनकी टीम का भी एक महत्त्वपूर्ण योगदान होता था जो उनके दिशानिर्देशों पर काम करती थी। ये एक स्वाभाविक सी बात है की कुछ तथ्यों और आंकड़ो मे कुछ बाते ऐसी हो जिससे सहमत न हुआ जा सके । जाने अनजाने उन तथ्यों को प्रसारित किया जा रहा है जिससे की एक विचारधारा के लोगो को समस्या और कुछ का महिमामंडन होता है । अब राजीव भाई तो इन प्रश्नो का उत्तर देने के लिए हैं नहीं और उनके आंदोलन के तथाकथित प्रबन्धक इन आपतियों पर कोई संग्यान नहीं लेते। "इस्कॉन मंदिर" ,"मंगल पांडे" "महात्मा गांधी" ,"वीर सावरकर" ,"गौ हत्या का कारण अंग्रेज़??जैसे धर्म और इतिहास के अनेक मुद्दे  संवेदनशील मुद्दो पर इस आंदोलन के विचार स्पष्ट नजर नहीं आते । न ही कोई ऐसा माध्यम है जहाँ से इन बातों का स्पष्टीकरण मिल सके । 
अतः कई लोग सिर्फ कुछ एक विवादित मुद्दों के स्पष्टीकरण न मिलने के कारण या तो उदासीन या विरोध मे आ गए है । इससे नुकसान ये है कुछ 1-2% बातों  को गलत दिखाकर वो सारे शोधकार्यों की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं। 

राजीव भाई का पार्थिव शरीर 
8 राजीव भाई की आकस्मिक मृत्यु और उसपर उठते प्रश्नो पर आज तक कोई स्पष्ट विचार नहीं आया जिससे इस मुद्दे पर नित्य नयी नयी कहानियाँ बनाई जाती रहती है । आंदोलन से जुड़े कुछ लोग ऐसे भी है जो आलोचना करने वालों पर व्यक्तिगत हो कर और आक्रामक हो कर प्रतिक्रिया देने लगते है जबकि उन्हे धैर्यपूर्वक ये समझना चाहिए की आलोचनाओ से सुधार और परिष्करण की नीव पड़ती है। 

ये देखकर अत्यंत प्रसन्नता होती है की राजीव भाई के आंदोलन से लाखो लोग जुड़ रहे है मगर ये एक कटु सत्य है की प्रबंधन की कमी के कारण उसी प्रकार कुछ लोग आंदोलन से दूर भी होते जा रहे हैं। उन्हे स्थायी रूप से जोड़े रखने के लिए कोई योजना नहीं दिखाई देती।विचारो और आंदोलन की दशा और दिशा का संवर्धन पिछले सालो मे हुआ है उससे बहुत जायदा संतुष्टि  समर्थको को नहीं हुई होगी। 

इन सारे विरोधाभाषों के बाद राजीव भाई का एक स्वाभाविक समर्थक  होने के कारण  अपने सभी मित्रों को  इस आंदोलन से जुडने का अनुरोध करता हूँ और ऐसा विश्वास है की  भाई प्रदीप जी के नेतृत्व मे ये आंदोलन सफल होगा और राजीव भाई की विचारधारा का क्रियान्वयन वास्तविकता के धरातल पर सक्रिय रूप से आने वाले वर्षों मे दिख पाए।

राजीव भाई जी को उनके जन्मदिवस एवं द्वितीय पुण्यतिथि पर सादर नमन एवं श्रद्धांजलि.

मंगलवार, 27 नवंबर 2012

जैव-विकास: दसावतार के रूप में (Evolution in form of Dasaavatar of Lord Vishnu)

"बदलाव एक मात्र ऐसी चीज है जो कभी नहीं बदलती"
-राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी 

      
हम बचपन से विज्ञान का एक प्रसिद्ध सिद्धांत पढ़ते आये हैं- ऊर्जा संरक्षण का नियम (Law of Energy conservation)
''ऊर्जा (Energy) न तो उत्पन्न की जा सकती है न ही नष्ट की जा सकती है, ये केवल एक निकाय(System) से दूसरे निकाय में स्थानांतरित होती है  और एक रूप से दूसरे रूप में बदलती है। ब्रह्माण्ड की कुल ऊर्जा नियत और संरक्षित रहती है।''

बिलकुल ऐसी ही बात भगवत गीता में भी लिखी है :
''आत्मा न तो जन्म लेती है न मरती है , ये केवल एक शरीर से दूसरे में स्थानांतरित में होती है। सभी आत्माएं एक ही परमात्मा से निकलती है और फिर उसी में मिल जाती हैं।''

गीता के अनुसार एक आत्मा का परमात्मा से अलग होकर शरीर धारण करने से जीवों का जन्म होता। वो जीव अपने जीवन के सभी जैविक कार्य करते हुए अंत में फिर से उसी परमात्मा में मिल जाता है। उसमें से कुछ जीव ऐसे होते हैं जो जीवन-विकास की प्रक्रिया को एक नयी सकारात्मक दिशा देते हैं ,इन जीवों को कहा जाता है "अवतार".

प्रजातियों का उद्भव (Origin of Species):

भगवान् विष्णु के प्रसिद्ध 10 अवतारों की बात करने से पहले मैं एक महान वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन की बात करना चाहुँगा। डार्विन ने अपनी एक किताब Origin of Species के माध्यम से पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया था। इसाई और इस्लामिक धर्मावलम्बियों ने डार्विन का घोर विरोध किया।
लेकिन फिर भी डार्विन के सिद्धांत के द्वारा हम अपने ग्रह पे हुए जैव-विकास(Evolution) को पुरे प्रामाणिकता  के साथ समझ सकते हैं।

डार्विन की यह क्रांतिकारी खोज इतनी आसानी से नहीं हुयी। अपनी खोज की शुरुवात डार्विन ने पूरी दुनिया में यात्रा करके वहां पाई जाने वाली प्रजातियों के अध्ययन से की।

डार्विन ने 12 ऐसे द्वीपों पे यात्रा की जो पूरी तरह से एक दुसरे से समुद्र के द्वारा से विलगित थे।



Darwin's Voyage


 द्वीपों पर रहने वाली प्रजातियों का अध्ययन करके डार्विन को कितना आश्चर्य हुआ ये उनके बोले हुए शब्दों से साफ़ व्यक्त होता है :
"मुझे ये जान के आश्चर्य हुआ कि अमेरिका , अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया के द्वीपों पे विभिन्न जीवों की  इतनी प्रजातियाँ पायी जाती हैं और ये द्वीप एक दुसरे से बिलकुल विलगित होने के बावजूद इन पे पायी जाने वाली प्रजातियों में मूलभूत समानताएं इस प्रकार हैं जैसे ये सभी किसी एक ही पूर्वज से विकसित हुयी हों "

A note from Darwin's Diary


डार्विन और उनके बाद के वैज्ञानिकों ने पृथ्वी पे पायी जाने वाली कुल 87 लाख यूकैरियोटिक प्रजातियों के पाए जाने का अनुमान लगाया है।
क्या इसे एक संयोग समझें या फिर हमारे ऋषियों का अद्भुद ज्ञान कि हमारे ग्रंथों के अनुसार पृथ्वी पे 84 लाख प्रजातियाँ पायी जाती हैं। ये आंकड़ा वैज्ञानिकों द्वारा प्रस्तावित आंकड़े के बहुत करीब हैं।



Different species are an evidence of Evolution


डार्विन के अनुसार जैव-विकास का क्रम(Order of Evolution according to Darwin):

डार्विन अपने लम्बे अनुसन्धान के बाद जिस नतीजे पे पहुचे वो संक्षेप में इस तरह समझा जा सकता है:
1.Chordates (Fish):डार्विन के अनुसार पृथ्वी पे सर्वप्रथम जलीय जीव(Aquatic Organism) आये। समुद्रों में जलीय जीव, सरल से जटिल होने शुरू हुए
2.Tetrapodes (Amphibian with legs):उसके बाद ऐसे जीवों का विकास हुआ जो पानी और जमीन दोनों जगह पे रहने के लिए अनुकूलित थे। इन जीवों को उभयचरी(Amphibian) कहा जाता है
3.Mammals:विकास का क्रम आगे बड़ा और स्तनधारी(Mammalian) जानवरों का विकास हुआ,जिनकी वजह से दैत्याकार डाइनासोर का अंत हुआ
4.Primates (to Hominidae):इन स्तनधारी जानवरों में धीरे धीरे आधुनिक मानव के लक्षण दिखने लगे थे
5.Hominidae before Homo Erectus (more like humans but much shorter):फिर पेड़ों पे रहने वाले , शारीरिक रूप से कम विकसित पर मानसिक रूप से बुद्धिमान जीवों का निर्माण हुआ
6.Homo Erectus (to Homo Sapiens):इसके बाद बने आदि मानव, औजारों और हथियारों का इस्तेमाल करना सीख गए थे
7.Homo Sapiens:और फिर पूर्ण विकसित आधुनिक मानवों का आगमन हुआ।



Stages of Evolution



सिर्फ सात बिन्दुओं में लिखी विकास की ये प्रक्रिया वास्तव में करोणों वर्षों में पूरी हुयी।जिसमें डाइनासोर आना और लुप्त हो जाना भी सम्मिलित है।


दसावतार के रूप में जैव-विकास( Evolution in the form of Dashavataar)

पिछली पोस्ट में हमने ये जाना था कि विष्णु के तीसरे रूप यानि क्षीरोदक शई विष्णु जो कि क्षीर सागर में रहते हैं उनसे विभिन्न अवतारों का जन्म होता है। यूँ तो पृथ्वी पे जन्म लेने वाला प्रत्येक जीव उन्ही का रूप है किन्तु उनमें से 24 जीवों को अवतार की संज्ञा दी गयी है।
उन 24 अवतारों में से 10 को सर्वाधिक महिमा मंडित किया गया।
विष्णु के ये 10 अवतार क्रम से इस प्रकार हैं:
1.मत्स्य अवतार (The Fish)
2.कुरमा अवतार (The Turtle)
3.वराह अवतार (The First Mammal)
4.नरसिंह अवतार (Half Man-Half Animal)
5.वामन अवतार (The Dwarf)
6.परशुराम अवतार (Man with Iron Weapon)
7.राम अवतार (Man who tought the lesson of Dicipline)
8.कृष्ण अवतार (Man who tought the lesson of Management)
9.बुद्ध अवतार (Man who tought the lesson of Peace)
10.कल्कि अवतार (Half Man-Half Machine)

विष्णु के शुरू के 5 अवतार जैव-विकास(Biological-Evolution) को दर्शाते हैं और बाद के 5 अवतार सभ्यता-विकास(Civilization-Evolutin) को दर्शाते हैं।

1.मत्स्य अवतार (The Fish):

विष्णु का पहला अवतार एक जलीय जीव है।हालाँकि मछली से पहले और भी बहुत सारे निम्न स्तरीय जलीय जीव आये किन्तु क्रन्तिकारी परिवर्तन लाने वाला मत्स्य बहुत ही महत्वपूर्ण है।शायद इसी वजह से इसे अवतार की संज्ञा मिली।



Matsya Avtar: Begining of life in water

 

2.कुरमा अवतार (The Turtle):

मछली के बाद अगला महत्वपूर्ण जीव जो जल और जमीन दोनों जगह रहने के लिए अनुकूलित है। जीव विज्ञान में इन जीवों को उभयचरी (Amphibian) कहते हैं।
विष्णु का दूसरा अवतार कुर्म एक Amphibian यानि  एक कछुआ है। कछुए को इतना महत्व मिलने का कारण यही है कि यहीं से जमीन पे रहने वाले जीवों का पृथ्वी पे आगमन हुआ।

Kurma Avtar: Amphibian,Adapted to live in water as well as on land

3.वराह अवतार (The First Mammal):

थल पे रहने वाले जीवों में जब विकास होना शुरू हुआ तब उच्च स्तरीय जीवों के लक्षण आने शुरू हो गए।तभी जन्म हुआ विष्णु के तीसरे अवतार वराह का, जो की एक स्तनधारी जानवर(Mammalian Animal) है। वराह अवतार ने दैत्याकार असुर का विनाश करके भूदेवी (Land) की रक्षा की थी।




Varah Avtar: Mammal who saved the Land from Giant Dinosaur


4.नरसिंह अवतार (Half Man-Half Animal):

स्तनधारी जंतुओं में अब मानव के लक्षण प्रकट होने शुरू हो गए। नरसिंह अवतार एक ऐसे प्राणी हैं जिनमें आधे लक्षण पशु के और आधे लक्षण मानव के हैं।


Narsimha Avtar: Half man Half Lion

5.वामन अवतार(The Dwarf):

विष्णु का पांचवा अवतार वामन , शारीरिक रूप से अल्प-विकसित है लेकिन अत्यंत बुद्धिमान है।
इसकी तुलना आप आदि-मानव से कर सकते हैं। Biology बताती है कि अगर आदि-मानव इतने बुद्धिमान ना होते आज हम इतने विकसित मानव नहीं बन पाते।


Vaman Avtar: A wise Dwarf

6.परशुराम अवतार (Man with Iron Weapon):

पृथ्वी पे मानवों का आगमन हो गया। विष्णु के छठे अवतार परशुराम, गुफाओं और जंगलों में रहते थे। और उनके हाथ में एक लोहे का हथियार 'परशु' था।
इस से ये साफ़ पता चलता है कि  जैव-विकास के बाद जब सभ्यता का विकास होना शुरू हुआ तब मानव औजारों और हथियारों का इस्तेमाल करने लगा।
गुफा-जंगल में रहते हुए हथियार धारण किये हुए विष्णु के परशुराम अवतार  इसी लिए महत्वपूर्ण हैं।


Parshuram Avtar: Angry man with Iron weapon 'Parshu'

7.राम अवतार (Man who tought the lesson of Dicipline):

राम से हम सब अच्छी तरह से वाकिफ हैं। उनके जीवन पे हर युग में कई किताबें लिखी गयी हैं।
साधारण मानव के रूप में जन्म लेकर नियम और अनुशासन का पालन करने में अपना जीवन लगा  देने वाले राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहते हैं।
राम से पहले आये अवतार शारीरिक और मानसिक रूप से तो विकसित हो गए थे लेकिन जीवन को कैसे जीना है , हमारे कर्तव्य क्या हैं और सभ्यता क्या होती है , ये बातें राम ने सिखाई।


Ram Avtar: The Perfect man

8.कृष्ण अवतार (Man who tought the lesson of Management):

राम की ही तरह कृष्ण भी विश्व भर में प्रसिद्ध हैं। गीनीज बुक में दर्ज दुनिया की सबसे लम्बी कविता 'महाभारत' के नायक हैं कृष्ण। दुनिया का कोई भी व्यक्ति जो भारतीय दर्शन के बारे में कुछ भी जानता है वो कृष्ण को जरुर जानता है।
रामावतार के साथ मानव ने ये तो सिख लिया था कि कर्तव्यों का पालन करना है लेकिन कर्तव्य पालन के मार्ग में आने वाली दुविधाओं का समाधान कहाँ मिले? किसे हम अपना शत्रु समझें और किसे मित्र? अपने और सम्पूर्ण मानवता के अस्तित्व को बचाने के लिए किस धर्म का पालन करें?, इन सब सवालों के समाधान विष्णु के अवतार कृष्ण ने दिए। महाभारत युद्ध के समय अर्जुन को दिया गया उपदेश 'श्रीमद-भगवत-गीता' भारतीयों का सबसे पवित्र धर्म ग्रन्थ बना।
कृष्ण को विष्णु का सम्पूर्ण अवतार माना गया है इसलिए जब एक चित्रकार निराकार परमात्मा की कल्पना करता है तो उसे कृष्ण का ही रूप प्रदान करता है। गौरतलब है कि सर्वशक्तिमान विष्णु , बिग बैंग से पहले प्रकृति के रूप में मौजूद थे, बिग बैंग के समय हिरण्यगर्भ के रूप में थे और बिग बैंग के बाद परमाणु के रूप में मौजूद हैं।


Krishna Avtar: The complete incarnation

9.बुद्ध अवतार (Man who tought the lesson of Peace):

"अपने अस्तित्व को बचाने के लिए लड़ना पड़ेगा, खुद जिन्दा रहना है तो अपने शत्रु को मारना पड़ेगा"
अब तक इसी सिद्धांत का पालन किया जा रहा था।लेकिन मेरा मानना है कि मानवता के विकास में सबसे महान दिशा दिखाने वाले अवतार थे गौतम बुद्ध। बुद्ध ने इंसान को सही मायने में इंसान बनना सिखाया। बुद्ध द्वारा दिखाया गया अहिंसा और शांति का रास्ता आज पूरा विश्व अपनाता है। आज आप देखते हैं कि किसी की किसी से भी दुश्मनी हो, उस समस्या के समाधान के लिए बहस करते हैं, अदालत में जाते हैं, आन्दोलन करते हैं, अपनी बात को समझाने के लिए मीडिया का सहारा लेते हैं लेकिन हिंसा करने से बचते हैं। आज पूरी दुनिया के हर समाज, हर देश,हर मान्यता में हिंसा को गलत माना गया है(तालिबान को अपवाद समझें).


Buddha Avtar:The teacher of humenity

10.कल्कि अवतार (Half Man-Half Machine):

विष्णु के कल्कि अवतार का अब तक जन्म नहीं हुआ है। इसका जन्म कलियुग में ही भविष्य में होगा। कल्कि अवतार आधुनिक मशीनों से युक्त होगा, विद्युत् से भी तेज़ गति करने वाले वाहन पे सवार होगा और समय-यात्रा (Time-Travelling) उसके लिए असंभव नहीं होगी।
कल्कि के इस रूप का वर्णन सुन के आपको टर्मिनेटर मूवी के अर्नोल्ड की याद जरुर आ सकती है।




Kalki Avtar: The future man



विष्णु के इन 10 अवतारों के साथ तरह तरह की कहानियां जोड़ दी गयी। शायद इसी वजह से हम इसमें छिपे गहन वैज्ञानिक सिद्धांत को  देख नहीं पाए।लेकिन अगर हम इन क्रमिक 10 अवतारों की तुलना, डार्विन के बताये Evolution के क्रम से करें तो हम इस नतीजे पे पहुँचते हैं कि दोनों श्रृंखलाओं की एक एक कड़ियाँ सामान हैं।



Comparision: Evolution according to Darwin and according to Dashavtar
  

सृजन : ( Creation by Brahma )

मुझे ये जान के आश्चर्य होता है कि लोग विज्ञान को आध्यात्म से दूर ले जाने वाली चीज समझे हैं।मेरा मानना है विज्ञान  ही  हमें सही मायने में आध्यात्मिक होने की सीख देती है। परमाणु में इलेक्टोनों की अद्भुद गति को देख के ऐसा लगता है जैसे भगवान् शिव का तांडव नृत्य ब्रह्माण्ड के प्रत्येक कण में मौजूद है।"

-डॉ. ए पी जे अब्दुल कलाम( Wings of fire )
   
एक सवाल जो वैज्ञानिक जगत में बार बार उठता है कि किसी विद्वान् ने ये सृष्टि बनायी है या सृष्टि ने विद्वानों को बनाया है ?

ये सवाल बिलकुल मुर्गी और अंडे वाले सवाल की तरह है.
इस पोस्ट में प्राचीन ग्रंथों में वर्णित 'रचना प्रक्रिया Creation-Phenomenon'  का संक्षेप  में उल्लेख करने कि कोशिश कि गयी है और साथ ही साथ उनमें छिपे वैज्ञानिक तथ्यों  को भी सामने लाने की कोशिश की गयी है.
स्वामी विवेकानंद के अनुसार भारतीय दर्शन "विद्वान्" और "तत्व" दोनों विचारधाराओं के अलग चलते हुए "पुरुष" का वर्णन करता है. पुरुष -मतलब स्वयं जो विद्वता का द्योतक है .
यही आदि-पुरुष या मौलिक-जीव(Original Being)  भगवत पुराण के अनुसार है -सर्व शक्तिमान भगवान् विष्णु .

Adi-Purush: Supreme God Vishnu
सृष्टि निर्माण के लिए दो क्षेत्र (Realms) अस्तित्व में हैं - निर्गुण क्षेत्र (Spiritual Realm) और आकार क्षेत्र (Material Realm).
निर्गुण क्षेत्र (Spiritual Realm) सभी शुद्ध आत्माओं का निवास स्थल है जो कि वैकुण्ठ ग्रह पर रहती हैं.
आकार आत्माएं ( आपकी और मेरी तरह ) आकार क्षेत्र(Material Realm) के विभिन्न ब्रह्मांडों विभिन्न गैलेक्सियोंविभिन्न ग्रहों पर जन्म लेती हैं.
आकार क्षेत्र में भगवान् विष्णु के तीन रूप मौजूद हैं:
  1. श्री कारणओदक -शई महा विष्णु / नारायण
  2. श्री गर्भोदक-शई विष्णु / हिरण्यगर्भ
  3. श्री क्षीरोदक-शई विष्णु / परमात्मा
विष्णु का पहला रूप श्री कारणओदक-शई महा विष्णु हैं जो कि लौकिक जल (cosmic waterपर लेटे हुए हैं.'लौकिक जलया कारण-ओदक (Causal ocean) (जो सब चीजों का कारण हैं) - विष्णु के ही शरीर से निर्गत होता है और आकार क्षेत्र (Material Realm) का निचला आधा हिस्सा इसी से भरा होता है.

Shri Maha Vishnu, lying on the Causal Ocean generated from His own Self
इस समय श्री महा विष्णु आकार निर्माण एक मात्र  की जीवित इकाई हैं.विष्णु के इस रूप को "काल-स्वभाव:" कहा गया है यानी टाइम- स्पेस की नींव (Foundation of time-space Continuum). इन्होने Quantum Physics का आधार बनाया जो सभी दुनिया में हर जगह (at Sub-Atomic as well as Super-Galactic level ) मौजूद है .
भगवान् के इस पहले रूप के साथ की आकार क्षेत्र में सृष्टि रचना की शुरुवात होती है.
Material nature की इस प्रथम अव्यक्त अवस्था को 'प्रधान' कहा जाता था है.
इस चरण तक कोई शब्दकोई भाव नहीं थेन ही कोई मन न ही कोई तत्व थान ही जीवन न ही बुद्धिन देवता न राक्षसन ख़ुशी न दुख. इस समय तक न पृथ्वी थी न आकाश न जल न वायु न अग्निजीवन के कोई लक्षण जैसे जागनासोना कुछ भी नही था .
इसीलिए ये प्रधान’  Material Nature का मूल पदार्थ (Original Substance) था जो कि आगे की रचना का आधार बना.
'प्रधानकी तुलना हाल ही खोजे गए Higgs Boson या God Particle से की जा सकती है. 
विज्ञान की दृष्टि में Higgs Boson ही मूल पदार्थ है जिस से सभी चीजों का निर्माण हुआ है. 


God Particle-Higgs Boson: The original matter

 

आकार क्षेत्र में रचना की शुरुवात :

यहाँ सृष्टि निर्माण के प्रकिया को विभिन्न चरणों में वर्गीकृत किया गया है जिन्हें सर्ग कहते हैं .
1. प्रथम सर्ग:
श्री महा विष्णु कि इच्छा के कारण 3 गुणों (सत्वतमस और रजस) की साम्यावस्था में विक्षोभ उत्पन्न हुआ और इसकी वजह से एक अति सूक्ष्म पदार्थ (subtle imperceptible ) 'महत तत्वका निर्माण हुआ.

इस  अति सूक्ष्म पदार्थ को हम अपनी भौतिक इन्द्रियों से नहीं देख सकते और इसी महत तत्व से बुद्धि (Intellegence) के साथ साथ अहम् (Ego) का निर्माण हुआ.
यानी यहाँ पे एक सवाल का जवाब मिल जाता है. पुरुष ने ही Subtle Matter और Intelligence दोनों का निर्माण किया है और आगे चल कर इसी से 'मनका निर्माण होता है.

2.द्वितीय सर्ग:
इस दूसरे चरण में तत्वों का निर्माण होता है.जिन्हें पञ्च महाभूत कहते हैं.इन्ही के विभिन्न combinations से अनगिनत वस्तुओं का निर्माण होता है.

  1. निर्माण के लिए पर्याप्त space (अन्तरिक्ष)
  2. ठोस (थल)
  3. द्रव (जल)
  4. गैस (वायु)
  5. सबसे महत्वपूर्ण: 'ऊष्मा' (अग्नि)
हालांकि वैज्ञानिक आविष्कार ने सृष्टि निर्माण के क्षेत्र में बहुत प्रगति की है लेकिन मूल कण Higgs  Boson  की खोज 2011 में हो पाना इस बात का सूचक है की ऐसे असंख्य तथ्य हैं जो अभी तक विज्ञान की दृष्टि में नहीं आये हैं. Higgs Boson से ही अन्य subatomic particles जैसे प्रोटोनन्यूट्रॉन और इलेक्ट्रान का निर्माण हुआ है . यहाँ तक की क्वार्क कण भी मूल नहीं हैं वे भी Higgs  Boson  से बने हुए हैं.

यानी प्रधान से महत तत्व का बनना और फिर महत तत्व से पञ्च महा भूत का बनाना वैज्ञानिक रूप से पुष्ट होता है.
पञ्च महा भूत और कुछ नहीं बल्कि द्रव्य-ऊर्जा मॉडल (Mass -Energy  model ) है.
अन्तरिक्ष(1) में उपस्थित पदार्थ(Mass) 'ठोस(2), द्रव(3) और गैस(4)' और ऊष्मा(Energy )(5).





Comparision:Mass-Energy Model and Panch Mahabhut

3. तृतीय सर्ग:
तृतीय सर्ग में दसेंद्रियों (10 Organs) का निर्माण होता है.
जिनमें से ज्ञानेन्द्रियाँ ( sensory organs ) और कर्मेन्द्रियाँ (organs of  action) कहलाती हैं.
ज्ञानेन्द्रियाँ : दृष्टिश्रवण ,गंध स्वाद और स्पर्श.
कर्मेन्द्रियाँ : मुख हाथ जनदगुदा और पैर.
निर्माण के इन तीन चरणों को सामूहिक रूप से प्रकृति सर्ग’ कहा जाता है है.
ये निर्माण ब्रह्मा के द्वारा नही हुया है बल्कि भगवान की Natural Energy की वजह से ये सब अस्तित्व में आया जिसे प्रकृति कहते हैं.


जैव विकास की प्रक्रिया का अध्ययन करने पे आपको पता चलेगा की दुनिया में आये शुरुवाती जीवों में सभी १० अंग नहीं थे. लेकिन जैसे जैसे विकास का प्रक्रम आगे बढ़ा एक के बाद एक इन्द्रियों का विकास होना शुरू हुआ. और आज जब हम सबसे विकसित प्रजाति को देखते हैं तो हम पाते हैं कि इनमें ये सभी १० इन्द्रियाँ पूर्ण विकसित रूप में हैं.
इसका अर्थ ये ही है इन सभी इन्द्रियों का विकास पहले से ही योजनाबद्ध था. प्रकृति में ये सारी इन्द्रियाँ मौजूद थी पर शुरूआती जीवो में विकसित नहीं हुयी थीं.

हमारे ब्रह्माण्ड का निर्माण :

सभी आधार भूत संरचनाओं के बाद हमारे ब्रह्माण्ड और अन्य ब्रह्माण्ड का निर्माण शुरू हुआ.
4. चतुर्थ सर्ग:
महा विष्णु के लौकिक शारीर (Cosmic-Body) पर मौजूद असंख्य छिद्रों से अनेक ब्रह्माण्ड निकले.
हिरन्यगर्भ नाम के एक केंद्र से संपूर्ण ब्रह्माण्ड के निकलने की इस घटना को विज्ञान में बिग बैंग कहा गया है।
भगवान् फिर अपने दूसरे रूप में (श्री गर्भोदक-शई विष्णु) प्रत्येक अंडाकार ब्रह्माण्ड में प्रवेश करते हैं.
विष्णु के इस दूसरे रूप में वे के बहुत बड़े सांप 'अनंत' पर  लेटे  हुए हैं. अनंत अपने अपने ब्रह्माण्ड का संरक्षक है.
विष्णु के इस रूप को हिरन्यगर्भ (Born-of-The-Golden-Egg) भी कहते हैं क्योंकि वे ब्रह्म अंड (Universal Egg) में आकार लेते हैं.



Each Universe emerging from Maha-Vishnu contains a Garbhodak-shayi Vishnu

1000 महा युग के बाद में भगवान के नाभि से एक कमल की कलि निकलती है जिसमे से जन्म होता है 'ब्रह्माका.
'ब्रह्मा' : प्रत्येक ब्रह्मांड की पहली अमर इकाई ( Mortal Being ).

Shri Garbhodakshayi Vishnu becomes visible to Lord Brahma 
एक नवजात शिशु की तरह ब्रह्मा हर चीज से अनजान थे. उन्होंने अपने मुख  से सबसे पहला शब्द बोला 'ऊं' .उन्हें अपने होने का कारण भी नहीं पता था .अपने चारों ओर उन्हें अन्धकार के अलावा कुछ भी नहीं दिख रहा था.
तब उन्होंने कमल के तने के साथ आगे बढ़ना तय किया किन्तु वहां भी उन्हें Dead End मिला.
फिर ब्रह्मा ने 100 महा युग तक ध्यान योग किया और अंत में उन्हें श्री गर्भोदक शई विष्णु नजर आये. विष्णु के द्वारा दी गयी दिव्य दृष्टि से ब्रह्मा को गर्भ सागर पे लेटे हुए नीले शरीर वाले विष्णु का दर्शन हुआ.
श्री हरी विष्णु ने तब ब्रह्मा को उनके होने का कारण बताया और ये भी बताया की उन्हें कितना बड़ा काम करना है.
ब्रह्मा निरुत्तर थे . ये बिलकुल उसी तरह की बात है जैसे आपके बॉस ने आपको एक बहुत बड़ा नया प्रोजेक्ट बनाने को कहा हो आपको ये भी न पता हो की ये प्रोजेक्ट है क्या और कैसे करना है सौभाग्य से यहाँ पे बॉस स्वयं आदि पुरुष भगवान् विष्णु थे जिन्होंने ब्रह्मा को बताया की सृजन का काम भगवान् के अपने शरीर के हिस्से की सहायता से शुरू किया जाए.
यहाँ से ब्रह्मा के द्वारा वास्तविक निर्माण का काम शुरू होता है.
Lord Brahma, First MORTAL Living Being in EACH Universe


प्रत्येक ब्रह्माण्ड के लिए विष्णु का अपना एक रूप था और साथ में ब्रह्मा का भी .
यानी वहां करोड़ों करोड़ों ब्रह्मा अपने अपने ब्रह्माण्ड के निर्माण कार्य में लगे हुए थे.
ब्रह्मा ने पहले निर्जीव चीजें बनायी जैसे ग्रहपर्वत भूमि इत्यादि. जिनमें स्वयं गति करने की क्षमता नहीं थी.
निर्माण के इस चौथे चरण को मुख्य सर्ग कहते हैं.

Lord Brahma begins Creation

5. पंचम सर्ग:
अगले चरण जिसे तिर्यक सर्ग कहते हैं में ब्रह्मा ने 6 विभिन्न प्रकार की vegetation का निर्माण किया. यहीं पे पेड़ पौधों वनस्पतियों की रचना हुयी. 28 प्रकार के पशुओं और 12 प्रकार के पक्षियों का निर्माण हुआ.

बिग बैंग थ्योरी के अनुसार एक केंद्र से सभी ब्रह्मांडों का निष्कासन हुआ. द्रव्य-ऊर्जा के प्रादर्श से सभी ग्रहों पर रासायनिक अभिक्रियाँ शुरू हुयी और निर्जीव चीजों का निर्माण शुरू हुआ. पहले छोटे अणु ( जैसे N2 , H2, O2 ,H2O,NH3 आदि) बने फिर थोड़े वृहद् अणु (जैसे प्रोटीनकार्बोहाइड्रेट आदि ) का निर्माण हुआ. इन वृहद् अणुओं से निम्न स्तरीय वनस्पति (जैसे कवक,शैवाल आदि ) बने और फिर वृहद् वनस्पतियाँ बनीं.
और इसके बाद पहले निम्न स्तरीय जंतु और उच्च स्तरीय जंतु बने.
जैव विकास के प्रक्रम का विस्तार से वर्णन अगली पोस्ट "दसावतार" में किया जायेगा.

6.छठा सर्ग:
छठे चरण में Demigods (यक्ष) का उद्भव हुआ. इसीलिए इसे देव सर्ग कहा गया है.
सभी प्रकार की दिव्य रचनाएं इसी चरण में बनीं:
सबसे पहले 4 चिरकालिक कुमारों (4 Eternal  Kumaras ) आये. ब्रह्मा के बनाये हुए चार बच्चे ब्रह्मा के सामान ही चिरंजीवी हैं लेकिन वे ब्रह्मा के बजाए विष्णु के अनुयायी बने.
इस बात से क्रोधित ब्रह्मा के ललाट से गहरे लाल और नील रंग के शिशु का जन्म हुआ.
इस चिल्लाते-रोते शिशु का नाम रखा गया - रूद्र .
लेकिन रूद्र ने भी तपस (Penance) का रास्ता अपनाना तय किया. इस बात से ब्रह्मा निराश हुए. लेकिन अंत में उन्होंने उसे अपनी सहायता करने के लिए मना लिया. तब रूद्र स्वयं के समान ११ भागों में विभाजित हो गया.
 


सृष्टि निर्माण के समय ये सबसे महत्वपूर्ण बात थी कि ऎसी इकाई बनायी जाए जो गुणन (जनन)  करने की क्षमता रखती हो. शुरुवात में बने चारों मुख्य घटक - जलप्रोटीनकार्बोहायड्रेट और वसा जनन करने की क्षमता नहीं रखते थे.
इसीलिए इसके बाद ऐसी इकाई बनी जिसमें जनन के शुरूआती लक्षण दिखाई दिए.
'बैक्टीरियाऐसे जीव जिनमें Binary  Fission होना संभव हुआ. यानी अपने ही सामान अनेक जीवों में विभाजित होने की क्षमता. यहाँ कायिक जनन की शुरुवात हुयी.





ब्रह्मा के अनुरोध पर रूद्र अर्धनारीश्वर के रूप में आये और मादा सिद्धांत का जन्म हुआ जिसका नाम था रुद्राणी .

बैक्टीरिया के बनने तक उसमें नर और मादा का विभेद नहीं था किन्तु कुछ उच्च स्तरीय बैक्टीरिया में + स्ट्रेन और - स्ट्रेन बनने लग गयी. यहाँ अलैंगिक जनन की शुरुवात हुयी.और फिर थोड़ी और विकसित प्रजातियों में पूर्ण रूप से नर और मादा का विभेद हो गया.

अपने बनाई कृति रूद्र को संख्या में बढ़ते देख कर ब्रह्मा को कुछ संतुष्टि तो मिली रूद्र के इस भयंकर रूप के कारण उसे भगवान की विनाशक शक्ति (Supreme Lord's power of Destruction) के रूप में देखा गया.

जिस तरह से जगत में जीवों का जन्म आवश्यक है उसी तरह से उनका विनाश भी आवश्यक है.आज हम देखते हैं की पृथ्वी पर असंख्य जीव जंतु पैदा होते हैं अगर इनका विनाश न होता तो पृथ्वी कई सतह अनगिनत जीवों और लाशों से भर गयी होती.किन्तु बैक्टीरिया ऐसे जीव हैं जो हर समय अन्य जीवों का विनाश करने में लगे रहते हैं. और मृत शरीरों का भक्षण करते पृथ्वी को साफ़ बनाये रखते हैं.

Bacteria:The destructor


ब्रह्मा को यह महसूस हुआ की रूद्र की संतान वो नहीं हैं जो वे बनाना चाहते थे तब उन्होंने १० मानसपुत्र बनाए.
मन निर्मित ब्रह्मा के ये १० मानस पुत्र थे- अत्रीअंगीरसअथर्वभृगुदक्षमरीचिपुलहपुलत्स्यवसिष्ठ और सबसे छोटा नारद .
जब इन १० पुत्रों ने भी विकास की प्रक्रिया का हिस्सा बनने की बजाय कुमारों के रास्ते पे चलना तय किया तब ब्रह्मा फिर नकारात्मक ऊर्जा से भर गए.
इसके परिणाम स्वरुप ब्रह्मा ने असुरों का निर्माण किया. ब्रह्मा ने इन्हें इनके तामसिक रास्ते पे चलने दियाये रात्री समय का निर्माण था.

Asuras or Demons

अपनी शक्तियों को केन्द्रित करके ब्रह्मा ने फिर से सात्विक रास्ता अपनाते हुए देवताओं का निर्माण किया. प्रत्येक देव आकार निर्माण के विभिन्न घटक के संरक्षक बने. ये दिन के समय का निर्माण था.

Devas or Demigods

इसके बाद ब्रह्मा ने पित्र का निर्माण किया. और फिर अन्य देवी देवताओं जैसे गायत्री सरस्वती प्रसूति चार वेदभावनाएं संगीत और ऋषि कर्मकांड.
प्रसूति पहले मानस पुत्र यक्ष की पत्नी बनी और यहीं से लैंगिक जनन की शुरुवात हुयी.
Copulative Reproduction between Yaksh and Prasuti

इसी के साथ देव सर्ग समाप्ति की ओर बढ़ा ,ब्रह्मा ने जो काफी थक चुके थे अब एक विराम का निर्णय किया. वे अपने अब तक के निर्माण कार्य को देखने लगे और उन्होंने तीसरा रूप लिया राजसिक (mode-of-passion).
इसी समय उन्होंने अपने ही समान दिखने वाली महान कृति का निर्माण किया जिसका नाम था 'स्वम्भू मनु' . पहला मानव जो कि 'कायाके साथ पैदा हुआ (का- ब्रह्मा या- रूप).
Swayambhu Manu, the First Man

ये बात बहुत ही रोचक  है कि बाइबिल  भी यही  घटना लिखी है   'Man was created in the Image of His Maker!'
यह भी रोचक है कि जर्मनी की जन जातियां अपने पूर्वज को मानुष कहती है.
मनु शब्द अंग्रेजी के शब्द 'Man' का भी मूल है और हिंदी के शब्द 'मनुष्यका भी मूल है.
मनु के साथ एक नारी भी बनाई गयी थी जिसका नाम था सतरूपा. ब्रह्मा ने मनु और सतरूपा को पृथ्वी ग्रह पे भेज दिया.
पृथ्वी पे मनु और सतरूपा के संततियों ने संपूर्ण ग्रह पर पीढ़ी दर पीढ़ी गुणन करना शुरू किया जो आज तक चल रहा है.
Manu and Shatrupa - Adam and Eve - Aadam and Houwa

7.सांतवे सर्ग में मनुष्य के विकास का वर्णन है इसलिए इसे मनुष्य सर्ग कहते हैं
8.आंठ्वे सर्ग जो की अनुग्रह सर्ग के नाम से जाना जाता है में अन्य प्रजातियों का वर्णन है
9.नवें और अंतिम सर्ग  में कुमारों के पुनरागमन की कहानी लिखी है.
और यहाँ पर ब्रह्मा के द्वारा निर्माण की प्रक्रिया का अंत होता है.
एक पाठक के रूप में आप इस पोस्ट को पढ़ते हुए और एक लेखक के रूप में मैं इस पोस्ट को लिखते हुए कितना थक गए हैं इससे हम ब्रह्मा की उस समय की स्थिति की कल्पना कर सकते हैं.

Brahma heaves a sigh of relief!
समाप्ति से पहले विष्णु के तीसरे रूप की बात कर लेते हैं -श्री क्षीरोदक शयी विष्णु जो निर्माण की हर इकाई (परमाणु) में परमात्मा के रूप में मौजूद हैं.समाप्ति से पहले विष्णु के तीसरे रूप की बात कर लेते हैं -श्री क्षीरोदक शयी विष्णु जो निर्माण की हर इकाई (परमाणु) में परमात्मा के रूप में मौजूद हैं.
Lord Vishnu: Present in every Atom
इनका विस्तृत वर्णन मेरी अगली पोस्ट "दसावतार" में आएगा. क्योंकि विष्णु के इस तीसरे रूप से  ही सभी अवतारों का जन्म होता है.



Concept of creation according our scripture as well as according to modern science