रविवार, 30 अक्तूबर 2011

रचनाएं आमंत्रित

अपाकी लोकप्रिय पत्रिका आई वर्ल्ड का प्रकाशन लखनउ से विगत चार वर्षों से हो रहा है
आगामी अंक के लिए सुधि लेखकों के आलेख आमंत्रित है।
रचना मौलिक व अप्रकाशित होनी ।
अपना आलेख 15 नवम्बर तक निम्न पते पर भेज सकते हैं।
या फिर ई-मेल कीजिए!

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आई वर्ल्ड पत्रिका,
सैनिक चेम्बर, जानकी प्लाजा,
जानकीपुरम, लखनउ-21
उत्तर प्रदेश
फोन- 0522-39191100,
09889807838
eyeworldpatrika@gmail.com

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बुधवार, 26 अक्तूबर 2011

दीप जलाएं

आओ दीप जलाएं
घर में, आंगन में
हर जगह
हर राह पर
सभी के लिए
प्रेम का पाठ पढ़ाएं
आओ दीप जलाएं

न हो गिला
शिकवे की न जगह हो
दिल में किसी के
हो इंसान में इंसानियत
दीपक ऐसा जलाएं
आओ दीप जलाएं


न हो कहीं दिखावा
मस्ती के रंग में
हो रोनक की बिसात
दोपों के संग में
न बुझे जन्मान्तर तक
ऐसी ज्वाला फैलाएं
आओ दीप जलाएं

आधुनिकता की बहाव में
कहीं बह न जाना
जहां जाना
संस्कृति न भुलाना तुम
गाएं गीत बंशज
ऐसी दीवाली मनाएं
आओ दीप जलाएं
- मंगल यादव

मंगलवार, 25 अक्तूबर 2011

महर्षि दयानंद सरस्वती के निर्वाण के १२८ वीं वर्ष गाँठ पर उन्हें मेरा शत शत नमन

महर्षि दयानंद सरस्वती के निर्वाण के १२८ वीं वर्ष गाँठ पर उन्हें मेरा शत शत नमन  
फानूस बन के जिसकी, हिफाजत हवा करे 
वह शम्मा क्या बुझेगी, जिसे रोशन खुदा करे
 होते हैं कुछ लोग, जो इतिहास सुनाया करते हैं 
कमी नहीं उनकी, जो इतिहास चुराया करते हैं 
पर नभ झुकता है उनके आगे धरा गीत उन्ही के गाती
अपने पावन कर्मों से, जो इतिहास बनाया करते हैं 
भारत के भूमंडल पर, जब अज्ञान की कालिमा गहराई 
नहीं पढने का अधिकार था शुद्र को,  बिछड़ रहे थे भाई भाई 
राष्ट्र के पुनरुद्वार हेतु तब, दयानंद रूपी किरणें तब आयीं 
नभ झूम उठा फिर से तब यारों, धरती ने फिर ली अंगडाई 
महर्षि दयानंद सरस्वती उन भारतीय मनीषियों में अग्रणी हैं जिन्होंने अन्धकार में जीने वाले समाज को प्रकाश में जीने का मार्ग दिखाया | भारतीय सामाजिक जीवन में जब दयानंद जी का आगमन हुवा तब देश में निराशा का घोर अन्धकार छाया हुआ था प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की असफलताविजय के मद में चूर अंग्रेजों द्वारा जनता का दमनदेश के एक बड़े जन समुदाय की उदासीनता, व्यर्थ के कर्म कांड में उलझी जनता, धर्म के नाम पर अधर्म की स्थापना जैसे कार्यों से भारतीय जन जीवन में जड़ता लगातार बढती जा रही थी भारतीय अपने गौरवशाली अतीत की बात तो करते थे किन्तु वर्तमान पतन के कारणों को स्पष्ट करने का साहस नहीं था | 
ऐसे समय में महर्षि दयानंद जी ने आम आदमी की चेतना को बुरी तरह झझकोरा तथा उनके पतन के कारणों को भी बताया की उनकी उनकी तमाम  तरह की गुलामी का कारन उनका अज्ञान और अशिक्षा ही है | समाज की आधी आबादी अर्थात महिलाओं को हासिये पर धकेल कर कोई भी समाज आगे नही बढ़ सकता उन्होंने स्त्री शिक्षा पर अधिक जोर दिया उनका कहना था की एक स्त्री के शिक्षित होने से पूरा एक परिवार ही शिक्षित हो जाता है उन्होंने यह भी स्पष्ट किया की धर्म कुछ कर्मकांडों, रुढियों तथा रीती-रिवाजों का नाम नहीं है अपितु धर्म तो जीवन जीने की एक शैली है धर्म करने योग्य तथा न करने योग्य कर्मो में अंतर को बताता है धर्म सत्य-असत्य, न्याय-अन्याय के बीच सही चयन की समझ को विकसित करता है धर्म मनुष्य के भीतर अपने देश और समाज के प्रति जिम्मेद्वारी के भाव को प्रबल करता है |
दयानंद सरस्वती ने अपने चिंतन के प्रचार प्रसार के लिए जनता से सीधा संपर्क बनाया उनके कथनी तथा करनी में अंतर न होने के कारण उनके चिंतन के प्रति आम आदमी का विश्वास मजबूत हुवा उन्होंने एक साथ कई प्रकार  की गुलामियों से मुक्ति के लिए आवाज उठाई | जैसे की जाति कीकौम की श्रेष्ठता से मुक्ति के लिएमहिलाओं को सदियों पुरानी गलत परम्पराओं से मुक्ति के लिए | उन्होंने हिन्दू समाज में व्याप्त गैर बराबरी के सिद्धांत को खुली चुनौती दी जिसके परिणाम स्वरुप समाज के हाशियों पर जीने वाले समाज में आत्म गौरव के भाव का विकास हुवा | नारिओं में अपनी अस्मिता के प्रति सजगता का भाव भी प्रबल हुवा इस नव चेतना के परिणाम स्वरुप भारतीय जीवन में आशा और विश्वास का नया सूर्योदय हुवा |
उस समय महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार नहीं था उनके विचारों के अनुरूप आर्य समाज ने आगे बढ़ कर स्त्री शिक्षा के लिए बहुत ही महत्व पूर्ण कार्य किये इसने स्त्रियों के लिए अनेकों स्कुल-कालेज और गुरुकुल स्थापित करने में रूचि दिखाई सन १८९६ में जालंधर में कन्या महा विद्यालय का शिलान्यास इस दिशा में मार्गदर्शक प्रयास था |
 इस दौर में भी महर्षि दयानंद जी के चिंतन की उतनी ही प्रासंगिकता है जितनी की उस दौर में थी | मूल समस्याएँ आज भी मौजूद हैं धर्म के नाम पर व्यर्थ के कर्म कांडों का फिर से प्रचलन बढ़ गया है | दयानंद जी के समय में सती प्रथा थी तो आज उस का रूप बदल कर कन्याओं का उनके जन्म लेने के पूर्व ही कोख में हत्या के रूप में प्रचलन में है | उस समय विदेशी लुटेरे देश लुट कर धन विदेश ले जा रहे थे तो आज देशी लुटेरे यहाँ का धन लुट के विदेश स्विस बैंक में ले जा रहे हैं उस समय गोरे अंग्रेज थे तो आज काले अंग्रेज हैं |
इसलिए आज इस बात की जरुरत है की हम दयानंद जी के चिंतन की गंभीरता को समझ कर समाज के उन वर्गों तक पहुंचाएं जहां इसकी जरुरत है आज बढती हुई विषमता को दूर करने  के लिए सामाजिक कुरुतीओं पर भी अंकुश लगाने की जरुरत है |  इसलिए महर्षि दयानंद जी के निर्वाण के १२८ वर्ष बाद भी उनका सिद्धांत और कर्म का समन्वय आज भी हमें रास्ता दिखाता है |
महर्षि दयानंद सरस्वती के निर्वाण के १२८ वीं वर्ष गाँठ पर उन्हें मेरा शत शत नमन  
गिने जाएँ मुमकिन हैं सहरा के जर्रे  
समंदर के कतरे, फलक के सितारे | 
मगर  दयानंद मुश्किल है गिनना  
जो  अहसान  तुने  किये  इतने  सारे |



मंहगाई में मनायें खुशियों की दिवाली


चहुँ ओर की हाहाकार में त्यौहारों का उल्लास दम तोड़ रहा है। मंहगाई का कुचक्र त्यौहारांे की खुशियों को सिसकियों में परिवर्तित कर रहा है। अमीर-गरीब का स्तरीय विभेदीकरण एक कॉमन (उभयनिष्ठ) सीमा पर आकर बेबस हो गया है। मंहगाई- आर्थिक रूप से विभिन्नता लिए कोई भी जीवन स्तर हो, सभी इसी शब्द से त्रस्त हैं। आखिर कैसे आनन्दित हो त्यौहारों के आगमन पर? यह विचार प्रत्येक उस व्यक्ति को कचोटता होगा जिसके लिए त्यौहार के आगमन की प्रसन्नता का आधार ‘‘पैसा’’ है। पटाखे जलाना, मिठाई खरीदना, घर सजाना, खरीददारी करना, क्या यही एक माध्यम है त्यौहार मनाने का? नहीं! यदि त्यौहार मनाने के वास्तविक स्वरूप को स्वीकार किया जाये तो निःसन्देह इस वर्ष की दिवाली आपको सर्वाधिक आत्मिक प्रसन्नता देगी। मात्र् आवश्यकता है बाहरी आडम्बर व दिखावे-छलावे की दुनिया के स्वयं को विरक्त करने की। आर्थिक प्रतिस्पर्धा को त्यागकर सादगी को अपनाते हुए दीये जलाइये उन घरों में जहाँ त्यौहार पर चूल्हे की ठंडी राख बेबस माँ के आँसूओं और भूख से तड़पते बच्चों की सिसकियों को छुपाती है। पटाखों की गूँज से तीव्र कीजिए उन बच्चों की हँसी की गूँज को जिनकी प्यासी आँखें अपनों के न होने के अहसास से सिहर उठती हैं। दीजिए सहारा उन काँपते हाथों को जिनके कटु अनुभव उनके जीवन की मिठास को कहीं लील गये हैं। अगर इस दिवाली को मनाने को इस ढ़ंग को आप अपनायेंगे तो कभी मंहगाई की मार आपकी दिवाली फिकी नहीं कर सकेगी।

पुस्तक विमोचन

कविता के लिए भावना और हृदय की पूंजी जरूरी



नागरी प्रचारिणी सभा वारणसी के पं0 सुधाकर पांडेय स्मृति कक्ष में आयोजित संगोष्ठि में ’दर्द की है गीत सीता’ काव्यपुस्तक का लोकार्पण करते हुए काशी हिन्दु विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के आचार्य एवं अध्यक्ष प्रो0 राधेश्याम दुबे ने कहा कि प्रसंग बदल जाने से षब्दों के अर्थ बदल जाते हैं। इसलिए जब पौराणिक प्रसंग काव्य रचना के लिए उठाये जाते हैं तो रचनाकार से बड़ी सावधानी की अपेक्षा की जाती है। मां सीता आधुनिक नारी विमर्श के संदर्भ में उद्धृत तो की जा सकती हैं किन्तु उसका माध्यम नहीं बन सकती।
संगोष्ठि के अध्यक्ष डा0 कमलाकान्त त्रिपाठी ने कहा कि कविता का जन्म वेदना से होता है। पुस्तक का रचनाकार जिन संघर्षों से होकर गुजरा है उनके आलोक में ही कृति का समुचित मुल्यांकन किया जा सकता है। कला पक्ष की दृष्टि से भी काव्य महत्वपूर्ण है।


विशिष्ठ
अतिथि गीतकार श्रीकृष्ण तिवारी ने कहा कि रचनाकार का लोक जितना बड़ा होगा उसी अनुपात में वह लोकमान्यता का अधिकारी होता है। लोक की संवेदना को अनुभूति के धरातल पर जीने की क्षमता ’दर्द की है गीत सीता’ के रचनाकर के भीतर दिखलाई पड़ती है।
डा0 रामअवतार पांडेय ने कहा कि कविता के लिए भावना और हृदय की पूंजी जरूरी है और वह पेशे से इंजिनीयर विजय कुमार मिश्र के भीतर दिखलाई पड़ती है। विष्व के महानतम नारी चरित्र सीता की वेदना को आधार बना कर उन्होने नारी विमर्श के विचारणीय सूत्रों को अपनी इस कृति के माध्यम से प्रस्तुत किया है।
लोकार्पण गोष्ठी में सर्वश्री शिवप्रसाद द्विवेदी, एल0 उमाशंकर सिंह, रामकृष्ण सहस्रबुद्धे, एम. अफसर खां सागर, विनय वर्मा, डा0 संजय पांडे, रूद्र प्रताप रूद्र, राम प्रकाश शाह, श्रीमती वत्सला और डा0 पवन कुमार शास्त्री ने भी विचार व्यक्त करते हुए रचनाकार को बधाई दी।
प्रारम्भ में आगंतुकों का स्वागत करते हुए रचनाकार विजय कुमार मिश्र ’बुद्धिहीन’ ने कहा कि इंजिनीयरिंग क्षेत्र में कार्य करते हुए अतिषय सुख-दुःख और रागात्मक संवेदना के क्षण जब प्राप्त हुए तब अपने भीतर जो अनुभूतियां व्यक्त हुईं उन्होनें अनायास कविता का रूप ले लिया।
धनयवाद प्रकाश समजीत शुक्लने, संयोजन ब्रजेश पांडेय ने तथा संचालन डा0 जितेन्द्र नाथ मिश्र ने किया।

एम अफसर खान सागर

सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

अमेरिकी फंदे में दम तोड़ता पेट्रो राष्ट्रवाद और इश्लामिक स्तम्भ :



विगत दिनों एक खबर मीडिया में जोर शोर से आई की कर्नल मुअम्मर गद्दाफी  की उसी के देश के 
बिद्रोहियों ने निर्मम हत्या कर दी.दरअसल कर्नल मुअम्मर गद्दाफी की हत्या अमेरिकी और पश्चिमी देशो के आर्थिक अतिक्रमण की एक अगली कड़ी है.. जिसमे अमीरीकी कंपनियों का तेल का खेल अभीष्ट है..
अमरीका और उसके मित्र देशों  के इतिहास पर नजर डाले तो अपने आर्थिक साम्राज्यवाद एवं मंदी को दूर करने के लिए हर समय सुविधा के अनुसार सत्ताएं बनायीं और फिर उनसे समय समय पर युद्ध करके  अपना आधिपत्य साबित किया .. अगर विश्लेषण करे तो प्रथम एवं द्वितीय दोनों विश्व युद्ध का कारण आर्थिक था जो यूरोप और अमेरिका की आर्थिक मंदी को दूर करने के लिए किया गया...
सोवियत रूस के विघटन के बाद अमरीका की गिद्ध  दृष्टि भारत और तेल उत्पादक देशों पर लगी हुए है..इसी उद्देश्यपूर्ति के लिए उसने लादेन जैसा भस्मासुर पैदा किया..हुस्नी की मुबारक की सत्ता को समर्थन दिया..तो कभी सद्दाम हुसैन के साथ भी गलबहियां डाली...अब धीरे धीरे पेट्रो राष्ट्रवाद और इश्लामिक जेहाद की आँच अमेरिका के आर्थिक,सामरिक और सामाजिक हित झुलसने लगे तो अमेरिका ने अपनी पुरानी मक्कारी दिखाई .

अगर पिछले ३-४ उदाहरण  ले तो इश्लामिक जेहाद का चेहरा बन चुका ओसामा बिन लादेन इसी अमरीकी दिमाग की उपज था और जब अमेरिका की रूस को साधने के लिए बनायीं गयी इस जेहादी मिसाइल ने अपना रुख अमरीका की ओर ही कर लिया तो अमरीका ने अफगानिस्तान से युद्ध छेड़ दिया..ये भी एक इत्तफाक ही कहा जायेगा की इन सारे घटनाक्रम के बिच में यूरोप और अमेरिका में मंदी के बदल छाने लगे थे ..ओसामा बिन लादेन को मारने या ९/११ के जिम्मेदार लोगो के सफाए  लिए सीआईए और नाटो का एक सिमित ख़ुफ़िया आपरेशन ही काफी था मगर  अफगानिस्तान को युद्ध को १० साल से ज्यादा खिंचा गया..
और शायद इसमें कोई संशय नहीं की कुछ सालो बाद किसी विकिलीक्स के खुलासे में ये तथ्य सामने आये की कही पर्ल हार्बर की तरह अमरीका पर किया गया ९/११ का हमला भी अमरीका के सहयोग से ही जेहादियों ने रचा हो....
अगर हम देखें तो अमरीका के पिछलग्गू "NATORIOUS NATO" गठबंधन में अमरीका सबसे ज्यादा हथियार आपूर्ति करता है..और अमरीका की हथियार उद्योग से लगभग १०० से ज्यादा  छोटे बड़े उद्योग जुड़े हुए है..कहीं न कहीं इन युद्धों का लम्बा खीचना कम से कम अमरीका के लिए दोहरे फायदे का सौदा है तेल के खेल एवं वैश्विक राजनीती  में दादागिरी और घरेलू मोर्चे पर मंदी के असर को कम करने का फायदा..
ठीक इसी प्रकार सद्दाम हुसैन की हत्या करने के लिए इराक को तबाह करने या मासूम जनता पर बम गिराने की जरुरत नहीं थी मगर अमरीका ने अपने अजेंडे पर चले हुए ये किया..ध्यान रहे, ये वही सद्दाम हुसैन है जो कभी रोनाल्ड रीगन के लाडले हुआ करते थे,उस समय न ही संयुक्त राष्ट्र संघ और न ही दोगले चरित्र वाले अमरीका को इराक के जनसंहार या मानवाधिकार की सुध थी..अमरीका के सहयोग से इसी सद्दाम ने इरान पर भी हमला बोल दिया ..मगर जब से सद्दाम ने इराक में और  कुवैत के मामले में में अमरीकी हितो की अनदेखी करनी शुरू की इस इस्लामिक तानाशाह की उलटी गिनती शुरू हो गयी जो इराक में उनकी फाँसी पर ख़तम हुआ..
इसी प्रकार वो हुस्नी  मुबारक हो या मुअम्मर गद्दाफी इस्लाम के एक एक स्तंभों को अमरीका अपने व्यापारिक हितो के लिए ख़तम करता जा रहा है..या जो थोड़े बहुत बचे हैं उन्होंने सउदी अरब जैसा अमरीका का आधिपत्य स्वीकार कर लिया..अब शायद अमरीका के अगले निशाने पर इरान होगा जो की एकमात्र देश बचा है जो अमरीका का प्रतिरोध कर रहा है...
हालाँकि अमरीका ने जिन इश्लामिक तानाशाहों या जेहादियों को ठिकाने लगाया है चाहे वो सद्दाम हो या लादेन या गद्दाफी उनके नरसंहार और अत्यचारों की एक लम्बी फेरहिस्त है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता मगर इन अत्याचारों की सुध आज सालो बाद दुनिया में पेट्रोल के ख़तम होते भण्डारो के साथ ही अमरीका को आ रही है और विशेषतः उन देशों की जहाँ पेट्रोल की प्रचुरता है ये अमरीका की दोगली मानसिकता का परिचायक है..शायद गद्दाफी से क्रूर तानाशाह और भी मिल जायेंगे विश्व के कई देशों में मगर वहां का मानवाधिकार UN या अमरीका को नहीं दिखता क्यूकी वहां तेल के कुँए नहीं हैं...
हिन्दुस्थान के परिपेक्ष्य में देखें तो इन इश्लामिक दुर्गो का गिरना फिलहाल राहत देने वाला ही है चाहे लादेन हो या मुअम्मर गद्दाफी कोई भी भारत का मित्र नहीं रहा ...मुअम्मर गद्दाफी की कश्मीर पर नीति सर्वविदित थी..
अमरीका यदा कदा पाकिस्तान को कश्मीर में शह दे कर अपनी हथियार उद्योग को जीवित रखा है...वैसे भी हिन्दुस्थान में अमरीका को खुली लूट  की छूट अमरीकी  बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दे कर भारत सरकार ने  फिलहाल अपना गला अमरीकी फंदे से बचा रखा है..मगर इसमें कोई संशय नहीं की तेल का खेल ख़तम होने और सारे इश्लामिक स्तंभों  के सफाए के बाद अमरीका की दृष्टि भारत की और लगे..इसमें कोई आश्चर्य नहीं  यदि हिन्दुस्थान को कांग्रेसी लूट से छूट मिले और कोई राष्ट्रवादी नायक आगे आये तो अमरीका को कश्मीर और मणिपुर में मानवाधिकार हनन के दौरे आने लगे और हिन्दुस्थान को अरब नायको की तरह अमरीका जैसे कुटिल देश से दोस्ती की कीमत अफगानिस्तान या पाकिस्तान की तरह चुकानी पड़े....

गुरुवार, 13 अक्तूबर 2011

क्या प्रशांत भूषण की पिटाई सही है या प्रशांत भूषण का बयान सही था ??????

क्या प्रशांत भूषण की पिटाई सही है या प्रशांत भूषण का बयान सही था ??????
प्रशांत भूषण ने 25 सितंबर को वाराणसी में प्रेस से मिलिए कार्यक्रम में कश्मीर के संबंध में पूछे गए एक सवाल के जवाब में दिया था...ये रहा वो बयान...क्या प्रशांत भूषण की पिटाई सही है या प्रशांत भूषण का बयान सही था

जम्मू-कश्मीर को बल के ज़रिए देश में रखना हमारे लिए घातक होगा...देश की सारी जनता के लिए घातक होगा...सिर्फ वहां की जनता के लिए नहीं पूरे देश की जनता के हित में नहीं होगा...मेरी राय ये है कि हालात वहां नार्मलाइज़ करने चाहिए...आर्मी को वहां से हटा लेना चाहिए...आर्म्ड फोर्सेज़ स्पेशल पावर एक्ट को खत्म करना चाहिए...और कोशिश ये करनी चाहिए कि वहां की जनता हमारे साथ आए...अगर उसके बाद भी वो हमारे साथ नहीं है...अगर वहां की जनता फिर भी यही कहती है कि वो अलग होना चाहते हैं...मेरी राय ये है कि वहां जनमत संग्रह करा के उन्हें अलग होने देना चाहिए...

प्रशांत भूषण के इसी बयान की वजह से उनकी वहशियाना अंदाज़ में थप्पड़-घूंसे-लात से पिटाई की गई...
क्या इस तरह का बयान देना देश हित मैं है प्रशांत भूषण जी यह कियु भूल गए की उसी कश्मीर मैं कुछ लाख कश्मीरी पंडित रहते थे वह आज कल कहा पर है ......????????

बुधवार, 12 अक्तूबर 2011

तेरी दवा जहर है हमारे लिए


कुल्लू से आप सभी का स्वागत है थोड़ी सी ठण्ड पहाड़ियों से घिरे मैदान में मेला झूला भीड़ गाजियाबाद नजीबाबाद तक से आई दूकानें हिमाचल के गाँव गाँव से आये देवता दूर दूर से आये डेरा डाले प्रभु श्री राम के दर्शनार्थी भक्त आज देवताओं की फिर गाँव गाँव में वापसी प्रभु से गले मिल सब वापस होंगे गाजे बाजे के साथ जाने के समय फिर गाँव गाँव में प्रधान या बड़े लोगों के यहाँ रुकेंगे फिर अपने गाँव पालकी में सवार देवता की वापसी हर जगह बाजे बजते बारात सा माहौल -उधर कला केंद्र में रूस , ब्राजील , मुबई से आये के के की टीम , अन्य प्रदेशों से आये कलाकार रात में धूम मचाये नौ दिन ….अब विदाई का समय …विदाई में दिल शांत करना होता है ..आशीर्वाद गले मिलना ..गिले शिकवे माफ़ ….प्रभु सब को आशीष दें ये देश कुछ बदले ….जय श्री राम …आइये अब देखें थोड़ी राजनीति और लोगों का कहना …..
तुम्हारी ये सफ़ेद धोती टोपी
अँधेरे में चमक जाती है
दिखा देती है करतूत
लोगों को राह
समझ लो अँधेरे का दस्तूर
काल कोठरी
यहाँ के लोगों का मन
इनका राज
इनका ख्वाब
कुछ दिन कैद में रहो
पाँव में बेंडियाँ डाल
कैद में ??
हाँ नहीं तो नहीं रह पाओगे
इस सडांध में नहीं ढल पाओगे
उड़ जाओगे फुर्र
सीढियां चढ़ जाओगे
दिखाई दोगे सब को
मुह खोलोगे
सच बोलोगे
आग उगलोगे
वो आग जो झोपड़ियों को नहीं जलाती
गरीबों को नहीं छू पाती
जो घातक है कोठियों के लिए
अन्यायी के लिए अन्याय के लिए
मुझसे बीमार के लिए
तेरी दवा जहर है हमारे लिए
हमारी जात पांत के लिए
जिसकी आज भरमार है
तू ईमानदार है
अल्पसंख्यक है
तेरी संसद नहीं बनेगी
न ही कभी तेरी सत्ता चलेगी
शुक्ल भ्रमर ५
१२.१0.२०११ यच पी

गुरुवार, 6 अक्तूबर 2011

अपने रावण को मारो

|| ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ||
उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें, वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।
अपने रावण को मारो    
वह था संस्कृत और वेद का विद्वान 
कुबेर का भ्राता
पुलस्त्य  ऋषि का पौत्र   
विश्रवस निकषा  का पुत्र  
शंकर का अनन्य भक्त
तांडव स्तोत्र का रचयिता  
स्वर्ण लंका का अधिपति 
दशासन रावण
रखता था नाभि में 
अमृत कुंड!
पर एक कुविचार प्रेरित कृत्य के कारण 
मारा गया 
श्री राम के हाथों
नाभि पे लगे बाणों से 
जहाँ अमृत था 
आज हम उसका पुतला बना कर 
भेदते है बाण से  
उसकी नाभि नहीं 
उसका ह्रदय 
क्यों की हृदय में ही 
उत्पन्न होते हैं विचार कुविचार 
अर्थात वही होता है रावणी विचार 
तो फिर 
रावण का पुतला फुकने से पहले
तुम क्यों नही हनन करते
अपने ह्रदय के कुविचारों को
तब तक तुम्हे क्या हक़ है
की फूंको रावण के पुतले को
कुछ नहीं हासिल होगा तुम्हे
जब तक तुम नहीं मारते 
अपने भीतर का रावण
और नहीं संवारते 
अपना अंतःकरण 
जिससे संपन्न हो सदा सुकृत्य
महान  हो आदर्श हो चरित्र 




आप सब को बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतिक दशहरा पर्व पर हार्दिक शुभ कामनाएं एवं बधाई