सोमवार, 16 मई 2011

माई का जियरा गाइ कहावा


 माई का जियरा गाइ कहावा
एक लाडला पुत्र जिसे की अशिक्षित माँ बाप दम भर के भविष्य में उन्नति की चरम सीमा पर पहुँचाने का ख्वाब संजोते हैं परिस्थितियों की विडंबना ऐसी की पिता के असमय स्वर्गवासी  होने के बाद माँ महगाई से मार खाकर पढ़ाने से जब  इंकार कर देती है तो बच्चे की वेदना फूट पड़ती है और सपने चकनाचूर- पालि के हमका तू मारू मोरी माई- उसके इस कथन से मन द्रवित हो जाता है
---काश कोई उसके अंतर्मन को पहचान

यह हमारी अवधी भाषा का पुट संजोये है -रचना थोड़ी लम्बी भी है -आशा है आप सब इसे समझने की कोशिश करेंगे – 
हमका बनाऊ की बिगाडू मोरी माई
तुहिन कहू बड़े भाग से पाये
सारी उमरिया का फल इहै आये  
नोनवा  अउ रोटिया खियाई  के जिआए
विधि अब एक आस पूरी कराये
हमारे ललन का अफीसर बनाये
बचपन से कहि कहि जियरा बढ़ाऊ
हमका बनाऊ की बिगाडू मोरी माई  

 सारे गौना में शिक्षा मोहाल बा
करज में डूबे सब खेतवउ बिकात बा
लाला अउ मुनीम खाई खाई के मोटात बा
घर अउ दुवरवा कुडूक होई जात बा  
भैया हमरा टाप कई के देखाए
माई बाप  का नमवा जगाये
अब कैसे ई सब भुलानू मोरी माई
हमका बनाऊ की बिगाडू मोरी माई  

सरकार का कोसू स्कूलवा खोलायेसि                                                                             गऊआँ के लड़िकन का नमवा लिखायेसि
 सारी पढ़इया मुफ्त करवायेसि
पंचये में पहिला नंबर लियाए
तोहरे अशवा का ऊँचा बढ़ाये 
तब काहे हमसे रिसानु मोरी माई 
 हमका बनाऊ की बिगाडू मोरी माई  


खरचउ हरदम हम सीमित चलाये
दिहू जौन हमका उहई हम पाए
चाय पान पिक्चर का कबहूँ न धाये
फीसउ आधी हम माफ़ कराये
अठयें तक हरदम वजीफा लियाए
तब काहे दुश्मन बनाऊ मोरी माई
हमका बनाऊ की बिगाडू मोरी माई  

बाबू के रहत तक ख़ुशी से पढाऊ
कबहूँ न कौनउ  कमवा कराऊ  
जातई सारी जिम्मेदरिया डाऊ
सांझ सवेरे तू हरवा जोताऊ 
तब  काहे जुलुमवा  ढाऊ मोरी माई
हमका बनाऊ की बिगाडू मोरी माई  

सारा काज कई के पढ़इआ   चलाये
सोचि भविषवा  हम फूला न समाये
कबहूँ ना सोचे की ई दिन आये
सारी कमइया वृथा होई जाये
महल सपनवा का ऐसें ढही जाये
नंवई से पढ़इआ   छोड़ाऊ मोरी माई
हम का बनाऊ की बिगाडू मोरी माई ---

सारे अरमानवा पे पानी फिराऊ
चढ़ाई सरगवा पे हमका गिराऊ
गंउआ  से हम का आवारा कहाऊ
खुद अपनेऊ पे सब का हंसाऊ
उठे ला करेजवा में हिलोर मोरी माई
हम का बनाऊ की बिगाडू मोरी माई ---

एसी  अच्छा न कबहूँ पढ़उतू
गाइ गुन गान न छतिया फुलउतू
 चाहे हम से तू हरव्इ जोतउतू
आगे क सपना न हमका देखउतू
बिना विचारे जग का हंसाऊ
जल बिनु मीन हमइ तडफाऊ   
पालि के हमका तू मारू मोरी माई

हम का बनाऊ की बिगाडू मोरी माई ---

फिर पहिले का वचन दोहरावा
तम का भगाइ आलोक जगावा
माइ का जियरा गाइ कहावा
कहें भ्रमर अब जियरा बढ़ावा
मंहगाई का न डरवा देखावा 
राखहु मोर दुलार हो माई
हम का  ल्या फिर से उबार मोरी माई
हम का बनाऊ की बिगाडू मोरी माई ---

9 टिप्‍पणियां:

  1. bahut sahi tarike se aapne ek sahay bete ke dard ko ubhara hai aapne........ bahut hi marmik prastuti.

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  2. सारी उमरिया का फल इहै आये
    नोनवा अउ रोटिया खियाई के जिआए
    ..
    पूरी कहानी ही वर्णित कर दी आप ने..
    मजा आ गया अवधी की कृति पढ़कर...
    धन्यवाद

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  3. एक बेटे के दर्द को बहुत अच्छे ढंग से उकेरा है, लेकिन माई क्या करे? उसे अपने ऊपर हाथ रखने वाले का सहारा नहीं रहा फिर वह बनाने की सोचे भी तो कहाँ से? कल की कोई नहीं जनता सपने सब आज ही सजाते हैं कल बिखर जायेंगे इससे कोई वाकिफ नहीं होता. दोनों के अपने अपने दर्द हैं.

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  4. आदरणीया रेखा श्रीवास्तव जी नमस्कार
    बहुत खूब कहा आप ने- बेटे और माँ की वेदना दोनों को आप ने अपने शब्दों में उजागर किया सच भी है सपने तो सपने ही होते हैं न जाने कब टूट जाएँ -कल का क्या भरोसा -लेकिन हम सब का एक दायित्व तो बनता है की इस स्थिति में सब मिल या अपनी सरकार के माध्यम से ही सही उसे कुछ सहायता दिलाएं
    धन्यवाद आप का
    शुक्ल भ्रमर ५

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  5. प्रिय आकाश जी धन्यवाद आप का रचना अच्छी लगी सुन हर्ष हुआ
    शुक्ल भ्रमर ५

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  6. प्रिय आशुतोष भाई अभिवादन
    अवधी की रचना आप की समझ में आई और उसका सारांश भी आप ने लिख डाला जो आप को भाया
    सच माँ कितने किल्लत से मेहनत से बच्चे को पढाने का बीड़ा उठाती हैं लेकिन हमारी सरकार अगर इसमें कुछ सहयोग करे तो कितना सुन्दर हो

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  7. प्रिय उपेन्द्र उपेन जी धन्यवाद आप का असहाय बेटे के मन की व्यथा को आप ने समझा और माँ की मजबूरी के कारण उसकी विवशता आगे न पढ़ पाने की समझे -सुन हर्ष हुआ -आइये सब मिल कुछ कोशिश कुछ योगदान करते रहें और सरकार से गुहार करें
    शुक्ल भ्रमर ५

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