गुरुवार, 5 मई 2011

जो रावण है दुष्ट घूमता गला दबाते गलियों अपनी




पागल कोई फेंके पत्थर
घूरे चाहे गाली देता
दर्द हमारे दिल ना होता
पूत-आत्मा -कोई इन्शां
मानव कोई
शब्द घिनौने या 
जबान कडवी कह देता
सुनते ही कानो में शीशा 
पिघले तो दुःख होता
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जो रावण है दुष्ट घूमता
गला दबाते गलियों अपनी
लूट मार दे दुःख न होता
इक इन्शां जब गले मिले
फिर खंजर मेरी पीठ घोंपता
तो अपार  दुःख होता
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आग से तो हम वाकिफ भाई
जले जलाये उसका काम
घर जल जाये -दिल जल जाये
दर्द हमें कुछ भी ना होता
ना जाने क्यों
शीतल जल गंगा का पानी
जब उबले तो दर्द बढे है
तडपन बढती
साँस प्राण सब कुछ हर लेता
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सूरज घूमे तपे तपाये 
बेचैनी हो -माथे बहे पसीना 
धड़कन मेरी  बढती  फिर भी
लेश मात्र भी दर्द न होता
लेकिन चंदा और चांदनी
ममता शीतलता की मूरति
दिल में मेरे बसी सदा जो
थोडा  भी बेरुखी दिखाए  
रुष्ट हुयी तो
दर्द बहुत मेरा मन रोता
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ऊँचाई 'वो' चढ़े -झांकते
दूर दूर से मारे पत्थर
अपनी थोडा याद दिलाते
मै उनसे जब नैन मिलाऊं
रोड़ा बन आँखों में खट्कें
खून सनी भी आँखें मेरी
दर्द हमें बिलकुल ना होता
लेकिन कोई सुरमा काजल
आँखों का वो नूर हमारे
पुतली मेरी -
पलकों जो आशियाँ बनाये
नीड़ उजाड़े -टपके मोती
जल-जल जाता तो दुःख मेरा
फिर सहा न जाता

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
5.5.2011

8 टिप्‍पणियां:

  1. लेकिन कोई सुरमा काजल
    आँखों का वो नूर हमारे
    पुतली मेरी -
    पलकों जो आशियाँ बनाये
    नीड़ उजाड़े -टपके मोती
    जल-जल जाता तो दुःख मेरा
    bahut marmik abhivyakti.

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  2. आदरणीया शालिनी कौशिक जी धन्यवाद आप का इस मर्म को समझा आप ने और रचना प्यारी लगी ऐसे ही होता है जब कोई अपना प्यारा आप से जुदा हो जाता है तो बर्दास्त नहीं होता न
    कृपया हिंदी में टिप्पणी देने के लिए आल्ट +शिफ्ट का प्रयोग करें
    आइये हिंदी को बढ़ावा दें
    सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५

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  3. मंगल जी धन्यवाद आप की सराहना के लिए आइये इसी तरह हम अच्छाइयों का समर्थन करते आगे बढते रहें
    आप की रचनाएँ भी बड़ी प्यारी बन पड़ती हैं

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  4. प्रिय गंगाधर जी धन्यवाद आप की सराहना के लिए आइये हम कुछ समाज के लिए अच्छा योगदान करते रहें

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  5. नेहा जी धन्यवाद आज शायद पहली बार हमारी पोस्ट पर आप आयीं सराहना के लिए धन्यवाद आइये हमारे अन्य ब्लॉग पर भी और अपना समर्थन करें सुझाव दें

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