मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

अमर क्रांतिकारी शहीद सुखदेव थापर



शहीद सुखदेव भगत सिंह की भांति ही वीर ,पराक्रमी थे ,हंसमुख किन्तु शीघ्रकोपी सुखदेव और गंभीर तथा शांत भगत सिंह एक प्राण दो शरीर थे |

शहीद सुखदेव का जन्म १५ मई १९०७ को पंजाब के लुधियाना शहर के एक जाट थापर  परिवार में हुआ था ,उनके बचपन के बारे में मुझे ज्ञान नहीं ,,किन्तु उन्होंने शहीद भगत सिंह का साथ किस प्रकार मृत्यु तक दिया और हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातान्त्रिक संघ में उनके एक कुशल सूत्रधार की भूमिका ,उनका  देश के लिए पागलपन और जूनून से भरा प्रेम , अंग्रेजों के लिए उनकी घृणा और छोटी से छोटी बात का भी किस प्रकार मजाक बना देना तथा उनका शीघ्रकोप आदि बातें सुखदेव को एक विशेष स्थान देती हैं | सुखदेव और भगत सिंह की भेंट लाहौर के नेशनल कॉलेज में हुई थी ,धीरे धीरे दोनों एक प्राण दो शरीर बन गए ,उनके एक अन्य साथी शहीद भगवती चरण वोहरा के छोटे भाई सामान थे सुखदेव और भगवती चरण की पत्नी दुर्गा भाभी तो अपने इस देवर पर लाड छिड़कती थीं ,बिलकुल अपने नन्हे पुत्र  शची की तरह | सुखदेव ,भगत सिंह और भगवती चरण ने कॉलेज में मिलकर अन्य साथियों जैसे यशपाल , झंडा सिंह ,छैलबिहारी ,धरमपाल और मदनगोपाल आदि में क्रांति की लहर भरी और उन्हें अपना साथी बना लिया ,सुखदेव ,भगत सिंह और भगवती चरण ने मिलकर "नौजवान भारत सभा " नामक एक क्रांतिकारी संगठन बनाया ,यह संगठन कॉलेज के अन्य विद्यार्थियों से बना था जो जनता में आजाद होने की चाह ,शहीदों के बलिदानों का स्मरण और अंग्रेजों के प्रति घृणा पैदा करते थे ,यह दल शीघ्र ही पुलिस की दृष्टि में आ गया (विशेष रूप से भगत सिंह और सुखदेव ) किन्तु सुखदेव और भगत सिंह ने अपनी चतुराई से अपने संगठन की कदम कदम पर रक्षा की | तीनो लोगों (सुखदेव ,भगत सिंह और भगवती चरण ) ने समाजवाद का अध्ययन किया और उससे बहुत प्रभावित हुए ,सबसे अधिक भगत सिंह ,(किन्तु आज के नक्सल वाद(देशद्रोह)  से नहीं ) सुखदेव और भगत सिंह ने अपने समय के क्रांति के महानायक अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद से भेंट की और उनके दल "हिंदुस्तान प्रजातान्त्रिक संघ'"का हिस्सा बन गए ,शीघ्र ही भगवती चरण ,यशपाल ,बटुकेश्वर दत्त ,और राजगुरु आदि क्रांतिकारी भी इस दल में आ गए ,भगत सिंह और सुखदेव ने अपने समाजवाद के विचार चंद्रशेखर आजाद को बताये और आजाद जी इससे काफी प्रभावित ,बहुत विचार विमर्श के बाद दल का नाम "हिंदुस्तान प्रजातान्त्रिक संघ" की जगह हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातान्त्रिक संघ रखा ,इस दल का उद्देश्य अंग्रेजी साम्राज्य पर सीधी चोट कर समानता के आधार पर शोषण रहित स्वतंत्रता दिलाना था | यह दल लाला लाजपत राय की मृत्यु से क्रोधित हो उठा और इसे राष्ट्रीय अपमान समझ लाला लाजपत राय की मृत्यु के उत्तरदायी अफसर स्कॉट का  वध  करने की सोची ,विशेष रूप से सुखदेव लाला जी की मृत्यु से क्रोध में पागल हो गये थे | जब इस कार्यवाही को करने के समय के विषय में  दल की सभा बुलवाई गयी तब सुखदेव ने जोरदार स्वर में सभा को संबोधित किया " एक मामूली अफसर के कारण करोंडो भारतीयों के प्रिय नेता लाला जी की जान गयी और जनता के प्रतिनिधि (कांग्रेस) चूड़ियाँ पहन कर बैठे हैं ,बस बहुत हुआ इसका उत्तर हम देंगे ,स्कॉट को जान से मारना ही होगा !" सुखदेव को इस कार्यवाही का सूत्रधार बनाया गया ,१७ दिसंबर १९२८ को लाहौर में  भगत सिंह ,राजगुरु ,आजाद ने सुखदेव के कुशल नेत्रत्व  में सांडर्स नाम के एक अन्य  अँगरेज़ अफसर सांडर्स (जिसने स्कॉट के कहने पर लाला लाजपत राय पर लाठी चलायी थी )  का वध कर दिया ,इसके बाद सुखदेव ने अपनी परवाह न करके भगत सिंह ,राजगुरु और चंद्रशेखर आजाद को सुरक्षित लाहौर से बाहर पुलिस से बचाकर भेज दिया  ( तीनो क्रांतिवीर कैसे निकले वो तो आपको भगत सिंह वाले पोस्ट में पता ही चल गया था ) ,उसके बाद  दल ने सरकार के दमन चक्र का जवाब देने के लिए  अंग्रेजों की केंद्रीय असेम्बली में बम फोड़ कर (बिना किसी की जान लिए ) ,पर्चे फ़ेंक कर और इन्कलाब के नारे लगा कर स्वयं को गिरफ्तार करवाने की योजना बनायीं गयी ,जिससे अदालत के जरिये क्रांतिवीर लोगों में स्वतंत्रता की लहर पैदा कर सकें और अंग्रेजी साम्राज्य को बर्बाद कर सकें ,इस कार्य के लिए भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को चुना गया , पहले आजाद जी ने भगत (जो उनके सबसे प्रिय थे ) को सख्ती से भेजने से मन कर दिया था और भगत सिंह भी झुकने लगे थे तो सुखदेव को इस बात से बड़ा क्रोध आया उन्होंने भगत सिंह को फटकारा - " तुम मृत्यु से डर गए हो तभी तो पंडित जी (आजाद जी) की बात के सामने झुक गए ,भगत सिंह के लिए अपने प्राण (सुखदेव ) से यह लांछन सुनना असहनीय हो गया और उन्होंने असेम्बली में जाने की जिद्द पकड़ ली ,और आजाद जी को मानना पड़ा | भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने निर्धारित योजना के अनुसार ही कार्य किया ,जिससे देश भर में क्रांतिकारियों की वीरता की धूम मच गयी ,भगत और दत्त पर मुकदमा चला और उन्हें उम्रकैद की सजा मिली , इसके शीघ्र बाद दुर्भाग्य शुरू हुआ ,सुखदेव सहित तमाम दल के सदस्य पकड़ लिए गए और क्रांतिकारियों की बम कारखानों पर छापे मारे गए , सुखदेव पार्टी के के सूत्रधार थे ,पुलिस ने उन पर चंद्रशेखर आजाद (जो स्वाभाविक रूप से पुलिस को चकमा दे चुके थे )  का पता बताने के लिए सैकड़ों आत्याचार किया , किन्तु हर जुल्म का उत्तर सुखदेव अपनी हंसी और व्यंग से देते जिससे अँगरेज़ उन्हें और मारते ,अँगरेज़ जितना मारते वो उतना अपनी हंसी से उन्हें चिढाते अंत में पुलिस मारते मारते थक जाती | सुखदेव,राजगुरु  और अन्य साथी लाहौर जेल में बंद थे जबकि भगत सिंह और दत्त दिल्ली जेल में थे ,भगत सिंह और दत्त को भी दिल्ली जेल बुला लिया गया जहाँ उन सब लाहौर षड्यंत्र केस द्वितीय  (सांडर्स की हत्या ) का मुकदमा चलने वाला था ,भगत सिंह और सुखदेव ने मुक़दमे को बहुत लम्बा खींचा कभी अदालत में वो दोनों  शानदार भाषणों से जज और  सरकारी अभियोजक का मुह बंद कर देते ,कभी इन्कलाब जिंदाबाद का दौर शुरू होता ,कभी हंसी मजाक का ,जज पठानों से जब उनकी पिटाई  करवाता तो सुखदेव अपनी स्वाभाविक व्यंग शुरू कर देते  जिससे पठान खीझ कर हार मान जाते ,भगत सिंह तो मार खाते समय मस्त मौला रहते ,इधर भगत सिंह ,सुखदेव और उनके साथियों ने जेल में कैदियों के साथ होने वाले अत्त्याचारों के विरुद्ध आमरण अनशन आरंभ कर दिया जिसे देश और विश्वभर में भयंकर समर्थन मिला ,वायसराय इरविन की कुर्सी हिल गयी ,अंग्रेजों ने हड़ताल तुडवाने की लाखों कोशिशें की जिन्हें फिर से क्रांतिकारियों की हाथ और सुखदेव के व्यंग का सामना करना पड़ा , अंत में वो हार मान कर थक गए ,सुखदेव व्यंग तो करते लेकिन अन्दर ही अन्दर उनका मनोबल टूट रहा था और वो आत्महत्या का विचार मन में लाने लगे किन्तु भगत सिंह द्वारा समझाने पर यह विचार छोड़ दिया और पुनः आशावादी हो गए | इधर जतिन दस नमक साथी की मृत्यु ने सरकार को विवश कर दिया की जेल में क्रांतिकारियों से अच्छा व्यवहार किया जाए और उनकी साड़ी मांगे मान ली गयीं ,यह क्रांतिकारियों की विजय थी | पर अब अंग्रेजों को अपना बदला लेना था तो उन्होंने लाहौर षड्यंत्र केस का फैसला अभियुक्तों की अनुपस्थ्ती में ही कर दिया ,सांडर्स के वध के अपराध में भगत सिंह ,सुखदेव और राजगुरु को मृत्यु दंड मिला |  तीनो यह दंड सुन कर फूले न समाये | इधर शहादत से पहले सुखदेव का अंतिम कार्य शेष रह गया की गांधी द्वारा क्रांतिकारियों पर लांछन लगाने का कड़ा उत्तर देना ,इसके उत्तर में उन्होंने गांधी को एक पत्र लिखा जिसने गांधी की नीव हिला दी होगी , अब लोगों की आस गाँधी की ओर हुई की वो चाहता तो उन तीनो क्रांतिवीरों (भगत सिंह ,सुखदेव और राजगुरु ) की फांसी रोक सकता है ,किन्तु उस गांधी ने  ऐसा प्रयत्न भी न किया | २३ मार्च १९३१ को सुखदेव भगत सिंह और राजगुरु के साथ शाम ७ बजकर ३३ घटक पर फांसी के फंदे पर चिर निद्रा में विलीन हो गए ,सांस तो थम गयी सुखदेव की 
किन्तु उनका स्वर हवा में चीख चीख कर चिल्ला रहा था -
इन्कलाब जिंदाबाद !
साम्राज्यवाद का नाश हो !
लॉन्ग लिव दी रेवोल्यूशन !
डाउन डाउन विथ इम्पेरालिस्म !

वन्दे मातरम !
शहीद सुखदेव अमर रहें !

3 टिप्‍पणियां:

  1. प्रिय यश -शहीद सुखदेव जी पर बहुत सुन्दर आलेख -इनका जीवन चरित्र और चेहरा लोगों के बीच आये लोग जागें -जानकारी बांटते रहें धन्यवाद
    सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५

    जवाब देंहटाएं
  2. yash ...bahut sundar aalekh..tumhara ye prayas bahut hi sarahniya hai jo tum mahare desh ki vibhutiyon ka jiwan parichay sab tak pahucha rahe ho..

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रिय यश -शहीद सुखदेव जी पर बहुत सुन्दर आलेख -इनका जीवन चरित्र और चेहरा लोगों के बीच आये लोग जागें -जानकारी बांटते रहें धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं