शनिवार, 16 अप्रैल 2011

अरे लुटेरे भाई तेरी - क्या दूकान चली है


अरे लुटेरे भाई तेरी -
क्या दूकान चली है
कल तक तो तू जुआ खेलता
गलियों में था दर्शन देता
अब 'पद्मावती' में घूमे - जाये
दिल्ली पहुंचे तो उड़ जाये
सागर के उस पार !!

कोई महिला -कहीं अकेली
या कायर हो पुरुष कहीं
पल भर तू फिर नहीं चूकता
हाथ सफाई-लगे कसाई !!

कामाख्या का जादू सीखा

एक खिलाडी को ना- छोड़ा

टूट –फूट- कर ‘सपने बिखरे 

फिर भी कहती मै ना हारी
ये है नारी !!  अरे लुटेरे
ले ली उसकी टांग
तुझको ना नरसिंह मिलें
कभी बिठाते जांघ !!



अगर लूटना है तो लूटो
लूट  रहे जो घूमे
उसी ट्रेन में टी. टी. से मिल
जेब भरे - है - घूमे
एक तमाचा जड़ दो उसको
ताकत अपनी दिखा वहां तू
पहलवान बन जाओ !!

अगर काटना पाँव ही तुझको
सोये -देखो ड्यूटी- हैं वो
लूट रहे -सरकार- खजाना
उनको जा के लूटो !!

कल तेरी माँ -बहना भी
सफ़र कहीं - जो कहीं अकेली
तेरे भाई मिल जायेंगे -देर नहीं
काट-काट कर- डालें -बोटी !!

इसी ट्रेन में अपनी -सेना
लव-‘लश्कर के साथ चले है
माना तेरी सीमा तय है
दुश्मन से तू देश के भाई
जान लड़ाए रोज लड़े हैं
आँख खोल कर प्यारे देखो
दुश्मन तेरे साथ चले हैं
कभी कहीं कुछ मोड़ जो आये
चलती ट्रेन कहीं रुक जाये
थोडा सा तुम जागो भाई
चीर- हरण या कोई लुटेरा
आह भरी कानो जब आये
कृष्ण हमारे कुछ कर जाओ  !!!



कार खड़ी कर सड़कों पर हम
कितना जाम लगायें -
ले परिवार शाम को आयें
वो फुल्के की और बताशा
चाट -चाटने -मटरू वाली
क्या दूकान लगी है
उस बर्तन में "मूते" -जाये
क्या संदेशा  दुनिया  छाये !!
इन जैसों से भी डरना क्या-
लोकपाल बिल लाना ??

चार साल की बच्ची - माँ- को
दफ़न किये हैं घर उसके
ताला उसके  घर में लाये
कुछ हजार जो ना ले पाए
है पंजाब की घटना सच्ची  
है -ये चेहरा- एक "पुलिस" का
लाज-शर्म सब खाए
चुल्लू भर पानी ना डूबें
ये रक्षक कहलायें !!

कहें भ्रमर "कैप्टन" की मानों
पकड़ इन्हें तुम उल्टा टांगो 
मूर्ति - इनकी ना पत्थर की
हर चौराहे एक- एक -कर
जिन्दा ही तुम कभी लगा दो

जिसके ‘दिल में जान अभी -
धड़कन कुछ जिन्दा है भाई
रोको तुम है लुटी कमाई
जागो तुम -
अभी वक्त है -
दर्द बढ़ रहा - दिन प्रतिदिन है
ठेस लगी है -
खून बह रहा -
घाव कही नासूर बने ना
जगा रही है रोती  माई !!

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
१५.०४.2011

4 टिप्‍पणियां:

  1. अरे लुटेरे भाई तेरी -
    क्या दूकान चली है
    कल तक तो तू जुआ खेलता
    ‘गलियों’ में था दर्शन देता
    अब 'पद्मावती' में घूमे - जाये
    ‘दिल्ली’ पहुंचे तो उड़ जाये
    सागर के उस पार !!

    बहुत ही सुंदर

    "सुगना फाऊंडेशन जोधपुर" "हिंदी ब्लॉगर्स फ़ोरम" "ब्लॉग की ख़बरें" और"आज का आगरा" ब्लॉग की तरफ से सभी मित्रो और पाठको को " "भगवान महावीर जयन्ति"" की बहुत बहुत शुभकामनाये !

    सवाई सिंह राजपुरोहित

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  2. भ्रमर जी ..
    आप नए समाज से लेकर समसामयिक और कर्तव्य का बोध कराती सरी पंक्तिया उकेर दी है...
    सुन्दर कविता आभार

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  3. प्रिय सवाई सिंह राजपुरोहित जी बहुत बहुत धन्यवाद आप की प्रतिक्रिया के लिए ये सच्चाई जो दर्द बन रोज हमारे आखों के सामने आती जा रही है इस का कुछ और छोर नजर नहीं आ रहा आप सब को भी महावीर जयंती पर ढेर सारी हार्दिक शुभ कामनाएं
    सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रम्र५

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  4. हाँ आशुतोष भाई ये सच्चा दर्द जब हमारे सामने आया तो इसे हमने अपने ब्लॉग का हिस्सा बना लिया नहीं तो अख़बार को तो लोग यहाँ वहां ठिकाने लगा देते है न ! , न जाने इस दुनिया को क्या होता जा रहा है ?? दर्द का निवारण भी कुछ तो खोजना था न ,इसलिए 'कुछ' से आह्वान भी कर दिया ....बहुत बहुत धन्यवाद आप की प्रतिक्रिया के लिए , महावीर जयंती पर ढेर सारी हार्दिक शुभ कामनाएं आप सब को
    सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५

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