कोई साथ नही देता
बनता न कोई हमसफ़र
गर हो ऐसी बात तो,
तू चला चल अपनी डगर ।
रोड़ों ने तो हमेशा ही
राह रोका किया है
तू न आस छोड़ दे ,
मार कर उन्हें ठोकर
चला चल अपनी डगर ।
ठेस भी गर लग गयी
भूल जा तू ठेस को
सुख जाएगा लहू
घाव का तू गम न कर
चला चल अपनी डगर ।
मंजिलों का भी अगर
कोई आसरा न हो
राह चल
अपनी तरह
मंजिलों की न फिक्र कर
चला चल अपनी डगर ।
कर्मवीरों के लिए
झुकता रहा है आसमां
फल की चिंता क्यों हो तुझे
तू तो अपना कर्म कर
चला चल अपनी डगर .
रूप
बनता न कोई हमसफ़र
गर हो ऐसी बात तो,
तू चला चल अपनी डगर ।
रोड़ों ने तो हमेशा ही
राह रोका किया है
तू न आस छोड़ दे ,
मार कर उन्हें ठोकर
चला चल अपनी डगर ।
ठेस भी गर लग गयी
भूल जा तू ठेस को
सुख जाएगा लहू
घाव का तू गम न कर
चला चल अपनी डगर ।
मंजिलों का भी अगर
कोई आसरा न हो
राह चल
अपनी तरह
मंजिलों की न फिक्र कर
चला चल अपनी डगर ।
कर्मवीरों के लिए
झुकता रहा है आसमां
फल की चिंता क्यों हो तुझे
तू तो अपना कर्म कर
चला चल अपनी डगर .
रूप
achchhi kavita
जवाब देंहटाएंठेस भी गर लग गयी
जवाब देंहटाएंभूल जा तू ठेस को
सुख जाएगा लहू
घाव का तू गम न कर
चला चल अपनी डगर ।
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सुन्दर रचना..लिखतें रहें..
impressive approach ......
जवाब देंहटाएंकोई साथ नही देता
जवाब देंहटाएंबनता न कोई हमसफ़र
गर हो ऐसी बात तो,
तू चला चल अपनी डगर ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति गाँधी जी का प्रिय भजन याद आ गया बंगाली में जो है -
एकला चलो एकला चलो एकला चलो रे
जोदी तोर डाक सुने केऊ ना आसे तोबे एकला चलो रे
शुभ कामनाएं और निमंत्रण हेतु धन्यवाद हमारी पहुँच जहाँ तक होगी अपने हाथ जरू पसारेंगे -
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५