मदन जी की ये कविता कमेन्ट बॉक्स में थी मुझे लगा सबसे शेयर करनी चाहिए तो पोस्ट पर लगा दी..आशा है मदन जी अन्यथा नहीं लेंगे..
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अब होते अत्याचारों पर
मिलकर ये हुँकार भरो
कहाँ छिपे हो घर मैं बेठे
निकलो और संहार करो
आतंकी अफजल , कसाब को
और नहीं जीने दो अब
घुस जाओ जेलों मैं मित्रो
आओ मिलकर वार करो
कोन है हिटलर ? कोन है हुस्नी ?
किसका नाम है गद्दाफी ?
दुष्टों को बस मोत सुना दो
देना नहीं कोई माफ़ी ….
कि जो कोई साथ दे उनका ,
बजाय हुक्म माली सा ,
सजाय मोत दो उनको
रूप हो,रोद्र काली सा
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द्वारा: मदन शर्मा
मैं इस वीर रस से भरी अभिव्यक्ति पर नतमस्तक हूँ..
जवाब देंहटाएंमदन जी बीर रस से भरी हुंकार युक्त ये रचना -सुन्दर आवाहन बधाई हो
जवाब देंहटाएंआओ हम सब सरे मिलकर सुन्दर धरा बनायें
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५