जब दर्द का ही एहसास नहीं……
तो अश्रु को व्यर्थ निमंत्रण क्यों?
जब मन मे किसी के प्यार नहीं….
तो आँखों का मूक निमंत्रण क्यों??
जब हृदय का जुडा न तार कोई….
तो तन का ब्यर्थ समर्पण क्यों?
जब रिश्तो मे विश्वास नहीं….
तो शब्दों का आडम्बर क्यों?
जब सूरज मे ही आग नहीं….
तो चन्दा से अग्नि का तर्पण क्यों?
जब सभी के चेहरे विकृत है….
तो रिश्तो का झूठा दर्पण क्यों?
जब मरकर सबको शांति मिले….
तो जीवन से आकर्षण क्यों???
जब दर्द का ही एहसास नहीं……
तो अश्रु को व्यर्थ निमंत्रण क्यों?
बहुत सुन्दर कविता..बधाई.
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'पाखी की दुनिया' में 'पाखी बनी क्लास-मानीटर' !!
आशुतोष जी!
जवाब देंहटाएंदर्द के एहसास संवेदनशील व्यक्ति को होता है। समाज से सहिष्णुता और संवेदनशीलता समाप्त हो रही है। अब केवल कविता की पंक्तियों और पुस्तकों की लकीरों में ही बंद मिलेगी। भावपूर्ण अभिव्यक्ति। शुभकामना।
आपकी अनुमति हो तो इसका पॉडकास्ट बनाना चाहूँगी...
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