यह महावीर भी शहीद भगत सिंह और सुखदेव के मृत्युपरियंत साथी थे | राजगुरु का जन्म २४ अप्रैल १९०८ को महाराष्ट्र के पुणे जिले में हुआ था इनके पिता का निधन इनके छुटपन में ही हो गया था इनका पालन पोषण इनकी माता और बड़े भैया ने किया ,यह बचपन से ही बड़े वीर ,साहसी और मस्तमौला थे ,भारत माँ से प्रेम तो बचपन से ही था ,इसी प्रकार अंग्रेजों से घृणा तो स्वाभाविक ही थी ,ये बचपन से ही वीर शिवाजी और लोकमान्य तिलक के बहुत बड़े भक्त थे ,संकट मोल लेने में भी इनका कोई जवाब नहीं था (ये संकट मोलने में भगत सिंह से भी दस कदम आगे थे ) | किन्तु यह कभी कभी लापरवाही करते थे और पढ़ाई में इनका मन न लगता इसलिए इनको अपने बड़े भैया और भाभी का तिरस्कार सहना पड़ता ,माँ बेचारी कुछ बोल न पाती ,जब राजगुरु तिरस्कार सहते सहते तंग आ गए तो वोह अपने स्वाभिमान को बचाने के लिए घर छोड़ कर चले गए ,फिर सोचा की"अब जब घर के बंधनों से स्वाधीन हूँ ही तो भारत माता की बेड़ियाँ काटने में अब कोई दुविधा नहीं है" वे कई दिनों तक भिन्न भिन्न क्रांतिकारियों से भेंट करते रहे अंत में उनकी क्रांति की नौका को चंद्रशेखर आजाद जी ने पार लगाया राजगुरु हिंदुस्तान सामाजवादी प्रजातान्त्रिक संघ के सदस्य बन गए , चंद्रशेखर आजाद इस जोशीले नवयुवक से बहुत प्रभावित हुए और बड़े चाव से इन्हें निशाने बाजी की शिक्षा देने लगे और शीघ्र ही आजाद जी जैसे एक कुशल निशाने बाज बन गए ,कभी कभी चंद्रशेखर आजाद इनको इनकी लापरवाहियों पर डांट देते किन्तु यह सदा आजाद जी को बड़ा भाई समझ कर बुरा न मानते इनकी गोलियां कभी चुकती नहीं थीं ,दल में इनकी भेंट भगत सिंह और सुखदेव से हुयी राजगुरु इन दोनों से बड़े प्रभावित हुए और ये दोनों तो राजगुरु को अपना सबसे अच्छा साथी मानते थे | दल ने लाला लाजपत राय के मृत्यु के जिम्मेवार अँगरेज़ अफसर स्कॉट का वध करने की योजना बनायीं ,इस काम के लिए शहीद राजगुरु और भगत सिंह को चुना गया ,राजगुरु तो अंग्रेजों को सबक सिखाने का अवसर ढूँढ़ते ही रहते थे ,सो मिल गया
१७ दिसंबर १९२८ को राजगुरु ,भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद ने सुखदेव के कुशल मार्गदर्शन के फलस्वरूप सांडर्स नाम के एक अन्य अँगरेज़ अफसर जिसने स्कॉट के कहने पर लाला लाजपत राय पर लाठियां चलायीं का वध कर दिया ,कार्यवाही के पश्चात भगत सिंह अंग्रेजी साहब बन कर ,राजगुरु उनके सेवक बन कर और चंद्रशेखर आजाद सुरक्षित पुलिस की दृष्टि से बच कर निकल गए |
समय ने करवट बदली भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के असेम्बली में बम फोड़ने और स्वयं को गिरफ्तार करवाने के पश्चात चंद्रशेखर आजाद को छोड़ कर सुखदेव सहित दल के सभी सदस्य गिरफ्तार कर लिए गए ,केवल राजगुरु ही इससे बचे रहे ,आजाद जी के कहने पर पुलिस से बचने के लिए राजगुरु कुछ दिनों के लिए महराष्ट्र चले गए किन्तु लापरवाही के कारण राजगुरु भी छुटपुट संघर्ष के बाद पकड़ लिए गए | अंग्रेजों ने चंद्रशेखर आजाद का पता जानने के लिए राजगुरु पर अनेकों अमानवीय अत्त्याचार किये किन्तु वो वीर विचलित न हुए ,लेशमात्र भी नहीं ,पुलिस ने राजगुरु को अपने सभी साथियों के साथ लाकर लाहौर जेल में बंद कर दिया ,सभी साथी मस्तमौला वीर मराठी राजगुरु को पाकर बड़े खुश थे ,लाहौर में सभी क्रांतिकारियों पर सांडर्स वध का मुकदमा चल रहा था ,मुक़दमे को क्रांतिकारियों ने अपनी फाकामस्ती से बड़ा लम्बा खींचा ,सभी जानते थे की अदालत ढोंग है उनका फैसला तो अंग्रेजी हुकूमत ने पहले ही कर दिया था ,राजगुरु ,भगत सिंह और सुखदेव जानते थे की उनकी मृत्यु का फरमान तो पहले ही लिखा जा चूका है तो क्यों न अदालत में अँगरेज़ जज को धुल चटाई जाए अपनी मस्तियों से ,एक बार राजगुरु ने अदालत में अँगरेज़ जज को संस्कृत में ललकारा ,जज चौंक गया उसने बोला " टूम क्या कहता हाय " राजगुरु ने भगत सिंह की तरफ हंस कर कहा की "यार भगत इसको अंग्रेजी में समझाओ ,यह जाहिल हमारी भाषा क्या समझेंगे" ,सभी क्रांतिकारी ठहाका मार कर हसने लगे ,जज मुह देखता रह गया ,इधर जेल में भगत सिंह के नेत्रत्व में क्रांतिकारियों ने जेल में कैदियों के साथ होने वाले अमानवीय अत्त्याचारों के विरुद्ध आमरण अनशन आरंभ कर दिया ,जिसको जनता का जबरदस्त समर्थन मिला जो पहले से ही क्रांतिकारियों के प्रति श्रद्धा का भाव रखती थी ,विशेष रूप से भगत सिंह के प्रति , वायसराय के कुर्सी तक हिल गयी ,अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों को हड़ताल तुडवाने का जबरदस्त प्रयत्न किया किन्तु क्रांतिकारियों के जिद्द के सामने वो हार गए , राजगुरु और जतिन दस की इस अनशन में हालत बड़ी पतली हो गयी ,राजगुरु और सुखदेव से अँगरेज़ विशेष रूप से हार गए थे , जतिन दस आमरण अनशन के कारण शहीद हो गए जिससे जनता भड़क उठी ,विवश हो कर अंग्रेजों को क्रांतिकारियों की सभी बातें मनानी पड़ीं ,यह क्रांतिकारियों की विजय थी ,उधर सांडर्स वध मुक़दमे का परिणाम निकल आया
सांडर्स के वध के अपराध में राजगुरु ,सुखदेव और भगत सिंह को मृत्युदंड मिला | तीनों इस मृत्युदंड को सुन कर आनंद से पागल हो गए और जोर जोर से इन्कलाब जिंदाबाद की गर्जाना की !
२३ मार्च १९३१ को वीर राजगुरु ने अपने दोनों मतवाले साथियों -भगत सिंह और सुखदेव के साथ फांसी के फंदे के माध्यम से अपने राष्ट्र के लिए अपने पार्थिव शरीर का त्याग कर दिया ,राजगुरु का प्राण गगन में उड़ गया और जयघोष करने लगा -
इन्कलाब जिंदाबाद !
इन्कलाब जिंदाबाद !
इन्कलाब जिंदाबाद !
साम्राज्यवाद का नाश हो !
साम्राज्यवाद का नाश हो !
साम्राज्यवाद का नाश हो !
साम्राज्यवाद का नाश हो !
अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों को हड़ताल तुडवाने का जबरदस्त प्रयत्न किया किन्तु क्रांतिकारियों के जिद्द के सामने वो हार गए , राजगुरु और जतिन दस की इस अनशन में हालत बड़ी पतली हो गयी
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक प्रस्तुति - मूल्यवान संकलन
यश तुम्हारी कृतियाँ पढ़ कर रोमांच सा आ जाता है..ह्रदय वीर रस से भर जाता है... ऐसे ही लिखते रहें.. इश्वर आप को आप के कार्य एवं अभीष्ट को पाने में सहायता करे..
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक प्रस्तुति
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