पुणे की चित्पवान ब्राह्मण परिवार में दामोदर चापेकर का सन १८६९ में ,बालकृष्ण चापेकर का सन १८७३ में और वासुदेव चापेकर का सन १८८० में जन्म हुआ | तीनो भाइयों क्र मन में देशभक्ति की अखंड ज्योति जल रही थी | सन १८९७ में पुणे में प्लेग नामक भयंकर रोग फैला ,शिवाजी महाराज जयंती और गणेश उत्सव की क्रमशः बढ़ते हुए राष्ट्रीय उत्सव से अंग्रेज सरकार वैसे भी आतंकित थी , इसी बहाने वो लोगों से उनके मकान खाली करवा लेती और उन पर मनमाने अत्त्याचार करती | पुणे का प्लेग कमिश्नर रैंड इन अत्त्याचारियों का सरगना |
२२ जून १८९७ को विक्टोरिया के के राज्यारोहण की सांठवी वर्षगांठ थी | इसे बड़ी धूमधाम से गवर्मेंट हाउस में मनाया जा रहा था | एक लेफ्टिनेंट आय्रस्त उसी समय वहां से गुजर रहा था की की सहसा गोली का धमाका हुआ और दुसरे ही क्षण पापी रैंड धरती पर धराशायी हो गया ,उसी समय लेफ्टिनेंट आय्र्स्त को भी एक गोली लगी जिससे वोह भी यमलोक सिधार गया ,दामोदर चापेकर ने रैंड के और बालकृष्ण चापेकर ने आय्र्स्त का काम तमाम कर दिया |
दामोदर चापेकर और बालकृष्ण चापेकर दोनों भाई गिरफ्तार कर लिए गए और उनका एक साथी भी गिरफ्तार कर लिया गया , किन्तु किसी प्रलोभंवश या मृत्यु के भयवश तीसरा व्यक्ति सरकारी मुखबीर बन बैठा |
चापेकर बंधुओं में तीसरा भाई वासुदेव चापेकर था | उसने जब सरकारी गवाह वाला समाचार सुना तो वो प्रतिशोध लेने के लिए तत्पर हो उठा ,सरकारी गवाह को उसकी करनी का फल चखाने के लिए उसने भरी अदालत में देशद्रोही मुखबीर को अपनी एक ही गोली से यमलोक पहुंचा दिया |
दामोदर चापेकर १८ अप्रैल सन १८९८ ,बालकृष्ण चापेकर १२ मई सन १८९९, तथा वासुदेव चापेकर८ माई सन १८९९ को यरवदा जेल में मुस्कुराते हुए फांसी के फंदे पर अमर हो गए | इन तीनो के बलिदान ने समूचे भारत वर्ष को झकझोर दिया ,इससे भारतीय युवकों में आक्रोश में भड़क उठा | युवाओं ने माँ दुर्गा के सामने खड़े हो कर प्रार्थना की " माँ हमे शक्ति दो ,हम भारत की स्वाधीनता के लिए तब तक लड़ें जब तक हमारी जान में जान रहे | माँ हमे यह शक्ति दो ताकि हम अपने उद्देश्य में सफल हो सकें " |
आइये हम सब भी चापेकर भाइयों को याद करें और देश को पूर्ण स्वतंत्र करने की शपथ लें अखंड भारत निर्माता विनायक दामोदर सावरकर की इस कविता के साथ -
"निज स्वार्थों पर ठोकर मारी ,दुष्ट रैंड के प्राण हरे ,
परार्थ साधक श्री चापेकर आज उन्हें हम नमन करें
अंग्रेजों के दुष्ट कुटिल षड्यंत्र जिन्होंने ध्वस्त किये ,
देश हितैषी श्री चापेकर आज उन्हें हम नमन करें |
प्राण जाय पर सत्य ने जाय जो आजीवन टेक करे ,
धेय्य निष्ठ थे ,वीर श्रेष्ठ थे ,आज उन्हें हम नमन करें
देश धर्म की बलिदेवी पर प्रथम रहे देशापर्ण में ,
वंदन है शत बार हमारा श्री चापेकर चरणों में |
बिना शत्रु की तौले ताकत कूद पड़े समरांगण में ,
वंदन है शत बार हमारा ,श्री चापेकर चरणों में |
तीनो भाई मित्र रानाडे हँसते झूले फांसी में ,
मृत्यु पथ पर चले धीर-वर लेकर गीता हाथों में |
वंदन है शत बार हमारा श्री चापेकर चरणों में
कार्य अधुरा छोड़ चले हो इसकी चिंता करो नहीं ,
सब कुछ दे कर पूर्ण करूँगा माना जीवन धेय्य यही"
इन्कलाब जिंदाबाद !
चापेकर बंधू अमर रहें !
(चापेकर बंधुओं के बारे में मैंने अपनी कुछ पुस्तकों से इस कंप्यूटर पर छापा है ,इसमें मेरा कोई योगदान नहीं |)
आप हिंदी लेखन में नई बुलंदियों को छुएं मेरी शुभकामना आपके साथ है. बहुत-बहुत बधाई.
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यश बहुत बहुत बधाई ..चापेकर बंधू का परिचय एवं विवरण देने के लिए
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