शुक्रवार, 3 जून 2011

चंचल धारा....डा श्याम गुप्त...

नदिया की ओ चंचल धारा !
तू क्यों है इतनी आज विकल?

क्या तूने भी  है  जान  लिया ,
मुझसे है बिछुड़ा प्यार मेरा|
या  देख मुझे  एकाकी सा,
लहरें करतीं उपहास तेरा |

या याद  तुझे वह दिन आया,
जब  तेरी गोद में  आये थे |
हम दोनों ने मिलकर जिस दिन,
वो गीत  वफ़ा के  गाये थे |

क्यों बिछुड़ गया मेरा साथी,
क्या यही सोचती तू चंचल |

नदिया की ओ चंचल धारा,
तू क्यों है इतनी आज विकल ||

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