प्रस्तुत है मेरी एक पुरानी कविता ..
इस वसुधा में सन्नाटा है..
वो व्योम नजर नहीं आता है.
मेरे दुख के झंकृत तरंग को,
ये काल छिनने आया है...
शायद पथ के हमराही ने,
अब मुक्तिगीत को गाया है.
क्या अंतसमय अब आया है.....
तरु पर बैठा खेचर निढाल.
रवि का मस्तक हो गया लाल,
इस संध्या रागिनी बेला में,
ये कोलाहल क्यों समाया है...
आक्रांत रवि की किरणों से
क्या तुमने सिंदूर लगाया है??
इस दृग की सीमाओं ने जो,
अंतिम विश्वास लगाया था..
सर्वस्व समर्पण करने का,
जो राग प्रीत का गया था..
भुज पाश से निज मुक्ति दे कर,
सब कुछ का अर्घ्य चढ़ाया है......
क्या अंतसमय अब आया है...
पाताल में या स्वर्ग से,
इस जलधि के उत्सर्ग से...
उन्माद था जो बह गया..
स्तब्ध नीरव पत्थरों का,
मर्म बाकि रह गया...
इन पत्थरो का मर्म अब,
भगवान बन कर आया है....
क्या अंतसमय अब आया है......
वो व्योम नजर नहीं आता है.
मेरे दुख के झंकृत तरंग को,
ये काल छिनने आया है...
शायद पथ के हमराही ने,
अब मुक्तिगीत को गाया है.
क्या अंतसमय अब आया है.....
तरु पर बैठा खेचर निढाल.
रवि का मस्तक हो गया लाल,
इस संध्या रागिनी बेला में,
ये कोलाहल क्यों समाया है...
आक्रांत रवि की किरणों से
क्या तुमने सिंदूर लगाया है??
इस दृग की सीमाओं ने जो,
अंतिम विश्वास लगाया था..
सर्वस्व समर्पण करने का,
जो राग प्रीत का गया था..
भुज पाश से निज मुक्ति दे कर,
सब कुछ का अर्घ्य चढ़ाया है......
क्या अंतसमय अब आया है...
पाताल में या स्वर्ग से,
इस जलधि के उत्सर्ग से...
उन्माद था जो बह गया..
स्तब्ध नीरव पत्थरों का,
मर्म बाकि रह गया...
इन पत्थरो का मर्म अब,
भगवान बन कर आया है....
क्या अंतसमय अब आया है......
पाताल में या स्वर्ग से,
जवाब देंहटाएंइस जलधि के उत्सर्ग से...
उन्माद था जो बह गया..
स्तब्ध नीरव पत्थरों का,
मर्म बाकि रह गया...
इन पत्थरो का मर्म अब,
भगवान बन कर आया है....
क्या अंतसमय अब आया है......
bahut sundar hindi ka prayog kiya hai aashutosh ji bahut sundar abhivyakti hai.
बहुत सुंदर कविता , सत्य वचन ! हर शाख पर उल्लू बैठा है अंजामे गुलसिता क्या होगा !!
जवाब देंहटाएंआशुतोष जी क्या बात है
जवाब देंहटाएंखो गए हो तुम कहाँ जज्बात के तूफान में -
लाल रंग ये जटिल बहुत है
रण में हो या कोई सुंदरी धारण कर ले माथे
सुन्दर दिन प्रतिदिन छलक रही है माँ शारद की कृपा
मन करता है दर्द से बचने दुनिया से कही और चला मै जाऊं
तरु पर बैठा खेचर निढाल.
रवि का मस्तक हो गया लाल,
इस संध्या रागिनी बेला में,
ये कोलाहल क्यों समाया है...
आक्रांत रवि की किरणों से
क्या तुमने सिंदूर लगाया है??
शुक्ल भ्रमर ५
@शलिनि जी..आभार आप का
जवाब देंहटाएं@ मदन जी : आप के उत्साह्वेर्धन का आभार ..इस शेर का मतलब इस कविता से नहीं जोड़ पाया कृपया सहायता करें.
@सुरेन्द्र जी: धन्यवाद आप का