जीवन सार जीवन भगवन कि सबसे बड़ी सौगात है |यह मनुष्य का जन्म हमारे लिय भगवन का सबसे बड़ा उपहार है |जीवन बेशकीमती है, इसको छोटे छोटे उद्देश्यों के लिय जीना जीवन का अपमान है |अपनी शक्तियों को तुच्छ कामों में व्यर्थ खर्च करना, व्यसनों एवं वासनाओं में जीवन का बहुमूल्य समय बर्बाद करना, जीवन का तिरस्कार है |जीवन अनन्त है,हमारी प्रतिभाएँ भी अनन्त हैं |
हम अपनी शारीरिक,मानसिक,सामाजिक, आध्यात्मिकस शक्तियों का लगभग 5 प्रतिशत ही उपयोग कर पाते हैं |हमारी अधिकांश शक्तियाँ सुप्त ही रह जाती हैं |यदि हम अपनी आंतरिक शक्तियों का
पूरी तरह उपयोग पुरुष से महापुरुष व् युगपुरुष, मानव से महामानव बन जाते हैं |हमारी मानवीय चेतना में वैश्विक चेतन अवतरित होने लगती हैं और दुनिया भ्रमवश इन्शान को भगवान कि तरह पूजने लगती है |योगेश्वर श्री कृष्ण ,मर्यादा पुरुषोतम श्रीराम, महायोगी शिव,भगवता को प्राप्त महावीर स्वामी, समर्पण से सम्बोधि को प्राप्त हुए गुरु नानक देव,गुरु गोविन्द सिंह ,महर्षि दयानद,स्वामी विवेकानंद जो अलौकिक शक्तियाँ या सिद्धियाँ थी, वे समस्त हमारे भीतर सन्निहित हैं |योगी को कभी स्वयं को दीनहीन दुखी. असहाय या अकेला नहीं मानना चाहिय | प्रतिपल "अहं ब्रह्मास्मि" मैं विराट हूँ |मैं परमात्मा का प्रतिनिधि हूँ |इस धरती पर मेरे जन्म एक महान उद्देश्य को लेकर हुआ है |मुझ में धरती सा धैर्य, अग्नि सा तेज वायु सा वेग जल जैसी शीतलता व् आकाश जैसी विराटता है |
मेरे मस्तिष्कमें ब्राह्मण सा ब्रह्म तेज, मेधा,प्रज्ञा व् विवेक है |मेरी भुजाओ में क्षत्रिय जैसा शौर्य, पराक्रम,साहस व् स्वाभिमान है |मेरे उदर में वैश्य जैसा व्यापार का कुशल प्रबंधन व् शुद्र्वत सेवा करने को मैं अपना सौभाग्य समझता हूँ |मैं एक व्यक्ति नहीं ,मैं एक संस्कृति हूँ |मैं एक वंश परम्परा व् एक शाश्वत संस्कृति का संवाहक हूँ |मैं भारत से हूँ |मैं माँ भारती का अमृत पुत्र हूँ,"माता भूमि :पुत्रोहं पृथिव्या :"| मैं भूमि,भवनपद सत्ता रूप यौवन नहीं,मैं नाशवान देह नहीं, मैं अजर, अमर, नित्य, अविनाशी
ज्योतिर्मय व् तेजोमय आत्मा हूँ |
हम अपनी शारीरिक,मानसिक,सामाजिक, आध्यात्मिकस शक्तियों का लगभग 5 प्रतिशत ही उपयोग कर पाते हैं |हमारी अधिकांश शक्तियाँ सुप्त ही रह जाती हैं |यदि हम अपनी आंतरिक शक्तियों का
पूरी तरह उपयोग पुरुष से महापुरुष व् युगपुरुष, मानव से महामानव बन जाते हैं |हमारी मानवीय चेतना में वैश्विक चेतन अवतरित होने लगती हैं और दुनिया भ्रमवश इन्शान को भगवान कि तरह पूजने लगती है |योगेश्वर श्री कृष्ण ,मर्यादा पुरुषोतम श्रीराम, महायोगी शिव,भगवता को प्राप्त महावीर स्वामी, समर्पण से सम्बोधि को प्राप्त हुए गुरु नानक देव,गुरु गोविन्द सिंह ,महर्षि दयानद,स्वामी विवेकानंद जो अलौकिक शक्तियाँ या सिद्धियाँ थी, वे समस्त हमारे भीतर सन्निहित हैं |योगी को कभी स्वयं को दीनहीन दुखी. असहाय या अकेला नहीं मानना चाहिय | प्रतिपल "अहं ब्रह्मास्मि" मैं विराट हूँ |मैं परमात्मा का प्रतिनिधि हूँ |इस धरती पर मेरे जन्म एक महान उद्देश्य को लेकर हुआ है |मुझ में धरती सा धैर्य, अग्नि सा तेज वायु सा वेग जल जैसी शीतलता व् आकाश जैसी विराटता है |
मेरे मस्तिष्कमें ब्राह्मण सा ब्रह्म तेज, मेधा,प्रज्ञा व् विवेक है |मेरी भुजाओ में क्षत्रिय जैसा शौर्य, पराक्रम,साहस व् स्वाभिमान है |मेरे उदर में वैश्य जैसा व्यापार का कुशल प्रबंधन व् शुद्र्वत सेवा करने को मैं अपना सौभाग्य समझता हूँ |मैं एक व्यक्ति नहीं ,मैं एक संस्कृति हूँ |मैं एक वंश परम्परा व् एक शाश्वत संस्कृति का संवाहक हूँ |मैं भारत से हूँ |मैं माँ भारती का अमृत पुत्र हूँ,"माता भूमि :पुत्रोहं पृथिव्या :"| मैं भूमि,भवनपद सत्ता रूप यौवन नहीं,मैं नाशवान देह नहीं, मैं अजर, अमर, नित्य, अविनाशी
ज्योतिर्मय व् तेजोमय आत्मा हूँ |
आओ माँ भारती कि सेवा का संकल्प ले ...इन सब को पढ़ने के बाद भारत कि वर्तमान परिस्थितियों को समझते हुए |हमारी संस्कृति के संवाहक का का दायित्व जरुर निभाएं |सच का साथ दें |अन्याय का खुलकर विरोध करें
तरुण भारतीय जी बहुत सुन्दर सार्थक लेख निम्न पंक्ति लाजबाब
जवाब देंहटाएंअपनी शक्तियों को तुच्छ कामों में व्यर्थ खर्च करना, व्यसनों एवं वासनाओं में जीवन का बहुमूल्य समय बर्बाद करना, जीवन का तिरस्कार है |जीवन अनन्त है,हमारी प्रतिभाएँ भी अनन्त हैं |
shukl Bhrmar5
http://surendrashuklabhramar.blogspot.com