शनिवार, 11 जून 2011

अमर शहीद उधम सिंह -प्रतिशोध का अंगार








सौंजन्य-पुस्तक-"हमारे युवा बलिदानी ",लेखक-उमाकांत मालवीय 

वन्दे मातरम ,

तो प्रस्तुत है उनके जीवन का संक्षेप में परिचय -

भारत के इतिहास में जलियावाला बाग़ की घटना का अपना विशेष महत्त्व है ,अधर्मी नराधम क्रूर अँगरेज़ जनरल दायर ने  नराधम अँगरेज़ माइकल ओ दयार के क्रूरतापूर्ण आदेश के चलते कई  हजार भारतवासियों को जलियावाला बाग़ में मार डाला ,उस माइकल ओ दायर नाम के नीच  को छोटे छोटे बच्चों और स्त्रियों पर भी दया नहीं आई ,उन हजारों लोगों का केवल यह अपराध था की वो अपनी राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे थे | इस घृणित कार्य की सर्वत्र निंदा हुई , यद्यपि दायर की सब जगह निंदा हुई किन्तु अँगरेज़ सरकार ने उसके विरुद्ध एक शब्द भी नहीं कहा जब की इसी कमीनी सरकार ने वारेन हेस्टिंग्स के अन्यायों के लिए उस पर मुकदमा चलाया था |
वीर उधम सिंह अमृत सर के निवासी थे  उनका जन्म २६ दिसंबर १८९९ में हुआ था ,उनके पिता राष्ट्रीय विचारों के थे | पंजाब के लाला लाजपत राय के विचारों का उनपर गहरा प्रभाव था | जन जागृति के कार्यक्रम में उनका अटूट विश्वास था ,वे सदैव उसमे सक्रिय रूचि लेते थे | उधम सिंह के माता-पिता का बचपन में ही देहांत हो गया ,फलस्वरूप उनको अपने बचपान का शेष काल अनाथ आश्रम में बिताना पड़ा ,बचपन से ही उधम सिंह तेज ,हठीले और निर्भीक स्वभाव के थे ,वे जिस काम में लग जाते उसे पूरा करके ही दम लेते ,जलियावाला बाग़ हत्याकांड  के समय उन्होंने युवावस्था में प्रवेश ही किया ,उन्होंने उस घटना में बाद प्रतिज्ञा की की वो माइकल ओ दायर का अंत करके जलियावाला बाग़ के बलिदानियों का ऋण चुकायेंगे | सन १९३३ में वो इंग्लैंड चले गए ,उन्होंने लन्दन में इंजीनियरिंग में दाखिला लिया , भारतवासियों के शत्रु  माइकल ओ दायर से बदला लेने की उत्कट इच्छा ही उनके आंग्ल देश जाने का कारण थी|

वहां उन्होंने रिवाल्वर तथा गोलियां प्राप्त  की , तथा १३ मार्च सन १९४० को लन्दन कैक्सटन हाल में सेंट्रल एशियन सोसाइटी और इस्ट इंडिया असोसिएशन की बैठक में कमीने माइकल ओ दायर का  वध कर दिया , ,उन्हें पकड़ लिया गया,वो बड़े प्रसन्न थे उन्होंने अपने बयान में कहा 
"वो (दायर )  मेरे  देश के वासियों के स्वाभिमान को कुचलना चाहता था तो मैंने उसे कुचल दिया" अंग्रेजों तथा यवनों के टट्टू गाँधी और नेहरु ने उनके इस महान कार्य को दुर्भाग्य पूर्ण कहा ,जय हो शर्मनिरपेक्षता की ! 
वीर उधम सिंह शान से ३१ जुलाई १९४० को  इन्कलाब जिंदाबाद का नारा प्रशस्त करते हुए फांसी के फंदे पर अमर हो गये! भारत माँ ने  गर्व   से अपने    उस वीर पुत्र के लिए अपनी बाहें फैला लीं , स्वर्ग से त्रिदेवों ने प्रसन्न भाव से उन्हें वरदान दिया -
मृत्युंजयी भव! (भगवान् आशुतोष ने )
मृत्युंजयी भव!-(भगवान् प्रजापति ने )
मृत्युंजयी भव ! (भगवान् श्री हरी ने )

2 टिप्‍पणियां:

  1. विचारोत्तेजक रचना .
    बहुत कुछ सोचने को विवश करता है आपका लेख ..
    बहुत अच्छी प्रस्तुति ! आज देश में ऐसे ही क्रांतिवीरों की जरुरत है

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  2. एक उधम सिंह यहाँ भी चाहिए...भारत के डायारों के वध के लिए..
    शत शत नमन इन अमर वीर बलिदानी को..
    भाररत माता की जय...

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