गुरुवार, 16 जून 2011


यथेमाम वाचं  कल्याणीमावदानी जनेभ्यः | ब्रह्मराजान्याभ्याम  शूद्राय चार्याय च स्वाय चारणाय च |
यजुर्वेद (२६ -२ )
जैसे मै अपनी कल्याणकारी वेद वाणी का मनुष्य मात्र के लिए उपदेश करता हूँ वैसे ही तुम भी किया करो | मैंने ब्राह्मणों क्षत्रियो वैश्यों शूद्रों तथा अतिशूद्रों आदि सभी के लिए वेदों का प्रकाश किया है |  
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        (वीरू भाई )
अतिथि पोस्ट के रूप में वीरू भाई का लेख आप के लिए प्रस्तुत है 

राजीव गांधी की राजनीति में आत्मघाती गलती क्या था ?  खुद को मिस्टर क्लीन घोषित करवाना . इंदिराजी श्यानी थीं . उनकी सरकार में चलने वाले भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जब उनकी राय पूछी गई उन्होंनेझट कहा यह तो एक भूमंडलीय फिनोमिना है . हम इसका अपवाद कैसे हो सकतें हैं . 
(आशय यही था सरकारें मूलतया होती ही बे -ईमान और भ्रष्ट हैं ). यह वाकया १९८३ का है जिस पर दिल्ली उच्च न्यायालय के एक ईमानदार न्यायाधीश महोदय ने निराशा और हताशा के साथ कहा था-- वहां क्या हो सकता है भ्रष्टाचार के बिरवे का जहां सरकार की मुखिया ही उसे तर्क सम्मत बतलाये . यही वजह रही इंदिराजी पर कभी भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा न ही उन्होंने कभी अपने भ्रष्टाचार और इस बाबत निर्दोष होने का दावा किया . ज़ाहिर है वह मानतीं थीं-"काजल की कोठारी में सब काले ही होतें हैं . ऐसा होना नियम है अपवाद नहीं ।
राजीव गांधी खुद को पाक साफ़ आदर्श होने दिखने की महत्व -कांक्षा पाले बैठे थे और इसलिए उन्हें बोफोर्स के निशाने पर लिया गया और १९८९ में उनकी सरकार को खदेड़ दिया गया . जब की इंदिरा जी ने खुद को इस बाबत इम्युनाइज़्द ही कर लिया था , वे आखिर व्यावहारिक राजनीतिग्य थीं ।
राजनीति -खोरों के लिए इसमें यही नसीहत और सबक है अगर ईमानदार नहीं हो तो वैसा दिखने का ढोंग (उपक्रम )भी न करो .
लेकिन सोनिया जी ने अपने शोहर वाला रास्ता अपनाया है . त्यागी महान और ईमानदार दिखने का .लगता है १९८७-१९८९ वाला तमाशा फिर दोहराया जाएगा . हवा का रुख इन दिनों ठीक नहीं है । आसार भी अच्छे नहीं हैं . अप -शकुनात्मक हैं ।
राजीव गांधी का अनुगामी बनते हुए और इंदिराजी को विस्मृत करते हुए नवम्बर २०१० में एक पार्टी रेली में उन्होंने भ्रष्टाचार के प्रति "जीरो टोलरेंस "का उद्घोष किया ।
चंद हफ़्तों बाद ही उन्होनें अपना यह संकल्प कहो या उदगार दिल्ली के प्लेनरी सेशन में दोहरा दिया . उन्होंने पार्टी काडर का आह्वाहन किया भ्रष्टाचारियों को निशाने पे लो किसीभी दगैल को छोड़ा नहीं जायेगा . दार्शनिक अंदाज़ में यह भी जड़ दिया भ्रष्टाचार विकास के पंख नोंचता है ।
तब से करीब पच्चीस बरस पहले राजीव गांधी ने भी पार्टी के शताब्दी समारोह में मुंबई में ऐसे ही उदगार प्रगट किये थे ।
अलबत्ता दोनों घोषणाओं के वक्त की हालातों में फर्क रहा है ,राजीव जी के खिलाफ तब तक कोई "स्केम ",कोई घोटाला नहीं था . क्लीन ही दीखते थे वह ।
लेकिन सोनिया जी से चस्पा थे -कोमन वेल्थ गेम्स , टू जी , आदर्श घोटाले ।
राजीव जी बोफोर्स के निशाने पर आने से पहले बे -दाग ही समझे गए . लेकिन सोनियाजी की राजनीतिक तख्ती पर सिर्फ कात्रोची ही नहीं लिखा है , क्वाट -रोची स्विस बेंक की ख्याति वाले और भीं अंकित हैं साफ़ और मान्य अक्षरों में ।
मामला इस लिए भी संगीन रुख ले चुका है एक तरफ विख्यात स्विस पत्रिका और दूसरी तरफ एक रूसी खोजी पत्रकार द्वारा गांधी परिवार के सनसनी खेज घोटालों के खुलासे के बाद सोनिया जी के कान पे आज दो दशक बाद भी जूं भी नहीं रेंगीं हैं ,है सूंघ गया सामिग्री सामिग्री है .साहस नहीं हुआ है उनका प्रतिवाद का या मान हानि के बाबत मुक़दमे या और कुछ करने का .
नवम्बर १९,१९९१ के अंक में स्विटज़र -लेंड कीएक नाम चीन पत्रिका (स्वैज़र इलस -ट्री -एर्टे) ने तीसरी दुनिया के कोई एक दर्ज़नऐसे राज -नीतिज्ञों का पर्दा फास किया जिन्होनें रिश्वत खोरी का पैसा स्विस बेंक में ज़मा करवा रखा था .इनमें कथित मिस्टर क्लीन भी थे .इस नामचीन पत्रिका की कोई २,१५ ,००० प्रतियां प्रति अंक बिक जातीं हैं .पाठक संख्या स्विटज़र -लेंड की कुल वयस्क आबादी का कोई छटा हिस्सा रहता है लगभग ९,१७,००० प्रति अंक ।
के जी बी रिकोर्ड्स के हवाले से बतलाया गया था राजीव की विधवा का यहाँ कोई ढाई अरब फ्रांक (तकरीबन २.२ अरब बिलियन डॉलर्स ) से गुप्त एकाउंट चल रहा है .इनके अल्प -वयस्क पुत्र के नाम से यह खाता ज़ारी था (जो अब कोंग्रेस के राजकुमार हैं )।
बतलाया यह भी गया था यह लेखा अनुमान के मुताबिक़ जून १९८८ से भी पहले से ज़ारी था जब राजीव ने भारी जन समर्थन बटोरा था ।
रुपयों में यह राशि वर्तमान के १०,००० करोड़ आती है .स्विस बेंक में पैसा द्विगुणित होता रहता है ।
लॉन्ग टर्म सिक्युरितीज़ में निवेश करने पर यह २००९ में ही हो जाता ४२,३४५ करोड़ रुपया .अमरीकी स्टोक्स में निवेशित होने पर हो जाता १२.९७ अरब डॉलर (५८ ,३६५ करोड़ रूपये )।
जो हो आज इसगांधी परिवार के खाते की कीमत 4३,००० -८४,००० करोड़ के बीच हो गई है ।
(ज़ारी ...)
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6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी नजरिये से पूरी तरह सहमत |
    जब देश का रक्षक ही खुद भक्षक बन जाय !
    लुट लिया सारी जनता को देशसेवक कहलाय
    जब चारा का मालिक ही सारा चारा खा जाय
    तब बोलो कैसे भैया ! विश्वास कहाँ से आये !!

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  2. मदन जी आप नेहा संग यहाँ तक लाये आपका शुक्रिया .आज देश में जो स्थिति है ,बिना कहे रहा नहीं जाता -
    राजनीतिक लफ्फाज़ फर्मातें हैं ,आतंकवादी का कोई धर्म नहीं होता ,
    मतलब साफ़ है ,आतंक -वादी धर्म -निरपेक्ष होता है ।
    सरकार बल्ले बल्ले कर रही है ,धर्म -निरपेक्षता तो बढ़ रही है .

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  3. मदन जी नमस्ते | आपका आभार इतनी जानकारी युक्त ज्ञान देने का |

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  4. bahut stya baat batayi aap ne..
    magar satta ho ya vipach sabhi ismen lage hain ..aam aadmi jaye to kaha jaye

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  5. बहुत सटीक , बधाई व आभार...अगली कड़ी का इंतज़ार ..

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