जीवन रथ के दो पहिये का
बड़ा सुहाना अदभुत मेल
एक अगर जो नहीं मिला तो
बिगड़े जीवन का सब खेल !!
नारी प्यारी माँ अपनी तो
पुरुष पिता- पाले -भर नेह !!
मेहनत कर थक दिन भी आये
पहले शिशु को गले लगाये
चूमे उछले गोदी भर ले
भूख प्यास को रहे भुलाये !!
दृष्टि सदा कोमल शिशु रख वो
न्योछावर हो बलि बलि जाये
भटके खुद काँटों के पथ पर
फूल के पलना उसे झुलाये !!
कोशिश उसकी पल पल जीवन
कोई कमी नहीं रह जाये
उसके अगर अधूरे सपने
देखे खुद को शिशु में अपने
संबल -संसाधन सब ला दे
सपने अपने सच कर जाये !!
शिक्षक है वो रक्षक है वो
पालक भाग्य विधाता है वो
ईश रूप है सब ला देता
भटकी नैया तट ला देता
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नाज हमें भी पूज्य पिता पर
जिसने हमको गुणी बनाया
अनुशासन में पाला मुझको
निज संस्कृति को हमें सिखाया||
शुद्ध आचरण सु-विचार से
निष्कलंक रहना सिखलाया !!
सत्य अहिंसा दे ईमान धन
ऊँगली थामे खड़ा किया !
रोज -रोज सींचे पौधे से
मुझको इतना बड़ा किया !!
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अभिलाषा है प्रभु बस इतनी
“मुन्ना”- उनका बना रहूँ !
वरद हस्त सिर पर हो उनका
चरणों उनके पड़ा रहूँ !!
उनकी कभी अवज्ञा न हो
आज्ञाकारी बना रहूँ !!
पिता और संतान का रिश्ता
पावन प्रतिदिन हो जाए
नहीं अभागा कोई जग में
पिता से वंचित हो जाये
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पिता की महिमा जग जाहिर है
शोभे उपमा जहाँ लगा दो !
परम “पिता” परमेश्वर जग के
राष्ट्र “पिता” चाहे तुम कह लो !!
बूढ़े पीड़ित भटक रहे जो
“पिता” समान अगर तुम कह दो
लो आशीष दुआ तुम जी भर
जीवन अपना धन्य बना लो !!
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शुक्ल भ्रमर५
१९.६.२०११ जल पी बी
नाज हमें भी पूज्य पिता पर
जवाब देंहटाएंजिसने मुझको आज बनाया
अनुशासन में पाला मुझको
संस्कृति अपनी हमें सिखाया !
शुद्ध आचरण सु-विचार से
निष्कलंक रहना सिखलाया !!
सत्य अहिंसा दे ईमान धन
ऊँगली थामे खड़ा किया !
रोज -रोज सींचे पौधे से
मुझको इतना बड़ा किया !!
sangrahniy prastuti.aabhar
बहुत सुन्दर भाव लिए कविता लिखी है आपने ! धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव लिए कविता लिखी है आपने ! धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव लिए कविता लिखी है आपने ! धन्यवाद !
जवाब देंहटाएं----वाह !! क्या बात है..अति सुन्दर रचना.....सिर्फ भावपूर्ण ही नहीं, यह कविता,विषय, कथ्य व तथ्य आदि कलापक्ष से भी पर्याप्त सुदृढ व सौंदर्य युक्त है.. बधाई भ्रमर जी....
जवाब देंहटाएं--चरण=चरणों , सिखाया=सिखाई ( संस्कृति स्त्री लिंग होती है...फिर यथा भाव ऊपर वाली बनाया को भी बनायी करना पडेगा )
आदरणीया शालिनी कौशिक जी साधुवाद -पिता और पुत्र के रिश्ते को प्रगाढ़ बनाने की ललक में रची ये रचना आप के मन को भाई संग्रहणीय रचना आप से सुन अत्यंत हर्ष हुआ -
जवाब देंहटाएंआभार आप का
शुक्ल भ्रमर ५
आदरणीय मदन जी अभिवादन -आइये इस रचना में निहित सन्देश और आवाहन को जन जन में फैला पिता -पुत्र का प्यारा रिश्ता प्रगाढ़ बनायें
जवाब देंहटाएंशुक्ल भ्रमर ५
आदरणीय डॉ श्याम गुप्त जी साधुवाद -
जवाब देंहटाएंआप का आना मंगलदायी होता है -रचना को आप ने सराहा काश इसी तरह अन्य लोग भी इसे सराहें पिता पुत्र का ये प्यारा रिश्ता सदा अनोखा और सम्मान पाता रहे दोनों आपस में मिल बैठ गिले शिकवे को दूर भगाते रहें -
--श्याम जी आप ने जिन सुधारों की तरफ इंगित किया है उनमे से चरणों को मैंने बदल दिया पर अन्य चूंकि पिता के लिए लिखे गए हैं-जो की पुल्लिंग है - इस लिए सुधार की जरुरत नहीं है आशा है आप संतुष्ट होंगे -
नाज हमें भी पूज्य पिता पर
जिसने मुझको आज बनाया ( banayi uchit nahi)
अनुशासन में पाला मुझको
संस्कृति अपनी हमें सिखाया !(sanskriti striling hai jise apni ne purn kar diya aur pita ne sikhaya arth hai jo ki pulling hai isliye sikhaya uchit hai )
धन्यवाद आप का
अपना मार्ग दर्शन यूं ही बनाये रखें
शुक्ल भ्रमर ५
----मैं समझ रहा हूँ ..वास्तव में यह ..खड़ी बोली में पूर्वी-अवधी मिक्स होने का प्रतिफल है...जैसे तकिया को पूर्वी भाषामें स्त्रीलिंग कहते हैं...तकिया ली या दी...जबकि खड़ी बोली में वह पुल्लिंग होता है....तकिया दिया या लिया....
जवाब देंहटाएं----वास्तव में यह सिखाया कार्य ..संस्कृति के लिए है पिता के लिए नहीं ...क्या सिखाया संस्कृति.( विद्या सिखाई की भांति )..अतः बनाई--सिखाई ही आना चाहिए....यदि आप पिता के लिए मानते हैं तो..पिता के लिए 'सिखाया' जैसा शब्द न लिख कर सम्मान जनक 'सिखाये' लिखें ...और 'आज सिखाया" ..भी कुछ नहीं होता..".सदा सिखाया "...होना चाहिए... जब प्रथम पंक्ति में 'हमें' बहुबचन है तो अन्य पंक्तियों में भी वही होना चाहिए...
---नाज हमें भी पूज्य पिता पर =१६ मात्राएं
जिसने हमको गुणी बनाया | =१६
अनुशासन में पाला हमको, =१६
निज संस्कृति को हमें सिखाया|| =१६
--करो...सब ठीक ..
ये हुयी न बात समझाने वाली-प्रोत्साहन दे साहित्य में लोगों को आने के लिए प्रेरित करने वाली -ये व्याख्या काफी कुछ मानने लायक है और हम इस का संपादन कर देंगे
जवाब देंहटाएंआभार आप का
शुक्ल भ्रमर ५
मन करता है दर्द से बचने दुनिया से कही और चला मै जाऊं