बुधवार, 13 अप्रैल 2011

राम की प्यारी- धरती अपनी-ना जाने क्यों अभिशप्तित है


 माया मेरी -ईहा  -लिप्सा
शक्ति-  सारी -   सोयी
भाई मेरे -  बहना मेरी
नारी-शक्ति जागो !!!

देखो चल- गुजरात -धरा को
कैसे है चमकाया !
बिजली- पानी -भरा अमन है
न्योता दिए बुलाया !

बड़े-बड़े उद्योग- पति सब
ज्ञानी -  ध्यानी आये !
हाथ की उनकी देख लकीरें
सपने सच कर जाएँ !

बुद्ध की धरती या विहार कर
आओ सब तुम झांको !!!
परिवर्तन क्या लहर चली है
अपने को कुछ आंको !

राम की प्यारी- धरती अपनी
ना जाने क्यों अभिशप्तित  है  
 ना -कल है ना- कार-  खाना  
अवध पुरी की अवधी सूखी

 गाँव में देखो मैया मोरी  
मंदिर कई बनाये   !                                                                                                  
मूर्ति बनाये पत्थर की हम                                                                                          
 जान डाल न पाए                                                                      
                                                                           
कभी हँसे ना - ना  वो  रोये  
दर्द देख के - यहाँ बसा जो 
तेरे- मेरे- पास -यहाँ पर 
दिन प्रतिदिन जो होए !! 

'पूरबके 'अंचलमें स्वागत 
महिमा  कुछ दिखलाओ !
वैर भावना जो अपने मन
आ कर सब झूंठलाओ !!

हे री !  तेरी  बड़ी है ताकत,
तेरा  नाम सुना था  
दुनिया को चमकाने का कुछ         
सपना कभी बुना था  !

आओ मेरे गाँव कभी तुम
लक्ष्मी- माया  -अंगना मोरे !!
घास -फूस का 'छप्पर' जो ये
टूटा -  फूटा -जिसमे -
खुला आसमां है दिखता !!

ऐसी आस लगा हम बैठे
तेरे - मेरे प्यारे  बदरा घूम- घूम-  फिर- आयें
रंग बिरंगे- हरे -भरे  जब भर- भर के घर  आयें - 
बदरा प्यारे - कभी कभी- तो  अमृत बरसें
बरसे रस की धारा !!
इस 'आँगनफिर आ कुछ बैठो 
सूखी रोटी खाओ !
हिचकोले ले-इन सड़कों पर
हरियाली कुछ लाओ !

जब आऊँ मै खेत जोतकर
जली हुयी चमड़ी मेरी है,
माथे बहे पसीना !
शीतल जल ही - जरा पिला जा
पाँव में मेरे फटी बिवाई
कितना मुश्किल जीना 
एक  जोड़ी तू बैल दिला दे 
दिल्ली से - एक 'चप्पल'- ही
तू आज भिजा दे !!


इस आँगन में - हे माया तू
माया छोड़े-तुलसी एक लगा जा
(फोटो धन्यवाद के साथ अन्य स्रोत से )

थोडा सा कुछ शीतल जल -
घी का दिया जला जा .

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर
13.04.2011

4 टिप्‍पणियां:

  1. पूरब' के 'अंचल' में स्वागत
    महिमा कुछ दिखलाओ !
    वैर भावना जो अपने मन
    आ कर सब झूंठलाओ !!
    .................
    बहुत गूढ़ विचारे समेटे हुए है आप की कविता..
    बहुत बहुत बधाइयाँ और आभार ...
    इस धरती का अभिशाप भी ख़त्म होगा..प्रारंभ हो चुका है..

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  2. धन्यवाद आशुतोष जी सचमुच गूढ़ भाव भरे हैं इसमें -आशा है मेरा ये आह्वान - आप समझ गए हैं -इस धरती का अभिशाप ख़त्म हो -हम भी गर्व से सर उठा उन्नत और उन्नति की और बढ़ें - आप को ढेर सारी शुभ कामनाएं -

    सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५

    आओ सब मिल दीप जलाएं ...

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  3. आप को ढेर सारी शुभ कामनाएं

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  4. हरीश जी धन्यवाद आप इतने व्यस्त समय में भी हर जगह पहुँचते हैं समर्पित हैं हिंदी ब्लागिंग बढ़ावा के लिए बड़े हर्ष का विषय है

    सुन्दर लगा शुभ कामनाएं -बधाई

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