सोमवार, 11 अप्रैल 2011

मानवता को हे मानव तू अमृत पिला जिलाए



मानवता को हे मानव तू अमृत पिला जिलाए

आज प्रभा ने भिनसारे ही

मुस्काते अधरों से बोला



कितने प्यारे लोग धरा के

उषा काल सब जाग गए हैं

घूम रहे हैं हाथ मिलाये

दर्द व्यथा सब चले भुलाये

सूर्य-रश्मि सब साथ साथ हैं

कमल देख ये खिला हुआ है

चिड़ियाँ गाना गातीं

हवा बसंती पुरवाई सब

स्वागत में हैं आई

सूरज नम है तांबे जैसा

जल निर्मल झरना कल-कल है

नदी चमकती जाती

सागर बांह पसारे पसरा

लहरें उछल उछल के तट पर

चरण पखारे आतीं

हे मानव तू ज्ञानी -ध्यानी

प्रेम है तुझमे कूट भरा

शक्ति तेरी अपार - है अद्भुत

हाथ जोड़ जो खड़ा हुआ

खोजे जो कल्याण भरा हो

मधुर मधुर जो कडवा हो

कड़वाहट तो पहले से है

पानी में भी आग लगी है

तप्त ह्रदय है जलती आँखे

लाल -लाल जग जला हुआ है

खोजो बादल -बिजली खोजो

सावन घन सा बरसो आज

मन -मयूर फिर नाचे सब का

हरियाली हो धरा सुहानी

छाती फटी जो माँ धरती की

भर जाये हर घाव सभी

सूर्य चन्द्र टिमटिम तारे सब

स्वागत-मानव-तेरे आयें

निशा -चन्द्र-ला मधुर-मास सब

थकन तेरी सारी हर जाएँ

मानवता को हे मानव तू

अमर करे

अमृत पिला -जिलाये !!

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर

http://surenrashuklabhramar.blogspot.com

प्रतापगढ़ उ.प्रदेश

१०..२०११ लेखन पी.बी.

4 टिप्‍पणियां:

  1. थकन तेरी सारी हर जाएँ

    मानवता को हे मानव तू

    अमर करे –

    अमृत पिला -जिलाये !!
    bahut bhavpoorn abhivyakti.

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  2. आदरणीय शालिनी कौशिक जी
    अच्छाइयों को उजागर करने और प्रोत्साहन के लिए आप का धन्यवाद
    हरीश भाई और आशुतोष जी का प्रयास सराहनीय है शुभ कामनाएं
    सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर
    भ्रमर का दर्द और दर्पण

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  3. सुरेन्द्र जी ..
    प्रथम बहुत बहुत बधाइयाँ मंच पर आने एवं एक खुबसूरत कृति से योगदान देने के लिए..
    ये आशुतोष या हरीश भाई का व्यक्तिगत प्रयास नहीं है इसमें आप की भी भागीदारी उतनी ही बनती है जितनी किसी अन्य की..
    सुभकामनाएँ एवं बधाइयाँ आप के लेखन के लिए..

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  4. हम आभारी हैं आप के और हमारे सभी बुद्धिजीवियों से भी हम यही आह्वान करेंगे

    धन्यवाद

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