भीड़ इकट्ठी होती है
शोर मचाती है
ढोल पीटती है
लेकिन उसकी लाल आँखें
बड़ी सींग
अपार शक्ति देख
कोई पास नहीं फटकता
कभी कुछ शांत निडर
खड़ा हो देखता
कान उटेर सब सुनता रहता
कभी कुछ दूर भाग भी जाता
शोर मचाती है
ढोल पीटती है
लेकिन उसकी लाल आँखें
बड़ी सींग
अपार शक्ति देख
कोई पास नहीं फटकता
कभी कुछ शांत निडर
खड़ा हो देखता
कान उटेर सब सुनता रहता
कभी कुछ दूर भाग भी जाता
लेकिन ये “भैंसा”
गैंडा सा मोटा चमड़ा लिए
जिस पर की लाठी -डंडे -
तक का असर नहीं
खाता जा रहा
खलिहान चरता जा रहा
अब तो ये अकेला नहीं
“झुण्ड ” बना टिड्डी सा
यहाँ -वहां टूट पड़ता !!
( सभी फोटो गूगल/ नेट से साभार लिया गया )
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल “भ्रमर ”
5.04 पूर्वाह्न जल पी बी
०६.०८.२०११
5.04 पूर्वाह्न जल पी बी
०६.०८.२०११
बहुत अच्छा सार्थक चिंतन है !
जवाब देंहटाएंसहमत हूँ आपसे !!
मेरा निवेदन है आपसे की आप भी बेहतर भारत के लिए 16 अगस्त से अन्ना के आन्दोलन के साथ जुड़ें!
यह अपना नुकसान करके दूसरे से अपनी बात मनवाना एक गांधीवादी तरीका है। एक अहिंसक तरीका है किसी जिद्दी व्यक्ति या संस्था की आत्मा को झकझोरने का। जब अपनी ताकत पर मगरूर संस्थाएं कुछ भी सुनने को तैयार नहीं होतीं, तब ऐसे हथियार का सहारा लिया जाता है।
जवाब देंहटाएंमदन भाई बहुत सुन्दर विचार आप के हम आप क्या हम तो सभी से ये गुजारिश करते हैं की जो भी जहाँ कहीं भी हो इस भ्रष्ट व्यस्था के खिलाफ वहीं से अपने क्षेत्र से आवाज बुलंद करे जिस भी क्षेत्र से आप जुड़े हों वहीँ से शुरू हो जाइये .......शायद दिल्ली दूर है ....तो सब का पहुंचना वहां संभव न हो ...पर जो भी काम आप कर सकते हैं अपने स्तर पर उससे पीछे मत हटियेगा
जवाब देंहटाएंहमारी कोशिश जारी है
भ्रमर ५
मदन भाई धन्यवाद और आभार आप का ...मै मेरी खाल -मेरा ढोल -अवश्य पढियेगा ऊपर है रचना
जवाब देंहटाएंआभार आप का
भ्रमर ५