बुधवार, 3 अगस्त 2011

दो अगीत ...ड़ा श्याम गुप्त.....

१-अनुभूति...
दर्पण में अपनी छवि,
देती है-
आनंदानुभूति;
मन दर्पण में झांकें,
तो ,होगी-
सच्ची अनुभूति |

२-कैसे चहचहाए ....
बंद है हर गली,
रास्ते गुम हैं;
लगी हैं आतंक की -
अर्गलायें ,
द्वारों पर ;
किस तरह जिंदगी -
बाहर आये,
चहचहाए |

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