शनिवार, 23 जुलाई 2011

ऐसी झमाझम बारिश शुरू हुई जो रुकने का नाम ही.............................


 आज  क्या होगा  यह सोचकर मैं घबरा रहा था। कल तक तो सब ठीक था, लेकिन ऐन बारात आने वाले दिन ऐसी झमाझम बारिश शुरू हुई जो रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। बारात बस से आई थी और दूल्हे के अस्वस्थ पिता रेल से। मैं स्टेशन से उन्हें लेकर गेस्ट  हाउस जा पहुंचा जहां बारात ठहरने वाली थी। मगर ढलान का  मोहल्ला  होने की वजह से गेस्ट  हाउस के बाहर कई  फुट पानी भर गया था।

किसी तरह दूल्हे के पिता को लेकर घराती  गेस्ट  हाउस के भीतर पहुंचने में सफल हुए  तो दिमाग मैं  यह हो आई कि और बारातियों को भीतर कैसे लाया जाए। तभी देखता क्या हूं कि दूल्हा सबसे पहले बस से कूद पड़ा है। उसकी देखादेखी दूसरे लोग भी उतर कर सीधे पानी में चलते हुए रास्ता पार करने लगे। बुजुर्गों को तकलीफ न हो, यह सोचकर जैसे ही मैंने पानी में कुछ रखने की कोशिश की, दूल्हा खुद पास आकर मदद करने लगा। कहीं किनारे-किनारे ईंटें रखीं तो कहीं हम लोगों ने बारातियों के साथ मिलकर लकड़ी के बड़े बड़े टुकड़े  रखवाए।

कोई देखकर कह ही नहीं सकता था कि दूर से बारात आई है। लग रहा था जैसे वे यहीं रहते हैं और यह उनके लिए रोजमर्रा की बात है। मुझे अपने पुराने दिनों की बारातें याद आ रही थीं। तब बारातियों के लिए एक से एक उम्दा इंतजा -मात किए जाते थे। कहीं बाल काटने की व्यवस्था है तो कहीं मालिश की। कहीं कपड़े प्रेस हो रहे हैं तो कहीं पॉलिश की जा रही है। मजाल कि लड़की वालों से कोई चूक हो जाए! हाथ बांधे खड़े रहना उनकी मजबूरी होती थी। जो कहे बाराती, उसे सुनते रहो, कहो कुछ मत।

लेकिन जिस बारात का जिक्र मैं कर रहा हूं, वह पंजाब से आई थी। किसी बाराती के चेहरे पर यह भाव नजर नहीं आया कि अरे, ये कहां ठहरा दिया हमें? महिलाएं दूसरों की मदद लेकर और बच्चे गोदी पर चढ़कर मजे में चले आए। मैंने हर किसी से माफी मांगने वाले अंदाज में कहा भी कि क्षमा कीजिएगा, आज जरा मौसम खराब हो गया... तो हर किसी के मुंह से यही सुनने को मिला - ओ जी, बारिश का क्या है, हमारे पंजाब में भी ऐसे ही बिना बताए हो जाती है जी। हंसते-हंसाते मौसम की टेंशन को उड़ा दिया सभी ने।

जैसे कुछ हुआ ही न हो। किसी के चेहरे पर कोई शिकन तक नजर नहीं आई। मैं सोच रहा था कि कोई भी बाराती भड़क जाता तो जाने कैसे संभालने में आता। समय के साथ-साथ कितने बदलते जा रहे हैं बाराती भी। तभी उनमें से एक मुझे अपने में खोया देख पास आ गया। बोला-अजी, आप बिलकुल परेशान मत होओ। नेचर दी गल दी किसी नूं की खबर? हमारे यहां भी बेटियां हैं जी, हमारे घर भी तो बारात आनी है किसी दिन। बस, एहोई गल सबणूं याद रखणी चाहिदी। देखते-देखते सारा माहौल खुशनुमा हो उठा। कभी मैं जमे हुए पानी को देख रहा था तो कभी बारातियों की तरफ। 
इस तरह की  बरात हम सभी ने कभी न कभी तो देखि है....

जय बाबा बनारस.....

4 टिप्‍पणियां:

  1. bahut achchhe baraati bhai ||

    baraatiyon ko khush rakhna sabse kathin par ye to devta hain ji ||

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  2. ऐसी परिस्थितिया गुस्सा भी लाती है और मजा भी ! मैंने गाँव में बहुत बार महसूस किया है !

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