लीजिये चौमासे लग गए ,आइये वर्षा की फुहारों में चार कवित्त छंदों से भीगने का आनंद लीजिये ----
काले-काले मतवाले घिरे घनघोर घन ,
बरखा सुहानी आई ऋतुओं की रानी है।
रिमझिम-रिमझिम रस की फुहार झरें ,
बह रही मंद-मंद पुरवा सुहानी है।
दम-दम दामिनि,दमकि रही ,जैसे प्रिय ,
विहंसि-विहंसि ,सखियों से बतरानी है।
बरसें झनन -झन, घनन -घन गरजें ,
श्याम ' डरे जिया,उठै कसक पुरानी है॥
टप-टप बूँद गिरें , खेत गली बाग़ वन ,
छत,छान छप्पर चुए,बरसा का पानी ।
ढ र ढ र जल चलै,नदी नार पोखर ताल ,
माया वश जीव चले राह मनमानी।
सूखी, सूखी नदिया,बहन लगी भरि जल,
पाइ सुसुयोग ज्यों हो उमंगी जवानी ।
श्याम ' गली मग राह,ताल ओ तलैया बने ,
जलके जंतु क्रीडा करें, बोलें बहु बानी॥
वन-वन मुरिला बोलें,बागन मोरलिया,
टर-टर रट यूँ लगाए रे दादुरवा ।
चतुर टिटहरी चाह ,पग टिके आकाश ,
चक्रवाक अब न लगाए रे चकरवा ।
सारस बतख बक ,जल में विहार करें,
पिऊ ,पिऊ टेर,यूँ लगाए रे पपिहवा ।
मन बाढ़े प्रीति,औ तन में अगन श्याम,
छत पै सजन भीजे ,सजनी अंगनवा ॥
खनन खनन मेहा,पडे टीन छत छान ,
छनन -छनन छनकावे द्वार अंगना ।
पिया की दिवानी,झनकाये ज्यों पायलिया,
नवल -नवेली खनकाय रही कंगना ।
कैसे बंधे धीर सखि,जियरा को चैन आबै,
बरसें नयन , उठे मन में तरंग ना ।
बरखा दिवानी हरषावे, धड़कावे जिया ,
ऋतु है सुहानी ,श्याम' पिया मोरे संग ना॥
बरखा सुहानी आई ऋतुओं की रानी है।
रिमझिम-रिमझिम रस की फुहार झरें ,
बह रही मंद-मंद पुरवा सुहानी है।
दम-दम दामिनि,दमकि रही ,जैसे प्रिय ,
विहंसि-विहंसि ,सखियों से बतरानी है।
बरसें झनन -झन, घनन -घन गरजें ,
श्याम ' डरे जिया,उठै कसक पुरानी है॥
टप-टप बूँद गिरें , खेत गली बाग़ वन ,
छत,छान छप्पर चुए,बरसा का पानी ।
ढ र ढ र जल चलै,नदी नार पोखर ताल ,
माया वश जीव चले राह मनमानी।
सूखी, सूखी नदिया,बहन लगी भरि जल,
पाइ सुसुयोग ज्यों हो उमंगी जवानी ।
श्याम ' गली मग राह,ताल ओ तलैया बने ,
जलके जंतु क्रीडा करें, बोलें बहु बानी॥
वन-वन मुरिला बोलें,बागन मोरलिया,
टर-टर रट यूँ लगाए रे दादुरवा ।
चतुर टिटहरी चाह ,पग टिके आकाश ,
चक्रवाक अब न लगाए रे चकरवा ।
सारस बतख बक ,जल में विहार करें,
पिऊ ,पिऊ टेर,यूँ लगाए रे पपिहवा ।
मन बाढ़े प्रीति,औ तन में अगन श्याम,
छत पै सजन भीजे ,सजनी अंगनवा ॥
खनन खनन मेहा,पडे टीन छत छान ,
छनन -छनन छनकावे द्वार अंगना ।
पिया की दिवानी,झनकाये ज्यों पायलिया,
नवल -नवेली खनकाय रही कंगना ।
कैसे बंधे धीर सखि,जियरा को चैन आबै,
बरसें नयन , उठे मन में तरंग ना ।
बरखा दिवानी हरषावे, धड़कावे जिया ,
ऋतु है सुहानी ,श्याम' पिया मोरे संग ना॥
अलबेली प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंप्रसन्न हुआ मानस ||
आभार |
आज सुबह से दिल्ली में बारिश हो रही है..
जवाब देंहटाएंऔर आप की एक अद्भुत कृति मिल गयी..
आनंद आ गया...
varsha ka aanand aapki sundar kriti se char guna ho gaya.badhai
जवाब देंहटाएंapka jawab nahi.
जवाब देंहटाएंआदरणीय डॉ. श्याम गुप्त जी
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार !
चौमासे के स्वागत में लिखे गए इन चारों सुंदर मनहरण कवित्त के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकार करे !
आपकी लेखनी को नमन !
हार्दिक बधाई और शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
dhanyavaad -आशुतोष, हरीश जी, रविकर व शालिनी.....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद स्वर्णकार जी.....आभार...