शुक्रवार, 8 जुलाई 2011

पापी

तुम्हारा नाम कविता में जो लिखता हूँ ,
तो मैं पापी…
तेरी यादों को अपना मान लेता हूँ
तो मैं पापी…
कभी तुझको भुलाता हूँ,कभी तुझको बुलाता हूँ…
भुलाता हूँ तो मैं पापी….
बुलाता हूँ तो मैं पापी…….



.........................................

मैं हूँ मजदूर,
पत्थर तोड़ के मैं घर चलाता हूँ..
कभी मंदिर की पौढ़ी पर भी,जा के बैठ जाता हूँ..
पढ़ा था धर्मग्रंथों में,प्रभु के सत्य की महिमा
मेरा सच है मेरी बच्ची,
जो भूखे पेट सोयी है….
मैं सच बोलू तो मैं पापी,मैं ना बोलू तो हूँ पापी…..


To Print click here

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर ||

    सशक्त प्रस्तुति||

    जवाब देंहटाएं
  2. तुम्हारा नाम कविता में जो लिखता हूँ ,
    तो मैं पापी…
    तेरी यादों को अपना मान लेता हूँ
    तो मैं पापी…
    कभी तुझको भुलाता हूँ,कभी तुझको बुलाता हूँ…
    भुलाता हूँ तो मैं पापी….
    बुलाता हूँ तो मैं पापी…
    aashutosh ji,bahut sundar bhavon ko bahut khoobsurati se abhivyakt kiya hai.badhai

    जवाब देंहटाएं
  3. धन्यवाद् रविकर जी
    धन्यवाद् शालिनी जी...

    जवाब देंहटाएं
  4. आशुतोष भाई मुबारक हो सुन्दर रचना मूल भाव अच्छे सुन्दर सन्देश -

    मेरा सच है मेरी बच्ची,
    जो भूखे पेट सोयी है….
    मैं सच बोलू तो मैं पापी,मैं ना बोलू तो हूँ पापी…..

    जवाब देंहटाएं
  5. vaah kyaa baat hai--

    हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम ,
    वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता ||

    जवाब देंहटाएं
  6. दिल को तोड़ती कविता ! बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं