शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

कौवे चार वहां बैठे हैं- सोना चोंच मढ़ाये

कौवे चार वहां बैठे हैं
सोना चोंच मढ़ाये
उड़ उड़ मैले पर मुह मारें
काग-भुसुंडी बन बतियाएं !!
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शेर वही जो बाहर निकले
भूख लगे-बस -खाना खाए
कुछ पिजड़े में गीदड़ जैसे
नोच-खसोट-के गरजे जाएँ !!
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हाथी मस्त है घर-घर घुमे
कुत्ते भौं भौं भौंके जाएँ
कभी सामने आ कर भौंको
मारीचि से तुम तर जाओ !!
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ये घर अपना एक मंदिर है
देव -देवियाँ पूत बहुत हैं
कर -पवित्र-आ-दीप जलाना
राक्षस -वन-मुह नहीं दिखाना !!
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अभी वक्त है खा लो जी भर
लिए कटोरा फिर आना
अपना दिल तो बहुत बड़ा है
चमचे-चार-भी संग ले आना !!
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उन जोंकों संग -लिपट रहो ना
खून चूस लेंगी सारा
होश अगर जल्दी कुछ करना
नमक डाल-कुछ नमक खिलाना !!
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नदी तीर एक सेज सजी है
आग दहकती धुँआ उठा है
जिनके दिल से खून रिसा है
दंड लिए सब जुट बैठे हैं
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शुक्ल भ्रमर ५
२९.०६.२०११
जल पी बी

4 टिप्‍पणियां:

  1. अभी वक्त है खा लो जी भर
    लिए कटोरा फिर आना
    अपना दिल तो बहुत बड़ा है
    चमचे-चार-भी संग ले आना !!
    akai bhramar ji aapne apni prastuti se samaj ke dard ko darpan dikha diya.badhai.

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  2. शालिनी जी हार्दिक आभार और धन्यवाद आप का - भ्रमर के दर्पण में ये समाज का बहुत सा भरा हुआ -व्याप्त दर्द दिखा आइये सब मिल-इस दर्पण में देख सोचे और कुछ धनात्मक करते रहें
    शुक्ल भ्रमर ५

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  3. हरीश भ्राता जी हार्दिक आभार और धन्यवाद आप का - रचना सुन्दर लगी -प्रोत्साहन देने के लिए
    शुक्ल भ्रमर ५

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  4. १-काग-भुसुंडी बन बतियाएं !!

    २-मारीचि से तुम तर जाओ !!

    ३-नदी तीर एक सेज सजी है
    आग दहकती धुँआ उठा है
    जिनके दिल से खून रिसा है
    दंड लिए सब जुट बैठे हैं

    ---१ व २ ---पौराणिक सन्दर्भों के क्या अर्थं हैं...
    ---३--कबीर की उलटबांसी की भांति कथ्य या व्यंजना का क्या अर्थ है.....

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