शनिवार, 2 जुलाई 2011

चार संत की भीड़ जुटाकर हवन यज्ञं मत करना




पहले गीदड़ भभकी होती 
बन्दर घुड़की होती !
चार जाने मिल कर लेते थे 
अपने घर रखवाली !
सीटी जरा बजा देने पर 
भीड़ थी जुटती भारी !
सिर पर पाँव रखे कुछ भागें !
साथ साथ उठ के सब धाते !
रात रात भर रहते जागे !!
अब तो सोये सभी पड़े हैं 
चाहे ढोल बजाओ !
उनके -घर सब मरे पड़े हैं 
भीड़ लगे -उठ -जगा दिखाओ  
अब तो शेर दहाड़े -"भाई"
कुछ करोड़ ले आना !
भरा समुन्दर -भंवर बड़ी है 
माझी कुशल जुटाना !!
ताकत हो जिनकी बांहों में 
दूर दृष्टि जो रखते !
कुटिल नीति चाणक्य बड़े हैं 
उनकी जान बचाए !
बज्र हमारा चुरा लिए हैं 
गरजें -  अब चिल्लाएं !
हर नुक्कड़ चौराहे देखो 
राक्षस - संत बने घुस आये !
उनकी रोज परीक्षा करना 
हीरा-कांच परख तू रखना !
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चार संत की भीड़ जुटाकर 
हवन यज्ञं  मत करना !
परसुराम-संग राम बुलाकर 
खुद की रक्षा करना !
पहले - इतिहास तो देख लिए 
अब वर्तमान को बुनना !
देश -काल कुछ पढो "भ्रमर" तुम 
प्रेम सीख -बस कैद न मरना !!
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शुक्ल भ्रमर 
२९.०६.२०११
जल पी बी 

5 टिप्‍पणियां:

  1. परसुराम-संग राम बुलाकर
    खुद की रक्षा करना

    खुद की रक्षा के लिए शस्त्र उठाना पड़ता है.आप की हर रचन अकी तरह एक और सुन्दर रचना

    जवाब देंहटाएं
  2. प्रिय आशुतोष जी हार्दिक अभिवादन -और प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद जिस तरह से आप ने इस में बयान हालत और हालात को समझा काश हमारे अन्य पाठक गण भी समझेंगे
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  3. मूलभाव तो अच्छे हैं----- पर रचना भाव व रचना कला में अटपटापन व अस्पष्टता है....

    जवाब देंहटाएं
  4. कुछ अच्छा है बड़े ख़ुशी की बात है श्याम जी -क्या अटपटा है स्पष्ट करते हो हम भी देखते ..

    आज कल आप के ब्लॉग पर टिप्पणिया मोडेरेसन पर जाने के बाद फिर वापस नहीं दिखती श्याम जी क्या बात है ??

    धन्यवाद आप का
    शुक्ल भ्रमर ५
    आइये कृपया निम्न पर भी अपना सुझाव समर्थन दें
    भ्रमर का दर्द और दर्पण
    भ्रमर की माधुरी
    रस रंग भ्रमर का
    बाल झरोखा सत्यम की दुनिया

    जवाब देंहटाएं
  5. नयी नयी अवधारणाएं पढ़िए-देव हैं या नहीं -कौन देव है -अणु क्या है परमाणु क्या है -रियेक्सन क्या हैं -देव है या जीव है-देव कोई नहीं देव मर चुके है -बहुत से लोग बहुत कुछ कहते हैं -केवल शेम जी जो कहें वही नहीं होता इस दुनिया में - हम जिसका सम्मान करते हैं उसे सिर से लगा प्रणाम करते है -केवल देव है इस लिए नहीं -

    आप अपने हाथ पैर खा लेते हो क्या ...पुरानी बातें हैं तो क्या.. गुणीजनों ने कही हैं ..मानने योग्य हैं...पुनः पुनः जानने/समझने योग्य हैं...
    अगर पुरानी बातों और गुणी लोगों का ध्यान है तो देव ऋण किससे उतरता है पितृ ऋण किससे फिर से पढियेगा ....आप अपने हाथ पैर खा लेते हो क्या ?? ये तो बचकाना बाते हैं मेरा मतलब था वे अपने फल खा लेते पानी पी लेते तृप्त रहते ..हमने कब लिखा वे अपनी डाल या शाखा खा लेते --व्याख्या करने या समझाने से पहले
    मन शांत रखना होता है श्याम जी .
    ये व्याख्या वैसे ही बाल की खाल निकलने वाली है जैसे दुःख से पहले दुःख का कारण क्या था फिर उससे पहले दुःख का करना क्या था-रचना के मूल भाव अच्छे हैं लेकिन सब भ्रम में लिखे गए - ? सीपी से मोती मिलते हैं -सागर से नहीं -सागर में सीपी रहती है -बच्चे भी जानते हैं -केवल श्याम जी नहीं -
    देवों को प्रसन्न रखने से ही मानव नहीं बना जा सकता -इंसानों को भी प्रसन्न रखना है और मानवता जो आप ने लिखा वो भी रखना होता है तो मानव बना जा सकता है !
    धन्यवाद आप का
    शुक्ल भ्रमर ५
    आइये कृपया निम्न पर भी अपना सुझाव समर्थन दें
    भ्रमर का दर्द और दर्पण
    भ्रमर की माधुरी
    रस रंग भ्रमर का
    बाल झरोखा सत्यम की दुनिया

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