tag:blogger.com,1999:blog-41070230956859774792024-03-06T05:12:42.758+05:30पूर्वांचल ब्लॉग लेखक मंचसभी हिंदीभाषियों एवं ब्लॉग लेखकों का संगठन" हरीश सिंहhttp://www.blogger.com/profile/13441444936361066354noreply@blogger.comBlogger502125tag:blogger.com,1999:blog-4107023095685977479.post-55661320008714416962024-02-17T12:59:00.004+05:302024-02-17T13:00:14.278+05:30किसान आन्दोलन संस्करण दो <p> </p><div class="q-text" style="background-color: white; box-sizing: border-box; font-family: -apple-system, system-ui, BlinkMacSystemFont, "Segoe UI", Roboto, Oxygen-Sans, Ubuntu, Cantarell, "Helvetica Neue", sans-serif; font-size: 15px; max-width: 100%;"><span class="CssComponent__CssInlineComponent-sc-1oskqb9-1 UserSelectableText___StyledCssInlineComponent-lsmoq4-0"><span class="q-box qu-userSelect--text" style="box-sizing: border-box; user-select: text;"><div class="q-box" style="box-sizing: border-box; color: #282829; margin-left: -16px; margin-right: -16px;"><div class="CssComponent-sc-1oskqb9-0 QTextImage___StyledCssComponent-sc-1yi3aau-0 cfUEeh"><div class="q-box unzoomed" style="box-sizing: border-box; cursor: -webkit-zoom-in; filter: blur(0px); margin-bottom: 1em;" tabindex="-1"><img class="q-image qu-display--block" src="https://qph.cf2.quoracdn.net/main-qimg-b4da4b9f3b3191a7d7fa1cb021c71edd" style="border-style: none; box-sizing: border-box; display: block; margin-left: auto; margin-right: auto; max-width: 100%;" /></div></div></div><p class="q-text qu-display--block qu-wordBreak--break-word qu-textAlign--start" style="box-sizing: border-box; color: #282829; direction: ltr; margin: 0px 0px 1em; overflow-wrap: anywhere; padding: 0px; text-align: justify; word-break: break-word;"><span style="background: none; font-weight: bold;">पिछले किसान आंदोलन की कड़वी यादें अभी भूल भी नहीं पाए थे कि दूसरा किसान आंदोलन शुरू हो गया है. पिछले आंदोलन के दौरान लगभग 13 महीने तक दिल्ली को घेर कर बैठे रहे आंदोलनकारियों कथित किसानों ने दिल्लीवासियों का जीना मुश्किल कर दिया था. वित्तीय रूप से राष्ट्र को कितनी क्षति हुई थी, इसकी गणना सरकार ने आवश्यक होगी लेकिन खुलासा नहीं किया था. यह समझना मुश्किल नहीं है कि आर्थिक रूप से देश का कितना बड़ा नुकसान हुआ होगा. 26 जनवरी को लाल किले पर जो उपद्रव हुआ था उसे देख कर कोई भी कह सकता है कि वे किसान नहीं हो सकते. वह आंदोलन बहुत बड़ा षडयंत्र था और उसमें भारत विरोधी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय शक्तियां सक्रिय थी और पैसा पानी की तरह बहाया गया था. हमेशा की तरह सर्वोच्च न्यायालय ने भी ऐसे संवेदनशील और राष्ट्रीय हित के मामले में अपनी भूमिका का ईमानदारी से निर्वहन नहीं किया था. अंततः मोदी सरकार को राष्ट्रहित में बनाए गए तीनो किसान कानूनों को वापस लेना पड़ा था. इससे छोटे किसानों और खेतिहर मज़दूरों का बहुत नुकसान हुआ.</span></p><blockquote class="q-relative qu-color--gray" style="border-color: transparent; border-width: 0px; box-sizing: border-box; color: #636466; margin: 0px 0px 1em; padding-left: 1em; position: relative;"><p class="q-text qu-display--block qu-wordBreak--break-word qu-textAlign--start" style="box-sizing: border-box; direction: ltr; margin: 0px; overflow-wrap: anywhere; padding: 0px; text-align: justify; word-break: break-word;"><span style="background: none;">पिछले आंदोलन की तर्ज पर ही आंदोलन का यह द्वितीय संस्करण दिल्ली को घेरकर राजनीतिक बवंडर उत्पन्न करने के लिए शुरू किया गया लगता है. चूंकि लोकसभा चुनाव 2024 सिर पर है, मंदिर निर्माण से उपजे राममय वातावरण में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अबकी बार 400 के पार का दावा करते, विपक्षी गठबंधन को ध्वस्त करते हुए आगे बढ़ रहे हों और अचानक किसान रास्ता रोककर खड़े हो जाए. इसलिए यह कहना अनुचित नहीं होगा कि इसका राजनैतिक निहितार्थ है. पिछली बार का आंदोलन पंजाब में शुरू हुआ था और राज्य सरकार से संघर्ष के बाद रेल रोको आंदोलन करता हुआ दिल्ली पहुंचा था. अब की बार पंजाब सरकार ने तमाम सुविधाएं उपलब्ध कराते हुए सीधे दिल्ली का रास्ता दिखा दिया. पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार है और आगामी चुनावों को देखते हुए वे कुछ भी कर सकते हैं. हरियाणा की सीमा पर किसानों को रोके जाने पर पंजाब सरकार ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए हरियाणा और केंद्र सरकार की निंदा करते हुए कहा कि किसान लोकतांत्रिक तरीके से अपनी मांगों के समर्थन में विरोध करने के लिए दिल्ली जा रहे हैं सरकार को उनकी मांगों पर विचार करना चाहिए.</span></p><div class="q-absolute qu-borderRadius--pill QTextBlockQuote___StyledAbsolute-an1wlz-0 dFXrtQ" style="background-color: currentcolor; border-radius: 1000px; bottom: 0px; box-sizing: border-box; left: 0px; opacity: 0.3; position: absolute; text-align: justify; top: 0px; width: 3px;" width="3"></div></blockquote><p class="q-text qu-display--block qu-wordBreak--break-word qu-textAlign--start" style="box-sizing: border-box; color: #282829; direction: ltr; margin: 0px 0px 1em; overflow-wrap: anywhere; padding: 0px; text-align: justify; word-break: break-word;"><span style="background: none;">दूसरे संस्करण के इस आंदोलन में अंतर यह है कि पिछले आंदोलन में भाग लेने वाले सभी संगठन इस इस बार शामिल नहीं है. हरित क्रांति के जनक कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन तथा पूर्व प्रधानमंत्री और किसानों के मसीहा कहे जाने वाले चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न सम्मान दिए जाने की पृष्ठभूमि में राकेश टिकैत के नेतृत्व वाली भारतीय किसान यूनियन और पश्चिमी उत्तर प्रदेश तथा हरियाणा में सक्रिय अधिकांश किसान यूनियन इसमें शामिल नहीं है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा के किसान तथा खाप पंचायतें इस आंदोलन का विरोध भी कर रही हैं. इसलिए यह आन्दोलन पंजाब के किसानो का और उस पर भी कुछ किसान यूनियनों का आन्दोलन है.</span></p><div class="q-relative qu-py--tiny qu-borderRadius--small qu-bg--gray_ultralight QTextCode___StyledRelative-sc-1j2dh40-0 iXxNjC" style="background-color: #f7f7f8; border-radius: 3px; box-sizing: border-box; color: #282829; margin-bottom: 1em; margin-top: 1em; padding-bottom: 4px; padding-top: 4px; position: relative;"><pre class="q-box qu-overflowX--auto qu-whiteSpace--pre-wrap" style="box-sizing: border-box; font-family: monospace, monospace; font-size: 1em; margin-bottom: 0px; margin-top: 0px; overflow-wrap: normal; overflow-x: auto; text-wrap: wrap;"><ol class="q-text" style="box-sizing: border-box; counter-reset: prettyprintlinenumber 0; list-style: none; margin: 0px; padding: 0px;"><div class="CssComponent-sc-1oskqb9-0 QTextCode___StyledCssComponent-sc-1j2dh40-1 jrABmp"><li class="q-text code-line qu-color--gray qu-textAlign--left" style="box-sizing: border-box; color: #636466; counter-increment: prettyprintlinenumber 1; margin: 0px; padding: 0px 0px 0px 3em; position: relative; text-align: justify;"><span style="background: none;">इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि देश में कई दशकों से अधिकांश छोटे और मझोले किसानों की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है और इसमें सुधार होना तो दूर वर्ष दर वर्ष स्थिति और खराब होती जा रही है. वैसे तो किसानों की आर्थिक स्थिति में राज्यवार अंतर हो सकता है लेकिन सबसे अधिक खराब स्थिति उत्तर प्रदेश बिहार और उड़ीसा के किसानों की है. समस्या केवल उपज की उचित कीमत ही नहीं बल्कि सिंचाई के साधन, भूमि सुधार, छोटी जोत, अवैज्ञानिक मूलभूत ढांचा, खाद और बीज की बढ़ती कीमतें भी हैं. उत्तर प्रदेश बिहार और उड़ीसा में कृषि मज़दूरों की अनुपलब्धता भी एक बहुत बड़ी समस्या बन गई है और उसका कारण है इन राज्यों के कृषि श्रमिकों का पंजाब और हरियाणा के लिए पलायन. रही सही कसर मनरेगा ने पूरी कर दी, जिसके कारण श्रमिक मनरेगा में काम करते हैं और जब वहाँ काम नहीं मिलता तो शहर में मजदूरी के लिए चले जाते हैं. कम जोत वालों को बटाईदार भी नहीं मिलते इसलिए ये छोटे और मझोले किसान किसी तरह ट्रैक्टर से अपने खेतों की जुताई बुआई करवा कर जीविका चलाते हैं. न्यूनतम समर्थन मूल्य से तो इनका दूर दूर का रिश्ता ही नहीं जिसका सबसे अधिक फायदा पंजाब और उसके बाद हरियाणा को मिलता है इसलिए इसकी मांग हरियाणा और पंजाब के किसान ही करते हैं जहाँ बिचौलियों से मिलीभगत करके इसके दुरुपयोग का लंबा इतिहास है. </span> </li></div></ol></pre></div><p class="q-text qu-display--block qu-wordBreak--break-word qu-textAlign--start" style="box-sizing: border-box; color: #282829; direction: ltr; margin: 0px 0px 1em; overflow-wrap: anywhere; padding: 0px; text-align: justify; word-break: break-word;"><span style="background: none;">आंदोलनकारी कथित किसानों की मांगें उचित भले ही न हो लेकिन जो समय उन्होंने चुना है जो शायद पूरी तरह से उचित है जिसे देख कर यह समझना मुश्किल नहीं है कि इसमें राजनीतिक तड़का लगा है. उनकी मांगो की सूची देख कर भी यह समझना मुश्किल नहीं है कि इसमें मोदी सरकार को शर्मसार करके राजनीतिक फायदा उठाने की मंशा है. </span><span style="background: none; font-weight: bold;">प्रमुख मांगें इस प्रकार हैं, स्वामीनाथन रिपोर्ट पूरी तरह लागू की जाए, सभी फसलें एमएसपी पर खरीदी जाएं, एमएसपी गारंटी कानून बनाया जाएं और स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार फसलों के भाव तय किए जाएं, किसानों और मजदूरों की पूर्ण कर्जमाफी की जाए, भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 को पूरे देश में फिर से लागू किया जाए, भूमि अधिग्रहण से पहले किसानों की लिखित सहमति और कलेक्टर रेट से 4 गुना मुआवजा देने की व्यवस्था हो, लखीमपुर खीरी नरसंहार के दोषियों को सजा और पीड़ित किसानों को न्याय मिले, विश्व व्यापार संगठन से भारत बाहर आए, सभी मुक्त व्यापार समझौतों पर रोक लगाई जाए, किसानों और खेत मजदूरों को रुपया 10,000 प्रतिमाह की पेंशन दी जाए, दिल्ली किसान आंदोलन में शहीद हुए किसानों के परिजनों को एक लाख का मुआवजा और नौकरी दी जाए, विद्युत संशोधन विधेयक 2020 को रद्द किया जाए, मनरेगा से प्रति वर्ष 200 दिन का रोजगार, 700 रुपये का मजदूरी भत्ता दिया जाए, मनरेगा को खेती के साथ जोड़ा जाए.</span></p><p class="q-text qu-display--block qu-wordBreak--break-word qu-textAlign--start" style="box-sizing: border-box; color: #282829; direction: ltr; margin: 0px 0px 1em; overflow-wrap: anywhere; padding: 0px; text-align: justify; word-break: break-word;"><span style="background: none;">आंदोलनकारियों की उपरोक्त मांगे “मैया मै तो चंद्र खिलौना लैहों” जैसी है जिन्हें पूरा करना किसी भी सरकार के लिए बिना राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को अस्तव्यस्त किए संभव नहीं लगता. राहुल गाँधी ने अपनी भारत जोडो न्याय यात्रा के दौरान एक सभा में यह घोषणा की है कि यदि उनकी सरकार बनती है तो वह न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी अधिकार प्रदान करेंगे और अन्य मांगों को भी यथावत लागू कर देंगे. देश के वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए पूरी दुनिया को यह बात मालूम है लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सरकार बनाने नहीं जा रही इसलिए राहुल गाँधी ने इन मांगों पर बिना गंभीरतापूर्वक विचार किए हुए हाँमी भर दी है. कांग्रेस इसके पहले भी कई राज्यों के चुनाव में लोक लुभावन घोषणाएं करके हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक ओर तेलंगाना जैसे राज्यों की अर्थव्यवस्था को लगभग चौपट करने का काम कर चुकी है, जहाँ विकास के कार्य लगभग ठप हो गए हैं और कर्मचारियों के वेतन भुगतान में समस्या आने लगी है.</span></p><blockquote class="q-relative qu-color--gray" style="border-color: transparent; border-width: 0px; box-sizing: border-box; color: #636466; margin: 0px 0px 1em; padding-left: 1em; position: relative;"><p class="q-text qu-display--block qu-wordBreak--break-word qu-textAlign--start" style="box-sizing: border-box; direction: ltr; margin: 0px 0px 1em; overflow-wrap: anywhere; padding: 0px; text-align: justify; word-break: break-word;"><span style="background: none;">सभी फसलों पर एमएसपी गारंटी कानून लागू करना भारत में कृषि अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से चौपट करना होगा क्योंकि इसके बाद कृषि सुधार लागू करने के लिए ज्यादा गुंजाइश नहीं बचेगी. मनरेगा की दैनिक मजदूरी बढ़ाकर ₹700 करना और एक वर्ष में 200 दिनों की रोज़गार गारंटी देना वर्तमान उपलब्ध संसाधनो के अंतर्गत बिना अन्य कार्यों को रोके करना मुश्किल है इस समय इस योजना में वर्ष में 100 दिन रोजगार और मजदूरी विभिन्न राज्यों में रु 200 से लेकर रु 350 के बीच है. वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए मनरेगा के लिए 86,000 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है यदि ये मांगे मान ली जाए तो 7 से 8 लाख करोड़ रूपये का आवंटन चाहिए. हो सकता है कि इससे उप्र, ओडिशा और बिहार से पंजाब और हरियाणा आने वाले कृषि मजदूरों के आने का सिलसिला रुक जाय तो पंजाब और हरियाणा का क्या होगा. उप्र, बिहार और ओडिशा में जहाँ खेतिहर मजदूर नहीं मिलते वहा भी समस्या बढ़ जायेगी. पूरे देश में कृषि उत्पादन की लागत और भी बढ़ जायेगी जिससे एमएसपी न पाने वाले किसानो की हालत और ख़राब हो जायेगी.</span></p><p class="q-text qu-display--block qu-wordBreak--break-word qu-textAlign--start" style="box-sizing: border-box; direction: ltr; margin: 0px; overflow-wrap: anywhere; padding: 0px; text-align: justify; word-break: break-word;"><span style="background: none;">देश में लगभग 15 करोड़ लोग 60 वर्ष से ऊपर हैं, जिनमे से दो तिहाई (10 करोड़) गावों में रहते हैं यदि ग्रामीणों किसान और मजदूरों को प्रतिमाह रु10000 पेंशन दी जाए तो प्रति वर्ष 11-12 लाख करोड़ रूपये चाहिए. गारंटीड एमएसपी लागू करने के लिए लगभग 10 लाख करोड़ रूपये की अतरिक्त व्यवस्था करनी होगी. अगर मनरेगा, पेंशन और गारंटीड एमएसपी पर खर्च देखा जाय तो यह 30 लाख करोड़ रूपये प्रतिवर्ष बैठता है जिसके सापेक्ष वर्तमान वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत सरकार की कुल राजस्व प्राप्तियां 27 लाख करोड़ रूपये हैं और खर्च 45 लाख करोड़ रूपये है. अगर सरकार इन आंदोलनरत कथित किसानों की मांगे मान ले तो वर्तमान राजस्व प्राप्तियों से तो कार्य पूरा नहीं हो सकता है. सोचिये देश में अन्य कार्य कैसे होंगे.</span></p><div class="q-absolute qu-borderRadius--pill QTextBlockQuote___StyledAbsolute-an1wlz-0 dFXrtQ" style="background-color: currentcolor; border-radius: 1000px; bottom: 0px; box-sizing: border-box; left: 0px; opacity: 0.3; position: absolute; text-align: justify; top: 0px; width: 3px;" width="3"></div></blockquote><p class="q-text qu-display--block qu-wordBreak--break-word qu-textAlign--start" style="box-sizing: border-box; color: #282829; direction: ltr; margin: 0px 0px 1em; overflow-wrap: anywhere; padding: 0px; text-align: justify; word-break: break-word;"><span style="background: none; font-weight: bold;">आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि मोदी सरकार इस रूप में ये मांगे नहीं मानेगी और देश की अर्थ व्यवस्था को बर्बाद नहीं होने देगी.</span></p><p class="q-text qu-display--block qu-wordBreak--break-word qu-textAlign--start" style="box-sizing: border-box; direction: ltr; margin: 0px 0px 1em; overflow-wrap: anywhere; padding: 0px; text-align: justify; word-break: break-word;"><span style="background: none; font-weight: bold;"><span style="color: #990000;">इस संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी मोदी का रास्ता रोकने की कोशिश में आन्दोलन में जी जान लगा दें और मोदी स्वभाव के अनुसार आन्दोलन की आपदा में अवसर खोज कर कोई मास्टर स्ट्रोक लगा दें, जो कांग्रेस के टूटते गठबंधन और बिखरते कुनबे को पूरी तरह ध्वस्त कर दें. ऐसी स्थिति में आप और कांग्रेस दोनों का बहुत नुकशान होगा. आन्दोलनकारी कथित किसान भी ये जानते हैं कि आयेगा तो मोदी ही इसलिए आन्दोलन न तो बहुत उग्र होगा और न ही लंबा खिंचेगा .</span></span></p><p class="q-text qu-display--block qu-wordBreak--break-word qu-textAlign--start" style="box-sizing: border-box; color: #282829; direction: ltr; margin: 0px 0px 1em; overflow-wrap: anywhere; padding: 0px; word-break: break-word;"><span style="background: none;">~~~~~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~</span></p><p class="q-text qu-display--block qu-wordBreak--break-word qu-textAlign--start" style="box-sizing: border-box; color: #282829; direction: ltr; margin: 0px 0px 1em; overflow-wrap: anywhere; padding: 0px; word-break: break-word;"><span style="background: none;">इस सम्बन्ध में मेरा एक लेख आज ही प्रकाशित हुआ है .</span></p><div class="q-box" style="box-sizing: border-box; color: #282829; margin-left: -16px; margin-right: -16px;"><div class="CssComponent-sc-1oskqb9-0 QTextImage___StyledCssComponent-sc-1yi3aau-0 cfUEeh"><div class="q-box unzoomed" style="box-sizing: border-box; cursor: -webkit-zoom-in; filter: blur(0px); margin-bottom: 1em;" tabindex="-1"><img class="q-image qu-display--block" src="https://qph.cf2.quoracdn.net/main-qimg-f2072630dc15f41558edbf858210b878" style="border-style: none; box-sizing: border-box; display: block; margin-left: auto; margin-right: auto; max-width: 100%;" /></div></div></div></span></span></div><div style="background-color: white; color: #282829; font-family: -apple-system, system-ui, BlinkMacSystemFont, "Segoe UI", Roboto, Oxygen-Sans, Ubuntu, Cantarell, "Helvetica Neue", sans-serif; font-size: 15px;"></div><div class="q-text qu-dynamicFontSize--small qu-pb--tiny qu-mt--small qu-color--gray_light qu-passColorToLinks" style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #939598; font-family: -apple-system, system-ui, BlinkMacSystemFont, "Segoe UI", Roboto, Oxygen-Sans, Ubuntu, Cantarell, "Helvetica Neue", sans-serif; font-size: calc(13px * var(--dynamic-font-scale,1)) !important; margin-top: 8px; padding-bottom: 4px;"><div class="q-flex qu-justifyContent--space-between AnswerFooter___StyledFlex-sc-2xbo88-0 kcDxwV" style="box-sizing: border-box; display: flex; gap: 6px; justify-content: space-between;"><span class="CssComponent-sc-1oskqb9-0 AbstractSeparatedItems___StyledCssComponent-sc-46kfvf-0 kBzlwk">1 बार देखा गया</span><span class="CssComponent-sc-1oskqb9-0 AbstractSeparatedItems___StyledCssComponent-sc-46kfvf-0 ytbFj"><div class="q-click-wrapper qu-display--inline-block qu-tapHighlight--white qu-cursor--pointer qu-hover--textDecoration--underline ClickWrapper___StyledClickWrapperBox-zoqi4f-0 iyYUZT" style="-webkit-tap-highlight-color: rgba(255, 255, 255, 0.6); box-sizing: border-box; color: inherit; cursor: pointer; display: inline-block; font: inherit; outline: none; padding: 0px; text-align: inherit;" tabindex="0">5 शेयर देखे गए</div></span></div></div>शिव मिश्रा Shive Mishra http://www.blogger.com/profile/10148116856337008239noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4107023095685977479.post-17320749051779100182024-02-14T22:20:00.001+05:302024-02-14T22:20:39.331+05:30दर्शन राम मंदिर में लेकिन याद किया नानीं और नेहरु को | किसान आन्दोलन की ...<iframe width="480" height="270" src="https://youtube.com/embed/up7yMt2O0cw?si=Gm8K9iWQUXC9X8N5" frameborder="0"></iframe>शिव मिश्रा Shive Mishra http://www.blogger.com/profile/10148116856337008239noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4107023095685977479.post-32552548683790565542024-02-14T12:32:00.001+05:302024-02-14T12:32:36.310+05:30नितीश विश्वास मत जीते आत्मविश्वास हारे | फिर खुश क्यों नहीं BJP से | क्य...<iframe width="480" height="270" src="https://youtube.com/embed/XwLHVoPF1as?si=tjOi08UrzQlZ7NM4" frameborder="0"></iframe>शिव मिश्रा Shive Mishra http://www.blogger.com/profile/10148116856337008239noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4107023095685977479.post-70033748854380194162024-01-20T21:44:00.001+05:302024-01-20T21:44:51.402+05:30राम मंदिर निमंत्रण ठुकरा कर कांग्रेस ने चुनाव से पहले ही डुबाया इंडी गठब...<iframe width="480" height="270" src="https://youtube.com/embed/K53yEpFkNQY?si=v9bhb68UckiWlO5U" frameborder="0"></iframe>शिव मिश्रा Shive Mishra http://www.blogger.com/profile/10148116856337008239noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4107023095685977479.post-3252598872048528792023-01-23T11:11:00.001+05:302023-01-23T11:11:18.620+05:30भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने की घोषणा कर सकते हैं ये हिन्दू नेता<iframe width="480" height="270" src="https://youtube.com/embed/Ok41mlO-RoA" frameborder="0"></iframe>शिव मिश्रा Shive Mishra http://www.blogger.com/profile/10148116856337008239noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4107023095685977479.post-23276642271026589972023-01-19T12:41:00.000+05:302023-01-19T12:41:07.894+05:30सचिन पायलट का प्लेन क्रेश<iframe width="480" height="270" src="https://youtube.com/embed/4c8CXUTfFM4" frameborder="0"></iframe>शिव मिश्रा Shive Mishra http://www.blogger.com/profile/10148116856337008239noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4107023095685977479.post-44648281773158920022023-01-10T16:37:00.001+05:302023-01-10T16:37:16.701+05:30Why genocide of Hindus still continues in India? Who is responsible? कब ...<iframe width="480" height="270" src="https://youtube.com/embed/9TAdM9I849g" frameborder="0"></iframe>शिव मिश्रा Shive Mishra http://www.blogger.com/profile/10148116856337008239noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4107023095685977479.post-28536499703660598342023-01-10T10:32:00.000+05:302023-01-10T10:32:05.126+05:30कर्नाटका में भाजपा गहरे संकट में, किसने पलट दी बाजी और कांग्रेस कैसे दौ...<iframe width="480" height="270" src="https://youtube.com/embed/Ui7WS3cevSk" frameborder="0"></iframe>शिव मिश्रा Shive Mishra http://www.blogger.com/profile/10148116856337008239noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4107023095685977479.post-8558505797946122092022-12-20T10:40:00.000+05:302022-12-20T10:40:03.189+05:30कभी अजनबी थे<p> कभी अजनबी थे हम तुम</p><p>वक्त की मेहरबानियां रहीं</p><p>और हम करीब आ गए</p><p>उन पलों की खामोशियों में,</p><p> गूंजती धड़कनों का गीत</p><p>अब भी ये एहसास दिला जाता है</p><p>कि प्रकृति ने जो गीत गाए थे</p><p>हमे मिलाने के लिए</p><p>वो आज क्योंकर को गए......</p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p>रूपhttp://www.blogger.com/profile/14926598063271878468noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4107023095685977479.post-67660089784119229182022-07-15T08:16:00.000+05:302022-07-15T08:16:00.072+05:30हामिद अंसारी ने उपराष्ट्रपति रहते देश की जासूसी करवाई, गुप्त सूचनाये ISI...<div><span style="background-color: white; color: #0d0d0d; font-family: Roboto, Noto, sans-serif; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">मुख्तार अंसारी के चचा हामिद अंसारी का पूरा जीवन संदेह के घेरे में रहा है. उपराष्ट्रपति बन जाने के बाद भी यह महाशय कट्टरता, धर्मान्धता, जिहाद और गजव़ा ए हिन्द की सोच से बाहर नहीं आ सके सके. ये वही व्यक्ति है जिसने ईरान के राजदूत रहते हुए दूतावास में नियुक्ति खुफिया एजेंसी रॉ के ४ अधिकारियों के बारे में ईरान सरकार को गुप्त रूप से सूचित कर दिया था, जिसके कारण इन अधिकारियों को ईरान की खुफिया एजेंसियों ने अगवा कर लिया और बमुश्किल उनकी जान बच सकी. भारत से नफरत इनके रोम रोम में भरी हैं लेकिन सोनिया गांधी इन्हें राष्ट्रपति बनाना चाहती थीं. जानिए विस्तार से .
</span><span style="background-color: white; color: #0d0d0d; font-family: Roboto, Noto, sans-serif; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">#ShiveMishra</span><span style="background-color: white; color: #0d0d0d; font-family: Roboto, Noto, sans-serif; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;"> </span><span style="background-color: white; color: #0d0d0d; font-family: Roboto, Noto, sans-serif; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">#शिवमिश्रा</span><span style="background-color: white; color: #0d0d0d; font-family: Roboto, Noto, sans-serif; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;"> </span><span style="background-color: white; color: #0d0d0d; font-family: Roboto, Noto, sans-serif; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">#HamHindustanee</span><span style="background-color: white; color: #0d0d0d; font-family: Roboto, Noto, sans-serif; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;"> </span><span style="background-color: white; color: #0d0d0d; font-family: Roboto, Noto, sans-serif; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">#हमहिन्दुस्तानी</span></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><iframe frameborder="0" height="270" src="https://youtube.com/embed/w9txGmVPS4U" width="480"></iframe>शिव मिश्रा Shive Mishra http://www.blogger.com/profile/10148116856337008239noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4107023095685977479.post-40764081919424376982022-07-14T11:56:00.003+05:302022-07-15T08:21:04.671+05:3070 वर्षों से पेंडिंग हैं मुकदमें, नही होती सुनवाई.ध्वस्त है तंत्र फिरभी ...<iframe style="background-image:url(https://i.ytimg.com/vi/jPp4TXOHgU0/hqdefault.jpg)" width="480" height="270" src="https://youtube.com/embed/jPp4TXOHgU0" frameborder="0"></iframe>शिव मिश्रा Shive Mishra http://www.blogger.com/profile/10148116856337008239noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4107023095685977479.post-82500920263272393622022-07-10T08:52:00.001+05:302022-07-10T08:52:44.536+05:30एक और अफगान लुटेरा चिस्ती भारत में - नकली पीर फ़कीरों व बाबाओं के जाल से...<iframe width="480" height="270" src="https://youtube.com/embed/8oSkJ2HgKoA" frameborder="0"></iframe>शिव मिश्रा Shive Mishra http://www.blogger.com/profile/10148116856337008239noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4107023095685977479.post-32958070600461737572021-08-06T13:58:00.005+05:302021-08-06T13:59:58.336+05:30 तीसरा प्यार<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh60um018327aVNmcxPhE-guZZ2zBKW4XGkb8d4TlLVV-9fcqI-n8U4G088zWh9TE7_NUvaCKSs1sken-xjwl6eDBKyl-C4pMLN4CLODEGEfyiecO-P-0QfqDAHbR_P_42g5dg3ExcscLrv/s294/1.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="280" data-original-width="294" height="282" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh60um018327aVNmcxPhE-guZZ2zBKW4XGkb8d4TlLVV-9fcqI-n8U4G088zWh9TE7_NUvaCKSs1sken-xjwl6eDBKyl-C4pMLN4CLODEGEfyiecO-P-0QfqDAHbR_P_42g5dg3ExcscLrv/w294-h282/1.jpg" width="294" /></a></div><br /><p><br /></p><p>दीदी आप कल नहीं आई, तो यहाँ का माहौल काफी गमगीन था। इस पार्क के मुरझाये फूलों की ओझिल होती नमी और हरियाली के पीलेपन में रूपांतरण के माहौल में आपकी कमी की ख़लिश आपके घर का पता ढूँढ रही थी।</p><p>हे प्रभु! इतना रूमानी अंदाज़। सब ख़ैरियत तो है?</p><p>दरअसल सभी आपको बहुत शिद्दत से याद कर रहे थे। किसी का दिल नही लग रहा था यहाँ। आप तो रोज़ ही आया करो। अन्यथा बहुत लोगों की निगाहें आपकी ही तलाश में ‘पुलिस’ हुई रहती हैं। आपके इंतज़ार में पार्क के मुख्य द्वार पर पत्थर-सी हुई आँखों से मानो सैलाब आ गया होता कल यहाँ।</p><p>हा-हा-हा! कुछ ज़्यादा नही हो रहा ऊषा? आज तुम किसी और ही मूड में हो। शब्दों का ऐसा अंदाज़-ए-ब्यां मुझे किसी दूसरी ओर धकेल रहा है। तुम्हारे भीतर के किसी तूूफान ने तुम्हें उद्वलित किया हुआ है। सीधे तौर से बताओ तुम आज किस बात से विचलित हो?</p><p>हम्म्म......... आप बहुत अच्छे से समझती हो दीदी मुझे। आप सही पकड़े हैं। मैं कल इस पार्क के लोगों के व्यवहार से थोड़ी परेशान हो गई थी।</p><p>क्यों क्या हुआ कल यहाँ? कोई विशेष बात?</p><p>हाँ दीदी। अब तक हम दोनों जिस व्यवहार पर संदेह कर मजाक में लिया करते थे, कल उसकी वास्तविकता जान पड़ी। आपके लिए एक के बाद एक लगी सवालों की झड़ी के उत्तर देते-देते मैं कल उक्ता गई थी।</p><p>ऐसा क्या-क्या पूछ लिया तुमसे? (मजाकिया लहजे़ में)</p><p>यही कि आप क्यों नही आईं आज? आप कहाँ से आती हो? आप क्या करती हो? आप कौन हो? ब्ला-ब्ला-ब्ला!</p><p>तब तो कल मेरी सारी जन्म-कुंडली का व्याख्यान तुमने बड़े चटकारे लेते हुए किया होगा! और इस ब्ला-ब्ला में कौन-कौन से प्रश्न थे?</p><p>छोड़ो ना दीदी। क्या करोगी जानकर? आप आज आ गईं, सबको बहुत अच्छा लग रहा है। काफी सुकून है आज पार्क में। हरियाली लौट आई है और फूलों पर मुस्कराहट छाई है।</p><p>तुम मजे ले रही हो मेरे। पहले तो सच बताओ कि तुम मेरे मजे ले रही हो या इन लोगों के?</p><p>हा-हा-हा! सच कहूँ तो कल बहुत आश्चर्य हुआ मुझे कि लोगों की सोच इस क़द्र बहक सकती हैं! क्या इनमें से किसी को बिलकुल ख़्याल नहीं आया कि ये......</p><p>तुम कुछ ज़्यादा ही सोच रही हो ऊषा। </p><p>आप कुछ ज़्यादा ही नज़र अंदाज़ कर रही हो दीदी। आप इस बात को इतना हल्के में कैसे ले सकती हो?</p><p>ले सकती हूँ ऊषा। जानती हो क्यों? क्योंकि दिल तो बच्चा है जी।</p><p>आप हर बात मज़ाक में टालने का हुनर जानती हो दीदी। पर क्या कभी इन सब से आपको क़ोफ्त नही होती? अक्सर लड़कियों को इस असभ्य आचरण से दो-चार होना पड़ता है। आपको नही लगता कि इन लोगों को अपने नयनों के तीखे कोरों की सफे़दी से झांकने के प्रयास से पहले अपने-अपने परिवारों के विषय में भी सोचना चाहिए!</p><p>तुम तो ज़्यादा ही संज़ीदा हो गई ऊषा। तुम किस बात से अधिक विचलित हो? इनके घूरने से या ‘किसी लड़की’ के विषय में प्रश्न करने से?</p><p>मैं समझ नहीं पा रही कि ये लोग चाहते क्या हैं?</p><p>यदि मैं तुमसे कहूँ कि सिर्फ़ मुझसे ‘दोस्ती’ करना चाहते हैं। बात करना चाहते हैं। तो क्या तुम इस बात को स्वीकार करोगी?</p><p>मतलब? ऐसा कैसे हो सकता है? आप एक लड़की हो...........</p><p>और ये पुरूष हैं। कुछ विवाहित भी हो सकते हैं और उम्रदराज़ भी। इनकी आपकी मित्रता कैसे हो सकती है? क्यों करनी है इन्हें आपसे दोस्ती या बात? इनकी नीयत सही नही होगी। आपका परिवार और समाज क्या सोचेगा? और सबसे बड़ा सवालः ऐसा कैसे हो सकता है? यही सब सोच रही हो ना तुम?</p><p>हाँ दीदी। पर आपको कैसे पता?</p><p>यही मानवीय प्रवृत्ति है। जैसे तुम सोच रही हो, अधिकतर लोग ऐसे ही सोचते हैं। पर तुम्हें नही लगता कि अब इस सोच के दायरे से बाहर निकल जाना आवश्यक है! साथ ही दोस्ती की परिभाषा को भी विस्तृत किया जाना चाहिए। दोस्ती किसी भी उम्र में और किसी के भी साथ हो सकती है। यह एक स्वार्थहीन और निश्छल रिश्ता होता है। बहुत गहरा भी, जिसमें दो व्यक्ति अपने भेद, दिल की बात, क्रोध, स्नेह, प्यार सब साँझा करते हैं, एक विश्वास के साथ। यह विश्वास इस बंधन को बहुत मजबूती भी देता है। ‘बातें’ जो कदाचित् आप किसी और रिश्ते के साथ खुलकर न कर सको, वे सब इस रिश्ते में निःसंकोच भाव से की जाती हैं। समस्त सघन रिश्तों मसलन माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नी से इतर इस रिश्ते की अपनी अलग भूमिका है। इस रिश्ते में जो ‘प्यार’ है उसे शब्दों में नही बाँधा जा सकता।</p><p>यह तुम्हारी और हमारी दोस्ती ही तो है जो इस विषय पर हम बिना किसी संकोच बात कर रहे हैं। तुम शायद ये बातें और किसी ‘रिश्ते’ से न करना चाहोगी।</p><p>मैं सहमत हूँ आपसे दीदी।</p><p>यह बात तो हुई दोस्ती के विषय में। अब समस्या यह है कि यह दोस्ती किन दो व्यक्तियों के बीच है! हम दोनों लड़कियाँ है और साथ रह सकती हैं और इस विषय पर बात कर सकती हैं। और एक-दूसरे से बहुत प्यार भी करती हैं। परन्तु यदि तुम्हारे या मेरे स्थान पर कोई लड़का हो तो...........</p><p>तो दीदी फिर वही समस्या कि ‘ऐसा कैसे हो सकता है’? ऐसी बातें एक लड़के के साथ कैसे की जा सकती हैं और ये दोस्ती का प्यार क्या होता है?</p><p>ये दोस्ती वाला प्यार मेरे शब्दों में ‘‘तीसरा प्यार’’ है।</p><p>तीसरा प्यार? पहला और दूसरा प्यार कौन-से हैं दीदी?</p><p>ऊषा! हम अक्सर दो ही प्रकार के प्रेम के विषय में बात करते हैं। पहला, जिसमें दो लोग एक-दूसरे के प्रति निष्ठापूर्वक समर्पित होते हैं। और दूसरा, जिसमें प्यार एक तरफ़ा होता है। परन्तु इन दोनों के अतिरिक्त एक तीसरे प्रकार का प्यार भी होता है।</p><p>दीदी आप थोड़ा और विस्तार से समझाओगी?</p><p>समझाती हूँ। तुमने कुछ फिल्मों में देखा होगा कि हीरो-हीरोइन को एक-दूसरे के साथ रहना व बातचीत करना बहुत अच्छा लगता है। वे एक-दूसरे की परवाह करते हैं, दुःख-सुख का बहुत ध्यान भी रखते हैं। परन्तु वे एक-दूसरे के साथ जीवन-व्यतीत नही करना चाहते। शादी नही करना चाहते।</p><p>हाँ दीदी। उसे इंफेचुएशन या आसक्ति कहते हैं।</p><p>हम्म्म......... आसक्ति में एक-दूसरे के प्रति परवाह नही होती। यह क्षणिक भी होती है। आज आसक्ति ‘अमुक’ के प्रति है, तो हो सकता है कि कल किसी ‘अन्य’ के प्रति हो। </p><p>तो फिर यह कैसा सम्बन्ध है दीदी?</p><p>तुम्हारे और मेरे जैसा। दोस्ती का। बस अन्तर है ‘जेंडर’ का। यही है तृतीय प्रकार का प्रेम।</p><p>ऊषा! किसी का अच्छा लगना या न लगना इसका सम्बन्ध उस ‘हृदय’ से है जो मात्र रक्त ही पम्प नही करता है, बल्कि संवेदनाओं एवं भावनाओं से सराबोर भी है। जिसे ईश्वर प्रदत्त वे जिम्मेदारियाँ भी दी गई हैं जिनका निर्वहन करते इसे कई बार अनेक पीड़ाओं से गुजरना पड़ता है। अक्सर इसकी पैरवी चक्षुओं द्वारा की जाती है। परन्तु इसे समझने की मेधा कई बार विद्वानों में भी नही होती। यह अतार्किक है। तार्किक बुद्धिधारियों के लिए यह विचार अपराध है। परन्तु ये भावनाएँ सभी सजीवों में निहित होती है। यह तृतीय प्रेम आवश्यक नही किसी फलाँ व्यक्ति के ही प्रति हो। यह प्रेम कई लोगों में किसी वस्तु विशेष के प्रति होता है, तो किसी में किसी सामाजिक कार्य के प्रति भी होता है। यह आभासी होते हुए भी यर्थाथ है, जिसके अस्तित्व को नकारा नही जा सकता। </p><p>किसी सामाजिक भावना के प्रति पे्रम को उच्च काटि का मानते हुए उसे विभिन्न पुरस्कारों से नवाजा जाता है। ‘समाज सेवा’ का भी नाम दिया जाता है। किसी वस्तु के प्रति इस भावना को ‘वस्तु-प्रेम’ कहा जाता है। किसी संबंधी से इस प्रकार की भावना को रिश्तों के बंधन के रूप में परिभाषित किया जाता है। मात्र ‘विपरीत लिंग’ से ‘दोस्ती’ में इस भावना को प्रदूषित किया जाता हैं। विभिन्न प्रकार की निकृष्ट शब्दावली से इस बंधन की डोर को जबरन जोड़ा जाता है। पवित्र होते हुए भी सामाजिक कलंकों के दाग आज भी हमारे समाज में इस रिश्ते को बदरंग करते हैं। सीधे शब्दों में कहा जाए तो बदले हुए इस आधुनिक समाज में ‘एक लड़के और एक लड़की की पाक दोस्ती’ स्वीकार करने का साहस अभी भी नही आ सका। इस तीसरे प्यार की उचित परिभाषा अभी भी अनुचित का जामा पहने हुए है। पता नही कब इस ‘तीसरे प्यार’ को सामाजिक स्वीकारोक्ति का न्याय मिलेगा?</p><p>मैं आपकी बातों से सहमत हूँ दीदी। और आपके इस तीसरे प्यार की इतनी भिन्न अवधारणा का बहुत सम्मान करती हूँ। अभी हमारे समाज को इस अवधारणा के प्रति अपनी सोच विस्तृत करने में बहुत अधिक समय लगेगा। यहाँ रिश्ते निश्चित परिभाषा के दायरे में बंधे सम्बन्ध में तो स्वीकार्य हैं परन्तु उन दायरों के बाहर अन्य सभी अपराधी हैं। प्रत्येक परिवर्तन में समय लगता है। इसमें भी लगेगा। जो स्थिति पूर्ववत् थी, वह अभी नही है। और आगे आने वाले समय में और अधिक परिवर्तन निश्चित रूप से होंगे। </p><p>सही कहा तुमने। लेकिन ये बताओ इन पार्क वालों से दोस्ती पर अब तुम्हेें कोई आपत्ति तो नहीं? तुम्हारी ही तरह क्या ये मेरे दोस्त बन सकते हैं?</p><p>हा-हा-हा! नही, कोई आपत्ति नही। चलिए, अब घर चलते हैं।</p><p><br /></p><p>नीरज तोमर</p><p>मेरठ।</p><div><br /></div>Neeraj Tomerhttp://www.blogger.com/profile/13465457984997533137noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4107023095685977479.post-52310940290705905192021-06-12T14:26:00.004+05:302021-06-12T14:26:45.087+05:30बाल श्रम निषेध<p> </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEika_DAjoIKhKmYK1D7ta5aoBoL6geVp7HuUopV1W4B8-3r7hcRA45Xit2ju49_HYzyyf1ozGxL5Lcse5TrlBAaXHFkACoDoMyFJTSxDeRXzn0IPpsP1KahhKUEYnOAxtPw6bXSZJB-R9E/s1198/IMG-20210612-WA0003.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1198" data-original-width="720" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEika_DAjoIKhKmYK1D7ta5aoBoL6geVp7HuUopV1W4B8-3r7hcRA45Xit2ju49_HYzyyf1ozGxL5Lcse5TrlBAaXHFkACoDoMyFJTSxDeRXzn0IPpsP1KahhKUEYnOAxtPw6bXSZJB-R9E/s320/IMG-20210612-WA0003.jpg" /></a></div><br /><div><br /></div><div>मित्रों जय श्री राधे, बाल श्रम निषेध के बारे में लोगों को सतत जागरूक करना हम सब का दायित्व है माता पिता जागरूक होंगे तो निश्चित ही वे साथ देंगे और इस अभिशाप से मुक्ति मिल सकेगी हम सभी जो साहित्य से जुड़े , पत्रकारिता से जुड़े, न्याय के कार्यों से जुड़े हैं उनका तो विशेष दायित्व बनता है ।</div><div><br /></div><div>बाल श्रम (निषेध व नियमन) कानून 1986- यह कानून 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को किसी भी अवैध पेशे और 57 प्रक्रियाओं में, जिन्हें बच्चों के जीवन और स्वास्थ्य के लिये अहितकर माना गया है, नियोजन को निषिद्ध बनाता है। इन पेशों और प्रक्रियाओं का उल्लेख कानून की अनुसूची में वर्णित है।</div><div>हमारी इस प्यारी दुनिया मे बसे हर व्यक्ति का बचपन जीवन का सबसे खुशनुमा पल होता है । क्योंकि बचपन ही एक ऐसा अमूल्य समय होता है जिसमे हम तीव्र गति से बिना ईर्ष्या, घमंड के हर कुछ सीखते है जो देखते हैं उसका अनुकरण करते हैं जिस पर हमारा भविष्य निर्मित होता है ।</div><div> सभी बच्चों का पूरा अधिकार है कि इन के माता-पिता उनकी सही परवरिश करें, उन्हे अच्छी शिक्षा दिलाएं, विद्यालय मे भेजें और दोस्तों के साथ खेलने फलने फूलने का पूरा समय दे । लेकिन बाल मजदूरी से इन फूल जैसे प्यारे बच्चों का पूरा जीवन बरबाद हो जाता है ।</div><div><br /></div><div>हमारे देश मे 14 साल की कम उम्र वाले बच्चों से काम करवाना गैरकानूनी है । लेकिन प्रायः देखा जाता है कि माता-पिता की पीड़ा, गरीबी, भुखमरी और लाचारी से प्यारे बच्चे बाल मजदूरी के खतरनाक दलदल में धंसते फंसते चले जाते हैं ।</div><div>साधारण भाषा मे अगर समझा जाय तो किसी भी क्षेत्र में बच्चों से काम दबावपूर्णं करवाया जाए तो उसे बाल मजदूरी या बालश्रम कहते हैं ।</div><div><br /></div><div>आज बाल श्रम पर इतने कड़े नियम कानून के होते हुए भी जिधर देखिए बाल श्रमिक का मकड़ जाल फैला पड़ा है ईंट भट्ठों में, होटलों में, छोटे कारखानों में , कबाड़ की दुकानों में बहुतायत ये दिखते हैं , जिसे हमारा श्रमिक विभाग अनदेखी कर नजर बंद किए घूमता रहता है। </div><div>जरूरत है ऐसे माता पिता को अधिक जागरूक किया जाए उनके साथ श्रम विभाग कड़ाई भी करे। </div><div> क्या श्रम विभाग के आला अधिकारी जो अपने कार्य क्षेत्र में इन पर रोक नहीं लगा पाते , देखते घूम रहे नजरअंदाज किए, तो उनके ऊपर कार्यवाही न सुनिश्चित किया जाए??</div><div><br /></div><div>भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी जी जिन्होंने बाल श्रम को रोकने के लिए अपना पूर्ण सहयोग दिया तथा इसके लिए उन्हें विश्व का सर्वश्रेष्ठ सम्मान ‘नोबेल पुरस्कार’ मिला। ये मध्य प्रदेश में पैदा हुए और अपनी शिक्षक की नौकरी त्यागकर ‘बालश्रम’ की समाप्ति के कार्य में लग गये। 1980 में इन्होंने ‘बचपन बचाओ’ नामक एक आन्दोलन चलाया। 144 देशों में इन्होंने लगभग 83,000 बच्चों को बालश्रम से उबारा और उनकी शिक्षा आदि का भी विभिन्न सरकारों के सहयोग से प्रबन्ध कराया था।</div><div>कुल मिलाकर हमे बाल श्रम के अभिशाप से कैसे भी उबरना होगा कल यही बच्चे हमारे देश के अध्यापक, वैज्ञानिक, साहित्यकार आदि , कर्णधार बनेंगे और देश की प्रगति में सहायक होंगे।</div><div>आइए मित्रों और जागरूक बनें और बनाएं, जय श्री राधे।</div>दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊंSurendra shukla" Bhramar"5http://www.blogger.com/profile/11124826694503822672noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4107023095685977479.post-24332667277159136362021-05-26T12:00:00.001+05:302021-05-26T12:00:43.408+05:30 टैलेंटेड बहू<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjtnMj_FftFdHSWbKgzsUZlBtRXSrQDRQQZA5zVoqUQkjvuzIj_KNYqeZy_Ys50JZxs8O_4qABc7FONjBML6pk0EeWxRYoRn6c93cKNPVwB5BlBIj8GaYay0rNO2iXNh0YjX3UNYA9ZO2yL/s1080/vintage-working-housewife-wallpaper-vector-5243757.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1080" data-original-width="1000" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjtnMj_FftFdHSWbKgzsUZlBtRXSrQDRQQZA5zVoqUQkjvuzIj_KNYqeZy_Ys50JZxs8O_4qABc7FONjBML6pk0EeWxRYoRn6c93cKNPVwB5BlBIj8GaYay0rNO2iXNh0YjX3UNYA9ZO2yL/s320/vintage-working-housewife-wallpaper-vector-5243757.jpg" /></a></div><br />अरे मैडम! आप कब आई? हमें पता भी नहीं चला। <p></p><p>हा-हा-हा। कैसे पता चलता सर! आज पूरा स्टाफ रूम किसी विशेष कार्य में लीन है। इतना सन्नाटा मैंने पहले तो कभी नहीं देखा। आज तो आप लोगों को स्टाफ रूम का एसी आॅन करना भी याद नहीं रहा। यह देखिए कितनी गंदगी यहाँ हो रही है, मैं ज़रा सफ़ाई वाले को बुलाती हूँ। और हाँ! जगदीश सर, क्या आपने प्रिंसिपल सर को अपना प्रोजेक्ट दिखा दिया? रीना मैडम आपके बेटे की तबियत कैसी है अब? और...........</p><p>रजनी मैडम बस भी कीजिए अब। बैठ जाइए ज़रा। </p><p>क्या हुआ सर? आप सभी मुझे इस प्रकार से क्यों देख रहे हैं?</p><p>(यकायक सभी ठहाके लगाकर हँसने लगे। उनके ठहाकों की अचानक आई आवाज़ से रजनी मैडम सिहर गईं।)</p><p>मैं कुछ भी समझ नहीं पा रही हूँ रीना मैडम। सब ठीक तो है ना? आप सभी मुझ पर यूँ हँस क्यों रहे हैं?</p><p>इसलिए क्योंकि हम सभी राहुल सर के लिए लड़की ढूँढ रहे हैं और राहुल इसलिए परेशान है कि आपको शादी की इतनी जल्दी क्या थी? वह आपसे शादी करना चाहता है।</p><p>ओ........... तो ये बात है। राहुल जल्दी कहाँ! मुझे शादी किए हुए तो आठ साल हो गए। और तुमने विद्यालय दो साल पहले ज्वांइन किया है। और हाँ! तुम तो मुझसे शादी कर लेते, पर क्या मैं तुमसे करती! ये भी तो एक बात है।</p><p>हा-हा-हा। बस यही तो बात है मैडम रजनी। आपकी हाज़िर जवाबी भी गज़ब है। कितनी सहजता से आपने इस बात की दिशा को घुमा दिया। कोई और होता तो न जाने कितना बड़ा हंगामा हो गया होता।</p><p>इसमें हंगामा करने वाली क्या बात है? यदि हमें किसी की कोई बात या कोई व्यक्ति विशेष पसंद है, तो वे हमारी व्यक्तिगत् भावनाएँ हैं। हमें तब तक उनका सम्मान करना चाहिए, जब तक कि वे हमारे लिए नुकसानदायक न हो। तुमने अपनी भावनाएँ, मेरा सम्मान करते हुए सबके समक्ष रखी। तुम मुझे परेशान नहीं कर रहे हो, मेरे आत्मसम्मान को ठेस नहीं पहुँचा रहे हो, मेरे परिवार के लिए किसी परेशानी का सबब नहीं हो, तो भला मैं क्यों तुम्हारा अपमान करूँ?</p><p>मैडम बस आपके इसी व्यवहार के कारण ही तो मुझे आप जैसी लड़की से विवाह करना है। स्टाफ रूम में आते ही आपको सबकी कितनी फ़िक्र है! आप किसी काम के लिए कभी इस बात का इंतज़ार नहीं करती कि कौन करेगा, स्वयं करना आरंभ कर देती हो। घर, बच्चा, विद्यालय, समाज सभी प्रकार की जिम्मेदारियाँ इतने अच्छे से निभाती हो। यह सब हम स्वयं देखते हैं। तो भला आप जैसी लड़की से कौन विवाह करना नहीं चाहेगा?</p><p>सोच लो राहुल। यह सब तुमने बाहरी रूप देखा है। मेरे जैसी लड़की से हर लड़का शादी करना चाहता है, परन्तु मेरे जैसी लड़की का साथ निभाने के लिए मेरे पति जैसा धैर्यशील व निरहंकारी व्यक्ति होना भी आवश्यक है। क्या तुम स्वयं को उन कसौटियों पर खरा मानते हो?</p><p>हाँ मैडम! जब कमाऊ, सर्वगुणसम्पन्न वधु मिलेगी, तो क्या करेंगे अहंकार का।</p><p>हा-हा-हा। यह कहना जितना आसान है राहुल, करना उससे कहीं अधिक कठिन। जब लड़की स्वयं कमाती है, तो अपने निर्णय भी स्वयं लेती है। उसका अपना एक समाज भी बनता है, जिसके अनुसार उसे व्यवहार भी करना होता है और सामाजिक दायित्व भी निभाने होते हैं। उन्हीं सामाजिक दायित्वों को निभाने के लिए उसे उन्हीं 24 घंटों में से समय एडजस्ट करना होता है, जो सभी के पास हैं। इसी समायोजन में यदि कभी-कभार कुछ दायित्व या व्यक्ति नज़रअंदाज हो जाएँ तो यह उसका एक गुनाह बन जाता है। किसी को इस बात से कोई सरोकार नहीं होता कि वह अपने लिए कुछ कर पायी या नहीं। आज उसे खाना भी मिला या नहीं। उसे कोई कष्ट तो नहीं। कहीं कोई दर्द तो नहीं। बस सबके सम्पन्न होते कार्यों पर सब प्रसन्नचित रहते हैं, परन्तु यदि कोई भूल हो जाए या तनिक भी वह अपने लिए कुछ कर ले, तो वह गैर-जिम्मेदार हो जाती है। और पता है तुम्हें ऐसी ‘टैलेंटेड बहू’ को कुंठित होने का भी कोई अधिकार नहीं होता! यदि किसी भी प्रकार की कोई कुंठा उसके चेहरे पर नज़र आती है तो तुरंत प्रश्न दागा जाता है कि कौन कहता है तुम्हें नौकरी करने के लिए? घर-परिवार की जिम्मेदारी निभाओ। घर बैठो। बस! इन्हीं शब्दों के वार से बचने के लिए लबों को सीलें टैलेंटेड बहू अपने कर्तव्यों का निर्वहन करती जा रही है।</p><p>वस्तुतः हमारा समाज दोगला है। उसे टू-इन-वन बहू चाहिए। एकः जो कुछ बोले नहीं। सीधी-सादी, सरल। घूँघट में लिपटी। आदेशों पर दौड़ने वाली। एक पैर पर तैनात।</p><p>और दूसरीः जो माॅर्डन हो। आत्मनिर्भर हो। कमाऊ हो। एक फोन काॅल पर एवेलेबल हो। समाज में प्रजेंटेबल हो। सबके काम बिना किसी ऊँ-आह के करती जाए। और फिर समाज में आप यह भी कहें कि हमने तो अपनी बहू को बेटी का दर्जा दिया हुआ है। वह जैसे चाहे, वैसे रह सकती है। हम इतने आधुनिक विचारों के हैं कि हमें बहू की नौकरी, पहनावे या उसके समाज से कोई आपत्ति नहीं है। हमने अपनी बहू को इतनी स्वतंत्रता दी हुई है कि वह अपने निर्णय स्वयं ले सकती है। मुझे यह समझ नहीं आता राहुल बहुओं को इस प्रकार की स्वतंत्रता देेने का अधिकार इन्हें किसने दिया? बहू परिवार की सदस्य होती है या बँधुआ मजदूर, जो इनकी दी हुई स्वतंत्रता के आधार पर अपने कदम बढ़ाती है। क्या उसका अपना कोई वजूद नहीं होता? वह इस प्रकार की स्वतंत्रता ससुराल वालों के रहमोकरम पर पा रही है या अपनी योग्यता के आधार पर? उसकी अपनी प्रतिभा क्या कोई मायने नहीं रखती? यदि वह यह डबल जिम्मेदारी निभा रही है तो भी ससुराल के अहसानों तले दबकर! जिसमें उसके लिए सोचने वाला कोई नहीं है। वह सुबह मशीन की भांति स्टार्ट हो रात तक चलती रहती है। और चलते रहना उसकी मजबूरी भी है। यदि वह रूकी तो तानों एवं आरोपी की बौछारों से उसका स्वागत घर में होगा। वास्तविकता तो यह है कि ‘टैलेंटेड बहू’ आत्महित एवं स्वार्थ के अनुसार चाहिए। </p><p>अब तुम्हें ही देख लो। तुमने मुझमें देखा कि घर-परिवार-समाज-नौकरी-बच्चा सभी कुछ मैं संभाल लेती हूँ, इसलिए तुम्हें मेरे जैसी पत्नी चाहिए। पर क्या तुमने ये सोचा है कभी कि मुझे भी इसी प्रकार का सर्वगुणसम्पन्न वर चाहिए हो सकता है? मैं भी ऐसे व्यक्ति को अपने पति के रूप में चाहती होंगी जो अपने सारे दायित्वों को पूर्ण निष्ठा से पूरा करे और मैं वह समय अपने सपनों को पूरा करने में लगा सकूँ। एटीएम नहीं बनना मुझे, अपने सपनों को आसमान की उड़ान देनी है। परन्तु क्या कोई विकल्प है मेरे पास अपने सपनों को पूरा करने के लिए?</p><p>तुमने देखा होगा कि आजकल पारिवारिक विवाद के मामले बहुत बढ़ गए हैं। जानते हो क्यों? क्योंकि लोग घर पर बेटी रूपी बहू न लाकर ‘टैलेंटेड वधु’ लाने लगे हैं। जिस पर आते ही सभी अपने-अपने हिस्से की जिम्मेदारियाँ बाँटनी आरंभ कर देते हैं। कोई रसोई उसे भेंट में देता है, तो कोई घर के खर्च में उसकी सहभागिता समझाता है। बीस वर्ष से ऊपर के देवर-ननद बेटे व बेटी के रूप में प्रस्तुत किए जाते हैं। घर का कौना-कौना उसे एक-एक जिम्मेदारी के रूप में दिखाया जाता है। मस्तिष्क में अनगिनत आइडियाज़ के साथ उसका भव्य स्वागत किया जाता है। परन्तु कोई उससे यह नहीं पूछता कि इस नए परिवार से उसे क्या आशाएँ हैं? वह कौन-कौन सी जिम्मेदारियाँ पूर्ण करने में स्वयं को सक्षम मानती है? या कौन-कौन सी जिम्मेदारियाँ पूर्ण करने की इच्छुक है? उसकी इच्छा अथवा अभिलाषाओं पर तो कभी कोई विचार ही नहीं करता। बस यहीं से विवाद आरंभ हो जाते हैं। कुछ समय तक तो वह अपने पूर्ण उत्साह से समस्त दायित्वों का निर्वहन करती है परन्तु सभी व्यक्ति प्रत्येक कार्य में निपुण नहीं हो सकते। जहाँ उसकी निपुणता में कमी आयी, वह तुलना एवं उपहास भरे अल्फ़ाजों से छलनी होने लगती है। यहाँ उसके स्वाभिमान पर चोट कर उसके धैर्य की अन्तिम सीमा तक परीक्षा ली जाती है। और जब पानी सीमा से ऊपर जाने लगता है, तो परिवार विवादों की बाढ़ में बहने लगताा है। चूँकि वह बाँध ‘टैलेंटेड बहू’ के धैर्य के चरम बिन्दु पर टूटा है, तो निश्चित रूप से वह है- ‘गिल्टी’।</p><p>इसलिए तुमसे कहती हूँ ‘गिल्टी बहू’ मत ढूँढो। अब देखो तुम्हें ‘टैलेंटेड लड़की’ से कितना कुछ सुनना पड़ा! हो सकता है.......... ना-ना यकीनन तुम्हें यह सब सुनकर बुरा लग रहा होगा। लेकिन मैं तुम्हें मात्र यही समझाना चाहती थी कि यदि यह सब सुनने का धैर्य तुममें है, तो तुम ‘टैलेंटेड बहू’ से शादी करने के योग्य हो। यदि तुम इन समस्याओं को सुलझाने की योग्यता रखते हो और यदि तुम अपने हमसफ़र के स्वाभिमान का सम्मान कर सकते हो तो तुम ‘टैलेंटेड बहू’ से शादी कर सकते हो। साथ ही यदि तुम उसकी उड़ान पर अपने अहंकार एवं ईष्र्या की भावना को नियंत्रित रख समाज में उसकी प्रतिभा की प्रशंसा कर सकते हो, तो तुम ‘टैलेंटेड बहू’ से विवाह कर सकते हो। यदि तुम उसके बढ़ते करियर पर बच्चों की जिम्मेदारी स्वयं ले, उसे समय दे सकते हो तथा स्वयं को उसके सहारे के रूप में न प्रस्तुत कर, उसके साथी बन साथ चल सकते हो, तो तुम निश्चित रूप से ‘टैलेंटेड बहू’ से शादी कर लेना। परन्तु यदि तुम मात्र स्वार्थसिद्धि हेतु कि वह तुम्हारे एटीएम के रूप में तथा तुम्हें पारिवारिक जिम्मेदारियों से मुक्त करने के लिए तुम्हारी पत्नी के रूप में आए, तो याद रखना ज़िंदगी ‘गिल्टी/नोट गिल्टी/ हू इज़ गिल्टी?’ के बीच उलझकर रह जाएगी। अब निर्णय तुम्हें करना है कि नम्बर एक बेहतर है अथवा नम्बर दो!</p><p><br /></p><div><br /></div>Neeraj Tomerhttp://www.blogger.com/profile/13465457984997533137noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4107023095685977479.post-82546597449655435812021-05-22T13:50:00.001+05:302021-05-22T13:50:23.415+05:30कोरोना के काल को<p> कोरोना के काल को, </p><p>झूंठलाए जो लोग।</p><p>खुद शिकार वो हो गए , </p><p>और बढ़ाए रोग।।</p><p><br /></p><p>दो गज दस मीटर बना, </p><p>मास्क बना अनिवार्य,</p><p>आफिस घर बाहर सभी,</p><p>पहन करो सब कार्य।।</p><p><br /></p><p>अगर भीड़ हो, संशय कुछ हो,</p><p>कहीं संक्रमित, टहल गया हो,</p><p>शरमाओ ना मास्क,पहन लो,</p><p>गली मोहल्ला, अपना घर हो।।</p><p><br /></p><p>गले मि लो ना ,</p><p>ना हाथ मिलाओ,</p><p>छूना कुछ हो , सैनिटाइजर हाथ लगाओ ।</p><p><br /></p><p>आंख नाक जो छूना ही हो, </p><p> साबुन से तुम हाथ मलो।</p><p>हाथ छुवो ना, हाथ बढ़ाओ</p><p>कठिन समय, पग चलो जमाओ।</p><p><br /></p><p>ठंडा पानी पेय नहीं लो</p><p>काढ़ा भाप गर्म पानी लो</p><p>अदरक तुलसी या गिलोय हो</p><p>दवा सुझाई गई मात्र लो</p><p><br /></p><p>फंगस व्हाइट ब्लैक कोई भी</p><p>पहचानो आहट खतरे की</p><p>अस्पताल भागो जाओ </p><p>देरी ना हो दवा कराओ</p><p><br /></p><p>नाक बंद हो चेहरे सूजन</p><p>आंख दर्द या धुंधलापन हो</p><p>फंगस के हैं सारे लक्षण</p><p>दांत हिले या दर्द दांत हो </p><p><br /></p><p>अगर शुगर या रोग पुराना</p><p>स्टेरायड खुद ना खाना</p><p>डाक्टर से ही दवा लिखाना</p><p>सब को भाई रोज सिखाना</p><p><br /></p><p>बहुरूपिया अदृश्य कोरोना</p><p>भूल करो ना पीछे रोना</p><p>भोले भाले को समझाना</p><p>अपना ही दायित्व समझना</p><p><br /></p><p>श्मशान नदियों के तट से</p><p>दूर रहो है वायु प्रदूषित</p><p>आंधी चिड़ियां मरे जानवर</p><p>जलजमाव बहुतेरे दूषित</p><p><br /></p><p>प्राणायाम योग कसरत से</p><p>आओ चुस्त दुरुस्त बनें </p><p>प्रोन पोजिशन लेट लेट के</p><p>ऑक्सिजन भरपूर भरें</p><p><br /></p><p>रखें हौंसला ना घबराएं</p><p>जंग जीत कर हम मुस्काएं</p><p>झंझावात महामारी को</p><p>सब मिल आओ दूर भगाएं</p><p>***********</p><p>सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5 , प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत।</p>SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5http://www.blogger.com/profile/11163697127232399998noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4107023095685977479.post-48634777530462684922021-05-14T00:25:00.000+05:302021-05-14T00:25:11.774+05:30कलयुगी कोरोना<span style="background-color: white;"></span><p style="-webkit-text-stroke-width: 0px; color: #616161; font-family: Sorts Mill Goudy; font-size: 16px; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: 400; letter-spacing: normal; orphans: 2; text-align: left; text-decoration: none; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; word-spacing: 0px;">बाहर वाले कमरे की खिड़की के पास बैठी कौतूहलवश बाहर झाँक रही थी। पड़ौसी की बगिया के ‘रात की रानी’ के फूल और साथ ही कुछ गुलाब काले-काले बादलों से आती ठंडी-ठंडी हवा के साथ इठला रहे थे। कुछ कुकुर भोजन की तलाश में इधर-उधर भटक रहे थे। पर लगता है, आज उन्हें कुछ भी मिलना कठिन है। रोज़ शर्मा जी के बिस्कुट के चटोरे ये कुकुर आज सुनसान पड़ी सड़कों को ताड़ रहे थे। सन्नाटा मानों कान के पर्दे फाड़ देगा। घरों में शोर है, पर रास्ते मौन हैं। विचित्र-सा दृश्य है। अब यह सब दिनचर्या-सी बन गई है। पिछले एक वर्ष से, जब से व्यक्ति से ज़्यादा ‘कोरोना’ का हाल लिया जाने लगा है, यह सन्नाटा कभी भी ज़िदगी थाम-सी देता है। सुनसान-सी ज़िंदगी में चूँ-चूँ करती आवाजंे हृदय गति बढ़ा देती हैं। आज फिर किसी का कोई अपना......।</p><div style="-webkit-text-stroke-width: 0px; color: #616161; font-family: Sorts Mill Goudy; font-size: 16px; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: 400; letter-spacing: normal; orphans: 2; text-align: left; text-decoration: none; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; word-spacing: 0px;"><br />कुछ ऐसा ही है कोरोना ‘काल’। दिसंबर 2019 से 2021 तक न जाने कितनों ने कितने अपनों को खो दिया। अब फ़ोन की घंटी बजते ही दिल बैठने लगता है। विगत वर्ष जब लॉकडाउन शब्द ने जीवन में प्रवेश किया, तो कुछ अनुभवों ने बहुत रोमांचित किया। अपनों के साथ समय बिताने के सुकून ने बहुत आनन्दित किया। रोज़ की भागमभाग से दो पल नहीं वरन् दो माह से अधिक ऐसे रहे, जिसमें सबने अपने शौक पूरे किए। कुछ भय अवश्य था, पर मज़ा आ रहा था। किंतु यह वर्ष...... चहुँ ओर की चित्कारों ने खौफ़ का मंजर कायम कर दिया। हर पल किसी अपने को खोने का गम दिन-रात आँखों को नम किए हुए है। इस बीमारी से बचे लोग अपनी आगे आने वाली पीढ़ियों को इस समय के विषय में सदैव भीगी पलकों से बताएंगे।</div><div style="-webkit-text-stroke-width: 0px; color: #616161; font-family: Sorts Mill Goudy; font-size: 16px; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: 400; letter-spacing: normal; orphans: 2; text-align: left; text-decoration: none; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; word-spacing: 0px;"><br />जब चीन से इस बीमारी ने फैलना आरंभ किया तो विश्व स्तर पर चीन की आलोचना की गई, जो की भी जानी चाहिए थी। परन्तु मात्र आलोचना, इसके फैलाव को रोकने के लिए पर्याप्त नहीं थी। ऐसा नहीं है कि भारत ने प्रयास नहीं किए। आरंभिक स्तर पर समस्त आवश्यक कदम उठाए गए। परन्तु इसी बीच भारत में राजनीति, मानवीयता से उच्च हो गई और प्रयास स्वार्थानुरूप हो गए। भारत मूल्यों एवं संस्कारों का देश है। यहाँ की संस्कृति एवं सभ्यता वैश्विक स्तर पर पूजनीय एवं अनुसरणीय है। परन्तु ‘कोरोना’ के इस विकट समय में कुछ उदाहरणों ने सम्पूर्ण विश्व में देश को शर्मसार कर दिया। ‘आपदा में अवसर’ का इतना विभत्स रूप एवं पशुवृति देख मानवता छलनी हो गई।<br />सर्वप्रथम बात करते हैं इसके प्रसार की। मुझे याद है फरवरी,2020 में जब भारत में कोरोना का प्रवेश हुआ, तो दिसंबर,2020 इसके फैलाव के लिए सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण बताया जाता था। परन्तु वह समय काफी शांतिपूर्ण ढंग से बीत गया। शनैः-शनैः भरोसा होने लगा था कि हम यह जंग जीतने वाले है। निःसंदेह इसी कारण हम सभी लापरवाह और फिर बेपरवाह भी हो गए। तभी अप्रैल में अचानक बढ़े केसों की बाढ़-सी आ गई। यकायक यह क्या हुआ? <br />पिछले कुछ माह देखें तो बंगाल चुनाव एवं पंचायत चुनाव इस अनियंत्रित प्रसार के विशेष कारण रहें। भारत में कोरोना का गाँवों में प्रवेश सर्वाधिक खतरनाक परिस्थितियों का जनक होगा, यह सर्वविदित था। इन चुनावों ने कोरोना के प्रसार की गति को कई गुना बढ़ा दिया। फिर वही हुआ जिसका भय था। और परिणाम भी सभी के सम्मुख हैं। ‘‘मद्रास हाइकोर्ट ने तो चुनाव आयोग को दोषी मानते हुए टिप्पणी की कि चुनाव आयोग के अफसरों पर इस कृत्य के लिए सामूहिक हत्या का मुकदमा चलाया जाना चाहिए।’’ ‘‘आस्ट्रेलियन अख़बार लिखता है कि घमंड, अंध राष्ट्रवाद और नौकरशाही की अयोग्यता ने भारत को तबाही में धकेल दिया।’’ ये कथन मामूली नहीं हैं। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय साख पर प्रश्नचिह्न तो आरोपित करते ही हैं, साथ ही भारत में बिगड़े हालातों एवं उनके कारणों की ओर ध्यानाकर्षित भी करते हैं।</div><div style="-webkit-text-stroke-width: 0px; color: #616161; font-family: Sorts Mill Goudy; font-size: 16px; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: 400; letter-spacing: normal; orphans: 2; text-align: left; text-decoration: none; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; word-spacing: 0px;"><br />इसी के साथ गाँव में एक भ्रांति भी थी कि खेतों में बहाए पसीने में कोरोना कहाँ टिक पाएगा! इसी अतिआत्मविश्वास ने गाँव में लाशों के ढेर लगाने आरंभ कर दिए हैं। मेरी छोटी-सी समझ बड़े लोगों (नेताओं) की नीतियों और युक्तियों को नहीं समझ पा रही है कि पिछले एक वर्ष में मंदिरों एवं मूर्तियों के निर्माण में लगाए गए ‘धन’ को इन विकट परिस्थितियों से निपटने के लिए अपेक्षित मदों में क्यों नहीं खर्च किया गया? 2020 हमें मेडिकल क्षेत्र में हमारी तैयारियों की सच्ची एवं कड़वी तस्वीर दिखा चुका था। अपर्याप्त अस्पताल एवं दवाइयों ने हमें सिखा दिया था कि आस्था को श्रद्धा के साथ सींचे परन्तु वास्तविकता में जीते हुए बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। इन सबके बावजूद हमारे हुक्मरानों के स्वार्थपूर्ण निर्णयों ने देश की जनता के प्राणों को इस क़दर संकट में डाल दिया! कैसे उठाएंगे ये इतनी मौतों के जिम्मेदारी के शर्मनाक बोझ को?</div><div style="-webkit-text-stroke-width: 0px; color: #616161; font-family: Sorts Mill Goudy; font-size: 16px; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: 400; letter-spacing: normal; orphans: 2; text-align: left; text-decoration: none; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; word-spacing: 0px;"><br />आम जनता उच्च पदों हेतु समझदार नहीं होती है, तभी तो वह प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री पद की दावेदारी नहीं करती। परन्तु जिन पर वह भरोसा कर उस पद पर सुशोभित करती है, उनके निर्णय इतने ग़लत हो गए कि उन्हें बनाने वाले ही मिटने लगें? इतनी अहसानफ़रामोशगी, इतना स्वार्थ, इतनी निष्ठुरता कि मौत के इतने भयावह मंजर पर आँखों में इक आँसू न हो! इटली के प्रधानमंत्री अपने देश के हालातों पर सम्पूर्ण विश्व के सम्मुख रो पड़ते हैं, ईश्वर से अपने देश के लिए न केवल प्रार्थना करते हैं, वरन् अथक प्रयासोें से स्थिति नियंत्रित भी करते हैं। और भारत में............ थाली, कटोरी, चम्मच राग........... इतिहास इन कृत्यों को कभी माफ़ नहीं करेगा। ईश्वर में लोगों की आस्था का दुरूपयोग करने वाली राजनीति भारतीय इतिहास का सबसे काला अध्याय होगी। </div><div style="-webkit-text-stroke-width: 0px; color: #616161; font-family: Sorts Mill Goudy; font-size: 16px; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: 400; letter-spacing: normal; orphans: 2; text-align: left; text-decoration: none; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; word-spacing: 0px;"><br />एक बात तो स्पष्ट है कि चारों ओर के मंजर ने लोगों को यह तो भली-भांति समझा दिया कि चाहे लखपति हो, या करोड़पति और हो चाहे रोड़पति अपने साथ न कुछ ले जा सका है और न उसका अपने लिए ही उपभोग कर सका है। तो ये कौन प्राणी हैं जो मौत का भी व्यापार कर रहे हैं? दवाइयों की कालाबाज़ारी, ऑक्सीजन पर राजनीति, अस्पतालों में अंग व्यापार इससे अधिक तुच्छता और भला क्या हो सकती है? इतनी कठोरता प्राप्त करने की ये कौन-सी सिद्धि है, जो इस हाहाकार पर भी हृदय विदारित नहीं होता!!! </div><div style="-webkit-text-stroke-width: 0px; color: #616161; font-family: Sorts Mill Goudy; font-size: 16px; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: 400; letter-spacing: normal; orphans: 2; text-align: left; text-decoration: none; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; word-spacing: 0px;"><br />हाल ही की एक घटना में एक नर्स असली रेमडेसिविर इंजेक्शन को मरीज को न लगाकर अपने साथी को दे देती। और वह उसे ब्लैक मंे बेच मुनाफ़ा कमाता। मरीज को वह नर्स नॉर्मल इंजैक्शन लगाती, जिसके कारण बहुत से मरीजों की मृत्यु तक हो गई। इसी क्रम में पिछले वर्ष एक डॉक्टर ने 100 से अधिक मरीजों को मारकर उनके अंग बेच दिए। अस्पतालों में मरीजों को ऑक्सीजन सिलेंडर लगाने का दिखावा किया जा रहा है। उनके तीमारदारों द्वारा लाया गया ऑक्सीजन सिलेंडर पुनः बाज़ार में बिकने के लिए आ जाता है। वेंटिलेटर पर मृत व्यक्ति को लंबे समय रख लोगों से पैसा ठगा जाना............. क्या यह सब कलयुग का चरम बिंदु नहीं है? क्या यह राक्षसी प्रवृत्ति नहीं है? इसी प्रकार की अनेक घटनाओं से इंसानियत लज्जित हो रही है। तो क्या कोई अंत है इन सबका? या यह सब प्रकृति का न्याय है? किसी अवतार को अवतरित करना अर्थात् पुनः एक और आस्था का व्यापारीकरण हो जाना। कहीं ऐसा तो नहीं कि प्रकृति ने अधर्म के विनाश हेतु इस ‘कलयुगी कोरोना’ को परोक्ष रूप से अवतरित किया हो? और हम अब भी लालच के मार्फ़त शमशान सजाने में लगे हैं। पुण्य के स्थान पर पाप कमाने में लगे हैं।</div><div style="-webkit-text-stroke-width: 0px; color: #616161; font-family: Sorts Mill Goudy; font-size: 16px; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: 400; letter-spacing: normal; orphans: 2; text-align: left; text-decoration: none; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; word-spacing: 0px;"><br />इस समस्या के निस्तारण के लिए प्रत्येक वर्ग को सचेत एवं मर्यादित होना ही होगा। धन एवं सत्ता के लोभ का त्याग कर परहित एवं परोपकारी बनना होगा। यदि अब भी नहीं संभले, तो ऐसा न हो कि किसी भी व्यक्ति के पास खोने के लिए कुछ शेष ही न बचे।</div><br />Neeraj Tomerhttp://www.blogger.com/profile/13465457984997533137noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-4107023095685977479.post-77696147199304418462021-05-13T15:42:00.007+05:302021-05-13T15:42:43.359+05:30कोरोना है डरा रहा<p> *****************</p><p>कोरोना है डरा रहा,</p><p> चुन चुन करे शिकार</p><p>आंख बन्द माने नहीं , </p><p>शामिल हुए हजार।</p><p>***************</p><p>कोरोना से मत डरो,</p><p> अपनाओ सब ढाल</p><p>हृष्ट पुष्ट ताकत रखो,</p><p>कर लो प्राणायाम,</p><p>*************</p><p>काढ़ा भाप गर्म पानी लो,</p><p>घर में करो आराम,</p><p>मास्क सैनिटाइजर ना भूलो,</p><p>बाहर गर हो काम</p><p>*************</p><p>अदरक तुलसी मिर्च हो काली, </p><p>लौंगा और गिलोय</p><p>नीबू सेंधा नमक प्याज भी,</p><p>घर में करो प्रयोग</p><p>****************</p><p>रूप प्रभु के यहां चिकित्सक</p><p>लो सलाह भरपूर</p><p>जो बोलें तुम करो दवाई</p><p>खा लो थोड़ा धूप</p><p>***************</p><p>कुछ कपूर हो लौंग साथ में,</p><p>कभी कभी लो सूंघ</p><p>प्रोन पोजिशन लेट सांस लो,</p><p>ऑक्सिजन भरपूर।</p><p>***************</p><p>प्रात उठो टहलो बस घर में</p><p>योग ध्यान कसरत कुछ कर लो,</p><p>पौधों फूलों से कुछ खेलो</p><p>प्यार करो हंस लो मुस्का लो।</p><p>******************</p><p>आंधी आए कुछ फल गिरते</p><p>बचते फिर जो हों मजबूत</p><p>आओ बांटें व्यथा सभी की,</p><p>हृदय बचे ना कोई शूल।</p><p>*****************</p><p>सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर5</p><p>प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश</p><p>भारत</p>Surendra shukla" Bhramar"5http://www.blogger.com/profile/11124826694503822672noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4107023095685977479.post-37838112545993115402021-04-01T05:55:00.001+05:302021-04-01T05:55:15.763+05:30पल्लव कोंपल है गोद हरी<p> शीत बतास औे पाला सहे नित</p><p>ठूंठ बने हिय ताना सुने जग</p><p>कूंच गई फल फूल मिले</p><p>तेरे साहस पे नतमस्तक सब</p><p>पल्लव कोंपल है गोद हरी</p><p>रस भर महुआ निर्झर झर झर</p><p>सब खीझत रीझत दुलराते</p><p>सम्मोहित कुछ वश खो जाते</p><p>मधु रस आकर्षित भ्रमर कभी</p><p>री होली फाग सुनावत हैं</p><p>छलकाए देत रस की गागर</p><p>ज्यों अमृत पान करावत है</p><p>ऋतुराज वसंत भी देख चकित</p><p>गोरी चंदा तू कर्पूर धवल</p><p>रचिता बनिता दुहिता गुण चित</p><p>चहुं लोक बखान बखानत बस</p><p>शुध चित्त मर्मज्ञ हरित वसनी</p><p>पावन करती निर्झर जननी</p><p>बल खाती सरिता कंटक पथ</p><p>उफनत हहरत सागर दिल पर</p><p>कुछ दबती सहती शोर करे</p><p>गर्जन बन मोर नचावत तो</p><p>कुछ नाथ लेे नाथ रिझावत है</p><p>मंथन कर जग कुछ सूत्र दिए</p><p>मदिरा मदहोश हैं राहु केतु </p><p>कुछ देव मनुज संसार हेतु</p><p>री अमृत घट करुणा रस की</p><p>मै हार गया वर्णन सिय पी</p><p>------------------------</p><p>सुरेंद्र कुमार शुक्ल</p><p>प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत</p>Surendra shukla" Bhramar"5http://www.blogger.com/profile/11124826694503822672noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4107023095685977479.post-55868447293140746052021-03-31T13:17:00.004+05:302021-03-31T13:17:23.259+05:30बार बार उड़ने की कोशिश<p> बार बार उड़ने की कोशिश</p><p>गिरती और संभलती थी</p><p>कांटों की परवाह बिना वो</p><p>गुल गुलाब सी खिलती थी</p><p>सूर्य रश्मि से तेज लिए वो</p><p>चंदा सी थी दमक रही</p><p>सरिता प्यारी कलरव करते</p><p>झरने चढ़ ज्यों गिरि पे जाती</p><p>शीतल मनहर दिव्य वायु सी</p><p>बदली बन नभ में उड़ जाती</p><p>कभी सींचती प्राण ओज वो</p><p>बिजली दुर्गा भी बन जाती</p><p>करुणा नेह गेह लक्ष्मी हे</p><p>कितने अगणित रूप दिखाती</p><p>प्रकृति रम्य नारी सृष्टि तू</p><p>प्रेम मूर्ति पर बलि बलि जाती</p><p>--------------------</p><p>सुरेंद्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5</p><p>प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत</p>Surendra shukla" Bhramar"5http://www.blogger.com/profile/11124826694503822672noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4107023095685977479.post-10352860564244298432021-03-19T14:42:00.002+05:302021-03-19T14:42:12.499+05:30गांव की गोरी ने लूट लिया तन मन<p> गांव की गोरी ने लूट लिया तन मन</p><p>-----------------------</p><p>आम्र मंजरी बौराए तन देख देख के</p><p>बौराया मेरा निश्च्छल मन</p><p>फूटा अंकुर कोंपल फूटी</p><p>टूटे तारों से झंकृत हो आया फिर से मन</p><p>कोयल कूकी बुलबुल झूली</p><p>सरसों फूली मधुवन महका मेरा मन</p><p>छुयी मुई सी नशा नैन का </p><p>यादों वादों का झूला वो फूला मन</p><p>हंसती और लजाती छुपती बदली जैसी</p><p>सोच बसंती सिहर उठे है कोमल मन</p><p>लगता कोई जोह रही विरहन है बादल को</p><p>पथराई आंखे हैं चातक सी ले चितवन</p><p>फूट पड़े गीत कोई अधरों पे कोई छुवन</p><p>कलियों से खेल खेल पुलकित हो आज भ्रमर</p><p>मादक सी गंध है होली के रंग लिए</p><p>कान्हा को खींच रही प्यार पगी ग्वालन</p><p>पीपल है पनघट है घुंघरू की छमछम से</p><p>गांव की गोरी ने लूट लिया तन मन</p><p>-------------------------</p><p>सुरेंद्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5</p><p>प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश भारत</p><p>19.3.2021</p>SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5http://www.blogger.com/profile/11163697127232399998noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4107023095685977479.post-86801513863704184602021-03-15T08:57:00.001+05:302021-03-15T08:57:14.746+05:30दहेज कोई गारंटी नहीं है<p> ' दहेज ' कोई गारंटी नहीं है</p><div><div>निपटाने की साज़िश है</div><div>घर में घुसने का पास भर है</div><div>चलचित्र की सफलता </div><div>अपने अभिनय पर भी है</div><div>छह रुपए हों या छह करोड़</div><div>मन कहीं मिला 'एक ' का</div><div>पार हो गए साठ साल</div><div>नहीं मना लो छह दिन की छट्ठठी </div><div>बरही या फिर ......बस।</div><div>लालसा है लालच है</div><div>पराकाष्ठा है नफरत का बीज</div><div>रिश्ते मर जाते हैं</div><div>खौलता है खून</div><div>बेहया बेशरम लाल लाल फूल</div><div>सेमल सा - जैसे गोला आग का ।</div><div>अपनी औकात भर</div><div>भर के हम दांत चियार लेते हैं</div><div>होंठ फैला जबरन हंस लेते हैं</div><div>कभी खेत बेंच के </div><div>कभी कर्ज लेे के </div><div>कभी किसी का गला काट के ।</div><div>गारंटी नहीं है कोई </div><div>घर बसा देने की</div><div>प्रेम का दिया जला देने की</div><div>दिया तो दिया है</div><div>क्या रूप धारण कर ले ।</div><div>आइए जोड़ें हाथ दुआ करें</div><div>पंख मजबूत हों </div><div>चिड़िया उड़े खूब उड़ें</div><div>खुले आसमान में ।</div><div>-----------------------------</div><div>सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5</div><div>प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश </div><div>भारत ।</div></div><div><br style="background-color: #ff7fff; font-family: Georgia, Utopia, "Palatino Linotype", Palatino, serif; font-size: 14.49px;" /></div>Surendra shukla" Bhramar"5http://www.blogger.com/profile/11124826694503822672noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4107023095685977479.post-41796765676286541402020-08-24T07:40:00.004+05:302020-08-24T21:47:28.087+05:30Bhai Chara / भाईचारा / Brother Hood<table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><tbody><tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhNXQbvepp7_blmYtdtWcnbr69dZbMTUzEiMD3rJMHVVYHnR9_zidK5pf8wIe_FQ9LhqOldbYbMbzA3j_lDWMh62O1H4MPHq3AZlCo6c3knKILH75xFBlMdgcvA-AhPmayJtycKr8E8pkY/s1200/Bhai-Chara-Brother-Hood.jpg" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img alt="Bhai-Chara-Brother-Hood" border="0" data-original-height="628" data-original-width="1200" height="209" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhNXQbvepp7_blmYtdtWcnbr69dZbMTUzEiMD3rJMHVVYHnR9_zidK5pf8wIe_FQ9LhqOldbYbMbzA3j_lDWMh62O1H4MPHq3AZlCo6c3knKILH75xFBlMdgcvA-AhPmayJtycKr8E8pkY/w400-h209/Bhai-Chara-Brother-Hood.jpg" title="Bhai Chara / भाईचारा / Brother Hood" width="400" /></a></td></tr><tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;"><h4><a href="https://meremankee.blogspot.com" rel="nofollow" target="_blank">Bhai Chara / भाईचारा / Brother Hood</a></h4></td></tr></tbody></table><p><br /></p><h1 style="text-align: center;"><u>Bhai Chara / भाईचारा / Brother Hood</u></h1><div style="text-align: center;"><u><br /></u></div><div style="text-align: center;">क्या गजब है देशप्रेम,</div><div style="text-align: center;">क्या स्वर्णिम इतिहास हमारा है|</div><div style="text-align: center;">अजब-गजब कि मिलती मिसालें,</div><div style="text-align: center;">क्या अद्भुत भाईचारा है||</div><div style="text-align: center;"><br /></div><div style="text-align: center;">जब भी दुश्मन आता सरहद पर,</div><div style="text-align: center;">हमें देशप्रेम बुलाता है|</div><div style="text-align: center;">माँ भारती कि आन-बान को,</div><div style="text-align: center;">हर भारतवासी मर-मिट जाता है||</div><div style="text-align: center;"><br /></div><div style="text-align: center;">जब सैनिक भारत माँ कि रक्षा को,</div><div style="text-align: center;">सीने पर गोली खाता है|</div><div style="text-align: center;">हर भारतवासी के सीने को,</div><div style="text-align: center;">वो लहूलुहान कर जाता है||</div><div style="text-align: center;"><br /></div><div style="text-align: center;">जब जब आई है विपदा हम पर,</div><div style="text-align: center;">हम कंधे से कंधा मिलाते है|</div><div style="text-align: center;">हम भारत माँ और उन वीर सपूतो के,</div><div style="text-align: center;">वंदन को शीश झुकाते है||</div><div style="text-align: center;"><br /></div><div style="text-align: center;">वीर सपूतो के बलिदानों पर,</div><div style="text-align: center;">हर भारत वासी हारा है|</div><div style="text-align: center;">हम माँ भारती कि संताने है,</div><div style="text-align: center;">और हिंदुस्तान हमारा है||</div><p style="text-align: center;">क्या अद्भुत भाईचारा है||</p><div style="text-align: center;"><br /></div><div style="text-align: center;"><br /></div><div style="text-align: center;"><pre style="text-align: left;"><h3 style="text-align: center;"><a href="https://draft.blogger.com/#" style="font-family: "times new roman"; white-space: normal;"><font face="">ऋषभ शुक्ला</font></a></h3><h2 style="font-family: "times new roman"; text-align: center; white-space: normal;"><a href="https://draft.blogger.com/#">Hindi Kavita Manch / हिंदी कविता मंच</a></h2><div style="font-family: "times new roman"; text-align: center; white-space: normal;">आप मेरी कविताओं को अगर पढ़ना चाहे तो नीचे लिंक पर जाकर मेरे ब्लॉग पर पढ़ सकते हैं|</div><div style="font-family: "times new roman"; text-align: center; white-space: normal;"><b>Hindi Kavita Manch /हिन्दी कविता मंच</b> - <a href="https://draft.blogger.com/#" id="Hindi Kavita Manch" name="Hindi Kavita Manch" rel="nofollow" target="_blank">https://hindikavitamanch.blogspot.com/</a></div><div style="font-family: "times new roman"; text-align: center; white-space: normal;">मेरी कहानियों को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें|</div><div style="font-family: "times new roman"; text-align: center; white-space: normal;"><b>Mere Man Kee / मेरे मन की</b> - <a href="https://draft.blogger.com/#" id="Mere Man Kee" name="Mere Man Kee" rel="nofollow" target="_blank">https://meremankee.blogspot.com/</a></div><div style="font-family: "times new roman"; text-align: center; white-space: normal;">मेरे यात्रा से संबंधित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें|</div><div style="font-family: "times new roman"; text-align: center; white-space: normal;"><b>Ghumakkadi Dil Se / घुमक्कड़ी दिल से</b> - <a href="https://draft.blogger.com/#" id="Ghumakkadi Dil Se" name=" Ghumakkadi Dil Se" rel="nofollow" target="_blank">https://theshuklajee.blogspot.com/</a></div><div style="font-family: "times new roman"; text-align: center; white-space: normal;"><b>Facebook / फेसबुक</b> - <a href="https://instagram.com/theshuklajee" id="Instagram" name="Instagram" rel="nofollow" target="_blank">https://instagram.com/theshuklajee</a></div><div style="font-family: "times new roman"; text-align: center; white-space: normal;"><b>Instagram / इंस्टाग्राम</b> - <a href="https://www.facebook.com/theshuklajii" 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src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj_lGZ5Gv3JRefsV7v4fl8XSUjD_O1AKABUtTAka6DKEjTn7myKNlCI6g-5jduDiBxaWmJthBnbZ3STWveFYresmCBwqEVh_fP7ejfQhbiRlhYHY9atLnvUW8Pzw_d3uJVR64AIFHvRrIQz/s320/index.png" width="320" height="238" data-original-width="260" data-original-height="193" /></a></div>
अब सो जाओ। सुबह बात करते हैं।
सुबह होने में अभी कई घंटे बाकी हैं। सारी रात ही तो बाकी है। इस बेचैनी के साथ भला कैसे होगी सुबह? रात को नींद ही कहाँ आएगी!
तुम इतनी परेशान मत होओ। सुबह इसका हल निकालेंगे। अभी सो जाओ।
प्रयास तो बहुत किया सोने का, परन्तु नींद को तो मानो मुझसे शत्रुता हो गई थी। या कहो उसे मेरी फ़िक्र बहुत थी। आधी रात तो बस करवटें बदलने में भी चली गई और शेष बुरे स्वपनों से चैंकने में।
सुबह उठी तो ऐसा लगा ही नही कि रात भर सोई भी थी। सिर और मन दोनों ही बोझिल थे।
कुछ सोचा तुमने कि क्या करना है?
हम्म्म....... मन है कि पहले तुमसे लड़ लूँ।
मुझसे? वो क्यों भला? मैंने क्या किया?
तुम ही तो इतने दिनों से हमें नाकारा सिद्ध कर रहे थे। जब तुम ही हमारी समस्या या परेशानी नही समझोगे, तो भला बाहर वालों से क्या आशा रखें? तुम तो सब अपनी आँखों से देखते हो, समझते हो। तब इतने आरोप हम पर......। और जो इस विभाग से परिचित भी नही हैं, वे तो मानो अपराधी साबित करने के अवसर ही तलाशते रहते हैं।
मैंने तो तुमसे ऐसा कुछ भी नही कहा, जो तुम इतनी क्रोधित हो रही हो।
क्यों भूल गए? तुम ही ने तो कहा था ना कि जब सब स्कूलों में ऑनलाइन पढ़ाई हो रही है, तो तुम्हारे सरकारी स्कूल में भी ऑनलाइन पढ़ाई होनी चाहिए। मैं तुम्हें समझा रही थी कि यह सब यकायक आरंभ नही हो सकता। जिन प्राइवेट स्कूलों में यह सब हो रहा है, वे लोग कहीं न कहीं आॅन लाइन प्रक्रियाओं से पहले से ही जुड़े हुए हैं। और जिन सरकारी स्कूल के बच्चों के साथ आप यह सब आरंभ करने के लिए कह रहे हैं, ये वे बच्चे हैं, जो आर्थिक रूप से अत्यधिक कमजोर हैं। जिनके घर खाना तक खाने के लिए नही होता, इसीलिए स्कूलों में मिड डे मील बनता है। तो भला ये बच्चे व्हाट्स अप या अन्य किसी एप पर आॅन लाइन क्लास कैसे कर सकते हैं?
पर आपने मेरी बात न समझकर, यह कहा कि हम सरकारी शिक्षक काम न करने के बहाने तलाशते हैं। कुछ समस्याओं की यर्थाथता को भी समझना चाहिए। अब बताइये..... हो गई न समस्या खड़ी।
मेरे कहने का यह अर्थ नही था। मैं तो बस उन बच्चों की भलाई के लिए कह रहा था। मुझे इस प्रकार की समस्या का अनुमान तक न था।
आपसे अधिक विभागीय परिस्थितियों को तो हम ही समझ सकते हैं ना? और सौ में से यदि नौ-दस बच्चों के व्हाट्स अप नम्बर मिल भी गए तो बाकी के नब्बे बच्चों को कैसे पढ़ाएंगे? आपके सामने ही उन्हें फ़ोन किया है। वे किस प्रकार भद्दी भाषा का प्रयोग करते हैं। अभिभावक साफ़-साफ़ मना कर रहे हैं कि यह समय गेहूँ की कटाई का है। गेहूँ काटें या बच्चों को पढ़ाई पर बैठाएं? और तो और टीचर का नम्बर क्या मिल गया, दिन-रात कितने फ़ोन करने शुरू कर दिए! न कोई समय देखता है और न कोई मर्यादा है। कोई उल्टी-सीधी बात शुरू कर देता है। कोई सिर्फ़ इसलिए फ़ोन कर रहा कि आपसे बात करने का मन है। क्या हमारी कोई व्यक्तिगत् जिंदगी या परिवार नही है? क्या हमारी सुरक्षा सुनिश्चित नही की जानी चाहिए? क्या अध्यापक होने के नाते हमें शिक्षक-सम्मान का अधिकार नही है?
उन दस बच्चों के साथ बनाए व्हाट्स अप ग्रुप में जिस भद्दी गाली से हमें सम्बोधित किया गया है, उसने तो मेरी आत्मा को ही लज्जित कर दिया। उन शब्दों का स्वयं के लिए प्रयोग मेरे आत्मसम्मान के लिए असहनीय है। हो सकता है कि किसी में गाली सहने की शक्ति हो, परन्तु मेरे लिए अत्यधिक कष्टदायी है। मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है, मानो किसी ने मेरा गला दबा रखा हो। मैं ग्रुप में बच्चों को पढ़ा रही थी। मैं क्या पढ़ा रही हूँ एक शिक्षिका होने के नाते मैं अच्छी तरह से जानती हूँ। वे जो पढ़े भी नही और इस प्रकार की अभद्र भाषा का प्रयोग कर रहे हैं, वे मुझे ‘ज्ञान’ बाँट रहे हैं कि मैंने क्या काम दे दिया?
अलबत्ता तो वे समझ ही नही पाए कि यह ग्रुप बच्चों की पढ़ाई के लिए बनाया गया है। एक भी दिन उस बच्चे ने मेरे द्वारा दिया गया कोई भी कार्य कर ग्रुप में नही भेजा। पर हाँ, उसके घर में से जिसका वह व्हाट्स अप नम्बर था, उसने इतनी गंदी गाली अवश्य भेजी। क्या अब भी आप हमें नकारा कहेंगे? सिर्फ़ इसलिए कि हम पर ‘सरकारी’ होने का टैग है।
ऐसा नही है। तुम ग़लत समझ रही हो। मैं जानता हूँ कि सरकारी संस्थाएँ भले ही बहुत गालियाँ खाती हैं, परन्तु देश की व्यवस्था की रीढ भी ये ही हैं। इन संस्थाओं की जवाबदेही होती है। कोई भी जिम्मेदारी वाला कार्य इन्हीं संस्थाओं को भरोसे के साथ दिया जाता है। ये सरकारी संस्थाएं ही हैं, जो किसी भी कार्य को मना करने के अधिकार से वंचित होती हैं। यदि इन्हें चाँद तोड़ने के लिए कहा जाए, तो भी एक सरकारी कर्मचारी तोड़ने के लिए निकल पड़ता है। क्योंकि न कहने का अधिकार तो उसके पास है ही नही। देश के सभी ‘बड़े’ कार्य चुनाव, जनगणना, बालगणना इत्यादि और गालियाँ खाना सभी तो सरकारी कर्मचारी को ही करने होते हैं। यदि देश में कोई महामारी फैल जाए तो प्राइवेट डाॅक्टर्स दुबक कर बैठ जाते हंै, सभी तो नही परन्तु अधिकतर। लेकिन सरकारी डाॅक्टर फ्रंट पर खड़ा होता है। इसी प्रकार सभी विभागों में यही हाल है। तो तुम भी परेशान मत होओ। तुम सरकारी हो। काम भी करो, और गालियाँ भी खाओ। आदत डाल लो।
आप मज़ाक बना रहे हैं मेरा।
नही, समझा रहा हूँ तुम्हें। मात्र एक बच्चे के अभिभावक द्वारा किया गया अभद्र व्यवहार तुम्हारा आत्मविश्वास नही तोड़ सकता। इस बच्चे के अभिभावक की विभाग में शिकायत करो। और बाकी बच्चों के प्रति अपने दायित्वों का निर्वहन करो। न घबराओ, न परेशान होओ। बस अपना कर्म करो।
थैंक्यू। मैं आपकी बात समझ गई। आप सही कह रहे हैं। मैं ज़रा बच्चों को आज का काम दे दूँ।Neeraj Tomerhttp://www.blogger.com/profile/13465457984997533137noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4107023095685977479.post-66246863563479385972020-05-03T16:32:00.000+05:302020-05-03T16:32:06.716+05:30मानव मानवता को वर ले<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
</div>हमने मिलकर थाल बजाई,<br />
शंख बजा फिर ज्योति जगाई,<br />
मंत्र जाप मन शक्ति अाई,<br />
योग ध्यान आ करें सफाई,<br />
जंग जीत हम छा जाएंगे,<br />
विश्व गुरु हम कहलाएंगे,<br />
आत्मशक्ति अवलोकन करके,<br />
एकाकी ज्यों गुफा में रह के,<br />
जन मन का कल्याण करेंगे<br />
द्वेष नहीं हम कहीं रखेंगे<br />
प्रेम से सब को समझाएंगे<br />
मानव मानवता को वर ले<br />
पूजा प्रकृति की जी भर कर ले<br />
मां है फिर गोदी में लेगी<br />
पीड़ा तेरी सब हर लेगी<br />
हाथ जोड़ बस करे नमन तू<br />
पाप बहुत कुछ दूर रहे तू<br />
जल जीवन कल निर्मल होगा<br />
मन तेरा भी पावन होगा<br />
मां फिर गले लगा लेगी जब<br />
खेल खेलना रमना बहुविधि<br />
सब को गले लगाना फिर तुम<br />
हंसना खूब ठ ठा ना जग तुम।<br />
<br />
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5<br />
UTTAR PRADESH<br />
10APRIL2020<br />
7.11 AM<br />
Surendra shukla" Bhramar"5http://www.blogger.com/profile/11124826694503822672noreply@blogger.com0