शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

एक पुरानी कहानी ..सुरा पुराण .....डा श्याम गुप्त...

शैतान ने ,
दुनिया के निरीक्षण का मन बनाया ;
साथ में एक-
एडीशनल को लेकर आया |
देखें कहाँ तक फ़ैली है-
शैतान की माया |

भूखा किसान ,
हल जोतकर थका थकाया ,
एकमात्र रोटी खोजाने पर भी -
न रोया चिल्लाया;
पानी पीकर , पुनः-
स्वयं को काम पर लगाया |

शैतान ने अपने दूत को हडकाया -
कहाँ है मेरा नाम,
कहाँ है मेरी माया ?
ऐसे तो होजायगा-
शैतान के नाम का सफाया |
यदि शीघ्र ही दुनिया में,
अनाचार नहीं फैला पायगा ;
तो रौरव नर्क की भीषण आग में,
झोंक दिया जायगा |
 दूत  ने कुछ समय माँगा,
सेवक बनकर किसान के घर आया |

इस  बार बहुत वर्षा होगी ,
सेवक ने किसान को समझाया ;
उसने ढलान पर अन्न  उगा कर -
भरपूर लाभ उठाया |
अगले वर्ष भी सेवक की सलाह से-
उसने खूब अन्नपाया ;
इसका क्या करें ,
किसान न समझ पाया |
तब सेवक ने उसे ,
मदिरा बनाने का उपाय बताया,
मदिरा पीना सिखाया |

दूत के आमंत्रण पर-
शैतान  पुनः निरीक्षण पर आया ;
और किसान के यहाँ , पार्टी में-
शराव को पानी की तरह बहते पाया |
एक भृत्य शराव ढालते समय लडखडाया ,गिरा -
 और जाम फर्श पर लहराया |
किसान  ने भृत्य को मारा चांटा ,
दूत ने शैतान का ध्यान ,
यूं बांटा |

महामहिम...
एक मात्र रोटी के खोजाने पर ,
जो नहीं था घबराया ;
देखिये ,उसी ने -
एक जाम शराव पर यूं शोर मचाया |

पहला पैग पीते ही -
सभी आनंद से बौराये;
सभी ने अपनी अपनी शान में ,
अपने ही गुण-गीत गाये |
दूसरे गिलास्  में , माहौल-
क्रोध और गुर्राहट से गर्माया ;
 भेड़ियों की तरह चीख  चीख कर -
सब ने अपना भयंकर रूप दिखाया |
अंतिम जाम,
जब वो आजमाने लगे,
तो नाली की कीचड में गिरकर  -
सूअर की भांति हुर्राने लगे |

शैतान ने हर्षित होकर,
दूत को दी बधाई , कहा-
ये क्या चीज़ है,
और कैसे बनाई !

दूत ने बड़े गर्व से सीना फुलाया , बोला-
मैंने इसमें लोमड़ी, सूअर और भेड़िये का,
रक्त था मिलाया |
शैतान ने -
अपने दूत की पीठ को थपथपाया ;
अब होजायेगा , पृथ्वी से-
भगवान् के नाम का सफाया |

जब तक इंसान,
शराव पीता रहेगा ;
पृथ्वी पर,
शैतान के नाम का डंका -
बज़ता रहेगा ||

5 टिप्‍पणियां:

  1. शराब पीना स्वस्थ्य और व्यक्तित्व दोनों के लिए हानिकारक है इसका काव्यात्मक रूपांतरण पढ़कर आनंद आ गया

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  2. डॉ श्याम गुप्त जी

    आप का गीत (१)

    मूर्ति देव है जन जीवन का ये अटपटी सी व्याख्या है -कुछ आकर को कुछ निराकार को मानते हैं -वैसे भी देव देव है मन में रहता है पूजा जाता है - मूर्ति यहाँ वहां पड़ी ...

    सागर से मिलते हैं मोती ये भी मात्र भ्रम है आप का मोती तो सीपी के मुह में बंद पड़ा रहता है --और वहीँ उसकी पहचान है

    बृक्ष भला कब फल खाते हैं,
    पुष्प कहाँ निज खुशबू लेते |- ये सब पुरानी बाते हैं -अगर उनके मुह होता या नाक होती तो जरुर करते जैसे हम -

    पेड़ लगाने से देव ऋण से नहीं मुक्त होते लोग - चार प्रकार के ऋण हैं देव ऋण उनमे से एक और उससे मुक्त होने के गरीब और अभागे लोगों को भोजन और अन्य गुजारे की चीजें दान में देनी होती है

    जो प्रसन्न देवों को रखते,
    उनको ही कहते हैं मानव |.. मानव वही है जो मानवता को माने जाने उस का इस जीवन में हर पल उपयोग करे अच्छा करे बुद्धि विवेक पढाई अध्ययन अध्यापन पर मन मष्तिष्क लगाये

    रचना का भाव प्यारा है -लेकिन बीच बीच में विषय से हट गए हैं

    शुक्ल भ्रमर ५

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  3. जब तक इंसान,
    शराव पीता रहेगा ;
    पृथ्वी पर,
    शैतान के नाम का डंका -
    बज़ता रहेगा ||

    श्याम जी रचना का सन्देश बड़ा प्यारा है लेकिन बहुत से शब्द चिपक गए या गलत हो गए हैं भाव बिगाड़ रहे हैं -नशा सब बुरा है पीने या इस की लत डालने में भलाई नहीं है -बहुत से लोग आप से सीखते हैं शब्दों पर ध्यान दिया करें
    एकमात्र रोटी खोजाने पर भी
    ऐसे तो होजायागा-
    उसने ढलान पर आन उगा कर -
    एक मात्र रोटी के खोजाने पर ,
    एकजाम शराव पर यूं शोर मचाया |
    लौमडी
    शुक्ल भ्रमर ५

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  4. भ्रमर जी..धन्यवाद....मूर्ति देव है....के बारे में तो उसी पोस्ट पर यथास्थान समझा दिया गया है...देखें...

    ---ये टाइपिंग की असावधानियाँ हैं , ठीक करदी जायगीं धन्यवाद ध्यान दिलाने के लिए...पर भाव तो वही हैं ..आगे की पंक्तियों में वही शब्द दोहराए गए हैं जो भाव स्पष्ट कर देते हैं....जैसे

    दिया जायगा ..खूब अन्नपाया ;

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