सोमवार, 5 सितंबर 2011

श्री गुरवे नमः॥


श्री गुरवे नमः॥

गुरूर्ब्रह्मा,गुरूर्विष्णुः,गुरूर्देवो महेश्वरः गुरूर्साक्षात् परब्रह्म् तस्मै श्री गुरवे नमः॥ 
अखण्डमण्डलाकांरं व्याप्तं येन चराचरम् तत्विदं दर्शितं येन,तस्मै श्री गुरवे नमः॥


जय बाबा बनारस........

3 टिप्‍पणियां:

  1. मंगलवार, ६ सितम्बर २०११
    राजनीति में प्रदूषण पर्व है ये पर्युषण पर्व नहीं .
    राजनीति का प्रदूषण पर्व है ये पर्यूषण पर्व नहीं है .इसके प्रदूषक कारक हैं (प्रदूषक )हैं अमर सिंह ।
    किसकिस का मुंह बंद करेगी सरकार ?संसद वाणी पर तो पाबंदी लगा सकती है भाव पर नहीं .संसद एक भाव सत्ता है .बिला शक वह आज निर्भाव है ।
    अब तलक सिर्फ निर्विरोध सांसदों के भत्ते बढाने का अभूतपूर्व काम किया है संसद ने .संसद की अस्मिता को बरकरार रखने वाला कौन सा काम किया है ?
    अमर सिंह जैसों के धतकर्म पर दो मिनिट का मौन रखके संसद को शर्मिन्दगी ज़ाहिर करनी चाहिए थी ।
    लालू जी ने बिहार की सड़कों को हेमा मालिनी के गालों जैसा बनाने की बात कही थी .क्या उससे संसद की गरिमा बढ़ी थी ?
    क्या संसद ने इस पर कभी अफ़सोस ज़ाहिर किया ?
    शरद यादव जी ने अभी हाल ही जो कहा था क्या उससे संसदीय बहस का मान बढ़ा है ?
    पहले संसद जनता को यह बतलाये संसद का काम क्या है .खासकर इस दौर में जब सब कुछ अब कैमरे के सामने घटित होता है .बौखलाहट किस बात की है ?
    क्या कोई सार्थक विमर्श होता है संसद में ?
    क्या आज तक सेक्युलर ,राष्ट्रद्रोह ,आतंक वाद जैसे शब्द परिभाषित हुए ?कौन है सेक्युलर इस देश में ?राष्ट्र द्रोह क्या है इसका अर्थ जनता को पता चला है ?यहाँ तक कि आतंकवाद भी मज़हब के खानों में तकसीम कर दिया गया है ।
    क्या अयोध्या का मसला सुलझा ?ईसा के कफन सा यह आज तक अनिर्णीत है ?एक बुजुर्ग जो मंदिर के दस बाई दस फुट के कमरे में रहता था सरकार को अदालत की तरह चलाने वाले लोगों के बहकावे में आके सरकार ने उस कमरे की पैमाइश की यह कहते हुए यह कोर्पोरेट सत्ता का एजेंट हैं .आज वही सरकार एक सांस में उसे जेड श्रेणी की सुरक्षा देने की बाद कह रही है दूसरे सांस में उसके आधिकारिक प्रवक्ता आज भी यही विष वमन कर रहें हैं .उन्हें आर एस एस का मुखौटा बतला रहें हैं .आर एस एस को बदनाम करने के लिए ये सरकारी तोते यम लोक तक जाने को तैयार हैं ।
    सांसदों को पहले अपने कर्म और आचरण की शुचिता निर्धारित परिभाषित करनी चाहिए फिर अपने ऊंचे कद ऊंचे आसन ,महत्व कांक्षा और विशेषाधिकार की बात करें ।
    विशेषाधिकार का मतलब सिर्फ इतना होता है कोई बाहरी ताकत हमारे सांसदों को अपना काम काज ,विधाई काम करने से न रोके ।
    बेशक विशेषाधिकार हाउस ऑफ़ कोमंस से लेकर ,ऑस्ट्रेलिया क्या ,कोमन वेल्थ के बकाया हिस्से तक भी पहुँच गया है .लेकिन इस विशेषाधिकार का मतलब न तो संसदीय एंठ हैं न अति -महत्वकांक्षी ऊंचा सिंह-आसन .राजपाट के काम को बाहरी ताकतों के हस्तक्षेप से बचाना भर है जिसका स्वरूप निर्धारित हो चुका है ।
    सरकार को चाहिए रोज़ सुबह उठकर आइना देखे !सोचे सरकार उसकी आज यह विश्वसनीयता कहाँ बिला गई ?क्यों पूरी तरह खत्म हो गई ।
    सरकार शर्म शारी महसूस करे उस सब पर जो अब तक हुआ है .सरकारी तोतों को सरकारी पिंजरे के हवाले करे .छुट्टा न छोड़े ।
    किरण बेदी जी और अन्यों ने सिर्फ आक्रोश व्यक्त किया है सरकार को उसका स्वागत करना चाहिए .मैं कुछ नहीं कहता लोग कह रहें हैं -सरकार की विश्वसनीयता और साख को लेकर आज तरह तरह के चुटकले चल चुकें हैं .लोग पूछ्तें हैं कहाँ है सरकार ?कैसी है सरकार ?

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