अगर आपको कुछ दिनों से खांसी आ रही है, भूख नहीं लगती, लगातार आपका वजन कम होता जा रहा है .तो इसे नजरअंदाज बिल्कुल मत करिए क्योंकि ये किसी बड़ी बीमारी की दस्तक हो सकती है. हम बात कर रहे हैं टीबी की जो जानलेवा भी हो सकती है। टीबी एक संक्रामक बीमारी है जो बीमार व्यक्ति से सेहतमंद लोगों में भी फैल सकती है।
खांसी. देखने में आम है लेकिन लगातार 3 हफ्ते से अधिक खांसी है तो सावधान, ये टीबी यानी ट्यूबरक्लोसिस की बीमारी की शुरुआत हो सकती है। ये एक ऐसा संक्रामक रोग है, जो माइको बेक्टीरियम ट्यूबरक्लोई नामक बैक्टेरिया की वजह से होता है। यह बैक्टीरिया शरीर के सभी अंगों में प्रवेश कर रोग ग्रसित कर देता है। ये ज्यादातर फेफड़ों में ही पाया जाता है। लेकिन इसके अलावा आंतें, मस्तिष्क, हड्डियों, जोड़ों, गुर्दे, त्वचा, हृदय भी टीबी से ग्रसित हो सकते हैं… ये अगर किसी को हो जाए तो उससे दूसरे को होना भी लाजमी है। इसके बैक्टेरिया तेजी से फैलते हैं। टीबी रोगियों के कफ, छींकने, खांसने, थूकने और छोड़े गए सांस से हवा में बैक्टीरिया फैल जाते हैं। जिसकी वजह से स्वस्थ व्यक्ति भी आसानी से इसका शिकार हो सकता है। संक्रमित व्यक्ति के कपड़े छूने या उससे हाथ मिलाने से टीबी नहीं फैलता। टीबी बैक्टीरिया सांस के जरिए फेफड़े तक पहुंचता है तो वह कई गुना बढ़ जाता है और फेफड़ों को प्रभावित करता है। हालांकि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता इसके बढ़ते प्रभाव को रोकने में मदद करती है, लेकिन जैसे-जैसे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती जाती है, टीबी के संक्रमण की आशंका बढ़ती जाती है। इस बीमारी के तीन स्टेज होते हैं, पहली अवस्था में पसलियों में दर्द, हाथ-पांव में अकड़न, पूरे शरीर में हल्की-सी टूटन और लगातार बुखार बना रहता है। .इस अवस्था में रोग के एहसास या उसके होने का ठीक से पता नहीं लगाया जा सकता। दूसरी अवस्था में रोगी की आवाज मोटी हो जाती है, पेट दर्द की समस्या होती है, कमरदर्द, बुखार आदि के लक्षण प्रकट होते हैं। इस अवस्था में अगर रोग का पता लग जाए तो सहज रूप से इसका इलाज हो सकता है। तीसरी अवस्था में रोगी को तेज बुखार होता है, तेज खांसी होती है जो उन्हें बहुत ज्यादा परेशान करती है। कफ के साथ सामान्य खांसी और खांसी के साथ खून भी आता है। यह स्थिति गंभीर मानी जाती है।
इस बीमारी की दस्तक अक्सर खामोश होती है, इसके लक्षण आम बीमारी की ही तरह होते हैं। जिसे लोग हल्के में लेते हैं, जिसके परिणाम बेहद भयावह हो जाते हैं। इसलिए ये जरूरी है कि शुरूआत में ही इस बीमारी के लक्षणों की पहचान हो सके, तो जानते हैं कि क्या हैं इस बीमारी के आम लक्षण।
टीबी के आम लक्षण-
तीन सप्ताह से अधिक खांसी
बुखार जो खासतौर पर शाम को बढ़ता है।
छाती में दर्द
वजन का घटना
भूख में कमी
बलगम के साथ खून आना
फेफड़ों का इंफेक्शन बहुत ज्यादा होना
सांस लेने में दिक्कत
देश में ये बीमारी तेज़ी से अपने पैर पसार रही है, जिससे रोजाना बड़ी तादाद में मौतें भी होती हैं…हांलाकि ये बीमारी जानलेवा है…लेकिन कभी लाइलाज होने वाली ये बीमारी अब लाइलाज नहीं रह गई है। इसका इलाज संभव है, लेकिन जरूरत है कि इस बीमारी का वक्त रहते पूरा इलाज किया जाए।
भारत में रोज लगभग 4 हजार लोग टीबी की चपेट में आते हैं और 1000 मरीजों की इस बीमारी की चपेट में आने से मौत हो जाती है। कभी लाइलाज रही टीबी का आज इलाज संभव है। 24 मार्च 1882 को सर रॉबर्ट कॉक ने सबसे पहले टीबी के बैक्टीरिया के बारे में बताया था इसलिए इस दिन टीबी दिवस मनाते हैं। टीबी कोई आनुवांशिक रोग नहीं है। ये कभी भी किसी को भी हो सकता है। ये एक संक्रामक रोग है जिससे छुटकारा पाने का तरीका इसका पूरा इलाज है। अगर इसका पूरा इलाज न किया जाए तो इस रोग को कभी खत्म नहीं किया जा सकता है और व्यक्ति की मौत हो जाती है। भारत सरकार के डॉट्स केन्द्र देश भर में हैं जहां टीबी के इलाज की नि:शुल्क व्यवस्था है। जरूरत है तो बस पूरे इलाज की, आमतौर पर देखने को मिलता है कि जब लोग थोड़ा ठीक महसूस करने लगते है…तो या तो वो लापरवाही बरतने लगते हैं या फिर इलाज बीच में ही छोड़ देते हैं। जिससे ये बीमारी पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाती है, इसलिए डॉक्टर के मुताबिक पूरा इलाज करना चाहिए। इस बीमारी के इलाज के साथ साथ खाने-पीने का भी पूरा ख्याल रखना चाहिए। टीबी के मरीजों को संतुलित आहार के साथ हाई प्रोटीन डाइट लेना जरूरी होता है। खाने के मामले में किसी तरह का कोई परहेज नहीं होता। बस आहार पौष्टिकता से भरपूर होना चाहिए। दूध, अंडे, मुर्गा, मछली आदि में बेहतर प्रोटीन होता है। इसलिए मरीजों को भोजन के रुप में इसे ही यूज करना चाहिए। इसके अलावा लौकी, तुलसी, हींग, आम का रस,अखरोट, लहसुन, देसी शक्कर, बड़ी मुनक्का, अंगूर भी बहुत फायदेमंद साबित होते हैं। अगर एक सामान्य व्यक्ति को एक ग्राम प्रोटीन डाइट की सलाह दी जाती है तो टीबी के मरीज को 1.5 ग्राम प्रोटीन की सलाह दी जाती है।
टीबी संक्रमक बीमारी है इसलिए इससे बचाव बेहद जरूरी है…कैसे करें इस बीमारी से बचाव ये जानते हैं।
टीबी से बचाव-
बच्चों को जन्म से एक माह के अंदर टीबी का टीका लगवाएं।
खांसते -छींकते समय मुंह पर रुमाल रखें।
रोगी जगह-जगह नहीं थूकें।
पूरा इलाज कराएं।
अल्कोहल और धूम्रपान से बचें।
पिछले साल विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा प्रकाशित “ग्लोबल टीबी कंट्रोल रिपोर्ट 2011”के मुताबिक इस साल 90 लाख टीबी रोगी में से 10% से 15% टीबी रोगी 14 साल और उससे कम उम्र के बच्चे हैं जिनको इलाज की ज़रूरत होगी। बच्चो में टीबी संक्रमण का एक प्रमुख कारण बड़ों की टीबी है, इसलिए बच्चों में टीबी संक्रमण को रोकने के लिए परिवार के सदस्यों और अभिभावकों को टीबी के बारे में जानकार होना बहुत ज़रूरी है। बच्चों में टीबी कई तरह से हो सकती है जैसे प्रायमरी कॉम्प्लेक्स, बाल टीबी, प्रोग्रेसिव प्रायमरी टीबी, मिलियरी टीबी ,दिमाग की टीबी, हड्डी की टीबी । साधारण तौर पर बच्चों में प्रायमरी कॉम्प्लेक्स होता है। इस बीमारी से बार-बार बुखार आना, लंबे समय तक खाँसी होना, वजन न बढ़ना या वजन घटना, सुस्त रहना, गर्दन में गठानें होना, प्रोग्रेसिव प्रायमरी टीबी में बच्चा ज्यादा बीमार रहता है। तेज बुखार आना, भूख न लगना, खाँसी में कफ आना और छाती में निमोनिया के लक्षणों का पाया जाना। बड़े बच्चों में कभी-कभी कफ में खून भी आता है। जबकि मिलियरी टीबी एक गंभीर किस्म की टीबी है। यह फेफड़ों में सारी जगह फैल जाती है। इसमें बच्चा गंभीर रूप से बीमार रहता है, खाना-पीना छोड़ देता है, सुस्त रहता है, साँस लेने में तकलीफ होती है। ऑक्सीजन की कमी की वजह से बेहोशी छाने लगती है। दिमाग की टीबी मेनिनजाइट्सि के रूप में या गठान के रूप में हो सकती है। इसके अलावा सिरदर्द होना, उल्टियाँ होना, झटके आना या बेहोश हो जाना साधारणतया दिमागी टीबी की ओर इशारा करते हैं। टीबी से ग्रसित बच्चों में प्रायः कुपोषण और एनीमिया पाया जाता है। पौष्टिक और संतुलित आहार इलाज में सहायक होता है। बीसीजी का टीका लगवाने से गंभीर किस्म की टीबी से बचा जा सकता है।
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