चिट्ठियां तो थी नहीं की जुगा कर रखते
बस कुछ एस एम एस थे
बहुत दिनों तक बचे रहे
मगर एक दिन मिटना ही था मिट गए...
हमारे समय में प्रेम
कोई निशानी नहीं छोड़ता..
कुछ स्मृतियाँ होती है,जो बहुत दिनों तक
बरछे की तरह चुभी रहती है.
धीरे धीरे उनका लोहा भी गल जाता है........
मदन कश्यप जी की हंस में प्रकाशित एक कविता...
बस कुछ एस एम एस थे
बहुत दिनों तक बचे रहे
मगर एक दिन मिटना ही था मिट गए...
हमारे समय में प्रेम
कोई निशानी नहीं छोड़ता..
कुछ स्मृतियाँ होती है,जो बहुत दिनों तक
बरछे की तरह चुभी रहती है.
धीरे धीरे उनका लोहा भी गल जाता है........
मदन कश्यप जी की हंस में प्रकाशित एक कविता...
सुन्दर संकलन पढवाने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंभ्रमर ५