मंगलवार, 25 अक्तूबर 2011

महर्षि दयानंद सरस्वती के निर्वाण के १२८ वीं वर्ष गाँठ पर उन्हें मेरा शत शत नमन

महर्षि दयानंद सरस्वती के निर्वाण के १२८ वीं वर्ष गाँठ पर उन्हें मेरा शत शत नमन  
फानूस बन के जिसकी, हिफाजत हवा करे 
वह शम्मा क्या बुझेगी, जिसे रोशन खुदा करे
 होते हैं कुछ लोग, जो इतिहास सुनाया करते हैं 
कमी नहीं उनकी, जो इतिहास चुराया करते हैं 
पर नभ झुकता है उनके आगे धरा गीत उन्ही के गाती
अपने पावन कर्मों से, जो इतिहास बनाया करते हैं 
भारत के भूमंडल पर, जब अज्ञान की कालिमा गहराई 
नहीं पढने का अधिकार था शुद्र को,  बिछड़ रहे थे भाई भाई 
राष्ट्र के पुनरुद्वार हेतु तब, दयानंद रूपी किरणें तब आयीं 
नभ झूम उठा फिर से तब यारों, धरती ने फिर ली अंगडाई 
महर्षि दयानंद सरस्वती उन भारतीय मनीषियों में अग्रणी हैं जिन्होंने अन्धकार में जीने वाले समाज को प्रकाश में जीने का मार्ग दिखाया | भारतीय सामाजिक जीवन में जब दयानंद जी का आगमन हुवा तब देश में निराशा का घोर अन्धकार छाया हुआ था प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की असफलताविजय के मद में चूर अंग्रेजों द्वारा जनता का दमनदेश के एक बड़े जन समुदाय की उदासीनता, व्यर्थ के कर्म कांड में उलझी जनता, धर्म के नाम पर अधर्म की स्थापना जैसे कार्यों से भारतीय जन जीवन में जड़ता लगातार बढती जा रही थी भारतीय अपने गौरवशाली अतीत की बात तो करते थे किन्तु वर्तमान पतन के कारणों को स्पष्ट करने का साहस नहीं था | 
ऐसे समय में महर्षि दयानंद जी ने आम आदमी की चेतना को बुरी तरह झझकोरा तथा उनके पतन के कारणों को भी बताया की उनकी उनकी तमाम  तरह की गुलामी का कारन उनका अज्ञान और अशिक्षा ही है | समाज की आधी आबादी अर्थात महिलाओं को हासिये पर धकेल कर कोई भी समाज आगे नही बढ़ सकता उन्होंने स्त्री शिक्षा पर अधिक जोर दिया उनका कहना था की एक स्त्री के शिक्षित होने से पूरा एक परिवार ही शिक्षित हो जाता है उन्होंने यह भी स्पष्ट किया की धर्म कुछ कर्मकांडों, रुढियों तथा रीती-रिवाजों का नाम नहीं है अपितु धर्म तो जीवन जीने की एक शैली है धर्म करने योग्य तथा न करने योग्य कर्मो में अंतर को बताता है धर्म सत्य-असत्य, न्याय-अन्याय के बीच सही चयन की समझ को विकसित करता है धर्म मनुष्य के भीतर अपने देश और समाज के प्रति जिम्मेद्वारी के भाव को प्रबल करता है |
दयानंद सरस्वती ने अपने चिंतन के प्रचार प्रसार के लिए जनता से सीधा संपर्क बनाया उनके कथनी तथा करनी में अंतर न होने के कारण उनके चिंतन के प्रति आम आदमी का विश्वास मजबूत हुवा उन्होंने एक साथ कई प्रकार  की गुलामियों से मुक्ति के लिए आवाज उठाई | जैसे की जाति कीकौम की श्रेष्ठता से मुक्ति के लिएमहिलाओं को सदियों पुरानी गलत परम्पराओं से मुक्ति के लिए | उन्होंने हिन्दू समाज में व्याप्त गैर बराबरी के सिद्धांत को खुली चुनौती दी जिसके परिणाम स्वरुप समाज के हाशियों पर जीने वाले समाज में आत्म गौरव के भाव का विकास हुवा | नारिओं में अपनी अस्मिता के प्रति सजगता का भाव भी प्रबल हुवा इस नव चेतना के परिणाम स्वरुप भारतीय जीवन में आशा और विश्वास का नया सूर्योदय हुवा |
उस समय महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार नहीं था उनके विचारों के अनुरूप आर्य समाज ने आगे बढ़ कर स्त्री शिक्षा के लिए बहुत ही महत्व पूर्ण कार्य किये इसने स्त्रियों के लिए अनेकों स्कुल-कालेज और गुरुकुल स्थापित करने में रूचि दिखाई सन १८९६ में जालंधर में कन्या महा विद्यालय का शिलान्यास इस दिशा में मार्गदर्शक प्रयास था |
 इस दौर में भी महर्षि दयानंद जी के चिंतन की उतनी ही प्रासंगिकता है जितनी की उस दौर में थी | मूल समस्याएँ आज भी मौजूद हैं धर्म के नाम पर व्यर्थ के कर्म कांडों का फिर से प्रचलन बढ़ गया है | दयानंद जी के समय में सती प्रथा थी तो आज उस का रूप बदल कर कन्याओं का उनके जन्म लेने के पूर्व ही कोख में हत्या के रूप में प्रचलन में है | उस समय विदेशी लुटेरे देश लुट कर धन विदेश ले जा रहे थे तो आज देशी लुटेरे यहाँ का धन लुट के विदेश स्विस बैंक में ले जा रहे हैं उस समय गोरे अंग्रेज थे तो आज काले अंग्रेज हैं |
इसलिए आज इस बात की जरुरत है की हम दयानंद जी के चिंतन की गंभीरता को समझ कर समाज के उन वर्गों तक पहुंचाएं जहां इसकी जरुरत है आज बढती हुई विषमता को दूर करने  के लिए सामाजिक कुरुतीओं पर भी अंकुश लगाने की जरुरत है |  इसलिए महर्षि दयानंद जी के निर्वाण के १२८ वर्ष बाद भी उनका सिद्धांत और कर्म का समन्वय आज भी हमें रास्ता दिखाता है |
महर्षि दयानंद सरस्वती के निर्वाण के १२८ वीं वर्ष गाँठ पर उन्हें मेरा शत शत नमन  
गिने जाएँ मुमकिन हैं सहरा के जर्रे  
समंदर के कतरे, फलक के सितारे | 
मगर  दयानंद मुश्किल है गिनना  
जो  अहसान  तुने  किये  इतने  सारे |



3 टिप्‍पणियां:

  1. राष्ट्रवादियों के इस प्रेरणाश्रोत को नमन
    बहुत सुन्दर आलेख

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  2. गिने जाएँ मुमकिन हैं सहरा के जर्रे
    समंदर के कतरे, फलक के सितारे |
    मगर ए दयानंद मुश्किल है गिनना
    जो अहसान तुने किये इतने सारे |

    saraswati ji ko nman......

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  3. प्रिय मदन भाई महर्षि दयानंद पर सुन्दर और सार्थक जानकारी ये हमेशा याद किये जायेंगे और प्रासंगिक रहेंगे ...बहुत अच्छा ..दीवाली की ढेर सारी शुभ कामनाएं ..आइये साहित्य को निरंतर रोशन करें .....जय श्री राधे
    भ्रमर ५

    आज बढती हुई विषमता को दूर करने के लिए सामाजिक कुरुतीओं पर भी अंकुश लगाने की जरुरत है | इसलिए महर्षि दयानंद जी के निर्वाण के १२८ वर्ष बाद भी उनका सिद्धांत और कर्म का समन्वय आज भी हमें रास्ता दिखाता है |

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