कौन बनेगा अध्यक्ष ? |
कैसा लगा शीर्षक, पूर्वांचल के सबसे पहले असोसिएसन की की सबसे अनोखी प्रतियोगिता..
जी हा अभी तक यह होता था की कोई एक ब्लोगर असोसिएसन बनाता था और मनचाहा पद बांटकर खुद मनमानी करता था. संगठन के सदस्यों या पदाधिकारियों की कोई परवाह नहीं. जिसको चाहे जिस पद पर बिठा दिया. और जब चाहे बाहर का राश्ता दिखा दिया ... क्या यह संगठन है जी नहीं. भैया यह तो बसपा सरकार है. जो एक ही आदेश पर चलती है. पर यहाँ संयोजक की मनमानी नहीं चलेगी. चलेगी सिर्फ संगठन की मनमानी और यह करेगा संगठन बहुमत के साथ ,
पहली बार जिसे मेरी चुनौती स्वीकार है जो इस संगठन को चलाने का माद्दा रखता हो. उसे हम पहला " अध्यक्ष" बनायेंगे
हमारी शर्त पूरी करिए और बन जाईये अध्यक्ष ..............
* इस संगठन का मैं आजीवन संस्थापक/ संयोजक रहूँगा. अपने बाद मैं संयोजक किसी को भी बना सकता हूँ.
पर संयोजक का अधिकार सिर्फ सलाह देना रहेगा, मानना न मानना संगठन की जिम्मेदारी. यह शर्त मुझपर भी लागू होगी.
अध्यक्ष का कार्यकाल एक वर्ष होगा. वह कोई भी निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र होगा. पर निर्णय लेने से पहले अन्य पदाधिकारियों की सलाह लेना आवश्यक. अंतिम निर्णय अध्यक्ष का होगा जिस पर कोई विवाद नहीं होगा.
* प्रति वर्ष अध्यक्ष का चुनाव होगा. पर अन्य पदों का चुनाव अध्यक्ष करेगा ताकि वह अपनी टीम के साथ कार्य करे.
यदि आप में एक सामुदायिक ब्लॉग चलाने की हिम्मत है तो आईये खुद को साबित कीजिये की आप में वह माद्दा है की आप चुनौतियों का सामना करना जानते है. सोच लीजिये मुकाबले की चुनौती "भारतीय ब्लॉग लेखक मंच"
के संस्थापक ने दिया है.
{ टिपण्णी अवश्य दे }
हम कमजोर दिल के हैं हिम्मत नहीं है. संगठन की सेना अवश्य बनूंगी.
जवाब देंहटाएंhrish bhaai kursi ko to aap jese honhaar ki hi tlash he . akhtar khan akela kota rasjthan
जवाब देंहटाएं1- 'हम कमजोर दिल के हैं, हिम्मत नहीं है. संगठन की सेना अवश्य बनूंगी'
जवाब देंहटाएं2- 'hrish bhaai kursi ko to aap jese honhaar ki hi tlash he'
:):):)
DONO SE SAHMAT.
ji nahi hame kursi nahi, kam se matlab rahta hai. is sangthan ko main nahi chalaunga. denkhe kab tak khali rahti hai kursi.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंहरीश भाई:
जवाब देंहटाएंमैं तैयार हूँ....मुझे बताएं...कैसे कार्य करना है..शायद आप सभी लोगों के मार्गदर्शन में अपनी युवा शक्ति एवं अनुभव(थोडा बहुत जो भी है) को एक सकारात्मक दिशा दे सकूँ..सभी ने कुर्सी से दूर रहने का ही मत दिया है अब तक...लगता है काँटों भरा ताज है..मैं तो भगवान शिव का उपासक हूँ मेरे आराध्य ने तो गरल पि लिया था ...मैं नहीं मानता हूँ ये उतना कठिन है मगर फिर भी अगर कुछ कठिनाई आयीं तो आप सब के आशीर्वाद से मैं सफलतापूर्वक समाधान करने एवं अपने दायित्वों का निर्वहन करने में खुद को समर्थ पाता हूँ ...
आशुतोष