जब १९८९ -९० में मैं पहली बार मै वैष्णो देवी गया तो कटरा से बान गंगा से निकल कर अर्ध्कुमारी होते हुए पैदल पहुंचा माता के दरबार में तो पूरे रास्ते भर जयकार लगाते हुए लोग मिले . कितना दुर्गम था रास्ता पता ही नहीं चला लेकिन एक बात जो हर व्यक्ति महसूस करता था कि जैसे वैष्णो माता के दर्शन कटरा से ही शुरू हो जाते थे और भवन तक पहुंचना जैसे आस्था का चरम होता था . रास्ते में कितने ही लंगर चलते थे . टी सीरीज के गुलशन कुमार का लंगर जो हमेशा चलता था, लोग कैसे भूल सकते हैं..
कालान्तर बहुत अच्छी सुविधाए हुयी विशेषतया जगमोहन जी के राज्यपाल रहते हुए और आज कटरासे हेलीकोपटर की सुविधा है और ये सुविधा घोड़े और पालकी से भी सस्ती है (रुपये ११०० / एकतरफ से ). जाने और आने में सर्फ २० मिनट और हेलीकोप्टर से जुड़े वीआईपी दर्शन के कारण १ से २ घंटे में दर्शन और वापस .
पिछले महीने माता के दर्शन करने मैं भी हेलीकोप्टर से गया हेलिपैड से मंदिर ३ किमी है जो बहुत दुष्कर नहीं होहम लोगों ने महसूस किया कि अश्था के जिस सैलाव के दर्शन हर कदम पर होते थे उस की प्राप्ति नहीं हो सकी . हेलीपैड पर एक पोर्टर बहुत अनुरोध करने लगा तो हमने उसे साथ ले लिया हालाकि हमारे पास कोई सामान नहीं था, हमने उसे साथ ले लिया . उसका नाम था लाल खान.
वैष्णो मंदिर से भैरव बाबा का मंदिर भी ३ किमी है जो बहुत खडी चढ़ाई है . माता के दर्शन के बाद हमलोग पैदल चलकर भैरव बाबा के मंदिर पहुंचे . लाल खां हमारे साथ रहा. ..माता का जयकारा लगता रहा रस्ते भर. मेरी पत्नी की बहुत सहायता की . सहारा देकर चढ़ाई पार करवाई और .पैर भी दबाये . क्या हिन्दुस्तान का आम मुसलमान लालखां को समझ सकेगा .
रास्ते में हमने देखा कि कई नौजवान युवक और युवतिया अपने छोटे बच्चों को गोद लिए हुए पैदल ही कटरा से वैष्णो माता और वहां से भैरव बाबा जा रहे है . कुछ ने पैरों में जूते और चप्पल भी नहीं पहन रखे है क्योकि उन्होंने ऐसा प्रण किया था .इतनी आस्था और इतना विस्वास देख कर बहुत अच्छा लगा और आस्था के इस संगम में बहते हुए हमलोग भी बड़ी आसानी से ऊपर पहुँच गए .
दर्शन के बाद सीधे हेलीपेड पहुंचा जो लगभग ३ किमी है और फिर कटरा . पूरे रास्ते भर सोचता रहा कि आस्था और विश्वास दोनो ही शक्ति देते हैं, कभी मर नहीं सकते
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