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बुधवार, 5 मार्च 2014
हमारा जौनपुर हमारा गौरव हमारी पहचान |
दो दिन पहले अपनी टिपण्णी में लिखा था
वतन से दूर वतन की याद बहुत आती है |
इस सच को वही जान सकते हैं जो अपने वतन से दूर हैं | हम आखिर अपने वतन से दूर जाते ही क्यूँ हैं ? इस सवाल के पूछते ही सबसे पहले जो जवाब आता है वो है " रोज़गार "|
जी हाँ अपने वतन जौनपुर में सभी कुछ है बस रोज़गार के अवसर कम हैं | सरकार की गलत नीतियों के चलते रतना शुगर मिल बंद हुयी,कताई मिल ,तिलकधारी सिंह होम्यो पैथिक मेडिकल कालेज और पराग डेरी को बंद कर दिया गया ।सतहरिया इडस्ट्रीयल एरिया और त्रिलोचन इडस्ट्रीयल एरिया अब अंतिम सांसें गिन रहा है | एक शतक तक sharqi राज्य की राजधानी रहा जौनपुर उस से पहले बोद्ध लोगों के व्यापार का एक बड़ा केंद्र रहा है | जौनपुर एक कृषि प्रधान शहर है लेकिन बावजूद यहाँ की उपजाऊ मिटटी के सुविधाओं की कमी के कारण आज किसान यहाँ से शहरों की तरफ पलायन कर रहे हैं |
इत्र , चमेली के तेल इत्यादि का उत्पादन अभी अब यहाँ नहीं के बराबर रह गया है | लेकिन क्या जौनपुर से पलायन कर जाना इस बेरोज़गारी की समस्या का हल है ?
यहाँ आज भी रोज़गार के लिए व्यवसाय के अवसर बहुत हैं बस आवश्यकता है यहाँ रह के सरकार से अपने अधिकारों के लिए लड़ने वालों की |
कैस ज़ंगीपूरी का कलाम याद आता है |
हज़ार समां हो कैस लेकिन सफ़र सफ़र है ,वतन वतन है |
लोगों को अक्सर कहते सुना है जो वतन से दूर चला गया इज्ज़त पा गया | ऐसा होता भी है केवल इसलिए की जो वतन से दूर चला गया धन कमाने लगा और आज का समाज केवल धनी को ही इज्ज़त देता है | लेकिन ज़रा ध्यान से देखें क्या आपको वतन से दूर वो इज्ज़त मिली जो आपको अपने वतन में मिला करती थी ? जी हाँ जो इज्ज़त वतन में मिल जाया करती है वो वतन से दूर सुख सुविधाओं के बाद भी नहीं मिल पाती | वहाँ हमेशा इंसान एक मुसाफिर ही बन के रहता है | वतन के लोग ,वतन की बातें , यहाँ के दिन और सुहानी रातें इतनी कशिश रखती हैं की वतन से दूर जाने वालों को हर दिन बेचैन किया करती हैं |
वो किस्मत वाले हैं जिनको वतन में ही रोज़गार मिल गया और आज तो जौनपुर अब तरक्की की और चल निकला है इसलिए अब यहाँ व्यापार में तो कम से कम रोज़गार के अवसरों की कमी नज़र नहीं आती |
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